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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आर.सी.ई.पी.) में सम्मिलित होने से भारत की अस्वीकृति ने इसकी नियोजित (कैलीबरेटेड) वैश्वीकरण की प्रवृत्ति को उजागर किया है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

    22 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • आर.सी.ई.पी. में भारत के शामिल न होने के कारणों को बताइये।
    • भारत का आई.सी.ई.पी. में शामिल न हाने का पैसला कैसे इसकी नियोजित वैश्वीकरण की प्रवृत्ति को उजागर कर रहा है।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आई.सी.ई.पी.) एक व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक समझौता है, जिसकी औपचारिक शुरुआत वर्ष 2012 में हुई। इसमें आसियान एवं उसके मुक्त व्यापार समझौते के भागीदार छ: देश (भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया तथा जापान) शामिल हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य इन देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण करना है। आर.सी.ई.पी. के माध्यम से आर्थिक वृद्धि एवं समान आर्थिक विकास तथा व्यापक क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने का लक्ष्य है।

    हाल ही में बैंकॉक में हुए तीसरे आई.सी.ई.पी. शिखर सम्मेलन में भारत ने इस समझौते से बाहर निकलने का पैसला किया है। इस पैसले से बाहर होने की भारतीय इच्छा ने वैश्विक समुदाय में भारत की कैलिबरेटेड वैश्वीकरण प्रवृत्ति पर एक नई बहस को जन्म दिया है। भारत के इस समझौते से बाहर निकलने के लिये उत्तरदायी मुख्य कारणों को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-

    • व्यापार घाटे में वृद्धि: मुक्त व्यापार समझौते के बाद आसियान, कोरिया, जापान के साथ भारत के व्यापार घाटे में वृद्धि हुई। इस समझौते के अनुरूप भारत को लगभग 90 प्रतिशत तक वस्तुओं पर टैरिफ कम करना पडे़गा, जिससे भारत के राजस्व में कमी होगी। वर्तमान समय में भारत का चीन के साथ 53 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है, जिसके आर.सी.ई.पी. से बढ़ने के आसार थे।
    • संवेदनशील सूची: आर.सी.ई.पी. के तहत अधिकांश देशों में उनके लिये संवेदनशील कुछ उत्पादों, जैसे- चावल, डेयरी उत्पाद एवं शहद आदि पर अत्यधिक आयात प्रशुल्क लगता है।
    • कृषि क्षेत्र पर 30-40 प्रतिशत तक टैरिफ लगने से यह क्षेत्र और अधिक संवेदनशील हो जाएगा।
    • बागानी फसलें विशेषकर चाय-कॉफी एवं मसाले भी इससे नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगे।
    • भारतीय छोटे डेयरी फर्म ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड के श्रेष्ठ डेयरी प्रौद्योगिकियों एवं उच्च मानकों से प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पाएंगे।
    • भारत ने ऑटो-ट्रिगर तंत्र, रैचेट ऑब्लिगेशन तथा टैरिफ के आधार वर्ष आदि पर भी चिंता जताई है।

    वस्तुत: भारत का आर.सी.ई.पी. से बाहर होने का प्रमुख उद्देश्य अपने आंतरिक उद्योगों, कृषि क्षेत्र तथा बाज़ार को संरक्षण प्रदान करना है। वस्तुत: भारत का चीन तथा आसियान के साथ व्यापार घाटे में तीव्रता से वृद्धि हो रही थी, जिसके लिये आवश्यक था कि भारत इस समझौते में सम्मिलित न हो। हालाँकि यह कहना पूर्णत: उचित नहीं है कि भारत कैलीबरेटेड वैश्वीकरण की तरफ बढ़ रहा है। ध्यातव्य है कि भारत वैश्वीकरण के सबसे बडे़ लाभार्थियों में से एक है, किंतु वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये भारत का

    आर.सी.ई.पी. से बाहर होना उसके आंतरिक बाज़ार के संरक्षण के दृष्टिकोण से उचित प्रतीत हो रहा है।

    वस्तुत: वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में यह कहना गलत नहीं होगा कि देश अपनी अर्थव्यवस्था के संरक्षण के लिये वैश्वीकरण को सोच-समझकर बढ़ावा दे रहे हैं, पूर्व में अमेरिका जैसे देशों ने भी ऐसे पैसले लिये हैं, जिनका दीर्घकालिक परिणाम उनके हित में रहा है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था में तीव्रता से मंदी महसूस की जा रही है। ऐसे में भारत का अपने आंतरिक बाज़ार की स्थिरता पर ध्यान देना गलत नहीं होगा।

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