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प्रश्न :
प्रश्न. क्या 'गिग इकॉनमी' ने भारत में युवाओं को वास्तव में सशक्त बनाया है, या इसने सामाजिक सुरक्षा से वंचित अनिश्चित श्रमिकों का एक नया वर्ग तैयार किया है? उपयुक्त उदाहरणों सहित विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
25 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में गिग इकॉनमी की स्थिति के बारे में संक्षेप में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- गिग इकॉनमी भारत के युवाओं को किस प्रकार सशक्त बना रही है, इस संदर्भ में तर्क दीजिये।
- गिग इकॉनमी किस प्रकार अनिश्चित श्रमिकों का निर्माण कर रही है, इस पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- अनिश्चितता को सशक्त बनाने के उपायों को प्रस्तावित कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
ज़ोमैटो, स्विगी और उबर जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा संचालित गिग इकॉनमी भारत में एक प्रमुख रोज़गार सृजनकर्त्ता के रूप में उभरी है। NITI आयोग का अनुमान है कि गिग श्रमिकों की संख्या वर्ष 2020 में 7.7 मिलियन से बढ़कर सत्र 2029-30 तक 23.5 मिलियन हो जाएगी।
मुख्य भाग:
गिग इकॉनमी- भारत के युवाओं का सशक्तीकरण
- रोज़गार सृजन और लचीलापन: औपचारिक क्षेत्र में ठहराव की स्थिति में अल्पकालिक रोज़गार प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिये, त्योहारों के मौसम में डिलीवरी कर्मचारियों (स्विगी, ब्लिंकिट 2023) की आय में 40-50% की वृद्धि दर्ज की गई।
- इसके अलावा, कुछ कर्मचारी अपनी नियमित 9 से 5 की नौकरी के बाद घरेलू आय में वृद्धि के लिये रैपिडो जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं, जो अतिरिक्त आय के लिये एक द्वितीयक सुरक्षा संजाल के रूप में गिग इकॉनमी की भूमिका को दर्शाता है।
- अनौपचारिक से अर्द्ध-औपचारिक कार्य का सेतु: कृषि और निर्माण क्षेत्र से आए प्रवासी श्रमिकों को अब संरचित आय के अवसर मिल रहे हैं।
- उदाहरण के लिये, ओला और उबर ने हज़ारों अल्प-रोज़गार युवाओं को शहरी गतिशीलता में शामिल किया।
- डिजिटल परिवर्तन और आर्थिक विकास: डिजिटल साक्षरता, डिजिटल भुगतान अंगीकरण और ई-कॉमर्स की अभिगम्यता को बढ़ावा देता है।
- ये प्लेटफॉर्म GST और ई-श्रम एकीकरण के माध्यम से कर राजस्व में भी योगदान करते हैं।
- समावेशिता और महिलाओं की भागीदारी: लगभग 28% गिग कर्मचारी महिलाएँ हैं, जिनमें से कई लचीली व घर-आधारित सेवाओं का विकल्प चुनती हैं।
- उद्यमिता का विकास: गिग प्लेटफॉर्म श्रमिकों को ‘स्वतंत्र कॉन्ट्रैक्टर’ के रूप में लेबल करते हैं, जिससे एक उद्यमशीलता की मानसिकता को बढ़ावा मिलता है।
गिग इकॉनमी - श्रमिकों की असुरक्षा
- सामाजिक सुरक्षा का अभाव: 90% से अधिक गिग श्रमिकों के पास बचत या स्वास्थ्य बीमा नहीं (NITI आयोग, 2024) है।
- ‘स्वतंत्र कॉन्ट्रैक्टर’ के रूप में वर्गीकृत गिग श्रमिक पेंशन, वेतन सहित अवकाश या भविष्य निधि से वंचित रहते हैं।
- कम और अस्थिर वेतन: फेयर वर्क इंडिया (2023) की रिपोर्ट के अनुसार, इनकी औसत आय ₹15,000-20,000/माह है, जो 10 से अधिक घंटे के कार्यदिवसों के लिये न्यूनतम मानकों से कम है।
- शोषण और असुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ: प्रिजनर्स ऑन व्हील्स रिपोर्ट: 78% डिलीवरी कर्मचारी प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक काम करते हैं, जिससे डिलीवरी की तंग समय सीमा के कारण सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है।
- कानूनी सुरक्षा का अभाव: सामाजिक सुरक्षा संहिता- 2020 गिग श्रमिकों को मान्यता देती है, लेकिन न्यूनतम वेतन या कार्य-घंटे के नियमों को सुनिश्चित नहीं करती है।
- एल्गोरिदम नियंत्रण और मनमाना निष्क्रियण: एक सर्वेक्षण में, लगभग 83% कैब ड्राइवरों और 87% डिलीवरी कर्मचारियों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के खाता निष्क्रियण का सामना करना पड़ा है।
- निवारण तंत्र के अभाव में, कर्मचारियों को प्रायः ग्राहकों द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
- भविष्य की निराशाजनक संभावनाएँ: सेवानिवृत्ति बचत के बिना, गिग कर्मचारियों को ‘नए युग की अनिश्चितता’ में फँसने का जोखिम है, जो दिखने में तो डिजिटल हैं लेकिन वास्तव में असंगठित कर्मचारी ही हैं।
अनिश्चितता को सशक्तीकरण में बदलना
- व्यापक विधिक कार्यढाँचा: भारत को एक समर्पित राष्ट्रीय गिग और प्लेटफॉर्म कर्मचारी कानून की आवश्यकता है जो औपचारिक कर्मचारियों के समान अधिकार सुनिश्चित करे।
- प्रावधानों में न्यूनतम वेतन गारंटी, मानक कार्य घंटे, दुर्घटना बीमा और मनमाने ढंग से निष्क्रियण से सुरक्षा शामिल होनी चाहिये।
- पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा: गिग कर्मचारी प्रायः कई प्लेटफॉर्म (स्विगी, ब्लिंकिट, ओला) पर स्थानांतरित होते हैं, जिससे प्लेटफॉर्म-विशिष्ट लाभ अप्रभावी हो जाते हैं।
- आधार/ई-श्रम पोर्टल से जुड़ा एक पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा अकाउंट स्वास्थ्य, पेंशन और भविष्य निधि जैसे लाभों की निरंतरता सुनिश्चित कर सकता है।
- केंद्रीय बजट 2025-26 में अंशदायी मॉडल (प्लेटफॉर्म, राज्य और कर्मचारी लागत साझा करते हैं) के माध्यम से गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का प्रस्ताव इस दिशा में एक कदम है।
- कौशल विकास के मार्ग: आज अधिकांश गिग कार्य कम-मूल्य वाले कार्यों (वितरण, ड्राइविंग) पर केंद्रित हैं, जिनमें विकास की सीमित संभावनाएँ हैं।
- गिग प्लेटफॉर्म को स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और डिजिटल कौशल कार्यक्रमों से जोड़ने से युवाओं को उच्च-मूल्य वाले फ्रीलांसिंग (AI सेवाएँ, कोडिंग, डिज़ाइन, वित्तीय परामर्श) में आगे बढ़ने में सहायता मिल सकती है।
- शिकायत निवारण तंत्र: प्लेटफॉर्म को स्वतंत्र शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित करने चाहिये, जो बहुभाषी ऐप्स के माध्यम से सुलभ हों, ताकि वेतन विवादों, उत्पीड़न और निष्क्रियता के मामलों का समाधान सुनिश्चित हो सके।
- राज्य श्रम विभागों के अंतर्गत एक लोकपाल प्रणाली विवादों की निगरानी कर सकती है और उत्तरदायित्व लागू कर सकती है।
- राज्य-स्तरीय पहलों से सीख: राजस्थान के प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स अधिनियम (2023) ने गिग वर्कर्स के लिये भारत का पहला कल्याण बोर्ड बनाया, जिससे सामाजिक सुरक्षा निधि एवं शिकायत प्रणाली सुनिश्चित हुई।
- इन मॉडलों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से क्षेत्र-विशिष्ट समाधान मिल सकते हैं, विशेषकर शहरी डिलीवरी कर्मचारियों, ग्रामीण प्लेटफॉर्म कर्मचारियों और महिला गिग कर्मचारियों के लिये।
निष्कर्ष:
गिग इकॉनॉमी को शोषण का माध्यम बनने के बजाय सशक्तीकरण का साधन बनाने के लिये, भारत को 3 ‘G’ — Guarantee of fair wages and social security (उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी), Growth through skilling and upward mobility (कौशल विकास और ऊर्ध्वगामी गतिशीलता के माध्यम से विकास) तथा Grievance redressal for dignity at work (कार्यस्थल पर सम्मान के लिये शिकायत निवारण) पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। तभी गिग कर्मचारी डिजिटल श्रमिकों से आगे बढ़कर भारत के आर्थिक परिवर्तन के प्रेरक बन सकते हैं।
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