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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    "पर्यावरणीय नैतिकता" को परिभाषित करने के साथ इसका महत्त्व बताइये। किसी एक पर्यावरणीय मुद्दे का चयन करते हुए पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से इसका विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    02 May, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • "पर्यावरणीय नैतिकता" की अवधारणा को संक्षेप में बताइए।
    • समकालीन समय में "पर्यावरण नैतिकता" के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • किसी एक पर्यावरणीय मुद्दे का चयन करते हुए पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से इसका विश्लेषण कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    पर्यावरण नैतिकता व्यावहारिक दर्शन की ऐसी शाखा है जिसके तहत पर्यावरणीय मूल्यों की वैचारिक नींव के साथ-साथ जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी प्रणालियों की रक्षा एवं रखरखाव के क्रम में सामाजिक दृष्टिकोण, कार्यों तथा नीतियों से संबंधित मुद्दों का अध्ययन किया जाता है।

    पर्यावरणीय नैतिकता से इस बात का मूल्यांकन होता है कि मनुष्य पर्यावरण के साथ किस प्रकार संबंधित है और इनके कार्यों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके तहत संसाधन खपत, प्रदूषण एवं संरक्षण प्रयासों जैसे मुद्दों पर विचार किया जाता है।

    मुख्य भाग:

    पर्यावरणीय नैतिकता का महत्त्व:

    • परस्पर संबद्धता को महत्त्व देना: पर्यावरणीय नैतिकता के तहत सभी जीवों तथा पारिस्थितिकी तंत्र के साथ उनकी परस्पर संबद्धता को पहचान मिलती है। इस परिप्रेक्ष्य से मानव एवं अन्य प्रजातियों के कल्याण हेतु जैवविविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के महत्त्व पर प्रकाश पड़ता है।
      • उदाहरण के लिये वर्षा वनों के विनाश से न केवल अनगिनत प्रजातियों के आवास का नुकसान होता है, बल्कि कार्बन पृथक्करण तथा जलवायु विनियमन जैसी महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी सेवाएँ भी बाधित होती हैं।
    • सतत् विकास: पर्यावरणीय नैतिकता से सतत् विकास की आवश्यकता को बल मिलता है जिसके तहत भविष्य की पीढ़ियों की ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की ज़रूरतों को पूरा करने पर बल दिया जाता है।
      • जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता क्षरण एवं प्रदूषण जैसे मुद्दों का सामना करने के क्रम में स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिये निर्णय लेने में नैतिक सिद्धांतों को अपनाना आवश्यक है।
    • न्याय और समानता: पर्यावरणीय नैतिकता पर्यावरणीय निर्णय लेने में न्याय और समानता के सिद्धांतों को रेखांकित करती है। इसमें स्थानीय तथा वैश्विक स्तर पर कमज़ोर समुदायों पर पर्यावरणीय क्षरण के प्रभावों पर विचार करने पर बल दिया जाता है।
      • उदाहरण के लिये हाशिये पर रहने वाले समुदाय अक्सर पर्यावरण प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का खामियाजा भुगतते हैं, जिससे असमानताएँ और बढ़ जाती हैं। पर्यावरण न्याय के तहत निष्पक्ष व्यवहार के साथ पर्यावरणीय निर्णयों में सभी लोगों की भागीदारी को महत्त्व दिया जाता है।
    • प्रबंधन एवं ज़िम्मेदारी: पर्यावरणीय नैतिकता के तहत पर्यावरण की देखभाल एवं सुरक्षा की ज़िम्मेदारी के क्रम में पृथ्वी के प्रबंधक के रूप में मनुष्यों के कर्त्तव्यों पर बल दिया जाता है। इसमें ऐसी प्रथाओं को अपनाना शामिल है जो पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने के साथ जलवायु परिवर्तन की तीव्रता को कम करने पर केंद्रित हों।
      • उदाहरण के लिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना तथा एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपभोग को कम करना, ज़िम्मेदार प्रबंधन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • वैश्विक सहयोग: पर्यावरणीय चुनौतियाँ राष्ट्रीय सीमाओं से परे हैं, जिसके लिये वैश्विक सहयोग की आवश्यकता होती है। पर्यावरणीय नैतिकता के तहत आम पर्यावरणीय खतरों से निपटने के क्रम में सभी देशों की साझा ज़िम्मेदारी पर बल दिया जाता है।
      • उदाहरण के लिये जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता तथा जैवविविधता कन्वेंशन जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौते नैतिक सिद्धांतों के आधार पर वैश्विक पर्यावरण सहयोग को बढ़ावा देने के प्रयासों को दर्शाते हैं।

    पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से निर्वनीकरण के मुद्दे का विश्लेषण:

    निर्वनीकरण के कारणों में मुख्य रूप से कृषि विस्तार, बुनियादी ढाँचे का विकास तथा शहरीकरण का बड़े पैमाने पर विस्तार शामिल है। इस प्रथा के महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय, सामाजिक एवं नैतिक निहितार्थ हैं।

    • जैवविविधता का क्षरण: पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से निर्वनीकरण से जैवविविधता के क्षरण के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। वन, पौधों एवं जंतुओं की प्रजातियों की एक विशाल शृंखला के आवास स्थल होते हैं। निर्वनीकरण से पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होने से इनके निवास स्थल का ह्रास होने के कारण प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं।
      • नैतिक रूप से भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिये जैवविविधता को संरक्षित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन का निर्वनीकरण में प्रमुख योगदान है। वन, कार्बन सिंक के रूप में कार्य करने तथा वायुमंडल से कार्बन डाइ-ऑक्साइड को अवशोषित करने के साथ वैश्विक जलवायु को विनियमित करने में सहायक होते हैं। जब जंगलों को साफ किया जाता है, तो वनों में संग्रहीत कार्बन वायुमंडल में उत्सर्जित होने से ग्रीनहाउस गैस में वृद्धि होती है।
      • पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से वनों को संरक्षित करके तथा वनों की कटाई की दर को कम करके, जलवायु परिवर्तन की तीव्रता को कम करना एक नैतिक अनिवार्यता है।
    • स्थानीय अधिकार एवं पर्यावरणीय न्याय: कई स्थानीय समुदाय अपनी आजीविका, सांस्कृतिक प्रथाओं तथा आध्यात्मिक विश्वासों के लिये जंगलों पर निर्भर रहते हैं। वनों की कटाई से अक्सर स्थानीय लोगों के अधिकारों का उल्लंघन होता है, जिससे विस्थापन एवं पारंपरिक ज्ञान की हानि के साथ सामाजिक संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
      • नैतिक रूप से स्थानीय समुदायों के अधिकारों का सम्मान करने के साथ वन प्रबंधन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
    • अंतर-पीढ़ीगत समानता: निर्वनीकरण के चलते भविष्य की पीढ़ियों की स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र तक पहुँच से समझौता किया जा सकता है।
      • हमारा कर्त्तव्य है कि नैतिक रूप से भावी पीढ़ियों के हितों पर विचार करें तथा उनके उपयोग के लिये प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करें।

    निष्कर्ष:

    पर्यावरणीय मुद्दों को नैतिक, न्यायसंगत तथा सतत् तरीके से हल करने की तात्कालिकता समकालीन विश्व में पर्यावरणीय नैतिकता की बढ़ती आवश्यकता को दर्शाती है। पर्यावरणीय निर्णय लेने और नीतियों में नैतिक सिद्धांतों को एकीकृत कर व्यक्ति एवं संगठन प्रकृति के साथ अधिक न्यायपूर्ण, अनुकूल तथा सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित कर सकते हैं।

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