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प्रश्न :
प्रश्न. भगदड़ अक्सर ऐसी त्रासदियाँ होती हैं जिन्हें रोका जा सकता है, जो अपर्याप्त योजना, जवाबदेही की कमी और अप्रभावी प्रवर्तन के कारण होती हैं। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
01 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधनउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सार्वजनिक सुरक्षा के संदर्भ में भगदड़ को परिभाषित करते हुए उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- इन रोके जा सकने वाली त्रासदियों के मूल कारणों पर प्रकाश डालें, जिनमें अपर्याप्त योजना, उत्तरदायित्व का अभाव और कमज़ोर प्रवर्तन शामिल हैं।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भगदड़ भीड़ की एक आवेगपूर्ण सामूहिक जन-गतिविधि है, जिसके परिणामस्वरूप चोटें और मौतें होती हैं, जो प्रायः भय, घबराहट, जगह की कमी या किसी सुखद वस्तु को पाने अथवा स्थान तक पहुँचने की लालसा से प्रेरित होता है। यह एक रोकी जा सकने वाली जनसुरक्षा आपदा का रूप है, जो प्रायः धार्मिक आयोजनों, राजनीतिक सभाओं या खेल प्रतियोगिताओं के दौरान देखी जाती है। जो भीड़ प्रबंधन, शासन और प्रवर्तन तंत्र में गहरी विफलताओं को दर्शाती है।
मुख्य भाग:
अपर्याप्त योजना
- भीड़ के आकलन में कमी: करूर, तमिलनाडु में हुई राजनीतिक रैली (सितंबर 2025) में 39 लोगों की मौत हो गई क्योंकि उपस्थिति नियोजित क्षमता से कहीं अधिक थी, जिससे बुनियादी अवसंरचना और निकास मार्ग अस्त-व्यस्त हो गए।
- जबकि चिन्नास्वामी स्टेडियम (RCB IPL विजय परेड) में टिकटों की अंधाधुंध बिक्री और आपात निकास के अभाव के कारण 11 लोगों की जान चली गई।
- बुनियादी अवसंरचना की कमियाँ: इसी प्रकार मनसा देवी मंदिर (जुलाई 2025) तथा महाकुंभ (जनवरी 2025) की घटनाओं ने यह दर्शाया कि अस्थायी ढाँचों, भीड़ प्रवाह नियोजन, शौचालयों एवं विश्राम स्थलों की कमी से स्थितियाँ और भयावह हो जाती हैं।
उत्तरदायित्व का अभाव
- त्रासदी के बाद दोषारोपण: मनसा देवी भगदड़ के बाद, अधिकारियों ने अफवाहों, कमज़ोर बुनियादी अवसंरचना और एक-दूसरे की निष्क्रियता को दोषी ठहराया, जिससे स्पष्ट दिशा-निर्देशों एवं साझा उत्तरदायित्व का अभाव दिखा।
- इसी तरह, करूर में, राजनीतिक आयोजक और स्थानीय पुलिस, दोनों ही भीड़ घनत्व की जाँच या आपातकालीन अभ्यास करने में विफल रहे।
- सेफ्टी ऑडिट का अभाव: मंदिरों और स्टेडियमों में सुरक्षा ऑडिट दुर्लभ हैं तथा अधिकतर उपाय त्रासदी के बाद किये जाते हैं।
- अलग-अलग प्रवेश-निकास बिंदु और उपस्थिति सीमा जैसी अनुशंसाएँ केवल प्रतिक्रियात्मक रूप से लागू की जाती हैं, सक्रिय रूप से नहीं।
कमज़ोर प्रवर्तन:
- दिशा-निर्देशों के प्रवर्तन: आकस्मिक योजना और उपस्थिति सीमा निर्धारित करने वाले NDMA भीड़ प्रबंधन दिशा-निर्देशों की प्रायः अनदेखी की जाती है।
- कुंभ मेला (वर्ष 2025) और शिरगाओ मंदिर उत्सव जैसे आयोजनों में कथित तौर पर स्वीकृत क्षमता का उल्लंघन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप घातक भगदड़ें हुईं।
- कमज़ोर संचार और तकनीक का अभाव: पुष्पा 2 फिल्म स्क्रीनिंग (दिसंबर 2024) में, अपर्याप्त सार्वजनिक संबोधन प्रणाली और वास्तविक काल निगरानी (CCTV, ड्रोन) की कमी ने दहशत एवं गलत सूचना का प्रसार किया, जिससे हताहतों की संख्या में और भी वृद्धि हुई।
अपर्याप्त नियोजन
↓
भीड़ का अपर्याप्त आकलन → अत्यधिक भीड़भाड़ →
↓
कमज़ोर बुनियादी अवसंरचना → अवरुद्ध निकास → चोट/मृत्यु
↓
उत्तरदायित्व का अभाव → दोषारोपण-स्थानांतरण और विलंब
↓
कमज़ोर प्रवर्तन → सुरक्षा मानदंडों का पालन न करना
भविष्य में होने वाली त्रासदियों को रोकने के लिये आगे की राह
- कार्यक्रम-पूर्व योजना का सुदृढ़ीकरण: भीड़ का सटीक अनुमान और क्षमता नियोजन, साथ ही सुरक्षित स्थल का चयन तथा वैज्ञानिक लेआउट डिज़ाइन, सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- इंजीनियरों और आपदा विशेषज्ञों द्वारा भीड़ क्षमता प्रमाणन अनिवार्य होना चाहिये।
- आयोजनों में प्रवेश, निकास और आवागमन के स्पष्ट रूप से चिह्नित मार्ग होने चाहिये जो बिना किसी बाधा के हों तथा भगदड़ को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिये आकस्मिक व्यवस्था एवं जोखिम मूल्यांकन अभ्यास द्वारा समर्थित हों।
- वास्तविक काल में भीड़ के घनत्व की निगरानी के लिये सेंसर (थर्मल, LiDAR) का एक नेटवर्क तैनात किये जाने चाहिये।
- यह डेटा AI मॉडल में फीड करके भीड़ के बढ़ने का अनुमान लगाया जा सकता है और पूर्व चेतावनी दी जा सकती है।
- विधिक और प्रशासनिक उत्तरदायित्व:
- एक भीड़ सुरक्षा अधिनियम लागू किया जाना चाहिये जिसमें लापरवाही के लिये आयोजकों की ज़िम्मेदारी को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया हो।
- बड़े समारोहों के लिये स्वतंत्र सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य किया जाना चाहिये तथा घटनाओं, कारणों और सीखे गए सबक को व्यवस्थित रूप से दर्ज करने के लिये एक राष्ट्रीय भगदड़ डेटाबेस स्थापित किया जाना चाहिये, जिससे साक्ष्य-आधारित निवारक उपाय संभव हो सकें।
- सुरक्षा मानदंडों के उल्लंघन को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत दंडनीय बनाया जाना चाहिये।
- एकीकृत संस्थागत तंत्र:
- समन्वित योजना के लिये ज़िला स्तर पर भीड़ प्रबंधन प्रकोष्ठों का गठन किया जाना चाहिये।
- सामूहिक समारोहों से पहले नियमित मॉक ड्रिल और सुरक्षा ऑडिट किये जाने चाहिये।
- मौके पर चिकित्सा सहायता प्रदान की जानी चाहिये, आपात स्थिति के लिये त्वरित प्रतिक्रिया दल (QRT) तैनात किया जाना चाहिये तथा त्वरित निर्णय लेने के लिये एक स्पष्ट घटना नियंत्रण प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
- जन-जागरूकता और व्यवहार प्रशिक्षण:
- स्थानीय मीडिया और सामुदायिक नेताओं के माध्यम से सुरक्षा संदेशों का प्रसार किया जाना चाहिये।
- भीड़ की आवाजाही का मार्गदर्शन करने के लिये प्रशिक्षित स्वयंसेवकों और संकेतों की तैनाती की जानी चाहिये।
निष्कर्ष:
भगदड़ प्राकृतिक आपदाएँ नहीं, बल्कि शासन और तैयारियों की विफलताएँ हैं। प्रत्येक त्रासदी उत्तरदायित्व को संस्थागत बनाने, योजना को सुदृढ़ बनाने और सुरक्षा मानदंडों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। सक्रिय भीड़ प्रबंधन, तकनीकी साधनों और नैतिक प्रशासन के माध्यम से ऐसी नियंत्रित की जा सकने वाली त्रासदियों को टाला जा सकता है, जिससे भारत के जीवंत आयोजन सुरक्षा और सुव्यवस्था के प्रतीक बन सकें, दुःख एवं लापरवाही के नहीं।
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