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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    बुद्ध की कौन-सी शिक्षाएँ आज सर्वाधिक प्रासंगिक हैं और क्यों? विवेचना कीजिये।

    11 Feb, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • बौद्ध दर्शन के मुख्य लक्ष्य पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए उत्तर शुरू करें।
    • बौद्ध विचार और इसकी प्रासंगिकता के वैचारिक ढाँचे पर चर्चा करें।
    • उचित निष्कर्ष दें।

    बौद्ध दर्शन का मुख्य लक्ष्य दु:ख को समाप्त करना है। जैसे-जैसे दुनिया तेज़ी से अन्योन्याश्रित हो रही है और संघर्षों से घिर रही है, बुद्ध के दर्शन अधिक प्रासंगिक हो रहे हैं।

    बुद्ध के विचार और उनकी प्रासंगिकता

    बुद्ध के शिक्षण का सार चार महान सत्यों में निहित है। ये चार महान सत्य व्यक्ति के ज्ञान का मार्ग तय करते हैं जो इस प्रकार हैं:

    दुख का सत्य: बुद्ध के अनुसार, सुख के सभी स्रोत क्षणिक हैं, कोई भी सुख दुख के साथ आता है।

    इस प्रकार हमें बाहरी चीज़ों में खुशी देखने की बजाय आंतरिक भावनाओं और दृष्टिकोण को देखने की ज़रूरत है।

    बौद्ध धर्म का यह सिद्धांत समाज में बढ़ते भौतिकवाद और उपभोक्तावाद के प्रकाश में प्रासंगिक है।

    दुख की उत्पत्ति का सच: दुख की उत्पत्ति का कारण अज्ञानता से ग्रस्त अपेक्षाएँ हैं। अज्ञान का तात्पर्य स्वयं की वास्तविकता को न समझने से है।

    यह जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव की अनदेखी करने वाले विकसित देशों के लिये प्रासंगिक है, जो मध्यम से दीर्घ अवधि में पूरे मानव जाति को प्रभावित करेगा।

    दुख की समाप्ति का सत्य: दुख का निरोध बौद्ध साधना का उद्देश्य है। बौद्ध धर्म ध्यान पर विशेष बल देता है, जो मन को प्रशिक्षित करने और जीवन के प्रति अधिक लाभकारी दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है।

    प्रतिस्पर्धा के इस युग में बढ़ते मानसिक विकारों से निपटने और नैतिक एवं मानसिक आत्म-सुधार की ओर ले जाने में ध्यान लोगों की मदद कर सकता है।

    दुख की समाप्ति के लिये सत्य का मार्ग: चौथा उत्तम मार्ग दुख को समाप्त करने का मार्ग है। इसे आष्टांगिक मार्ग कहा जाता है।

    इसमें शामिल हैं,

    1. सम्यक दृष्टि : सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुख और सुख का सही अवलोकन करें। आर्य सत्यों को समझें।
    2. सम्यक संकल्प : जीवन में संकल्पों का बहुत महत्त्व है। यदि दुःख से छुटकारा पाना हो तो दृढ़ निश्चय कर लें कि आर्य मार्ग पर चलना है।
    3. सम्यक वाक : जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्यता आवश्यक है। यदि वाणी की पवित्रता और सत्यता नहीं है तो दुख आने में ज़्यादा समय नहीं लगता। यह समाज में बढ़ती अभद्र भाषा और बढ़ती असहिष्णुता से निपटने के लिये प्रासंगिक है।
    4. सम्यक कर्मांत : कर्म चक्र से छूटने के लिये आचरण का शुद्ध होना ज़रूरी है। आचरण की शुद्धि क्रोध, द्वेष और दुराचार आदि का त्याग करने से होती है।
    5. सम्यक आजीव : यदि आपने दूसरों का हक मारकर या अन्य किसी अन्यायपूर्ण उपाय से जीवन के साधन जुटाए हैं तो इसका परिणाम भी भुगतना होगा, इसीलिये न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन आवश्यक है। यह विचार आर्थिक क्षेत्र में बढ़ती असमानताओं और भ्रष्टाचार को देखते हुए प्रासंगिक है।
    6. सम्यक व्यायाम : ऐसा प्रयत्न करें जिससे शुभ की उत्पत्ति और अशुभ का निरोध हो। जीवन में शुभ के लिये निरंतर प्रयास करते रहना चाहिये।
    7. सम्यक स्मृति : शारीरिक तथा मानसिक भोग-विलास की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखने से चित्त में एकाग्रता का भाव आता है। एकाग्रता से विचार और भावनाएँ स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं।
    8. सम्यक समाधि : उपरोक्त सात मार्गों के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता द्वारा निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है। यह समाधि ही धर्म के समुद्र में लगाई गई छलाँग है।

    इन सबके प्रयास से आत्म-अनुशासन, ईमानदारी, परोपकारिता और करुणा पैदा हो सकती है, जिससे सामाजिक पतन को रोका जा सकता है।

    निष्कर्ष

    बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता का अनुमान दलाई लामा के शब्दों से लगाया जा सकता है, उन्होंने 20वीं शताब्दी को युद्ध और हिंसा की सदी कहा था और 21वीं शताब्दी में शांति और बातचीत के रास्ते पर चलना सुनिश्चित करना मानवता का काम था।

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