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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    कृषि क्षेत्र के कल्याण को प्राप्त करने के लिये कृषि सुधार समय की मांग है। कृषि की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में इस कथन की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

    18 Aug, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • कृषि क्षेत्र की वर्तमान स्थिति को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • वर्तमान कृषि क्षेत्र में प्रचलित मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु कुछ उपाय सुझाइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    भारत की 50% से अधिक आबादी के लिये कृषि आजीविका का प्राथमिक स्रोत है। FY20 के अनुसार कृषि, वानिकी और मत्स्य उद्यम द्वारा अर्थव्यवस्था में 19.48 लाख करोड़ रुपए (276.37 बिलियन अमरीकी डॉलर) के सकल मूल्य का योगदान दिया जाता है। मौजूदा कीमतों पर भारत के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2020 में 17.8% थी।

    इसके अलावा भारतीय खाद्य और किराना बाज़ार दुनिया का छठा सबसे बड़ा बाज़ार है, जिसका खुदरा बिक्री में 70% का योगदान है। हालाँकि मौजूदा कृषि क्षेत्र में कुछ मुद्दों को हल करने के लिये कृषि सुधारों की आवश्यकता है।

    प्रारूप

    वर्तमान व्यवस्था के साथ उभरे मुद्दे

    • राज्यों में अलग-अलग पैदावार: हरित क्रांति के पाँच दशकों के बाद भी देश के बाकी हिस्सों में हरित क्रांति वाले राज्यों और अन्य राज्यों के बीच चावल एवं गेहूँ की पैदावार में बड़ा अंतर है।
    • बुनियादी ढाँचे के विकास का अभाव: राज्यों में आम वस्तुओं - सिंचाई, सड़क, बिजली आदि के प्रावधान में भी भारी असमानता है।
      • कृषि भूमि, फसलों और आदानों के लिये अच्छी तरह से काम करने वाले बाज़ारों की अनुपस्थिति के साथ धीमी गति से श्रम सुधार और शिक्षा की खराब गुणवत्ता ने कृषि के क्षेत्रों में संसाधन गतिशीलता को कम कर दिया है।
    • प्रभावी विकेंद्रीकरण का अभाव: एक विकेन्द्रीकृत प्रणाली का वास्तविक उद्देश्य काफी हद विफल रहा है जिसमें प्रयोग करना, एक-दूसरे से सीखना और सर्वोत्तम प्रथाओं एवं नीतियों को अपनाना शामिल था।
      • इसके बजाय आज़ादी के बाद से भारतीय कृषि अत्यधिक खंडित रही है।
    • प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास: राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न इनपुट सब्सिडी और न्यूनतम मूल्य गारंटी खरीद योजनाओं ने उत्पादकता के समग्र स्तर और कृषि में जोखिम की स्थिति बदतर कर दी है तथा जल संसाधनों, मृदा, स्वास्थ्य एवं जलवायु में विपरीत प्रभाव उत्पन्न किया है।
    • कृषि क्षेत्र की कीमत पर खाद्य सुरक्षा: विडंबना यह है कि "खाद्य सुरक्षा" एक कृषि क्षेत्र की कीमत पर लाई गई है जो सभी हितधारकों - किसानों, घरों, उपभोक्ताओं, व्यापारियों, फर्मों और राज्य के व्यक्तिगत कल्याण के निम्न स्तर तथा समग्र जोखिम के स्तर को उच्च को बढ़ावा देती है।

    समस्याओं से निपटने के उपाय

    • आय को अधिकतम व जोखिम को कम करना: हाल ही में पारित तीन कृषि कानून आर्थिक सुधारों के व्यापक सेट का केवल एक हिस्सा हैं, जिनकी भारतीय कृषि को स्थिर करने के लिये आवश्यकता होगी।
      • इन सुधारों का उद्देश्य ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना होना चाहिये जो भारतीय कृषि में जोखिम के समग्र स्तर को कम करते हुए कृषि परिवारों को अपनी आय को अधिकतम करने की अनुमति दें।
    • उदारीकृत खेती: किसानों को अपने खेतों के लिये संसाधनों, भूमि, आदानों, प्रौद्योगिकी और संगठनात्मक रूपों के सर्वोत्तम मिश्रण का निर्धारण करने के लिये स्वतंत्र किया जाना चाहिये।
      • किसानों को गैर-कृषि क्षेत्र के उद्यमियों की तरह अपनी शर्तों पर कृषि में प्रवेश करने और बाहर निकलने की अनुमति दी जानी चाहिये और वे जिसे चाहें, अनुबंधित कर सकते हैं।
    • कृषि संस्थानों और शासन प्रणालियों में सुधार: प्रमुख नीति क्षेत्रों को एक छतरी के नीचे लाकर केंद्रीय स्तर पर भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
      • केंद्रीय मंत्रालयों और एजेंसियों के बीच तथा केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय को मज़बूत करना चाहिये।
    • विकेंद्रीकृत प्रणाली : देश भर में किसानों और कृषि संसाधनों की अधिक गतिशीलता की अनुमति देने वाले मौलिक सुधारों की आवश्यकता है।
      • एक वास्तविक विकेन्द्रीकृत राज्य व्यवस्था में असम के एक किसान को "पंजाब मॉडल" से उतना ही लाभ मिलना चाहिये जितना कि पंजाब के किसानों को मिलता है।

    निष्कर्ष

    भारत का कृषि-खाद्य क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जो कई चुनौतियों और कई अवसरों का सामना कर रहा है। यदि आवश्यक सुधार लागू किये जाते हैं तो भारत को अपनी विशाल आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा में सुधार करने, अपने लाखों छोटे धारकों के जीवन की गुणवत्ता को आगे बढ़ाने, गंभीर संसाधनों और जलवायु दबावों को दूर करने, टिकाऊ उत्पादकता में वृद्धि और एक आधुनिक, कुशल एवं लचीली कृषि व्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी। ऐसी खाद्य प्रणाली संपूर्ण अर्थव्यवस्था में समावेशी विकास और नौकरियों में योगदान दे सकती है।

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