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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सार्वजनिक सेवाओं को प्रबंधन- उन्मुख और वर्तमान चुनौतियों के लिये प्रासंगिक बनाने हेतु किस प्रकार के सुधार अपेक्षित हैं? सरकार द्वारा प्रस्तावित हालिया सुधारों की समीक्षा करें।

    05 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण : 

    • सार्वजनिक सेवाओं को प्रबंधन- उन्मुख बनाएं जाने से क्या तात्पर्य है ?
    • वर्तमान चुनौतियों में इसकी  प्रासंगिकता।
    • अपेक्षित सुधार 
    • सरकार द्वारा प्रस्तावित हालिया सुधारों की चर्चा तथा समीक्षा।

    यह सर्वसम्मति से स्वीकृत है कि शांति स्थापना एवं स्थिरता बनाए रखने में, निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने में, आपदा प्रबंधन और राष्ट्र की अखंडता सुनिश्चित करने में सरकारी एजेंसियों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 

    चूँकि देश के हालात लगातार बदल रहे हैं और न्यायसंगत आर्थिक विकास की तलाश और प्रबंधन के लिये शासन का उद्देश्य भी बदल गया है। किंतु अभी भी नौकरशाही का ढाँचा जस-का-तस बनी हुआ है जिसके परिणामस्वरूप यदा-कदा लोगों में नौकरशाहों के प्रति विश्वास की भावना का भी अभाव दिखाई देता है। केवल दस प्रतिशत अधिकारी ही अपने ज्ञान के माध्यम से प्रशासन को सही रूप देने में समर्थ हैं। दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी यह स्वीकार किया है कि अक्षमता, भ्रष्टाचार और लेट-लतीफी भारत में सार्वजनिक पहचान की हॉलमार्क अवधारणा बन गई है।

    उक्त परिस्थिति में सरकार द्वारा फिट बैठने और चालू करने के स्थान पर सिविल सेवा की एक नई संरचना प्रस्तुत करना अपेक्षित है। ऐसे सिविल सेवकों को निजी क्षेत्र और सिविल सोसाइटी को प्रशासन के भागीदार के रूप में देखना होगा। साथ ही शासन की पूर्व-प्रतिष्ठा से विकेंद्रीकृत और नागरिक केंद्रित प्रभावी शासन के रूप में बदलाव भी अपेक्षित है।

    हाल ही में सरकार ने देश की प्रतिष्ठित सिविल सेवा में कुछ सुधार प्रस्तावित किये हैं। 

    नीति आयोग ने अपनी सिफारिशों में सरकार को प्रशासन के सभी स्तरों पर पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry) का सुझाव दिया।

    • सरकार के हालिया आदेशानुसार नियामक निकायों एवं न्यायाधिकरणों के प्रमुखों की भर्ती हेतु चुने गए उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की जाँच आसूचना ब्यूरा (IB) द्वारा किया जाना अनिवार्य कर दिया गया है।
    • हाल में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा कार्मिक विभाग को यह प्रेषित किया गया है कि सिविल सेवकों को पद आवंटन केवल UPSC के द्वारा निर्धारित मेधा-सूची के आधार पर न करके इसमें प्रशिक्षण को भी आधार बनाया जाए।

    नीति आयोग द्वारा की गई पार्श्व प्रवेश की सिफारिश का काफी हद तक सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है क्योंकि इससे प्रशासन में निजी क्षेत्र के अनुभवों को अंगीकार करने का अवसर प्राप्त होगा और प्रशासन परिणाम प्रभावी और क्षमतावान हो सकेगा।

    PMO द्वारा कार्मिक विभाग को प्रेषित निर्देश चयनित उम्मीदवारों को स्वयं के साथ न्याय करने का अवसर प्रदान करेगा कि वह देश की सेवा में अपनी प्रभावी भूमिका निभा पाएगा या नहीं जिसे केवल मेधा सूची से नहीं जाना जा सकता।

    प्रस्तावति सुधार मे यद्यपि स्वागत योग्य है तथापि इसमें कुछ समस्याएँ भी हैं-

    • वर्तमान में सिविल सेवा परीक्षा की जिम्मेदारी UPSC की है। किंतु सेवा आवंटन में प्रशिक्षण की भूमिका उसे UPSC की एक विस्तारित शाखा का रूप देती है, जो संविधान के अनुच्छेद 320(1) के प्रतिकूल है।
    • प्रशिक्षण अकादमी के निदेशक एवं संकाय सदस्य को राजनेताओं व वरिष्ठ नौकरशाहों के दबाव का भी शिकार होना पड़ सकता है।

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