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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. संरक्षणवाद अल्पावधि में फायदेमंद हो सकता है, लेकिन लंबी अवधि में, यह अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाता है।” टिप्पणी कीजिये।

    25 Jan, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • संरक्षणवाद की अवधारणा को संक्षेप में परिभाषित करने के साथ उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • इसकी खूबियों पर चर्चा कीजिये और हमें अल्पावधि में इसकी आवश्यकता क्यों है।
    • संरक्षणवाद के विरुद्ध तर्क दीजिये कि इससे किस प्रकार अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है?
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    संरक्षणवाद का अर्थ सरकार की उन कार्यवाहियों एवं नीतियों से है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करती हैं। ऐसी नीतियों को प्रायः विदेशी प्रतियोगिता से स्थानीय व्यापारों एवं नौकरियों को संरक्षण प्रदान करने के प्रयोजन से अपनाया जाता है। इसके लिये टैरिफ, सब्सिडी, आयात कोटा, या विदेशी प्रतिस्पर्धियों के आयात पर लगाए गए अन्य प्रतिबंधों या बाधाओं जैसे साधनों का उपयोग किया जाता है । इस तथ्य के बावजूद कि लगभग सभी मुख्यधारा के अर्थशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि विश्व अर्थव्यवस्था को आम तौर पर मुक्त व्यापार से लाभ होता है, कई देशों द्वारा संरक्षणवादी नीतियों को लागू किया गया है।

    संरक्षणवाद के पक्ष में तर्क

    • राष्ट्रीय सुरक्षा: यह आर्थिक संवहनीयता के लिये अन्य देशों पर निर्भरता के जोखिम से संबंधित है। यह तर्क दिया जाता है कि युद्ध की स्थिति में आर्थिक निर्भरता विकल्पों को सीमित कर सकती है। इसके साथ ही, कोई देश किसी दूसरे देश की अर्थव्यवस्था को नकारात्मक तरीके से प्रभावित कर सकता है।
    • नवजात उद्योग: यह तर्क दिया जाता है कि उद्योगों को उनके प्रारंभिक चरणों में संरक्षण प्रदान करने के लिये संरक्षणवादी नीतियों की आवश्यकता होती है। चूँकि बाज़ार खुला होता है, वैश्विक स्तर की बड़ी कंपनियाँ बाज़ार पर कब्जा कर सकती हैं। इससे नए उद्योग में घरेलू खिलाड़ियों के लिये अवसर का अंत हो सकता है।
    • डंपिंग: कई देश अन्य देशों में अपने माल की डंपिंग (उत्पादन लागत या स्थानीय बाज़ार में उनकी कीमत से कम मूल्य पर बिक्री करना) करते हैं।
      • डंपिंग का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करते हुए विदेशी बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना और इस तरह एकाधिकार स्थापित करना होता है।
    • नौकरियाँ बचाना: यह तर्क दिया जाता है कि घरेलू स्तर पर अधिकाधिक खरीदारी राष्ट्रीय उत्पादन को प्रेरित करती है और उत्पादन में यह वृद्धि एक स्वस्थ घरेलू रोज़गार बाज़ार के निर्माण में योगदान करती है।
    • आउटसोर्सिंग: कंपनियों के लिये यह सामान्य अभ्यास है कि वे सस्ते श्रम और सरल शासन प्रणाली वाले देशों की पहचान करते हैं और वहाँ अपने रोज़गार कार्यों की आउटसोर्सिंग करते हैं। इससे घरेलू उद्योगों में नौकरियों का नुकसान होता है।
    • बौद्धिक संपदा संरक्षण: किसी घरेलू प्रणाली में पेटेंट्स नवप्रवर्तकों की रक्षा करते हैं। हालाँकि, वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों के लिये रिवर्स इंजीनियरिंग के माध्यम से नई तकनीकों की नकल करना बेहद सामान्य बात है।

    संरक्षणवाद के विरुद्ध तर्क

    • व्यापार समझौते: भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों से व्यापक लाभ हुआ है। वाणिज्य मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, भारत ने 54 देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • वे टैरिफ रियायतें प्रदान करते हैं, जिससे लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) से संबंधित उत्पादों के साथ ही वृहत रूप से उत्पादों के निर्यात को अवसर प्राप्त होता है।
    • WTO के विनियमों के विरुद्ध: भारत WTO की स्थापना के समय से ही इसका सदस्य रहा है। विश्व व्यापार संगठन के नियम अन्य देशों से आयात पर प्रतिबंध लगाने पर रोक लगाते हैं।
      • ऐसे प्रतिबंध केवल भुगतान संतुलन की कठिनाइयों, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कुछ उद्देश्यों से ही आरोपित किये जा सकते हैं। घरेलू उद्योग को स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा से बचाने के लिये ऐसी बाधाएँ नहीं लगाई जा सकती हैं।
    • मुद्रास्फीति-विषयक प्रवृत्ति: आयात को प्रतिबंधित करने जैसी संरक्षणवादी नीतियाँ घरेलू बाज़ार में वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि ला सकती हैं, जिससे सीधे तौर पर उपभोक्ताओं के हित प्रभावित होते हैं।
    • अप्रतिस्पर्द्धी घरेलू उद्योग: स्थानीय उद्योगों को इस प्रकार संरक्षित किये जाने से उनके पास नए उत्पादों के लिये नवाचार या अनुसंधान और विकास पर संसाधनों के निवेश की कोई प्रेरणा नहीं होती।

    आगे की राह

    • ‘कारोबार सुगमता’ में सुधार: हालाँकि भारत ने कई दिशाओं में प्रगति की है, लेकिन व्यवसाय शुरू करने, अनुबंध लागू करने और संपत्ति को पंजीकृत करने जैसे संकेतकों में वह अभी भी कई बड़े देशों से पीछे है।
      • इन संकेतकों में सुधार से भारतीय फर्मों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकने और बड़ी बाज़ार हिस्सेदारी प्राप्त कर सकने में मदद मिल सकती है।
    • ‘मेक इन इंडिया’: देश में नवाचार, अनुसंधान एवं विकास और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। यह भारतीय कंपनियों को भविष्य के क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धा कर सकने के लिये तैयार करेगा।
    • निजी निवेश को बढ़ावा देना: इससे विकास, रोज़गार अवसरों, निर्यात और माँग को बढ़ावा मिलेगा।
    • अनुमान-योग्य और पारदर्शी व्यापार नीति: यह भारतीय फर्मों को अपनी क्षमता और वित्त की अग्रिम योजना तैयार कर सकने का अवसर देगी। वे विस्तार और अनुसंधान एवं विकास के लिये अपने संसाधनों का आवंटन कर सकने में सक्षम होंगे। इससे वे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बन सकेंगे।
    • मुक्त व्यापार समझौते (FTAs): भारत को पूर्वी एशियाई देशों (आसियान), जापान, दक्षिण कोरिया आदि के साथ विशेष रूप से मुक्त व्यापार समझौतों का प्रभावी उपयोग करने की आवश्यकता है, ताकि इन देशों के साथ निवेश, निर्यात और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जा सके।
    • व्यापार संबंधी समस्याओं का समाधान: भारतीय व्यापार व्यवस्था में निवेशकों की शंकाओं को दूर करने के लिये अमेरिका और अन्य देशों के साथ व्यापार संबंधी समस्याओं को जल्द से जल्द हल किया जाना चाहिये।

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