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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न.“एक ऐसे देश में जहाँ वंचना अनेक रूपों में विद्यमान है, वहाँ आर्थिक नीति का आरंभ मध्य बिंदु से नहीं, बल्कि हाशिये से होना चाहिये।” भारत में गरीबी उन्मूलन रणनीतियों के संदर्भ में इस कथन की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

    23 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में गरीबी और प्रमुख अभाव कारकों के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर प्रस्तुत कीजिये। 
    • भारत में गरीबी उन्मूलन रणनीतियों का मध्यिका से सीमांत तक गहन अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।
    • भारत में अभाव के वर्तमान पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
    • सीमांत गरीबी से निपटने के लिये नीतिगत सुझाव दीजिये।
    • एक उद्धरण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत ने गरीबी उन्मूलन में सराहनीय प्रगति की है, जहाँ गरीबी सूचकांक सत्र 2013-14 में 29.17% से घटकर सत्र 2022-23 में 11.28% हो गया है। फिर भी, 12.9 करोड़ लोग अभी भी $2.15/दिन से कम पर जीवन यापन कर रहे हैं, अभाव बहुआयामी बना हुआ है, जिसमें पोषण, स्वच्छता, शिक्षा और आजीविका की असुरक्षा शामिल है, जिसके लिये मध्यिका (विकास से लाभान्वित होने वाला औसत आय वर्ग) से लेकर से सीमांत (अति-गरीब और सबसे अधिक वंचित) वर्ग तक के लिये नीतिगत बदलाव की आवश्यकता है, जहाँ भेद्यता सबसे अधिक है।

    मुख्य भाग:

    भारत में गरीबी उन्मूलन रणनीतियाँ: मध्यिका से सीमांत तक

    • पारंपरिक दृष्टिकोण: मध्यिका-केंद्रित
      • कैलोरी-आधारित गरीबी रेखाएँ (दांडेकर-रथ, 1971; लकड़ावाला, 1993)।
      • तेंदुलकर समिति (2009) ने एक व्यापक उपभोग टोकरी प्रस्तुत की।
      • ये दृष्टिकोण, उपयोगी होते हुए भी, बहुआयामी अभाव को समझने में विफल रहे।
    • वर्तमान प्रतिमान: सीमांत-केंद्रित
      • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर शामिल हैं।
      • गरीबी उन्मूलन के लिये भारत द्वारा क्रमिक दृष्टिकोण (BRAC मॉडल) का अंगीकरण:
        • आजीविका सहायता, वित्तीय समावेशन और सामाजिक सुरक्षा को जोड़ता है।
        • अल्पकालिक राहत के बजाय स्थायी गरीबी उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करता है।

    भारत में अभाव के वर्तमान स्वरूप:

    • आय और धन असमानता: शीर्ष 10% के पास राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा है, जबकि निचले 50% के पास केवल 13% (विश्व असमानता रिपोर्ट, 2022) हिस्सा है।
      • विकास ने असमान रूप से उच्च वर्गों को लाभान्वित किया है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र की भेद्यता: 80% से अधिक श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में हैं, जहाँ उन्हें नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक लाभों का अभाव है।
      • शहरी बेरोज़गारी दर 8.9% (CMIE, 2024) के उच्च स्तर पर बनी हुई है।
    • ग्रामीण-कृषि संकट: कृषि में 46% कार्यबल कार्यरत है, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान केवल 18% है।
      • 80% से अधिक किसान लघु और सीमांत हैं; उनकी आय मूल्य झटकों और जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य है।
    • स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित अभाव: कुल स्वास्थ्य व्यय का 58.7% स्वयं द्वारा किया जाने वाला व्यय है।
      • 56.1% भारतीय बच्चे अपर्याप्त अधिगम से पीड़ित हैं (विश्व बैंक, महामारी से पहले), ग्रामीण क्षेत्र के कक्षा 3 के 80% बच्चे कक्षा 2 की किताब नहीं पढ़ सकते (ASER 2022)।
    • जलवायु भेद्यता: जलवायु परिवर्तन कृषि, मत्स्यन और गरीबों की आजीविका पर असमान रूप से प्रभाव डालता है।
      • चक्रवात अम्फान (2020) जैसी घटनाओं ने 2.4 मिलियन लोगों को विस्थापित किया, जिनमें से अधिकांश गरीब समुदायों से थे।

    सीमांत वर्ग की गरीबी को दूर करने के लिये नीतिगत सुझाव

    • सामाजिक सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करना: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), आयुष्मान भारत और PM-KISAN के कवरेज एवं दक्षता का विस्तार अति-निर्धन वर्ग की जीवन-क्षमता में सुधार ला सकता है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका विविधीकरण: कौशल-आधारित और परिसंपत्ति-निर्माण गतिविधियों के साथ MGNREGA को सुदृढ़ करके स्थायी आजीविका को बढ़ावा दिया जा सकता है।
      • DAY-NRLM के तहत स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम जैसी योजनाओं को एकीकृत करने से ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा मिल सकता है और कृषि पर निर्भरता कम हो सकती है।
    • कौशल विकास और रोज़गार सृजन: स्थानीय, उद्योग-संरेखित प्रशिक्षण के साथ प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) का पुनर्गठन सीमांत वर्ग के लोगों के लिये रोज़गार के परिणामों में सुधार लाएगा।
      • निजी उद्यमों और MSME के साथ साझेदारी (विशेष रूप से पिछड़े क्षेत्रों में) माँग-आधारित रोज़गार का सृजन कर सकती है।
    • महिलाओं और सीमांत समूहों का सशक्तीकरण: स्वयं सहायता समूहों के कवरेज का विस्तार और स्टैंड-अप इंडिया के माध्यम से ऋण सुलभता में सुधार, महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों को सक्षम बना सकता है।
      • लैंगिक बजट और भूमि अधिकार सुधारों को लागू करने से कमज़ोर समुदायों के लिये संस्थागत सहायता सुनिश्चित हो सकती है।
    • पोषण और बुनियादी सेवाओं की सुलभता: पोषण अभियान और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुदृढ़ खाद्यान्नों से सुदृढ़ बनाने से उच्च बोझ वाले ज़िलों में कुपोषण कम होगा।
    • जलवायु-अनुकूल विकास: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का विस्तार और PM-KUSUM के माध्यम से सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई को प्रोत्साहित करने से किसानों की आय सुरक्षित रहेगी।
      • जल सुरक्षा बढ़ाने और ग्रामीण संकट को कम करने के लिये सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल शक्ति अभियान का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • डिजिटल और बुनियादी अवसंरचना समावेशन: BharatNet के कार्यान्वयन में तीव्रता और ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान डिजिटल अंतराल को कम कर सकते हैं।
      • ई-श्रम जैसे प्लेटफॉर्म अनौपचारिक श्रमिकों को लाभ, वित्तीय साधनों और रोज़गार के अवसरों से जोड़ सकते हैं।
    • क्षेत्र-विशिष्ट गरीबी उन्मूलन रणनीतियाँ: गरीबी उन्मूलन के लिये एक समान दृष्टिकोण प्रायः विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहता है। इसलिये समावेशी और प्रभावी परिणाम सुनिश्चित करने के लिए संदर्भ-विशिष्ट हस्तक्षेप आवश्यक हैं।
      • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम के अंतर्गत अनुकूलित हस्तक्षेप स्थानीय विकास अंतरालों को कम कर सकते हैं।
      • बाढ़-प्रवण राज्यों को सुदृढ़ बुनियादी अवसंरचना की आवश्यकता है, जबकि जनजातीय क्षेत्रों को स्वास्थ्य, शिक्षा और भूमि अधिकारों में निवेश की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष:

    जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, "किसी समाज का वास्तविक मापदंड यह है कि वह अपने सबसे कमज़ोर वर्ग के साथ कैसा व्यवहार करता है।" 

    एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिये भारत को नीति-निर्माण की प्रक्रिया को समाज के हाशिये पर स्थित वर्गों से आरंभ करने की आवश्यकता है— यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक नागरिक, चाहे वह कितना भी कमज़ोर क्यों न हो, विकास प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बने।

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