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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भूमि सुधार के विभिन्न घटकों और इससे संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करते हुए इसका समालोचनात्मक मूल्यांकन करें।

    07 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    भूमिका:

    भूमि सुधार मानव और भूमि के बीच के संबंध का योजनाबद्ध और संस्थागत पुनर्गठन है जिसका अभिप्राय भूमि के पुनर्वितरण से है। इसके अंतर्गत भूमि का स्वामित्व, संचालन, पट्टा, बिक्री और उत्तराधिकार विनियमन शामिल है।

    विषय-वस्तु

    विषय-वस्तु के पहले भाग में भारत में भूमि सुधार के घटक और विभिन्न संवैधानिक प्रयासों पर चर्चा करेंगे-

    भारत में भूमि सुधार के घटक

    • मध्यस्थों का उन्मूलन: स्वतंत्रता-पूर्व की भूमि राजस्व प्रणाली के भू-कर संग्राहकों (यथा-ज़मींदार) को हटाने के लिये।
    • काश्तकारी विनियमन: काश्तकारों की संविदनात्मक शर्तों में सुधार लाने के लिये जिसके अंतर्गत फसल हिस्सेदारी और पट्टे की सुरक्षा शामिल है।
    • जोत की हदबंदी: अतिरिक्त भूमि को भूमिहीनों के बीच पुनर्वितरित करने के लिये।
    • भू-समेकन चकबंदी: असमान जोत की मज़बूती के लिये।
    • सहकारी खेती का विकास

    उद्देश्य

    • उत्पादकता में वृद्धि लाने के लिये कृषकों व काश्तकारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना ताकि वे कृषि में निवेश कर सकें और खेती में सुधार हो सके।
    • वितरणमूलक न्याय सुनिश्चित करने के लिये और शोषण के सभी रूपों को नष्ट कर एक समतावादी समाज बनाने के लिये।
    • कृषक स्वामित्व की एक प्रणाली के निर्माण के लिये, जहाँ आदर्श वाक्य है ‘ज़मीन जोतने वालों की’।

    संवैधानिक प्रावधान

    • अनुच्छेद 38 आय, स्थिति और अवसरों में असमानता को न्यूनतम करने का लक्ष्य रखता है।
    • अनुच्छेद 39 समुदाय की भलाई के लिये समुदाय के भौतिक संसाधनों के समान वितरण का उद्देश्य रखता है।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में भूमि सुधार के प्रयासों का वर्णन करेंगे-

    • सामाजिक न्याय और आर्थिक क्षमता की दृष्टि से भूमि सुधार के प्रयास आंशिक रूप से सफल रहे। इससे कृषि प्रधान समाज में शोषक भूमि पट्टेदारी प्रणाली समाप्त हो गई। अधिशेष भूमि भूमिहीनों और समाज के वंचित तबके में वितरित कर दी गई।सबसे बड़ी सफलता ज़मींदारी उन्मूलन के रूप में मिली। असफलता के रूप में हम पाते हैं कि चूँकि कृषि मज़दूरों का बहुमत इन सुधारों से अवगत नहीं था और न ही वे राजनीतिक रूप से संगठित थे अत: लाभ सीमित रहा। ज़्यादातर अगड़ी व मध्यम जातियों से संबंधित अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति वाले काश्तकारों को ही इसका अधिक लाभ मिला/राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नौकरशाही की उदासीनता के कारण तथा भूमि का अधिभोग अधिकार न होने से कानून का फायदा उप-काश्तकारों और बँटाईदारों को नहीं मिला। कई ज़मींदार कानून की कमियों का लाभ उठाकर अधिक ज़मीन पर कब्ज़ा बनाए रखने में सफल रहे। भूमि के वास्तविक जोतदार जैसे काश्तकार, बंटाईदार आदि के स्वामित्व अधिकार के हस्तांतरण की समस्या का समाधान भी न हो सका। भूमि सुधार की सफलता के लिये ज़रूरी है कि भूमि हदबंदी कानून और अधिशेष भूमि के वितरण का प्रभावी अनुपालन हो। साथ ही कानूनी प्रक्रियाओं और प्रशासनिक मशीनरी को सरल बनाया जाए। इन सबके अलावा संभावित लाभार्थियों को कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता पैदा करना भी ज़रूरी है।

    निष्कर्ष

    अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

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