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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘अमरावती मूर्तिकला अपने धार्मिक तत्त्व को आत्मसात करते हुए लोकोन्मुखी रही है।’ विश्लेषण कीजिये। (200 शब्द)

    20 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • अमरावती मूर्तिकला के धार्मिक तत्त्वों के साथ इसमें स्थानीय प्रभावों की चर्चा करनी है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • संक्षिप्त एवं प्रभावी भूमिका।

    • अमरावती मूर्तिकला को स्पष्ट करते हुए उसके धार्मिक तत्त्वों की व्याख्या करनी है।

    • अमरावती मूर्ति कला में स्थानीयता के प्रभाव की भी चर्चा करनी है।

    मूर्तिकला भारतीय उपमहाद्वीप में हमेशा से कलात्मक अभिव्यक्ति का प्रिय माध्यम रही है। भारतीय मूर्तिकला का स्वरूप अधिक रोचक, सहज, धार्मिक और स्थानीयता से युक्त है। भारत में मूर्तिकला का विकास अन्य ललित कलाओं जैसे- स्थापत्य एवं चित्रकला के साथ ही हुआ। भारत में मूर्तिकला का विकास अनेक रूपों जैसे- मृण्मूर्तिकला, धातु मूर्तिकला, पाषाण मूर्तिकला आदि के रूप में हुआ।

    सातवाहन काल के दौरान द्वितीय शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अमरावती मूर्तिकला का प्रादुर्भाव हुआ। इस मूर्तिकला का विकास अमरावती में होने के कारण इसे अमरावती मूर्तिकला शैली कहा गया। अमरावती दक्षिण भारत के गुंटूर ज़िले के पास स्थित है। अमरावती मूर्तिकला शैली बाह्य संस्कृतियों से प्रभावित नहीं थी, यह स्वदेशी शैली से विकसित हुई थी। यह मूर्तिकला आंध्र प्रदेश के जग्गबयापेट, नागार्जुन कोंडा तथा महाराष्ट्र में तेर के स्तूप के अवशेषों में देखी जा सकती है।

    अमरावती मूर्तिकला में ज़्यादातर बुद्ध के जीवन की घटनाओें, पूर्वजन्म की कथाओं (जातक कथाओं) का चित्रण है। हाव-भाव तथा सौंदर्य की दृष्टि से अमरावती कला-शैली की मूर्तियाँ सभी मूर्तियों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं।

    इस कला में धार्मिक तत्त्वों के प्रभाव के रूप में बौद्ध का प्रभाव मुख्य रूप से दिखाई देता है जिसमें बुद्ध की व्यक्तिगत विशेषताओं पर कम बल दिया गया है। परंतु बौद्ध मूर्तियों में उनके जीवन एवं जातक कथाओं की कहानियाँ इस कला के धार्मिक पक्षों को व्यक्त करती हैं। अमरावती मूर्तिकला की कुछ मूर्तियों में स्त्रियों को उनके पाँव पूजते हुए दर्शाया गया है, यहाँ पाँवों का पूजन धार्मिक महत्त्व को व्यक्त करता है।

    • अमरावती मूर्तिकला में लिंगराज पल्ली से प्राप्त धम्मचक्र, बोधिसत्व तथा बौद्धमत के रत्नों को दर्शाने वाली एक गुंबजाकार पट्टी प्राप्त हुई है जिसमें बौद्ध, धम्म एवं संघ तीनों को निरूपित किया गया है।
    • अमरावती मूर्तिकला में धार्मिक तत्त्वों के समावेश के साथ-साथ लोकोन्मुखी तत्त्व भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं।
    • अमरावती, मूर्तिकला के माध्यम से पहली बार शारीरिक एवं भावनात्मक अभिव्यक्तियों में निकटता आई।
    • अमरावती मूर्तिकला में आभूषणों की न्यूनतम संख्या स्त्रियों में आभूषणों के प्रति कम आकर्षण को इंगित करती है।
    • अमरावती शैली में सजीवता एवं भक्तिभाव के साथ कुछ मूर्तियों में काम विषयक अभिव्यक्तियाँ देखने को मिलती हैं जो इसे लोकोन्मुखी बनाती हैं।

    अमरावती मूर्तिकला ने कला के माध्यम से धर्म प्रधान की जगह मनुष्य प्रधान बनने का प्रयत्न किया। इस परिवर्तन का मुख्य कारण भारतीय समाज का व्यवसाय प्रधान होना था, अत: इस कला पर धर्म का प्रभाव कम होने के साथ ही यह लोकोन्मुखी बनती चली गई।

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