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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    खाद्यान्न फसलों को होने वाला नुकसान भारत में अनाज भंडारण की समस्या को उजागर करता है। भारत में खाद्यान्न संग्रहण एवं प्रबंधन पर प्रकाश डालें तथा खाद्यान्न संग्रहण में आने वाली समस्याओं का उल्लेख करते हुए खाद्यान्न भंडारण में वृद्धि हेतु दलवई समिति की अनुशंसाओं की चर्चा करें।

    14 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भूमिका।

    • भारत में खाद्यान्न संग्रहण तथा प्रबंधन।

    • भारत में अनाज संग्रहण में निहित समस्याएँ।

    • दलवई समिति की अनुशंसा।

    केंद्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (CIPHET) के अनुसार, भारत में कटाई के दौरान तथा कटाई के बाद प्रमुख खाद्यान्न फसलों के कुल उत्पादन का 4.65% से 5.99% भाग व्यर्थ हो जाता है। कटाई उपरांत होने वाले नुकसान का कारण अनाजों का अवैज्ञानिक संग्रहण है जिससे कीटों, चूहों तथा अन्य सूक्ष्म जीवों द्वारा इन खाद्यान्नों को नष्ट कर दिया जाता है।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष कटाई उपरांत होने वाले अनाज के नुकसान की मात्रा 12 से 16 मिलियन टन है। फसलों की कटाई के उपरांत भारतीय किसानों को प्रतिवर्ष लगभग 92,651 करोड़ रुपए का नुकसान होता है जिसका मुख्य कारण कमज़ोर संग्रहण तथा यातायात व्यवस्था है। वर्तमान में देश में खाद्यान्न संग्रहण क्षमता लगभग 88 मिलियन टन है।

    भारत में खाद्यान्न संग्रहण तथा प्रबंधन:

    • भारत में खाद्यान्नों की खरीद, संग्रहण, स्थानांतरण, सार्वजनिक वितरण तथा बफर स्टॉक के रख-रखाव की ज़िम्मेदारी भारतीय खाद्य निगम (FCI) की है। FCI भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग मंत्रालय के अधीन एक नोडल एजेंसी है।
    • FCI का उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु अनाजों के स्टॉक की संग्रहण आवश्यकताओं को पूरा करना है।
    • FCI न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से खाद्यान्नों की खरीद करता है, बशर्ते वे अनाज, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानदंडों को पूरा करते हों।
    • खाद्यान्नों की खरीद FCI की तरफ से राज्य सरकार की एजेंसियों तथा निजी मिलों द्वारा भी की जाती है।सभी खरीदे गए अनाज केंद्रीय भंडार का निर्माण करते हैं।
    • इसके बाद अनाजों को अधिशेष राज्यों से उपभोक्ता राज्यों में वितरण हेतु भेजा जाता है। इसके अतिरिक्त देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये इसके बफर स्टॉक हेतु अनाजों का संग्रह FCI के भंडार गृहों में किया जाता है।
    • FCI तथा राज्य सरकारों द्वारा खाद्यान्नों का निपटारा खुली बाज़ार बिक्री योजना (OMSS) के तहत किया जाता है। इसके अंतर्गत समय-समय पर खाद्यान्नों की बिक्री पूर्व निर्धारित कीमतों पर खुले बाज़ार में की जाती है ताकि अनाजों की कमी के समय इसकी आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके तथा बाज़ार की कीमतों में स्थिरता बनी रहे।
    • FCI की आर्थिक लागत में खाद्यान्नों का अधिग्रहण, खरीद से जुड़े अन्य व्यय (श्रमिक एवं यातायात शुल्क और गोदामों का किराया आदि) तथा वितरण शुल्क (माल ढुलाई, निगरानी, संग्रह और ब्याज शुल्क, संग्रह के दौरान हुई हानि इत्यादि) शामिल हैं।
    • भारत में खाद्यान्न का संग्रह पारंपरिक तरीके से किसानों द्वारा किया जाता है, जबकि अधिशेष अनाज का संग्रहण सरकारी एजेंसियों जैसे- FCI, केंद्रीय तथा राज्य भंडारण निगमों द्वारा किया जाता है।

    खाद्यान्न संग्रहण में आने वाली समस्याएँ:

    • अपर्याप्त प्रबंधन: प्रबंधन की कमी की वजह से भंडारों में अनाज को उसके शेल्फ लाइफ से भी अधिक समय तक रखा जाता है जिससे कीड़े, चूहे, पक्षियों आदि द्वारा नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है।
      • विभिन्न राज्यों में उपलब्ध भंडारण क्षमता 75% से भी कम की है जिसकी वजह से उसमें ताज़े अनाजों को रखने के लिये जगह नहीं होती है।
    • अवैज्ञानिक संग्रहण: देश में मौजूद लगभग 80% भंडारण सुविधाएँ परंपरागत तरीके से ही संचालित होती हैं जिसकी वजह से प्रतिकूल मौसमी दशाओं जैसे- तेज़ बारिश, बाढ़, तूफान आदि की स्थिति में अनाजों के नष्ट होने की संभावना अधिक रहती है।
    • FCI की भंडारण क्षमता में कमी: केंद्रीय भंडार में खाद्यान्नों की मात्रा में बढ़ोतरी तथा सिलो, गोदामों एवं भंडारगृहों की अपर्याप्त संख्या के कारण FCI उनके भंडारण में सक्षम नहीं है।
    • कोल्ड स्टोरेज की समस्या: भारत में अधिकांश कोल्ड स्टोरेज संरचनाएँ असंगठित क्षेत्र की हैं तथा उन्हें पारंपरिक सुविधाओं से चलाया जा रहा है।

    दलवई समिति की अनुशंसायें:

    • एकीकृत एग्री-लॉजिस्टिक प्रणाली का विकास करना ताकि खेतों से उपभोक्ता तक मूल्य का दक्षतापूर्वक स्थानांतरण हो सके। इसके माध्यम से स्थानांतरित उत्पादों का पर्याप्त स्तर तक मौद्रीकरण किया जा सकेगा तथा बाज़ार में पहुँचने वाले उत्पादों की मात्रा में भी बढ़ोतरी होगी।
    • ज़िला तथा राज्य आधारित संग्रहण योजना का निर्माण करना ताकि दक्ष क्षेत्रीय वितरण सुनिश्चित किया जा सके। इसके अलावा नई संग्रहण इकाइयों के निर्माण हेतु आधुनिक सिलो तथा भंडारगृहों को वरीयता दी जाए।
    • विद्यमान भंडारगृहों का सुधार किया जाए ताकि उन्हें भंडारण विकास एवं नियामक प्राधिकरण के अनुरूप तथा इलेक्ट्रॉनिक नेगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स के योग्य बनाया जा सके।
    • भंडारगृह तथा eNWR के उपयोग तथा इनकी लोकप्रियता को बढ़ावा देना।
    • स्थानीय स्तर पर एकीकृत इकाइयों जैसे- आधुनिक पैकिंग हाउस तथा संग्रहण केंद्रों का निर्माण करना। इसके साथ ही यातायात के साधनों को पर्याप्त रूप से विकसित करना।
    • स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना और उन्हें आवश्यक संरचनाएँ जैसे-सुखाने की जगह,संग्रहण, प्राथमिक प्रसंस्करण सुविधा आदि मुहैया करने में सहायता प्रदान करना।

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