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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: भारत का विनिर्माण क्षेत्र गति दिखा रहा है, लेकिन इसे लगातार बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इस क्षेत्र में चुनौतियों की गंभीर समीक्षा कीजिये और हाल की पहलों के संदर्भ में सुधार सुझाइए। (250 शब्द)

    01 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में विनिर्माण क्षेत्र के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत के विनिर्माण क्षेत्र में लगातार आ रही चुनौतियों और बाधाओं को रेखांकित कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    आर्थिक विकास की रीढ़, विनिर्माण क्षेत्र, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 17% का योगदान देता है। इस क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2024-25 में 4.26% की वृद्धि दर्शाई, जिसमें विनिर्माण निर्यात 2.52% वार्षिक वृद्धि के साथ 184.13 बिलियन अमेरिकी डॉलर और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह 81.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वर्ष-दर-वर्ष 14% वृद्धि) तक पहुँच गया। इन लाभों के बावजूद, इस क्षेत्र को संरचनात्मक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है जो इसकी पूरी क्षमता को सीमित कर देती हैं।

    मुख्य भाग:

    भारत के विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

    • बुनियादी अवसंरचना की कमियाँ: यद्यपि भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 7.97% रह गई है, जो उल्लेखनीय दक्षता सुधार दर्शाती है।
      • फिर भी, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी में कमियाँ सड़क, रेल और बंदरगाहों के निर्बाध एकीकरण में बाधा बन रही हैं।
    • बार-बार बिजली की निरंतर आपूर्ति न होना, अपर्याप्त जलापूर्ति और अकुशल परिवहन नेटवर्क विनिर्माण दक्षता को बाधित करते हैं।
    • नियामक और नीतिगत अड़चनें: जटिल नियम और कई मंज़ूरियाँ लेन-देन की लागत बढ़ाती हैं।
      • भारत के विनिर्माण MSME को श्रम, पर्यावरण, कराधान और कॉर्पोरेट कानूनों से संबंधित 1,450 से अधिक नियामक दायित्वों का सामना करना पड़ता है, जिससे अनुपालन जटिल एवं समय लेने वाला हो जाता है।
    • कौशल अंतर: भारत के केवल 4.7% कार्यबल के पास औपचारिक कौशल प्रशिक्षण है, जबकि दक्षिण कोरिया में यह 96% है।
      • प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी उत्पादकता, गुणवत्ता नियंत्रण और उन्नत तकनीकों के अंगीकरण में बाधा डालती है।
    • वित्त तक अभिगम्यता: MSME किफायती ऋण तक सीमित अभिगम्यता से जूझ रहे हैं तथा कार्यशील पूंजी की कमी का सामना कर रहे हैं।
      • यद्यपि मार्च 2025 तक, भारत में MSME को दिया गया कुल वाणिज्यिक ऋण ₹35.2 लाख करोड़ (4.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुँच गया, जो वर्ष-दर-वर्ष 13% की दर से बढ़ रहा है। फिर भी, एक महत्त्वपूर्ण ऋण अंतर बना हुआ है, जो कई MSME के विकास और आधुनिकीकरण को सीमित कर रहा है।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार की कमी: भारतीय निर्माताओं को चीन और वियतनाम जैसे कम लागत वाले उत्पादकों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
      • अनुसंधान एवं विकास में सीमित निवेश, कमज़ोर डिज़ाइन क्षमताएँ और आयातित तकनीक पर निर्भरता प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करती है।
    • पर्यावरणीय और सतत् विकास दबाव: विनिर्माण संसाधन-प्रधान है, जिससे जल, भूमि और ऊर्जा पर दबाव पड़ता है।
    • कार्बन-मुक्ति और वर्ष 2070 के शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को पूरा करने का दबाव अनुपालन लागत को बढ़ाता है।
    • व्यापार और बाज़ार अभिगम्यता संबंधी बाधाएँ: विकसित देशों में गैर-शुल्क बाधाएँ निर्यात को सीमित करती हैं।
      • विकसित देश कड़े उत्पाद मानक, कार्बन कर, वनों की कटाई के नियम और प्रमाणन आवश्यकताएँ जैसे गैर-शुल्कीय प्रतिबंध लगाते हैं जो भारतीय निर्यात को प्रतिबंधित करते हैं।
        • उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन कर और वानिकी नियम भारतीय वस्तुओं के लिये बाधा बन गए हैं।
    • तकनीकी का मंद अंगीकरण: भारत के उद्योग 4.0 बाज़ार का आकार वर्ष 2024 में लगभग 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर आकलन किया गया था तथा 19.2% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से वर्ष 2033 तक लगभग 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है।
    • इस तीव्र वृद्धि के बावजूद, MSME और पारंपरिक निर्माताओं के बीच इसका अंगीकरण असमान व तुलनात्मक रूप से धीमा बना हुआ है।

    भारत में विनिर्माण गति को त्वरित करने के उपाय

    • नियामक ढाँचे को सरल बनाना: उद्योग संबंधी संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों के अनुसार, भूमि अधिग्रहण में तेज़ी लाने तथा करों को युक्तिसंगत बनाने और अनुबंध प्रवर्तन में सुधार करने की आवश्यकता है।
    • अनुसंधान एवं विकास निवेश बढ़ाना: कोरियाई और जर्मन नवाचार समूहों का अनुसरण करते हुए, उभरते क्षेत्रों में नवाचार के लिये अधिक धन आवंटित किया जाना चाहिये तथा उद्योग-अकादमिक सहयोग को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • MSME को ऋण का विस्तार करना: MSME और स्टार्टअप के लिये विशेष वित्तपोषण योजनाओं एवं ऋण गारंटी निधि को लागू किया जाना चाहिये।
    • बुनियादी अवसंरचना के निर्माण में तेज़ी लाना: लंबित औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं को पूरा करके तथा समर्पित माल ढुलाई गलियारों का विस्तार करके विश्वसनीय बिजली, परिवहन, जल और डिजिटल कनेक्टिविटी सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
    • निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा: रसद लागत कम किया जाना चाहिये, बेहतर बाज़ार अभिगम्यता के लिये व्यापार समझौतों पर वार्ता की जानी चाहिये तथा वैश्विक बाज़ारों के लिये मानक प्रमाणन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • स्थिरता को एकीकृत करना: सतत् विकास लक्ष्यों और वैश्विक आवश्यकताओं के अनुरूप हरित विनिर्माण मिशन शुरू किया जाना चाहिये तथा ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    नीतिगत प्रोत्साहनों, वैश्विक मांग में बदलाव और प्रौद्योगिकी अंगीकरण के माध्यम से भारत का विनिर्माण क्षेत्र तीव्र गति से विस्तार के लिये तैयार है। विनिर्माण में 25% सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की हिस्सेदारी और वैश्विक नेतृत्व हासिल करने के लिये दूरदर्शी सुधार, निरंतर निवेश तथा सभी हितधारकों एवं क्षेत्रों के बीच समन्वित प्रयास आवश्यक हैं।

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