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प्रश्न :
प्रश्न: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की समावेशिता भारत के समता अवसंरचना की सुदृढ़ता की परीक्षा लेती है। उनके समाज में पूर्ण सहभागिता सुनिश्चित करने हेतु बाधाओं और आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेपों पर विवेचना कीजिये। (150 शब्द)
30 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के समता अवसंरचना में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शामिल करने की आवश्यकता का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक बाधाओं और नीतिगत हस्तक्षेपों पर विवेचना कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत का संवैधानिक ढाँचा अनुच्छेद 14, 15 और 21 के अंतर्गत समता, गैर-भेदभाव और गरिमा को सुनिश्चित करता है। नालसा बनाम भारत संघ (2014) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को 'थर्ड जेंडर' के रूप में मान्यता दी तथा उनकी आत्म-पहचान और सामाजिक समावेश के अधिकारों की पुष्टि की। फिर भी, प्रगतिशील निर्णयों और कानूनों के बावजूद, समाज में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी कलंक, बहिष्कार तथा संस्थागत कमियों के कारण सीमित है।
मुख्य भाग:
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समक्ष आने वाली प्रमुख बाधाएँ
- सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव:
- परिवार द्वारा व्यापक अस्वीकृति, उत्पीड़न और कलंक।
- हमसफर ट्रस्ट द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि मुंबई और दिल्ली में 29.8% ट्रांसजेंडर महिलाओं ने आत्महत्या का प्रयास किया, जो गहरे सामाजिक संकट को दर्शाता है।
- शिक्षा में बाधाएँ:
- साक्षरता दर 56.1% है, जो राष्ट्रीय औसत 74% (2011 की जनगणना) से काफी कम है।
- लैंगिक-संवेदनशील पाठ्यक्रम और सुरक्षित शिक्षण स्थलों का अभाव।
- लैंगिक-तटस्थ शौचालयों का अभाव है।
- आर्थिक बहिष्कार और बेरोज़गारी:
- 92% लोग आर्थिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं (NHRC, 2018) और 48% बेरोज़गार हैं (ILO, 2022)।
- हिंदू, मुस्लिम और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियमों के तहत उत्तराधिकार कानून ट्रांसजेंडर उत्तराधिकारियों को बाहर रखते हैं।
- स्वास्थ्य सेवा चुनौतियाँ:
- 27% को चिकित्सा देखभाल से वंचित रखा गया (NALSA सर्वेक्षण)।
- दिल्ली CR में 42.7% ट्राँस महिलाएँ मध्यम से गंभीर अवसाद से पीड़ित हैं और 48% दुश्चिंता/PTSD का सामना करती हैं।
- राजनीतिक समावेशन की कमी:
- विधानसभाओं और निर्णय लेने वाली संस्थाओं से लगभग अनुपस्थित।
- वर्ष 2019 के चुनावों में ट्रांसजेंडर मतदाताओं में से केवल 25% ने मतदान किया।
- कानूनी और नौकरशाही बाधाएँ:
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत, वर्ष 2023 तक केवल 65% पहचान पत्र आवेदनों पर ही कार्रवाई की गई, जो प्राय: कानूनी समय सीमा से परे विलंबित हो जाते हैं।
आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेप
- वर्ष 2019 के अधिनियम को सरल स्व-पहचान प्रक्रिया और अधिकारियों के प्रशिक्षण के साथ लागू करना।
- उदाहरण: पहचान मान्यता और निवारण के लिये दिल्ली के 2025 के नियम।
- SMILE योजना, RBI द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र ऋण और कॉर्पोरेट विविधता भर्ती (जैसे, टाटा स्टील) का विस्तार करना।
- विश्व बैंक (2021): ट्रांसजेंडर कार्यबल समावेशन से सकल घरेलू उत्पाद में 1.7% की वृद्धि हो सकती है।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये AIIMS CoE, आयुष्मान भारत TG प्लस और टेलीमेडिसिन सेवाओं का विस्तार करना।
- समावेशी शिक्षा को लागू करने के लिये स्कूलों में लैंगिक-तटस्थ शौचालय, एंटी-बुलिंग नीतियाँ और परामर्श की व्यवस्था की जानी चाहिये।
- गरिमा गृह आश्रयों को SHG फ्रेमवर्क से जुड़े सशक्तीकरण केंद्रों में विस्तारित करना।
- नीतियों को सूचित करने के लिये नियमित सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण सुनिश्चित करना, जैसा कि अमेरिकी BRFSS मॉडल में देखा गया है।
- बोर्न2विन ट्रस्ट जैसे ट्राँस-नेतृत्व वाले गैर-सरकारी संगठनों का समर्थन करना।
निष्कर्ष
जैसा कि बी.आर. अंबेडकर ने ज़ोर देकर कहा था, "राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं टिक सकता, जब तक कि उसका आधार सामाजिक लोकतंत्र ना हो।" भारत के समता अवसंरचना की सच्ची दृढ़ता की परीक्षा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये सम्मान, अधिकार और अवसर सुनिश्चित करने की उसकी क्षमता से होगी। सतत् विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता) और सतत् विकास लक्ष्य 10 (असमानताओं में कमी) के अनुरूप, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का सशक्तीकरण एक न्यायसंगत, समावेशी और धारणीय लोकतंत्र के निर्माण हेतु आवश्यक है।
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