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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में जलवायु न्याय और कार्बन बाज़ार की अवधारणाएँ महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।” इन अवधारणाओं पर भारत की स्थिति और समतामूलक सतत् विकास के लिये इनकी प्रासंगिकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    13 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जलवायु न्याय और कार्बन बाज़ार की अवधारणाओं का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • इन अवधारणाओं पर भारत की स्थिति का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
    • समतामूलक सतत् विकास के लिये उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।
    • सतत् विकास लक्ष्यों से जोड़ते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    जलवायु न्याय और कार्बन बाज़ार वैश्विक जलवायु वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण मुद्दे बन गए हैं। जलवायु न्याय का आशय जलवायु परिवर्तन से निपटने में न्याय एवं समानता पर ज़ोर देने से है, जिसमें विकसित देशों की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया जाता है। दूसरी ओर, कार्बन बाज़ार, उत्सर्जन में कमी के व्यापार पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे लागत-प्रभावी शमन संभव होता है। भारत के लिये ये दोनों अवधारणाएँ विकास की अनिवार्यता और पर्यावरणीय दायित्वों के बीच संतुलन स्थापित करने में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं।

    मुख्य भाग:

    जलवायु न्याय पर भारत का दृष्टिकोण

    • साझा किंतु विभेदित दायित्व एवं संबंधित क्षमताएँ (CBDR-RC): भारत का तर्क है कि विकसित देशों को, उनके ऐतिहासिक उत्सर्जन के कारण, शमन की दिशा में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये। यह दृष्टिकोण समानता और न्याय के अनुरूप है।
    • विकास का अधिकार: भारत इस बात पर ज़ोर देता है कि जलवायु नीतियाँ गरीबी उन्मूलन, औद्योगीकरण और ऊर्जा तक पहुँच में बाधा न डालें।
    • वैश्विक कार्बन क्षेत्र में समानता: भारत शेष कार्बन बजट में उचित हिस्सेदारी की वकालत करता है तथा यह रेखांकित करता है कि इसका प्रति व्यक्ति CO₂ उत्सर्जन वैश्विक औसत से कहीं कम है।
      • वर्ष 2022 में भारत का प्रति व्यक्ति CO₂ उत्सर्जन 1.9 टन था, जबकि अमेरिका का 14.4 टन और चीन का 8.5 टन था।
    • न्यायिक अनुमोदन: सर्वोच्च न्यायालय ने एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ (1997) और अन्य निर्णयों में अंतर-पीढ़ीगत समानता के सिद्धांत को सुदृढ़ किया है, जो भारत की जलवायु न्याय की अवधारणा के अनुरूप है।

    कार्बन बाज़ार पर भारत का दृष्टिकोण

    • सहयोग किंतु सतर्कता: भारत पेरिस समझौते के अंतर्गत कार्बन बाज़ारों में भाग लेता है, परंतु इस बात पर ज़ोर देता है कि वे न्यायसंगत, पारदर्शी और सतत् विकास के समर्थक हों।
    • स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) अनुभव: भारत क्योटो प्रोटोकॉल के CDM का सबसे बड़ा लाभार्थी था, जिसने 1500 से अधिक परियोजनाओं की मेज़बानी की, जिससे रोज़गार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिला।
    • नई कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (2023): भारत ने कार्बन ट्रेडिंग को बढ़ावा देने के लिये एक घरेलू ढाँचा शुरू किया, जो उसके राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के अनुरूप है।
    • चिंताएँ:
      • "हरित उपनिवेशवाद" का खतरा, जहाँ विकसित राष्ट्र ग्लोबल साऊथ से सस्ते ऋण खरीदकर अपनी जिम्मेदारी से बच निकलते हैं।
      • बाज़ार में हेरफेर और न्यायसंगत लाभ-वितरण की कमी की आशंका।

    न्यायसंगत सतत् विकास के लिये प्रासंगिकता

    • असमानताओं का समाधान: जलवायु न्याय यह सुनिश्चित करता है कि निम्न आय वाले समुदायों और कमज़ोर राष्ट्रों पर असमान रूप से बोझ न पड़े।
    • रोज़गार और हरित विकास: कार्बन बाजार नवीकरणीय ऊर्जा, वनरोपण और ऊर्जा दक्षता में हरित रोज़गार उत्पन्न कर सकते हैं।
    • वित्तीय संसाधन: प्रभावी कार्बन ट्रेडिंग भारत के नवीकरणीय ऊर्जा और लचीले ढाँचे की दिशा में जलवायु वित्त जुटा सकती है।
    • ऊर्जा संक्रमण लक्ष्य: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है, जिसके लिये कार्बन बाज़ार आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहयोग उपलब्ध करा सकते हैं।

    निष्कर्ष:

    भारत की स्थिति एक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाती है, जहाँ विकास का अधिकार संरक्षित है, वहीं वैश्विक शमन प्रयासों में सक्रिय भागीदारी भी है। यह दृष्टिकोण SDG 13 (जलवायु कार्रवाई), SDG 7 (वहनीय और स्वच्छ ऊर्जा), SDG 10 (असमानताओं में कमी) और SDG 8 ((सभ्य कार्य और आर्थिक विकास) के अनुरूप है, तथा पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी को सतत् एवं समावेशी विकास से जोड़ता है।

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