इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    संसदीय समिति द्वारा उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के प्रधान न्यायाधीश के लिये न्यूनतम कार्यकाल सुनिश्चित करने हेतु की गई सिफारिश के कारणों को स्पष्ट करते हुए इसके प्रभावों की चर्चा करें। (250 शब्द)

    06 Nov, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के प्रधान न्यायाधीश के लिये न्यूनतम कार्यकाल सुनिश्चित करने की आवश्यकता की चर्चा करनी है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • कार्यकाल के संदर्भ में संवैधानिक प्रावधानों को बताते हुए संसदीय समिति की सिफारिश का उल्लेख करें।

    • इस संदर्भ में सिफारिश की पृष्ठभूमि को बताएँ।

    • न्यूनतम कार्यकाल सुनिश्चित होने का क्या प्रभाव होगा?

    संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश का कोई निश्चित कार्यकाल तय नहीं है। हाल ही में एक संसदीय समिति ने इनका कार्यकाल एक साल से अधिक समय का निर्धारित करने की सिफारिश की है।

    न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम ने भी अवकाश ग्रहण करते समय अपने छोटे कार्यकाल के कारण कई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं कर पाने की बात कही। देश के प्रधान न्यायाधीशों के कार्यकाल पर नज़र डालने पर पता चलता है कि पिछले 20 सालों में 17 प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किये गए। इनमें केवल तीन का कार्यकाल दो वर्ष से अधिक था। इन न्यायाधीशों में कई ने न्यायिक सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। मृत्युदंड के मामले में तथा वोटिंग मशीन में नोटा का विकल्प देने में न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम द्वारा दी गई व्यवस्थाएँ दूरगामी महत्त्व की हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था को और पारदर्शी बनाने, न्यायालयों में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या, उच्चतर न्यायपलिका में न्यायधीशों के चयन में भाई-भतीजावाद आदि समस्याओं को दूर करने के लिये महत्त्वपूर्ण न्यायिक सुधार करने की आवश्यकता है, जिनके लिये प्रधान न्यायाधीश का लंबे समय तक बना रहना ज़रूरी समझा जा रहा है।

    विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि कार्यकाल की अधिकतम अवधि, उच्च दक्षता और बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित करेगी। पूर्व मुख्य न्यायाधीशों की हमेशा ही न्यायिक सुधारात्मक गतिविधियों को अंजाम तक पहुँचाने के लिये पर्याप्त समय नहीं मिलने की शिकायत रही है। न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा और पी. सदाशिवम को न्यायपालिका हेतु महत्त्वपूर्ण सुधार के लिये जाना जाता है। किसी भी सुधार की एक चरणबद्ध प्रक्रिया होती है, कार्यकाल की अधिकतम अवधि सुनिश्चित कर सुधार प्रक्रिया को सही दिशा दी जा सकती है।

    हाल ही में विधि आयोग ने भी मुख्य न्यायाधीशों का कार्यकाल दो साल के लिये तय करने का सुझाव दिया है। मुख्य न्यायधीशों का तय कार्यकाल नहीं होने की वजह से न्यायिक सुधारों में आ रही दिक्कतों पर विस्तार से गौर करने की आवश्यकता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2