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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतेन्दुयुगीन हिंदी नाटकों पर प्रकाश डालिये।

    09 Nov, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    भारतेंदु युग हिंदी नाट्य साहित्य का प्रथम चरण है। यह दौर सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक परिवर्तनों का था। एक वर्ग पाश्चात्य संस्कृति का समर्थन कर रहा था तो दूसरा विरोध और अंग्रेज़ी साहित्य का प्रभाव बढ रहा था। ऐसे में नई मान्यताओं और दृष्टिकोण को सृजनात्मक दिशा देने की आवश्यकता थी। यह कार्य भारतेंदु ने अपने नाटकों के माध्यम से किया है।

    भारतेंदु के नाटकों का मूल उद्देश्य मनोरंजन के साथ जनसामान्य को जागृत करना तथा उनमें आत्मविश्वास जगाना था। प्राचीन संस्कृति के प्रति प्रेम जगाने, मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था बनाए रखने तथा पश्चिम के गलत प्रभावों से समाज को बचाए रखने का प्रयास इन नाटकों में किया गया है। इस दौर के प्रसिद्ध नाटक हैं- देवकीनंदन खत्री का ‘सीताहरण’, भारतेंदु का ‘भारत दुर्दशा’ व ‘अंधेर नगरी’ तथा प्रताप नारायण मिश्र का ‘शिक्षादान’ आदि। इस युग में प्रहसन अधिक लिखे गए। इन प्रहसनों में हास्य-व्यंग्य शैली में तत्कालीन सामाजिक-धार्मिक कुरीतियों, कुप्रथाओं एवं अंधविश्वासों का मज़ाक उड़ाया गया है। भारतेंदु का ‘वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति’ तथा राधाचरण गोस्वामी का ‘बूढ़े मुँह मुँहासे’ इसी शैली के नाटक हैं।

    भारतेंदु युगीन नाटकों में प्राचीन-नवीन शैलियों का सामंजस्य दिखाई देता है। जो नाटक संस्कृत शैली में लिखे गए, उनके पात्र आदर्श आधारित हैं जबकि नवीन शैली में नाटकों के पात्र जीवन के सच्चे प्रतिनिधि नज़र आते हैं। शिल्प की दृष्टि से ये नाटक न तो पूर्णतया प्राचीन-नाट्य शास्त्र से जुड़े हैं और न ही इनमें अंग्रेज़ी परंपरा की नकल उतारी गई है। भारतेंदु ने ही पाश्चात्य ट्रेजेडी पद्धति पर दुखांत नाटक लिखे। उनका ‘नीलदेवी’ नाटक दुखांत के नज़दीक है।

    इस काल में अनूदित नाटक भी लिखे गए। भवभूति व कालिदास के संस्कृत नाटकों के हिंदी अनुवाद अधिक हुए। राजा लक्ष्मणसिंह ने ‘अभिज्ञान-शाकुन्तलम’ का अनुवाद किया। बांग्ला से माइकेल मधुसूदन दत्त के नाटकों के अनुवाद हुए। अंग्रेज़ी से शेक्सपियर के ‘मर्चेन्ट ऑफ वेनिस’, ‘मैकबेथ’ का अनुवाद हुआ।

    भारतेंदु युग के सर्वश्रेष्ठ नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र थे। अन्य नाटककार हैं- श्रीनिवास दास, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी व राधाकृष्ण दास। इन सभी ने भारतेंदु का ही अनुसरण किया।

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