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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    लोकप्रिय धारणा के विपरीत, भारत में जन्म के समय लिंगानुपात में कमी आई है जबकि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    05 Jan, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • दिये गए कथन का संदर्भ देते हुए परिचय लिखें।
    • जन्म के समय कम लिंगानुपात से संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
    • जन्म के समय कम लिंगानुपात में सुधार के लिये आवश्यक उपायों पर चर्चा करें।
    • एक उपयुक्त निष्कर्ष लिखें।

    परिचय

    • सरकारी आँकड़ों का विश्लेषण करके इंडियास्पेंड (IndiaSpend) ने बताया कि भारत का पिछले 65 वर्षों में जन्म के समय लिंगानुपात कम हुआ है जबकि इसी अवधि में प्रति व्यक्ति आय लगभग 10 गुना बढ़ी है। हाल ही में प्रकाशित नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System) रिपोर्ट, 2018 से भी यह स्पष्ट होता है कि भारत में जन्म के समय लिंगानुपात वर्ष 2011 के 906 से घटकर वर्ष 2018 में 899 के स्तर पर पहुँच गया।
    • आय में वृद्धि इसका एक प्रमुख कारण हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप साक्षरतामें वृद्धि के साथ ही परिवारों के लिये लिंग-चयनात्मक (Sex-Selective) प्रक्रियाओं तक पहुँच आसान हो जाती है। इस तथ्य की इससे पुष्टि इस बात से की जा सकती है कि कई भारतीय शहरों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में उच्च आर्थिक विकास होने के बाद भी लिंगानुपात कम है।

    संरचना:

    भारत में प्रति व्यक्ति आय में सुधार होने के बावजूद, पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण और भेद-भावपूर्ण सांस्कृतिक प्रथाओं के कारण लिंगानुपात मौजूद है।

    • लिंग पूर्वाग्रह की निरंतरता: UNPFA के अनुसार, महिला विरोधी पूर्वाग्रह कन्या भ्रूण हत्या के प्रमुख कारणों में शामिल है, क्योंकि वर्तमान समय में भी महिलाओं को पुरुषों के अधीनस्थ के रूप में देखा जाता है। परिणामस्वरूप बालिकाओं को शैक्षिक, स्वास्थ्य और पोषण संबंधी भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
    • पुत्र को वरीयता: भारत में लैंगिक समानता के विचार को विकसित करने हेतु किये गए विभिन्न प्रयासों के बावजूद भी कई माता-पिता ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि बुढ़ापे में पुत्र ही उनकी अच्छी देखभाल कर सकते हैं, क्योंकि परिवार में केवल पुरुषों को धन कमाने वाला माना जाता है।
    • सामाजिक प्रथाएँ: भारत में दहेज़ पर प्रतिबंध लगाने और इसे एक अपराध घोषित करने के बावजूद यह अभी भी प्रचलित है। बालिकाओं के माता-पिता को अभी भी माँगे गए दहेज़ (जो कि कभी-कभी बहुत अधिक होता है) के रूप में धन को खर्च करना पड़ता है। कई मामलों में यह भी देखा गया है कि लड़की आत्मनिर्भर हो तो भी दहेज़ लिया जाता है।
    • प्रसवोत्तर लिंग चयन तकनीकों तक पहुँच: भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र की प्रत्येक 1000 लड़कियों पर तेरह से अधिक मौते दर्ज की गई हैं। यह विश्व में पाँच वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की मृत्यु की उच्चतम दर है। इस निराशाजनक तस्वीर के लिये बेहतर आय और प्रसव के बाद लिंग चयन तकनीक के बारे में जागरूकता को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।

    जन्म के समय निम्न लिंगानुपात से संबंधित अन्य मुद्दे

    • लैंगिक-असंतुलन: प्रो अमर्त्य कुमार सेन ने अपने विश्व प्रसिद्ध लेख "मिसिंग वूमेन" में सांख्यिकीय रूप से यह साबित किया है कि पिछली शताब्दी के दौरान दक्षिण एशिया में 100 मिलियन महिलाएँ लापता हुई हैं।
      • भेदभाव उनकी मृत्यु में वृद्धि का एक कारण होता है जिसे वे पूरे जीवन चक्र में अनुभव करती हैं। प्रतिकूल बाल लिंगानुपात भी पूरी आबादी के विकृत लैंगिक ढाँचे में परिलक्षित होता है।
    • विवाह प्रणाली में विकृति: प्रतिकूल अनुपात के परिणामस्वरूप पुरुषों और महिलाओं की संख्या में व्यापक असंतुलन हो जाता है, जिसका प्रभाव विवाह प्रणाली तथा साथ ही महिलाओं को अन्य दूसरी परेशानियों के रूप में दिखाई देता है।
      • भारत में, हरियाणा और पंजाब के कुछ गाँवों में लिंगानुपात इतना कम है कि पुरुष दूसरे राज्यों से वधु का "आयात" करते हैं। ऐसी स्थिति में अक्सर उनका शोषण होता है। यह भी चिंता का मुद्दा है कि विषम लिंगानुपात हिंसा के साथ-साथ मानव-तस्करी का भी कारण बनता है।

    जन्म के समय निम्न लिंगानुपात में सुधार के उपाय:

    • व्यवहार परिवर्तन: महिला शिक्षा में वृद्धि तथा और आर्थिक समृद्धि से अनुपात में सुधार करने में मदद मिल सकेगी।
      • इस दिशा में, सरकार के बेटी-बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान ने समाज के व्यवहार को परिवर्तित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।
    • युवाओं को संवेदनशील बनाना: प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा और सेवाओं के साथ-साथ लिंग निष्पक्षता मानदंडों को विकसित करने के लिये युवाओं तक तत्काल पहुँच स्थापित करने की आवश्यकता है।
      • इसके लिये, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा) की सेवाओं का लाभ उठाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • कानून का सख्त प्रवर्तन: भारत को पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन का प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 को और अधिक सख्ती से लागू करना चाहिये तथा लड़कों को प्राथमिकता देने वाली अवधारणाओं से लड़ने के लिये अधिक संसाधन समर्पित करने चाहिये।
      • इस संदर्भ में, ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड द्वारा अल्ट्रासाउंड मशीनों को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 में शामिल करने का निर्णय सही दिशा में उठाया गया एक कदम है।

    निष्कर्ष

    यद्यपि भारत ने अपनी जनसंख्या वृद्धि दर को कम करने के लिये कई प्रभावशाली लक्ष्य बनाए हैं, भारत और शेष विश्व को सार्थक जनसंख्या नीति को प्राप्त करने के लिये एक लंबा रास्ता तय करना है जो न केवल मात्रात्मक नियंत्रण बल्कि गुणात्मक नियंत्रण पर भी आधारित है।

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