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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सुपरबग क्या हैं? सुपरबग का निर्माण किन कारकों से होता है? सुपरबग के प्रसार को रोकने के लिये उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    24 May, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    ♦ सुपरबग को बताना है।

    ♦ सुपरबग के निर्माण के कारण तथा इसके प्रभाव को रोकने के उपायों को बताना है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    ♦ सुपरबग को स्पष्ट करें।

    ♦ सुपरबग के निर्माण के कारकों को बताते हुए इसके दुष्परिणामों को संक्षेप में बताएँ।

    ♦ सुपरबग के प्रसार को रोकने के लिये आवश्यक उपायों को बताते हुए संक्षेप में इस संदर्भ में सरकार द्वारा किये गए प्रयासों को भी बताएँ।


    सुपरबग एक प्रकार का खतरनाक बैक्टीरिया होता है। यह दवाओं के खिलाफ खुद-ब-खुद प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। इस पर किसी भी प्रकार की एंटीबायोटिक दवा असर नहंी करती, क्योंकि ये संक्रमित जीवाणुओं में परिवर्तन करते रहते हैं। ई. कोलाई जैसे- ग्राम नेगेटिव बग तथा क्लेबसिये बैक्टीरिया आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

    सुपरबग के निर्माण का नेतृत्व करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-

    • साफ-सफाई की कमी और गंदे जल से बैक्टीरिया जनति रोग अधिक होते हैं। फलत: लोग एंटीबायोटिक का प्रयोग अधिक करते हैं जिससे प्रतिरोधक क्षमता का विकास होने लगता है।
    • डॉक्टरी सलाह के बिना अथवा डॉक्टरों द्वारा आवश्यकता से अधिक दवा लिखना, जिसके कारण एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग अधिक होता है।
    • वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया के संपर्क में आकर मानवों में रोग के कारण बनने वाले सूक्ष्म जीव उनसे अनेक प्रतिरोधक गुण लेकर ‘सुपरबग’ बनते जा रहे हैं।
    • पोल्ट्री उद्योग, दवा निर्माता कंपनियों और अस्पतालों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के ज़रिये पर्यावरण में बड़ी संख्या में ऐसे एंटीबायोटिक प्रतिरोधक जीन आ गए हैं, जो आसानी से मानव शरीर के अंदर सुपरबग बना सकते हैं।

    सुपरबग के बढ़ते खतरे से सामान्य बीमारियों का इलाज भी कठिन हो जाता है, शल्य चिकित्सा में भी खतरा बढ़ जाता है तथा स्वास्थ्य लागत में वृद्धि एवं सतत् विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में मुश्किल आएगी। ब्रिटेन के अध्ययन में सामने आया है कि 2050 तक सुपरबग प्रत्येक तीन सेकेंड में एक जान लेने में सक्षम होगा।

    अत: सुपरबग के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिये निम्नलिखित उपायों को अपनाया जाना चाहिये-

    • चिकित्सकों द्वारा किस आधार पर दवा लिखी जाए इसके लिये मानक तय किये जाएँ तथा एंटीबायोटिक प्रतिरोध के लिये एक राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली का निर्माण किया जाए।
    • सुपरबग के बचाव के उपाय को खोजना तथा इस दिशा में शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए।
    • मानव एवं पशु चिकित्सा और औद्योगिक उपयोग में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल के लिये उचित नियामकीय प्रावधानों को लागू किया जाए।
    • सभी स्वास्थ्य केंद्रों में वॉश (Wash) के अंतर्गत दी जाने वाली सुविधाएँ एवं प्रशिक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिये।
    • गंदे जल के उचित उपचार और प्रबंधन को अधिक विकसित किया जाना चाहिये। अस्पताल एवं दवा उद्योगों को अपने परिसर में ही जल उपचार केंद्र लगाने को प्रोत्साहित किया जाए।

    यद्यपि भारत सरकार ने 2012 में ‘चेन्नई डिक्लेरेशन’ के माध्यम से सुपरबग के बढ़ते खतरे से निपटने के लिये व्यापक योजना बनाई है तथा सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल संगठन ने अनुसूची H-1 लागू कर बिना किसी चिकित्सक के परामर्श से 24 मूल एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। फिर भी अन्य आवश्यक उपायों को अपनाकर सुपरबग के बढ़ते खतरे को रोका जा सकता है।

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