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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    विश्व व्यापार संगठन की वार्ताओं में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों और बहुपक्षीय व्यापार में अपने हितों की रक्षा के लिए इसकी रणनीतियों का विश्लेषण करें। (250 शब्द)

    27 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • विश्व व्यापार संगठन (WTO) का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • WTO वार्ता में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • बहुपक्षीय व्यापार में अपने हितों की रक्षा के क्रम में भारत की रणनीतियों पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    विश्व व्यापार संगठन (WTO) राष्ट्रों के बीच व्यापार के वैश्विक नियमों से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका गठन 1 जनवरी, 1995 को हुआ था और इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है। WTO का प्राथमिक लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यापार यथासंभव सुचारु, पूर्वानुमानित एवं स्वतंत्र रूप से हो।

    मुख्य भाग:

    भारत के समक्ष चुनौतियाँ:

    • कृषि सब्सिडी:
      • भारत को अपनी विशाल कृषि आबादी के कारण कृषि सब्सिडी को संतुलित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • भारत में किसानों को पर्याप्त सब्सिडी दी जाती है, जिससे WTO नियमों (खासकर कृषि समझौते) के साथ टकराव होता है।
    • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)
      • TRIPS समझौते से भारत के समक्ष चुनौतियाँ (खासकर फार्मास्युटिकल क्षेत्र में) आई हैं।
      • भारत में सस्ती दवाओं का उत्पादन करने वाला काफी बड़ा जेनेरिक फार्मास्युटिकल उद्योग है, जिसकी लोक स्वास्थ्य में काफी भूमिका है।
      • हालाँकि मज़बूत पेटेंट नियम जेनेरिक दवाओं का उत्पादन करने की भारत की क्षमता में बाधा डाल सकते हैं, जिससे किफायती स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच प्रभावित हो सकती है।
    • सेवा क्षेत्र:
      • भारत को अपने सेवा क्षेत्र (खासकर IT, वित्त और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में) को बढ़ावा देने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
      • सेवाओं में व्यापार पर सामान्य समझौते (GATS) वार्ता में नियामक स्वायत्तता की रक्षा करते हुए भारतीय सेवा प्रदाताओं के लिये बाज़ार पहुँच सुनिश्चित करने के लिये उचित संतुलन की आवश्यकता होती है।
    • अधिकारों में विषमता:
      • WTO सदस्यों (विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों के संदर्भ में) के बीच शक्ति विषमता के कारण भारत को नुकसान होता है।
      • यह शक्ति असंतुलन भारत के लिये अपने एजेंडे को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाना चुनौतीपूर्ण बना देता है।
    • गैर टैरिफ बाधाएँ:
      • विकसित देशों की गैर-टैरिफ बाधाओं जैसे सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS) उपायों एवं व्यापार में तकनीकी बाधाओं (TBT) के कारण भारतीय निर्यात में बाधा आती है।
      • इन मानकों के अनुपालन के लिये पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान होता है।
    • विवाद निपटान:
      • भारत को WTO के विवाद निपटान तंत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, खासकर उन मामलों में जहाँ इसकी घरेलू नीतियों को चुनौती मिली है।
      • निष्पक्ष और पारदर्शी विवाद समाधान प्रक्रिया सुनिश्चित करना भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है।

    भारत के हितों की रक्षा हेतु रणनीतियाँ:

    • गठबंधन:
      • भारत ने समान विचारधारा वाले विकासशील देशों के साथ गठबंधन की रणनीति अपनाई है, विशेष रूप से जी-33 (कृषि के लिये) और जी-20 (व्यापार वार्ता के लिये) जैसे समूहों के माध्यम से।
      • भारत WTO में अपनी बातचीत की शक्ति को बढ़ाने के लिये ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका एवं चीन जैसे समान विचारधारा वाले विकासशील देशों के साथ गठबंधन निर्माण की रणनीति अपनाता है।
    • नीतिगत वकालत:
      • भारत विकासशील देशों की चिंताओं को दूर करने के लिये WTO के भीतर सुधारों की वकालत करता है।
      • इससे भारत जैसे देशों की विकासात्मक आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिये विशेष एवं विभेदक उपचार (S&D) प्रावधानों की आवश्यकता को बल मिलता है
      • भारत ने दोहा विकास एजेंडा (DDA) वार्ता में सक्रिय रूप से भाग लेने के साथ विकासोन्मुख परिणाम की वकालत की है जो विकासशील देशों की चिंताओं के समाधान पर केंद्रित है।
    • द्विपक्षीय और क्षेत्रीय समझौते:
      • भारत ने अपने व्यापार में विविधता लाने तथा पारंपरिक बाज़ारों पर निर्भरता कम करने के लिये द्विपक्षीय एवं क्षेत्रीय व्यापार समझौते किये हैं।
      • द्विपक्षीय FTA पर हस्ताक्षर करने से भारत को नए बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त हुई है।
    • घरेलू सुधारों पर ध्यान देना:
      • भारत ने अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने तथा सब्सिडी पर निर्भरता कम करने के लिये घरेलू सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया है।
      • वस्तु एवं सेवा कर (GST) जैसी पहल का उद्देश्य कराधान को सुव्यवस्थित करना तथा कारोबारी माहौल में सुधार करना है।
    • सेवाओं एवं गैर-कृषि बाजार पहुँच (NAMA) पर बल देना:
      • कृषि वार्ता से संबंधित सीमाओं को पहचानते हुए, भारत ने सेवाओं और NAMA क्षेत्रों में अनुकूल शर्तों पर बातचीत करने हेतु ध्यान केंद्रित किया है।
      • यह विविधीकरण भारत को IT सेवाओं एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में अपनी शक्ति का लाभ उठाने की अनुमति देता है
    • विवाद निपटान तंत्र का उपयोग:
      • भारत अन्य सदस्य देशों की अनुचित व्यापार प्रथाओं और भेदभावपूर्ण उपायों को चुनौती देने के लिये WTO के विवाद निपटान तंत्र का उपयोग करता है।
      • विधिक सहारा लेकर भारत, निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को बनाए रखने के साथ अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा करना चाहता है।
      • भारत WTO में अमेरिका के साथ कई व्यापार विवादों में उलझा हुआ है, जिसमें विशेष रूप से कृषि सब्सिडी, भारतीय IT पेशेवरों को प्रभावित करने वाले H-1B वीज़ा नियमों एवं सौर पैनल टैरिफ जैसे मुद्दे शामिल हैं।

    निष्कर्ष:

    बहुपक्षीय व्यापार में अपने हितों की रक्षा के लिये WTO वार्ता में भारत की भागीदारी महत्त्वपूर्ण है। रणनीतिक गठबंधनों, नीतिगत वकालत एवं घरेलू सुधारों के माध्यम से संबंधित चुनौतियों का समाधान करके, भारत का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि उसकी व्यापार नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों का अनुपालन करते हुए उसके विकास उद्देश्यों के लिये अनुकूल हों।

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