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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    मृदा अपरदन से आप क्या समझते हैं? मृदा अपरदन के प्रकारों को सोदाहरण बताते हुए इसके लिये उत्तरदायी विभिन्न कारकों की विवेचना कीजिये।

    21 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    भूमिका में:


    मृदा अपरदन की परिभाषा देते हुए उत्तर आरंभ करें-

    मृदा अपरदन प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली एक भौतिक प्रक्रिया है जिसमें मुख्यत: जल एवं वायु जैसे प्राकृतिक भौतिक बलों द्वारा भूमि की ऊपरी मृदा के कणों को अलग कर बहा ले जाना सम्मिलित है। यह सभी प्रकार की भू-आकृतियों को प्रभावित करता है।

    विषय-वस्तु में:


    विषय-वस्तु के पहले भाग में मृदा अपरदन के बारे में थोड़ा और विस्तार पूर्वक बताते हुए उसके प्रकारों को बताएँ-

    मृदा के अधिकांश पोषक तत्त्वों, कार्बनिक पदार्थों एवं कीटनाशकों को ऊपरी मृदा सम्मिलित किये हुए है। पृथ्वी की आधी ऊपरी मृदा पिछले 150 सालों मेें खत्म हो चुकी है। मानव क्रियाकलापों द्वारा मृदा अपरदन में तेज़ी से वृद्धि हुई हैै। एक तरफ जहाँ जल अपरदन नम क्षेत्रों के ढालनुमा एवं पहाड़ी भू-भागों की समस्या है, वहीं वायु अपरदन शुष्क, तूफानी क्षेत्रों के चिकने एवं समतल भू-भागों की समस्या है। मृदा अपरदन की क्रियाविधि में मिट्टी के कणों का ढीला होना और उनका विलगाव तथा अलग की गई मिट्टी का परिवहन शामिल होता है।

    मृदा अपरदन के दो प्रकार होते हैं- जल अपरदन एवं पवन अपरदन

    1. जल अपरदन: जल के द्वारा मृदा का ह्रास जल अपरदन कहलाता है।

    • वर्षा जल अपरदन: वर्षा जल की बूँदों के सीधे सतह से टकराने के कारण मृदा कण पृथक होकर स्थानांतरित हो जाते हैं जिसे वर्षा जल अपरदन कहते हैं।
    • परत अपरदन: वर्षा जल की बूंदों एवं जल बहाव के कारण ऊपरी मृदा से एकसमान रूप से पतली परतों के रूप में मृदा का कटाव एवं अलगाव परत अपरदन कहलाता है।
    • रिल अपरदन: तीव्र वर्षा के कारण जब जल पतली-पतली नालियों से होकर प्रवाहित होने लगता है तो अपरदन द्वारा कम गहरी नालियों का निर्माण ही रिल अपरदन कहलाता है।
    • बड़ी अवनलिका अपरदन: अत्यधिक सतही जल प्रवाह के कारण गहरी नालियों का निर्माण होता है जिसे बड़ी अवनलिका या गली कहते हैं। ऐसा अपरदन गली अपरदन कहलाता है।
    • धारा तट अपरदन: धाराएँ एवं नदियाँ एक किनारे को काटकर तथा दूसरे किनारे पर गाद भार को निक्षेपित करके अपने प्रवाह मार्ग को बदलती रहती हैं। यह धारा तट अपरदन कहलाता है।

    2. पवन अपरदन: इस प्रकार का अपरदन वहाँ होता है जहाँ की भूमि मुख्यत: समतल, अनावृत्त, शुष्क एवं रेतीली तथा मृदा ढीली, शुष्क एवं बारीक दानेदार होती है। साथ ही वहाँ वर्षा की कमी तथा हवा की गति अधिक (यथा-रेगिस्तानी क्षेत्र) हो।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम मृदा अपरदन हेतु उत्तरदायी कारकों पर चर्चा करेंगे-

    जलवायु: वर्षा जल की मात्रा, तीव्रता, तापमान एवं पवनें मृदा अपरदन के स्वरूप एवं दर को प्रभावित करती हैं।

    भू-स्थलाकृतिक कारक: इसके अंतर्गत सापेक्षिक उच्चावच, प्रवणता, ढाल इत्यादि आते हैं जो भौमिकीय अपरदन को अधिक प्रभावित करते हैं।

    मानवीय कारक: वर्तमान में मानव मृदा अपरदन दर में बढ़ोतरी का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक हो गया है। भूमि उपयोग में परिवर्तन, निर्माण कार्य, त्रुटिपूर्ण कृषि पद्धतियाँ, अत्यधिक चराई आदि इसमें शामिल हैं।

    निष्कर्ष


    अंत में संतुलित, सारगर्भित एवं संक्षिप्त निष्कर्ष लिखें-

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