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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    बाहरी अंतरिक्ष किसी भी देश की रक्षा व्यवस्था की संभावित चौथी शाखा के रूप में उभर रहा है। बाह्य अंतरिक्ष भू-राजनीति से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये और आगे की राह बताइये। (250 शब्द)

    04 Jan, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्रश्न के पहले कथन की व्याख्या करते हुए परिचय दीजिये कि कैसे बाहरी अंतरिक्ष किसी देश की रक्षा व्यवस्था की संभावित चौथी भुजा के रूप में उभर रहा है।
    • बाह्य अंतरिक्ष भू-राजनीति से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे का राह सुझाते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    बाह्य अंतरिक्ष में भारत की नई रणनीतिक अभिरुचि दो प्रमुख रुझानों को चिह्नित करने पर आधारित है। पहला, 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में उभरती प्रौद्योगिकियों की केंद्रीयता; और दूसरा, बाह्य अंतरिक्ष में शांति एवं स्थिरता के लिये नए नियमों के निर्धारण की तात्कालिकता।

    अमेरिका एवं अन्य ‘क्वाड’ (QUAD) भागीदारों—ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ बाह्य अंतरिक्ष सहयोग हेतु नए अवसरों का पता लगाने के लिये भारत ने स्वयं को अधिक सक्रीय रूप से संलग्न किया है। बाह्य अंतरिक्ष तेज़ी से उभरता हुआ एक नया क्षेत्र है, जहाँ हाल के वर्षों में अधिकाधिक वाणिज्य एवं प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति नज़र आ रही है।

    बाह्य अंतरिक्ष भू-राजनीति से संबद्ध समस्याएँ

    • अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण: अंतरिक्ष का सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण बुनियादी रूप से रचनात्मक वाणिज्यिक एवं वैज्ञानिक परियोजनाओं के विपरीत है। अंतरिक्ष में युद्ध की स्थिति शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष में तैनात प्रणालियों के रखरखाव के लिये आवश्यक अंतर्निहित सहयोग को नष्ट कर देगी।
      • इन तथ्यों के बावजूद, बाह्य अंतरिक्ष के सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण संबंधी में लगातार वृद्धि हुई है।
    • अंतरिक्ष मलबे की समस्या: मिसाइल द्वारा नष्ट किया गया कोई भी उपग्रह प्रायः कई छोटे टुकड़ों में विखंडित हो जाता है, जो कि अंतरिक्ष मलबे में वृद्धि करता है। अंतरिक्ष में मुक्त रूप से तैरते हुए ये मलबे परिचालित उपग्रहों के लिये संभावित खतरा उत्पन्न करते हैं और इनके कारण उपग्रह वस्तुतः निष्क्रिय या नष्ट भी हो सकते हैं।
      • विभिन्न देशों द्वारा अधिकाधिक उपग्रहों को लॉन्च किये जाने साथ, जहाँ उनमें से प्रत्येक रणनीतिक या व्यावसायिक महत्त्व रखते हैं, भविष्य में अंतरिक्ष मलबा एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
    • अंतरिक्ष अन्वेषण की प्रतिस्पर्द्धा: ‘स्पेस माइनिंग’ यानी अंतरिक्ष अन्वेषण को लेकर चल रही मौजूदा प्रतिस्पर्द्धा संघर्ष और सहयोग के एक नए युग की शुरुआत करेगी।
      • यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार, वर्ष 2040 तक वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग लगभग 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का होगा।
    • ‘मून रश’ (Moon Rush): चंद्रमा पर जल और ‘पीक्स ऑफ एटरनल लाइट’ (Peaks of Eternal Light) की खोज के बाद चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर लक्षित ‘मून रश’ एक नई परिघटना ही बन गई है। उदाहरण के लिये:
      • हाल ही में चीन के चांग'ई 4 (Chang’e 4) ने दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के अंधेरे हिस्से में वॉन कर्मन क्रेटर (Von Karman crater) में सॉफ्ट लैंडिंग की।
      • अमेरिका के लूनर प्रोग्राम का लक्ष्य अगले दशक में एक बार फिर चंद्रमा पर मानव को भेजना है।
      • नासा भी मुख्यतः दक्षिणी ध्रुव पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है और यदि यह अभियान सफल होता है, तो यह दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाला पहला मानव दल होगा।
      • जेफ़ बेज़ोस (अमेज़न कंपनी के मालिक) ने ‘ब्लू मून प्रोजेक्ट’ का अनावरण किया है, जिसके तहत अगले कुछ वर्षों में महिलाओं और पुरुषों को चंद्रमा पर भेजने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

    आगे की राह

    • सार्वजनिक और निजी संस्थानों का आपसी सहयोग: भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के नियामक, वाणिज्यिक और वैज्ञानिक अनुसंधान तत्त्वों को संरचनात्मक रूप से अलग-अलग करने की आवश्यकता है।
      • अंतरिक्ष अनुसंधान एवं विकास पर वित्तपोषण को बढ़ाया जाना चाहिये और इसरो तथा निजी अनुसंधान संस्थानों को साथ मिलकर कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
      • इसके साथ ही, एक स्वतंत्र नियामक स्थापित किये जाने की आवश्यकता है जो इसरो एवं नए अंतरिक्ष ऑपरेटरों को एकसमान अवसर प्रदान करते हुए उनका नियंत्रण कर सके।
    • एक सुदृढ़ नियामक ढाँचे की आवश्यकता: अपनी अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने हेतु भारत को एक सुदृढ़ नियामक ढाँचे का भी निर्माण करना चाहिये।
      • भारत को वर्तमान अंतरिक्ष व्यवस्था के लिये उभरती चुनौतियों पर भी कड़ी नज़र रखनी चाहिये तथा बाह्य अंतरिक्ष क्षेत्र की प्रकृति के विषय में अपनी पूर्ववर्ती राजनीतिक धारणाओं की समीक्षा करनी चाहिये, साथ ही नए वैश्विक मानदंडों के विकास में योगदान करना चाहिये, जो बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) के मूल सार को सशक्त करेंगे।
    • अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की प्रभावी ढंग से रक्षा करने के लिये भारत के पास मलबे एवं अंतरिक्ष यान से लेकर आकाशीय पिंडों तक सभी खगोलीय निकायों को ट्रैक करने की सटीक क्षमता मौजूद होनी चाहिये।
      • चूँकि सटीक ट्रैकिंग ही अंतरिक्ष में लगभग सभी आवश्यक गतिविधियों का आधार है, इसलिये इस महत्त्वपूर्ण क्षमता को स्वदेशी रूप से विकसित किया जाना चाहिये।

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