इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाथ से मैला ढोने की प्रथा अन्याय और गांधीवादी विचारों का पालन करने में भारत की विफलता का प्रतीक है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    03 Aug, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • उत्तर की शुरुआत में मैला ढोने की समस्या के अभी भी समाज में प्रचलित होने का वर्णन करते हुए हाथ से मैला ढोने के प्रभावों की चर्चा कीजिये।
    • सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों पर चर्चा कीजिये।
    • हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिये उपाय सुझाइये और इसके साथ निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 26 लाख सूखे शौचालय थे जहाँ किसी व्यक्ति द्वारा मानव मल को हाथ से हटाया जाता था।

    रिहैबिलिटेशन रिसर्च इनिशिएटिव के वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम के पारित होने के बाद भी भारत में अभी भी लगभग 15 लाख मैनुअल स्कैवेंजर्स हैं, जिनमें से 70% से अधिक महिलाएँ हैं।

    इसके अलावा सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक के अनुसार वर्ष 2016 और 2020 के बीच देश भर में 472 और वर्ष 2021 में अब तक 26 मैनुअल स्कैवेंजर्स की मौतें दर्ज की गईं।

    प्रारूप

    मैनुअल स्कैवेंजिंग के प्रभाव:

    • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: मैला ढोने वाले हाइड्रोजन डाइसल्फ़ाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया और मीथेन जैसी गैसों के संपर्क में आते हैं। हाइड्रोजन डाइसल्फ़ाइड के लंबे समय तक संपर्क में रहने से श्वासावरोध से मृत्यु हो सकती है।
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स के विरुद्ध संरचनात्मक हिंसा: हाथ से मैला उठाने वालों को दो प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिसमें सामाजिक हिंसा और शारीरिक हिंसा (जातिगत भेदभाव से जुड़ी) शामिल हैं।
    • जातिगत और लैंगिक भेदभाव: हाथ से मैला उठाने वालों में ज़्यादातर महिलाएँ और सीमांत वर्ग के लोग हैं। हाथ से मैला उठाने वाली कुछ विशिष्ट जातियाँ बना दी गई हैं जिन्हें निम्न वर्ग के रूप में माना जाता है और बेहतर व्यवसाय में जाने से बाहर रखा जाता है। नतीजतन, मैला ढोने के काम को उनके प्राकृतिक व्यवसाय के हिस्से के रूप में देखा जाता है।

    प्रसार के कारण:

    • उदासीन रवैया: राज्य सरकारों की ओर से यह स्वीकार करने में निरंतर अनिच्छा कि यह प्रथा उनकी निगरानी में प्रचलित है।
    • आउटसोर्सिंग के कारण समस्याएँ: कई बार स्थानीय निकाय सीवर सफाई कार्यों को निजी ठेकेदारों को आउटसोर्स करते हैं। हालाँकि उनमें से कई गैर ज़िम्मेदार ऑपरेटर स्वच्छता से संबंधित ज़िम्मेदारी का उचित निर्वहन नहीं करते हैं।
    • सामाजिक मुद्दा: यह प्रथा जाति, वर्ग और आय के विभाजन से प्रेरित है।
      • यह भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ा हुआ है जहाँ तथाकथित निचली जातियों से यह काम करने की उम्मीद की जाती है।

    सरकार द्वारा पहले ही उठाए गए कदम

    • मैनुअल स्केवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: वर्ष 1993 के अधिनियम के स्थान पर वर्ष 2013 अधिनियम का स्थान सूखे शौचालयों पर प्रतिबंध से परे है तथा यह अस्वच्छ शौचालयों, खुली नालियों या गड्ढों की सभी मैनुअल स्केवेंजिंग को गैरकानूनी घोषित करता है।
    • अत्याचार निवारण अधिनियम:
      • वर्ष 1989 में, अत्याचार निवारण अधिनियम स्वच्छता कार्यकर्ताओं के बचाव हेतु एकीकृत प्रावधानों के साथ लाया गया।
    • 'स्वच्छता अभियान ऐप': इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान और जियोटैग करने के लिये विकसित किया गया है।
    • सुप्रीम कोर्ट का फैसला (2014): सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य है जो वर्ष 1993 से सीवेज के काम में मारे गए हैं और उनके प्रत्येक के परिवारों को मुआवजे के रूप में 10 लाख रूपये की राशि भी देनी है।

    आगे की राह

    • उचित पहचान: राज्यों को जहरीले कीचड़ की सफाई में लगे श्रमिकों की सही-सही गणना करने की आवश्यकता है।
    • स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाना: स्वच्छ भारत मिशन को 15वें वित्त आयोग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया और स्मार्ट शहरों तथा शहरी विकास के लिये वित्त की उपलब्धता के साथ ही मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या का समाधान करने के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान किया गया।
    • सामाजिक संवेदनशीलता: हाथ से मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना और फिर यह समझना आवश्यक है कि कैसे और क्यों जाति व्यवस्था में हाथ से मैला ढोना जारी है।
    • सख्त कानून की आवश्यकता: यदि कोई कानून राज्य एजेंसियों की ओर से स्वच्छता सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक वैधानिक दायित्व बनाता है तो यह ऐसी स्थिति उत्पन्न करेगा जिसमें इन श्रमिकों के अधिकारों का हनन नहीं होगा।
    • मैनुअल स्केवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास(संशोधन) विधेयक, 2020 का जल्द से जल्द पारित होना:
      • यह सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके पेश करने और सीवर से होने वाली मौतों के मामले में मैनुअल स्केवेंजर्स को मुआवजा प्रदान करने का प्रस्ताव करता है।

    निष्कर्ष

    सदियों से प्रचलित हाथ से मैला ढोने की प्रथा सम्मान के साथ जीवन जीने के मानव अधिकार के विरुद्ध है। ऐसे में इस सामाजिक खतरे के उन्मूलन हेतु वर्तमान में न केवल सरकार अपितु नागरिक समाज को भी मिलकर काम करना होगा।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2