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प्रश्न :
प्रश्न . भारत में ग्रामीण गरीबों के बीच परिसंपत्ति निर्माण और आय सुरक्षा में स्वयं सहायता समूहों (SHG) की दोहरी भूमिका के साथ ही महिला सशक्तीकरण में भी उनके योगदान का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)
27 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- स्वयं सहायता समूहों को परिभाषित कीजिये, ग्रामीण विकास में उनका महत्त्व बताइये।
- परिसंपत्ति निर्माण और आय सुरक्षा में योगदान में SHG की दोहरी भूमिका की व्याख्या कीजिये और महिला सशक्तीकरण पर SHG के प्रभाव पर भी प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
भारत में स्वयं सहायता समूहों (SHG) ने ग्रामीण गरीबों के लिये परिसंपत्ति निर्माण और आय सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, साथ ही महिलाओं के सशक्तीकरण को भी बढ़ावा दिया है। बचत को एकत्र कर तथा सूक्ष्म ऋण तक पहुँच प्राप्त कर, SHG के सदस्य पशुधन, कृषि उपकरणों और लघु उद्यमों (जैसे: सिलाई, डेयरी व्यवसाय) में निवेश करते हैं, जिससे सीधे तौर पर पारिवारिक संपत्ति में वृद्धि होती है।
मुख्य भाग
स्वयं सहायता समूहों की दोहरी भूमिका:
- परिसंपत्ति निर्माण:
- माइक्रोक्रेडिट पहुँच: NABARD के SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SSHG-BLP) ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 54.82 लाख SHG को लगभग 209.29 करोड़ रुपए का ऋण वितरित किया।
- ऋण तक सीधी पहुँच ने पशुपालन, लघु कृषि और हस्तशिल्प जैसी आय-उत्पादक गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।
- उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश में स्वयं सहायता समूहों ने पशुधन अधिग्रहण को सुगम बनाया, उत्पादक क्षमता को बढ़ाया तथा फसल विफलता और चिकित्सा आपात स्थितियों जैसी विपत्तियों के प्रति घरेलू समुत्थानशक्ति को बढ़ाया।
- बचत और पूंजी निर्माण: स्वयं सहायता समूहों (SHG) की बचत को औसतन 7.5% की वार्षिक चक्रवृद्धि दर (CAGR) से पिछले पाँच वर्षों में जोड़ा गया है, जिससे अर्थव्यवस्था के मूल स्तर पर वित्तीय समावेशन को गति मिली है।
- आय सुरक्षा: स्वयं सहायता समूह खाद्य प्रसंस्करण, हस्तशिल्प और हथकरघा जैसे सूक्ष्म उद्यमों में विविधीकरण को प्रोत्साहित करके आय सुरक्षा को बढ़ावा देते हैं।
- नियमित बचत और ऋण चक्र वित्तीय बफर का निर्माण करते हैं, जिससे अनौपचारिक उधारदाताओं पर निर्भरता कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिये, मीशो के साथ समझौता ज्ञापन से SHG सदस्यों को विपणन मंच और व्यावसायिक प्रशिक्षण मिल रहा है, जिससे बाज़ार तक पहुँच तथा आय के अवसरों में सुधार हो रहा है।
महिला सशक्तीकरण में योगदान:
- संसाधनों पर नियंत्रण: स्वयं सहायता समूह की गतिविधियों से उत्पन्न आय का लगभग 70% हिस्सा महिलाओं के नियंत्रण में होता है, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ती है।
- उद्यमिता: NABARD के सूक्ष्म उद्यम विकास कार्यक्रम (MEDP) और कौशल उन्नयन योजनाएँ (m-Suwidha) महिलाओं को संधारणीय कृषि और गैर-कृषि उद्यम के संचालन के लिये कौशल एवं सहायता प्रदान करती हैं।
- सामाजिक एजेंसी: स्वयं सहायता समूह सामूहिक प्रयासों के माध्यम से भेदभाव, दहेज और घरेलू हिंसा जैसे लिंग आधारित मुद्दों से निपटते हैं।
- उदाहरण के लिये, मध्य प्रदेश में ‘सचेत दीदी’ और ‘शिक्षा सखी’ महिलाओं एवं बालिकाओं के लिये बेहतर स्वास्थ्य व शिक्षा के अवसर उपलब्ध करा रही हैं।
- राजनीतिक भागीदारी: स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के स्थानीय चुनाव लड़ने की संभावना तीन गुना अधिक होती है, राजस्थान एवं केरल के कई नेता सरपंच चुने गए हैं, जहाँ उन्होंने स्वच्छता और शिक्षा से संबंधित नीतियों को प्रभावित किया है।
- एक उल्लेखनीय उदाहरण पूर्व सरपंच श्रीमती सम्पतिया उइके का है, जो राज्यसभा के लिये चुनी गईं, जिन्होंने स्वयं सहायता समूह नेताओं की सफल राजनीतिक सशक्तीकरण यात्रा में अहम भूमिका निभाई।
चुनौतियाँ
आगे की राह
तमिलनाडु और दिल्ली-NCR में हस्तशिल्प एवं खाद्य पदार्थ बनाने वाले स्वयं सहायता समूह निम्नस्तरीय पैकेजिंग, ब्रांडिंग तथा बिक्री संवर्द्धन से जूझ रहे हैं, जिससे बड़े शहरी बाज़ारों तक उनकी पहुँच सीमित हो गई है।
बाज़ार पहुँच को बढ़ावा देने के लिये, सरकार GeM व क्लस्टर विकास जैसे ई-कॉमर्स संबंधों को बढ़ावा दे रही है तथा आठ ‘वोकल फॉर लोकल’ GeM आउटलेट स्टोर्स की शुरुआत कर रही है, जो स्टार्टअप्स एवं स्वयं सहायता समूहों को व्यापक बाज़ारों तक पहुँचने और बिक्री बढ़ाने में मदद करते हैं।
कई स्वयं सहायता समूहों को विलंब और अपर्याप्त ऋण प्रवाह का सामना करना पड़ता है; उदाहरण के लिये, हरियाणा में सदस्यों ने बैंक अधिकारियों की उदासीनता और पात्र समूहों के लिये खाते खोलने या ऋण प्रक्रिया करने से अस्वीकृति की शिकायत की।
डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्मों का विस्तार किया जाना चाहिये, MSME समाधान पोर्टल के माध्यम से बेहतर ऋण लक्ष्यीकरण के लिये SHG डेटा को आधार एवं GSTIN के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
वित्तीय साक्षरता में पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव, उदाहरण के लिये; एर्नाकुलम ज़िले (केरल) में, केवल 54% SHG सदस्यों को UPI जैसे डिजिटल भुगतान टूल के बारे में जानकारी थी, जो डिजिटल वित्तीय साक्षरता में अंतर को दर्शाता है।
डिजिटल उपकरणों और वित्तीय प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये, झारखंड में डिजिटल दीदियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में स्वेच्छा से डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दे रही हैं।
निष्कर्ष
SHG ने ग्रामीण गरीबों के बीच परिसंपत्ति सृजन और आय सुरक्षा को सक्षम करने में एक परिवर्तनकारी दोहरी भूमिका का प्रदर्शन किया है। नीति समर्थन, क्षमता निर्माण एवं समावेशी शासन के माध्यम से इन समूहों को सशक्त करना भारत के समावेशी विकास तथा ग्रामीण विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।
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