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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘यूजीसी के स्थान पर भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग का गठन शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है।’ विवेचना कीजिये।

    12 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग के गठन के विषय में लिखें। 
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में यूजीसी के संबंध में संक्षेप में लिखते हुए भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग की शक्तियों के बारे में लिखें।
    • भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग के समक्ष चुनौतियों को स्पष्ट करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    हाल ही में उच्च शिक्षा का स्तर बढ़ाने और उसकी निगरानी के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को खत्म कर एक नए संस्थान भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग को लाने के लिये मसौदा जारी किया गया है। यूजीसी को भंग करके उसकी जगह उच्चतर शिक्षा आयोग के गठन का सुझाव मानव संसाधन विकास मंत्रलय के तहत 2014 में गठित हरिगौतम समिति द्वारा किया गया था।

    आजादी के तुरंत बाद 1948 में डॉ. एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में भारतीय विश्वविद्यालयी शिक्षा पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु उन सुधारों तथा विस्तारों के संबंध में सुझाव देने के लिये जो कि वर्तमान एवं भविष्य की जरूरतों और देश की आकांक्षाओं के अनुरूप वांछनीय हो सकते हैं, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई थी। परंतु वर्तमान में उच्च शिक्षा क्षेत्र की संस्थागत क्षमता में अत्यधिक वृद्धि हुई है। जिस कारण यूजीसी की कार्यक्षमता में व्यापक रूप से गिरावट देखी गई है।

    भारतीय उच्चत्तर शिक्षा आयोग (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग निरसन अधिनियम) विधेयक, 2018 के तहत यूजीसी अधिनियम को निरस्त करना प्रस्तावित किया गया है। इस अधिनियम के माध्यम से आयोग को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त होंगी-

    • इसमें कानूनी प्रावधानों के माध्यम से अपने फैसलों को लागू करने की शक्ति होगी।
    • आयोग के पास अकादमिक गुणवत्ता के मानदंडों के अनुपालन के आधार पर अकादमिक परिचालन शुरू करने के लिये अनुमोदन प्रदान करने की शक्ति होगी।
    • जहाँ मानदंडों/विनियमों के अनुपालन में इच्छाशक्ति या निरंतर चूक का मामला हो वहाँ उच्च शिक्षा संस्थान के अनुमोदनों को निरस्त करने की शक्तियाँ भी इस कानून के तहत होंगी।
    • आयोग को यह अधिकार भी प्राप्त होगा कि वह छात्रों के हितों को प्रभावित किये बिना उन संस्थानों को बंद करने का आदेश दे सके जो न्यूनतम मानकों का पालन करने में असफल रहे हों।
    • आयोग उच्च शिक्षा संस्थानों को इस बात के लिये भी प्रोत्साहित करेगा कि वे शिक्षा, शिक्षण एवं शोध के क्षेत्र में सर्वोत्तम पद्धतियों का विकास करें।
    • उच्च शिक्षा में नियामक निकायों अर्थात् एआईसीटीई और एनसीटीई के अध्यक्षों के सहयोग द्वारा आयोग को और मज़बूती प्रदान की जाएगी।
    • आयोग को दंड देने की भी शक्ति प्राप्त होगी। इनमें उपाधि या प्रमाण-पत्र जारी करने के अधिकार को वापस लेना तथा शैक्षिक गतिविधियों को रोकने का आदेश देना शामिल होगा। ऐसे मामलों में जहाँ जानबूझकर नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है, वहाँ भारतीय अपराध संहिता की ऐसी धाराओं के तहत मुकदमा चलाने का अधिकार होगा जिसमें अधिकतम तीन वर्ष के कारावास की सजा हो सकती है।

    भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग का ध्यान अकादमिक मानकों और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, सीखने के परिणामों के मानदंडों को निर्दिष्ट करने और शिक्षण/अनुसंधान के मानकों को निर्धारित करने पर होगा। इसके साथ ही यह शैक्षिक मानकों केा बनाए रखने में विफल पाए गए संस्थानों को परामर्श देने के लिये एक रोडमैप प्रदान करेगा। परंतु इसके मार्ग में अनेक चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं जो कि निम्नलिखित हैं-

    • शैक्षिक संस्थाओं की अवस्थिति अलग-अलग राज्यों में है, अब जबकि वित्तीयन का अधिकार सीधे केंद्रीय मंत्रालय के पास होगा इससे राज्यों और केंद्र के मध्य गतिरोध बढ़ेंगे।
    • सत्ताधारी दल के बदलने से मंत्रालय की नीतियों में परिवर्तन होना संभव है, अतः राज्य विशेष जहाँ दूसरे दल की सरकार हो, वहाँ की शैक्षिक संस्थाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
    • अनुसंधान गतिविधियाँ भी उच्च स्तरीय नहीं हैं। डीम्ड और निजी विश्वविद्यालय अपनी मनमानी से चलते हैं। ऐसे विश्वविद्यालय ज्यादातर राजनीतिक बिरादरी और कॉर्पोरेट घरानों के हैं। नए आयोग को इन पर लगाम लगाने की जरूरत होगी।
    • वित्तीयन और विनियमन का प्रबंध अलग-अलग विनियामकों द्वारा किये जाने से विनियामकों के बीच आवश्यक समन्वय बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
    • देश में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रें की संख्या 2017 में 3 करोड़ 57 लाख तक पहुँच गई है, जो 2014 के मुकाबले करीब 35 लाख अधिक है। ऐसे में बढ़ती हुई आवश्यकताओं के हिसाब से अवसंरचना एवं विकास के साथ तालमेल बैठाने हेतु आयोग को अधिक प्रयास करना होगा।

    एचईसीआई-2018 के तैयार मसौदे में शामिल किये गए तथ्य सुनने और पढ़ने में जितने आदर्शवादी प्रतीत हो रहे हैं, यदि वे उतनी ही विशुद्धता के साथ लागू होते हैं और दीर्घकाल तक बने रहते हैं तब भारत की उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में आई गिरावट की जगह उन्नति की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

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