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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न 1. शब्दों की शक्ति किसी शस्त्र से भी अधिक गहरा वार कर सकती है।
    प्रश्न 2. कृतज्ञता का भाव प्रायः आनंद के शांत प्रकाश में प्रकट होता है।

    19 Apr, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. शब्दों की शक्ति किसी शस्त्र से भी अधिक गहरा वार कर सकती है।

    अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:

    • फ्रेडरिक नीत्शे: "मेरे पास यदि कागज़ का एक टुकड़ा और लिखने के लिये कुछ हो, तो मैं दुनिया को उलट सकता हूँ।"
    • आधुनिक कहावत: "लाठी और पत्थर मेरी हड्डियाँ तोड़ सकते हैं, लेकिन शब्द जीवनभर के लिये घाव दे सकते हैं।"

    सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:

    • शब्द विचारों और शक्ति के संवाहक होते हैं: शब्द न केवल विचारों को व्यक्त करते हैं, बल्कि वे आख्यानों, पहचान, विचारधाराओं और विश्वास प्रणालियों को भी आयाम देते हैं। जहाँ हथियार शरीर पर प्रहार करते हैं, वहीं शब्द मन और आत्मा को प्रभावित करते हैं।
      • भारतीय संवैधानिक भाषा, हम लोग ने अरबों लोगों को आशा और सम्मान दिया है।
    • बौद्ध दृष्टिकोण: सम्यक वाक् (उचित वाणी): बौद्ध धर्म के अष्टांग मार्ग के तत्त्वों में से एक - नैतिक और सजग वाणी पर ज़ोर देता है: बौद्ध धर्म के अष्टांग मार्ग का एक महत्त्वपूर्ण अंग – सम्यक वाक्, नैतिक और सजग वाणी पर बल देता है।
      • झूठी, कठोर, विभाजनकारी या बेकार की बातों से बचना तथा सत्य, सौहार्दपूर्ण एवं उद्देश्यपूर्ण संवाद को प्रोत्साहित करना।
      • यह सिद्धांत दर्शाता है कि भाषा का नैतिक उपयोग व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण के लिये अत्यावश्यक है।
    • भाषाई नृविज्ञान में सापिर-वॉर्फ परिकल्पना यह मानती है कि भाषा विचार को निर्धारित करती है। इसका अर्थ है कि मौखिक अभिव्यक्ति केवल निष्पक्ष माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारे चारों ओर की दुनिया का निर्माण करती है।
    • भाषा की हिंसा: हेट स्पीच (नफ़रत फैलाने वाली भाषा), सांप्रदायिक बयानबाज़ी, दुष्प्रचार और भ्रामक सूचनाएँ दंगे, युद्ध या नरसंहार को भड़का सकती हैं।
      • उदाहरण के लिये, हिटलर की मीन कैम्फ और राज्य के दुष्प्रचार ने यहूदी-विरोधी भावना को सामान्य बना दिया, जिसकी परिणति होलोकॉस्ट में हुई।
    • उपचार और विनाश: भाषा की दोहरी प्रकृति इसकी अपार नैतिक जिम्मेदारी को दर्शाती है। शब्द सहानुभूति के माध्यम से उपचार कर सकते हैं तो वहीं अपमान, निंदा, और बदनामी के माध्यम से आहत भी कर सकते हैं।
      • भाषा की यह द्वैध प्रकृति उसके गंभीर नैतिक दायित्व को दर्शाती है।

    नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:

    • सामाजिक आंदोलनों और क्रांतियाँ:
      • महात्मा गांधी ने वाणी की परिवर्तनकारी शक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके शांत और दृढ़ शब्दों ने ब्रिटिश साम्राज्य को किसी भी सशस्त्र विद्रोह से अधिक भयभीत कर दिया।
        • भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके नारे ‘करो या मरो’ ने जनता को शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लिये प्रेरित किया।
      • अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने जागृति और राजनीतिक शिक्षा के साधन के रूप में यंग इंडिया, केसरी आदि पत्रिकाएँ और समाचार पत्र शुरू किये।
      • मार्टिन लूथर किंग जूनियर के प्रसिद्ध भाषण ‘आई हैव ए ड्रीम’ ने अमेरिका में नागरिक अधिकारों पर विमर्श को पुनः परिभाषित किया।
      • इंकलाब जिंदाबाद: भगत सिंह, यह नारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध युद्ध का नारा बन गया, जिसने युवाओं को बलिदान और संघर्ष के लिये जागृत किया।
      • फ्राँसीसी क्रांति (वर्ष 1789): नेशनल असेंबली में दिये गए भाषणों और "लिबर्टी, इक्वलिटी, फ्रैटर्निटी (स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व)" के नारों ने जनसमूह को संगठित किया, राजशाही को समाप्त किया, और फ्राँस के राजनीतिक स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया।
    • शब्दों का नकारात्मक प्रभाव: नाज़ी प्रचार ने यहूदियों को बदनाम किया और नरसंहार को उचित ठहराया।
      • गलत सूचनाएँ और डीपफेक तकनीक सत्य व कल्पना के बीच के अंतर को धुंधला करके लोकतांत्रिक संस्थाओं को खतरे में डालते हैं।
    • समकालीन उदाहरण:
      • सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, ऑनलाइन दुर्व्यवहार और साइबर-बुलीइंग के कारण गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट और आत्महत्याएँ हुई हैं।
      • राजनीतिक ध्रुवीकरण प्रायः कार्रवाई के बजाय बयानबाजी से प्रेरित होता है।

    व्यक्तिगत एवं सामाजिक प्रतिबिंब:

    • परिवारों और कार्यस्थलों पर, भावनात्मक रूप से आहत करने वाले शब्द, प्रायः शारीरिक झगड़ों की तुलना में कहीं गहरे और लंबे समय तक रहने वाले मानसिक आघात पहुँचाते हैं।
    • इसके विपरीत, प्रोत्साहन का एक शब्द किसी की राह बदल सकता है।

    निष्कर्ष:

    शोर से भरी दुनिया में, शब्दों का नैतिक उपयोग केवल एक व्यक्तिगत गुण नहीं है, यह एक सार्वजनिक जिम्मेदारी है। हर युग में और सभ्यताओं में, शब्दों ने समाज और नियति को आकार देने में निर्णायक भूमिका निभाई है। जैसा कि प्राचीन संस्कृत ज्ञान हमें स्मरण कराता है — "वाक् शक्ति: परमाशक्ति: !", अर्थात् वाणी ही सर्वोच्च शक्ति है।

    जब शब्दों को सत्य एवं करुणा के साथ प्रयोग किया जाता है, तो वे न्याय, एकता और परिवर्तन की एक सशक्त शक्ति बन जाते हैं।

    2. कृतज्ञता का भाव प्रायः आनंद के शांत प्रकाश में प्रकट होता है।

    अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:

    • रूमी: "कृतज्ञता को एक लबादे की तरह पहन लो और यह तुम्हारे जीवन के हर कोने को पोषित करेगी।"
    • ईसप: “कृतज्ञता हमारे पास जो कुछ है उसे पर्याप्त बना देती है।”
    • कार्ल बार्थ: “आनंद कृतज्ञता का सरलतम रूप है।”

    सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:

    • एक गुण के रूप में कृतज्ञता: अरस्तू के नैतिक सिद्धांतों के अनुसार, कृतज्ञता एक नैतिक सद्गुण है, जो विनम्रता और भावनात्मक समृद्धि को प्रोत्साहित करती है।
    • कृतज्ञता और आनंद — एक सूक्ष्म संबंध: कृतज्ञता हमेशा शब्दों में व्यक्त नहीं की जाती। यह प्रायः संतोष, शांत उपस्थिति और मौन प्रशंसा के रूप में प्रकट होती है।
      • डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपनी सरल जीवनशैली, विनम्रता तथा शिक्षकों व असफलताओं के प्रति सम्मान के माध्यम से मौन कृतज्ञता का उदाहरण प्रस्तुत किया।
        • उनका आनंद सत्ता से नहीं, बल्कि सेवा, ज्ञान और युवाओं से जुड़ने से उपजा था, जो हमें याद दिलाता है कि सच्ची सेवा ही कृतज्ञता की सबसे सच्ची अभिव्यक्ति है।
    • मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: स्टोइक दर्शन के अनुसार, कृतज्ञता इस समझ में निहित है कि हमारे नियंत्रण में क्या है और क्या नहीं तथा जो हमारे नियंत्रण में नहीं है उसे स्वीकार कर लेना।
      • भारतीय आध्यात्मिक परम्पराएँ (जैसे: योग दर्शन में ‘संतोष’ या ‘दान का आनंद’) कृतज्ञता को आंतरिक संतोष की मूल अवस्था के रूप में प्रस्तुत करती हैं, जो अंततः आंतरिक आनंद की ओर ले जाती है।
    • पूर्वी दर्शन का परिप्रेक्ष्य: बौद्ध शिक्षाएँ मुदिता (सहानुभूतिपूर्ण आनंद) पर बल देती हैं, जहाँ व्यक्ति दूसरों की भलाई में खुशी महसूस करता है, यह भावना आपसी संबंधों के प्रति कृतज्ञता से जुड़ी होती है।
    • सांस्कृतिक आयाम: भारतीय संस्कृति में, मकर संक्रांति और छठ पूजा जैसे त्योहारों के माध्यम से कृतज्ञता व्यक्त की जाती है, जिसमें प्रकृति, पशु-पक्षियों और धरती के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। ये त्योहार विनम्रता और आपसी संबंधों की गहरी भावना को दर्शाते हैं।

    नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:

    • विपरीत परिस्थितियों में कृतज्ञता: जेल से छूटने के बाद नेल्सन मंडेला ने किसी प्रकार की घृणा नहीं व्यक्त की; उनकी शांत गरिमा जीवन और लचीलेपन के प्रति कृतज्ञता को प्रतिबिम्बित करती थी। नेल्सन मंडेला ने जेल से रिहा होने के बाद किसी भी प्रकार की घृणा नहीं की; उनकी मौन गरिमा जीवन के प्रति कृतज्ञता एवं आत्मबल की प्रतीक थी।
      • मदर टेरेसा ने निर्धनों की सेवा में जो आनंद अनुभव किया, वह मानवता के प्रति उनकी गहन कृतज्ञता का स्वरूप था।
      • लोक सेवक और सैनिक, विशेषकर संकट की घड़ी (जैसे COVID-19 महामारी) में, निःशब्द और निःस्वार्थ सेवा के माध्यम से देश सेवा का अवसर मिलने के लिये कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

    समकालीन उदाहरण:

    • दैनिक जीवन: एक किसान जो अच्छी फसल के बाद संतुष्ट महसूस करता है, या किसी शिक्षक का अपने शिष्य की प्रगति पर मुस्कुरा देना— ये सब कृतज्ञता के क्षण हैं जो चुपचाप मौन आनंद में बदल जाते हैं।
    • सोशल मीडिया युग: अक्सर, आभार प्रदर्शनात्मक होता है। आज के समय में कृतज्ञता प्रायः प्रदर्शन का रूप ले लेती है। हालाँकि, वास्तविक कृतज्ञता रोज़मर्रा के नितांत साधारण कार्यों— जैसे: देखभाल, उपस्थिति और धैर्य में प्रकट होती है, जिन्हें कोई मंच या सराहना नहीं चाहिये।

    निष्कर्ष:

    कृतज्ञता कोई क्षणिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है, जीवन जीने की एक शैली है। भारतीय संस्कृति में कृतज्ञता केवल ‘धन्यवाद’ या ‘आभार’ शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संस्कारों, अनुष्ठानों और परंपराओं के माध्यम से जीवन की मूल संरचना में समाहित है। गुरु पूर्णिमा जैसे पर्व शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं, तो बड़ों के चरण स्पर्श जैसे व्यवहार श्रद्धा और विनम्रता का प्रतीक हैं। ये सभी अभिव्यक्तियाँ यह स्मरण कराती हैं कि कृतज्ञता का उच्चतम रूप केवल शब्दों में नहीं, बल्कि सेवा, स्मरण और आचरण में निहित होती है।

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