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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    अपने-अपने क्षेत्रों में निश्चित आधारभूत उद्देश्य होने के बावजूद, इसरो एक संगठन के रूप में, डी.आर.डी.ओ. की तुलना में अधिक सफल साबित हुआ है। समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    29 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • इसरो एवं डी.आर.डी.ओ. के विज़न का परिचय देते हुए यह बताएँं कि अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में ये किस प्रकार आगे बढे़ हैं।
    • इसरो के डी.आर.डी.ओ. से अधिक सफल बनने के कारणों को बताएँ।
    • डी.आर.डी.ओ. में सुधारों की आवश्यकता के साथ निष्कर्ष दीजिये।

    इसरो एवं डी.आर.डी.ओ. स्वतंत्र भारत में परिकल्पित दो संस्थाएँ हैं, जिनकी परिकल्पना भारत को क्रमश: एक अंतरिक्ष महाशक्ति बनाने तथा रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से की गई थी। वस्तुत: अपनी स्थापना के दशकों बाद आज यदि इन दोनों ही संस्थाओं की प्रगति का मूल्यांकन करते हैं तो हम पाते हैं कि इसरो आज एक प्रतिष्ठित वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसी के रूप में उभरकर सामने आया है, जबकि डी.आर.डी.ओ. अभी भी अपनी सफलता की तलाश में लगा हुआ है।

    डी.आर.डी.ओ. की तुलना में इसरो के अधिक सफल होने के कारण-

    • वर्ष 1969 में अपने संविधान निर्माण के बाद वर्ष 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अधीन रखा गया तथा नीति निर्माण व उनके क्रियान्वयन के लिये एक अलग अंतरिक्ष आयोग की स्थापना की गई। इस पूरे ढाँचे को प्रधानमंत्री कार्यालय के तत्त्वावधान में रखा गया, जिसने इसरो को नौकरशाही की बोझिल प्रक्रियाओं से बचाया, इसकी कार्यशैली में तीव्रता आई, जबकि डी.आर.डी.ओ. रक्षा मंत्रालय के अधीन एक संगठन है, जिसमें नौकरशाही का हस्तक्षेप अधिक है।
    • इसरो का संरचनात्मक संघटन नीति-निर्धारकों के बीच ऊर्ध्वाधर एकीकरण को बढ़ावा देता है जो कि दीर्घकालिक परियोजनाओं की प्रकृति को आसानी से समझकर उनके क्रियान्वयन को बढ़ावा देता है, जबकि डी.आर.डी.ओ. का संघटन अत्यधिक जटिल एवं लालफीताशाहीयुक्त है।
    • जहाँ एक तरफ इसरो को अपने शुरुआती चरण में विक्रम साराभाई जैसे टेक्नोक्रेट्स एवं विशेषज्ञों का नेतृत्व प्राप्त हुआ, वहीं दूसरी तरफ डी.आर.डी.ओ. को अपने प्रारंभिक वर्षों में ऐसे विशेषज्ञों की कमी से जूझना पड़ा।
    • इसरो को अपने शुरुआती चरण में ही अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय तथा प्रतिष्ठित एजेंसियों, जैसे- नासा, रॉसकासमॉस आदि के साथ कार्य करने का मौका मिला, जिनकी कार्यपद्धतियों को इसरो ने बखूबी अपनाया, जबकि डी.आर.डी.ओ. को ऐसे अवसर कम ही मिले।
    • भारत में शुरुआती दौर में रक्षा उत्पादन के स्थान पर रक्षा आयात को बढ़ावा दिया गया, जिससे रक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला तथा अन्वेषण एवं निर्माण पर कम ध्यान दिया गया, वहीं तीनों सेनाओं व डी.आर.डी.ओ. के बीच समन्वय की भी कमी एक अन्य कारण है।
    • यद्यपि, इसरो की सफलता के आगे डी.आर.डी.ओ. की सफलता अत्यधिक न्यून दिखाई देती है, किंतु हमें डी.आर.डी.ओ. की सफलताओं से इनकार भी नहीं करना चाहिये। डी.आर.डी.ओ. ने कई सफल कार्य किये हैं, जिनमें भारत का मिसाइल कार्यक्रम, एयरबोर्न अर्लीवार्निंग सिस्टम तथा कई रक्षा आयुध सामग्री निर्माण आदि प्रमुख हैं। वस्तुत: डी.आर.डी.ओ. की कार्यशैली में धीरे-धीरे परिवर्तन हो रहा है, जिससे

    डी.आर.डी.ओ. की विश्वसनीयता में वृद्धि हो रही है। भारत को स्वदेशी रक्षा निर्माण एवं विकास पर भी अधिक ध्यान देना चाहिये, जिससे डी.आर.डी.ओ. की महत्ता में और अधिक वृद्धि हो तथा आगामी समय में यह संगठन भी इसरो के समकक्ष खड़ा हो सके।

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