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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘शिक्षा मूल्यविहीन होगी, तो वह केवल मनुष्य की स्वार्थपूर्ति तक सीमित होगी’’ तर्कों द्वारा स्पष्ट करते हुए इस कथन की पुष्टि करें।

    13 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका

    • कथन का विश्लेष्ण 

    • निष्कर्ष

    माना जाता है कि शिक्षा मूल्यविहीन होगी, तो वह केवल मनुष्य की स्वार्थपूर्ति तक सीमित होगी; जिससे व्यक्ति में सहिष्णुता, पंथनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक मूल्य, करुणा जैसे मूल्य विकसित नहीं होने पर वह व्यक्ति समाज के लिये घातक सिद्ध हो सकता है। वस्तुत: मूल्य, व्यक्ति को शिक्षा का सही संदर्भों में उपयोग करने के लिये प्रेरित करते हैं, अगर शिक्षा में मूल्यों का समावेशन न हो, तो वह मनुष्य को चालाक दैत्य बनाने जैसा है। ‘मिशेल फूको ’ के शब्दों में कहें तो- ‘‘वर्तमान समय में राजनीतिक सत्ता ज्ञान अर्थात् शिक्षा पर सवार होकर आती है।’’ इस संदर्भ में मूल्यविहीन शिक्षा से राजनीति में विकृत्ति उत्पन्न होगी।शिक्षा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक है और शिक्षा को सीखने की प्रक्रिया में मूल्यों का अनिवार्य समावेशन होना चाहिये।

    वर्तमान समय में आतंकवाद, मूल्यविहीन शिक्षा रूपी ‘चालाक दैत्य’ का ज्वलंत उदाहरण है। तो वहीं मूल्य ही व्यक्ति को ‘हिटलर’ या ‘गांधी’ बना देते हैं। वस्तुत: दोनों ने ही शिक्षा को प्राप्त किया किंतु एक ने मूल्य सहित शिक्षा के कारण विश्व की शांति के लिये कार्य किया, तो ‘हिटलर’ ने मूल्यविहीन शिक्षा के द्वारा मानव सभ्यता का नरसंहार किया तथा हिंसा को बढ़ावा दिया।

    उल्लेखनीय है कि मूल्यविहीन शिक्षा से रहित व्यक्ति अपने पेशे में भ्रष्ट आचरण को बढ़ावा देता है, जिसे वर्तमान में डॉक्टरों द्वारा किसी मरीज़ की किडनी निकालना, अध्यापक द्वारा अपने छात्र के साथ यौन हिंसा जैसी गतिविधियों के संदर्भ में देख सकते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा के द्वारा इनका उद्देश्य तंत्र में शामिल होना था। इसी तरह कुछ लोगों का कहना है कि मूल्यों के बिना शिक्षा व्यक्ति को एक ‘रोबोट’ के समान बना देती है, जो मानव से अधिक कुशल कार्य तो कर सकता है किंतु उसमें ईमानदारी, दया, संवेदनशीलता, समायोजन की क्षमता जैसे मूल्य नहीं होते हैं। मूल्यों से ही एक शिक्षित मानव और प्रशिक्षित मशीन के बीच अंतर स्पष्ट होता है।

    यह विचारणीय है कि वर्तमान समय में अधिकाधिक लाभ कमाना किसी भी व्यवसाय का प्रमुख उद्देश्य बन गया है। इन परिस्थितियों में अन्य मूल्य गौण हो जाते हैं और ऐसी शिक्षा असमानता को ही बढ़ावा देती है। अत: ऐसे में शिक्षा से युक्त व्यक्ति संसाधनों का उपयोग अपने हित में बेहतर तरीके से करेंगे; जबकि अन्य व्यक्ति आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के साथ व्यवस्था में पिछड़ जाएंगे।

    निष्कर्षतः अगर उपयोगी प्रतीत होती शिक्षा में मूल्यों का समावेश नहीं किया गया तो वह केवल ‘चालाक दैत्य’ ही बनाएगी, जिसका एकमात्र ध्येय होगा ‘अपने स्वार्थों की पूर्ति करना।’ अत: ज़रूरत है कि शिक्षा में मूल्यों, सद्गुणों के विकास को बढ़ावा दिया जाए, जिससे व्यक्ति शिक्षा से युक्त होकर समाज की भलाई के लिये कार्य करे, न कि समाज के विरुद्ध।

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