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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    स्थानीय एवं वैश्विक पर्यावरणीय क्षेत्र में कई दूरगामी घटनाएँ घटित हुई हैं, जिन्हें हमारी पर्यावरणीय नीति में सम्मिलित करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    26 Oct, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    पर्यावरण जलवायु, स्वच्छता, प्रदूषण, वृक्ष आदि का संपूर्ण योग है। आज भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व इस सामंजस्य में आए बदलाव का दंश झेल रहा है। जलवायु परिवर्तन, अस्वच्छता, भूमि, जल, तट से संबंधित प्रदूषित पर्यावरण और जैव-विविधता में ह्यस इसी असंतुलन का परिणाम है।

    इसी पर्यावरणीय क्षति ने पूरे विश्व में संधारणीय विकास के जोखिम में वृद्धि की है, सामाजिक-आर्थिक विकास को क्षीण किया है और गरीबी के चव्र को मज़बूत किया है। विश्नोई आंदोलन, (1700 में राजस्थान में अमृता देवी के नेतृत्व में), चिपको आंदोलन (1973 में, उत्तराखंड में, सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में), नर्मदा बचाओ आंदोलन (1985 में, महाराष्ट्र में, मेधा पाटेकर व बाबा आम्टे के नेतृत्व में) और साइलेंट वैली आंदोलन (1978 में, केरल में, के.एस.एस.पी. एनजीओ व सुगाथाकुमारी के नेतृत्व में) जैसे कई आंदोलनों ने पर्यावरण की महत्ता की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

    इसके साथ ही पर्यावरणीय चिंता पर स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग का ‘प्रॉइडे फॉर फ्यूचर’ अभियान एवं यू.एन. में वक्तव्य, कोलकता के ‘सेव अवर प्लैनेट, सेव अवर वर्ल्ड’ जैसे स्कूली बच्चों के पर्यावरणीय आंदोलनों ने हमें पर्यावरण के प्रति गंभीरता दिखाते हुए नीतियों में बदलाव करने पर मजबूर किया है। वर्तमान में पर्यावरणीय चिंता पर निम्न बदलाव सामने आए हैं-

    अंतर्राष्ट्रीय बदलाव

    • फ्राँस द्वारा पर्यावरण अनुकूल एल.ई.डी. बल्बों का प्रयोग।
    • इंडोनेशिया की एक संस्था द्वारा ग्रामीण इलाकों में जैव अपशिष्टों का उचित प्रबंधन और निर्मित बायोगैस का घरों और छोटे उद्यमों में प्रयोग की पहल।
    • रवांडा द्वारा एकल-प्रयोग प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध।
    • फ्राँस में पर्यावरण पार्टी के गठन की पहल आदि।

    वैश्विक स्तर पर किये गए प्रयासों ने हमें भी अपनी वर्तमान नीतियों में बदलाव करने के लिये प्रेरित किया है। भारत ने समय-समय पर अनेक अधिनियमों, कानूनों एवं नीतियों के माध्यम से पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति चिंता जाहिर की है, जैसे- केंद्रीय प्रदूषण नियामक बोर्ड (1974), पर्यावरण सुरक्षा नीति (1986), राष्ट्रीय पर्यावरण नीति (2006) आदि।

    लेकिन वर्तमान आवश्यकता और ह्यस के गंभीर परिणामों को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी नीतियों में निम्नलिखित के आधार पर बदलाव करने की आवश्यकता है-

    1. तकनीकी स्तर पर-

    • ई-गेन पूर्वानुमान तकनीक का प्रयोग करना जिससे ऊर्जा उपभोग और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा देना (FAME-इंडिया स्कीम के तहत)।
    • सौलर एनर्जी का प्रयोग कर इलेक्ट्रिक वाहनों को पुन: चार्ज करना।
    • टाल्यूईन जैसी विषैली गैसों के निराकरण हेतु पौधों की पत्तियों पर विशेषीकृत जीवाणु का प्रयोग।
    • जैव-प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देकर वायु-प्रदूषण को कम करना आदि।

    2. वित्त के स्तर पर

    • पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में निरंतर प्रगति प्रदर्शित करते हुए यू.एन.डी.पी. के ‘पर्यावरण ट्रस्ट कोष’ वैश्विक पर्यावरण सहायता ट्रस्ट कोष (1992) से सहायता प्राप्त करना।
    • पर्यावरण की सुरक्षा एवं अभिवृद्धि के लिये कार्य करने वाले सामाजिक संस्थानों, एन.जी.ओ. एवं व्यक्तियों को उपयुक्त वित्तीय सहायता देना।

    3. नवीरकणीय ऊर्जा के स्तर पर

    • संधारणीय विकास हेतु नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे- पवन ऊर्जा (पवन ऊर्जा उत्पादन में विश्व में भारत का चौथा स्थान), सौर ऊर्जा (अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, 2015), जैव ईंधन आदि की दिशा में किये गए प्रयोगों को प्रोत्साहन देना और इस दिशा में वित्त, तकनीक एवं नवाचारों के संयोजन को बढ़ावा देना।

    4. पर्यावरण की सुरक्षा एवं अभिवृद्धि हेतु जनजागरूकता का प्रसार करना, जनजागरूकता अभियानों जैसे- ‘भूमि’, ‘वातावरण’ (2007), ‘राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान’ अािद की पुन: समीक्षा करते हुए नवाचारों को शामिल करना, स्कूलों-कॉलेजों में पर्यावरण संबंधी कार्यव्रमों का आयोजन करना इत्यादि।

    हर संस्कृति का विकास और उसकी समाप्ति की प्रव्रिया पर्यावरण के इर्द-गिर्द होती है। सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक एवं व्यक्तिगत विकास हेतु हमें पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए सरकार के प्रदूषण मुक्ति, निर्मल गंगा, स्वच्छता अभिमान, ऑड-ईवन पॉलिसी, ग्रीन स्किल इंडिया, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यव्रम आदि को प्रोत्साहन देना चाहिये जिससे हम संधारणीय विकास को बढ़ावा देते हुए स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण में निवास कर सकें।

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