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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत का पशुपालन क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का प्रमुख घटक होते हुए भी बहुविध कारणों से अपनी क्षमताओं का सम्यक दोहन नहीं कर पाता है। उक्त कथन की व्याख्या करते हुए इस क्षेत्र के उन्नयन हेतु उपाय सुझाएँ।

    15 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • भारत में पशुपालन का आर्थिक-सामाजिक महत्त्व बताएँ।
    • भारत में पशुपालन की पूर्ण क्षमताओं के दोहन में आने वाली बाधाओं की चर्चा करें। 
    • इस क्षेत्र के उन्नयन हेतु सुझाव प्रस्तुत करें।

    भारत में कृषकों के लिये पशुपालन एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय है। यह छोटे तथा सीमांत किसानों के लिये विशेषकर वर्षा सिंचित क्षेत्रों में आजीविका का मुख्य स्रोत है और जोखिम निवारण रणनीति का हिस्सा है। पशुपालन भारत में आय के अतिरिक्त साधन के साथ-साथ संस्कृति का भी हिस्सा रहा है, अतः लोग प्रायः इसमें हानि-लाभ की गणना से बचते हैं। कृषि में मशीनीकरण की वृद्धि के बावजूद कई क्षेत्रों में इसकी कृषि में उपयोगिता अब भी कायम है। 

    भारत में लगभग 2 करोड़ लोग आजीविका के लिये पशुपालन पर आश्रित हैं। पशुपालन क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 4% तथा कृषि सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 26% का योगदान करता है। भारत में पशुओं की उपयोगिता खाद्य पदार्थ, चमड़ा, खाद, खर-पतवार नियंत्रण, मनोरंजन तथा साथी पशु के रूप में है। भारत पशुओं की कुल संख्या के मामले में प्रथम स्थान पर है तथा इसके उत्पादों के विपणन के लिये व्यापक घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार हैं। 

    इतनी असीम संभावनाएँ होने के बावजूद पशुपालन क्षेत्र अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग कर पाने में अक्षम रहा है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं:

    • छोटे पशु समूहों तथा छोटी कृषि जोतों का होना।
    • पशुओं के प्रजनन के लिये समयबद्ध निविष्टियों की अनुपलब्धता।
    • पशुओं की निम्न उत्पादकता।
    • हरे तथा शुष्क चारे की उचित तथा समयबद्ध उपलब्धता की अनिश्चितता।
    • पशुओं के लिये आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता।
    • नई तथा धारणीय तकनीक के विकास के लिये कौशल विकास का अभाव।
    • समयबद्ध तथा पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध न होना।
    • समुचित ग्रामीण आधारभूत संरचना का अभाव तथा उत्पादों के उचित विपणन समर्थन का अभाव।
    • कृषि में बढ़ते मशीनीकरण के कारण नर पशुओं की उपयोगिता में कमी आई है जिसकी वजह से चयनात्मक प्रजनन पर बल दिया जा रहा है। 

    उपरोक्त चुनौतियों के निदान हेतु निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

    • सहकारी संघों की संख्या को बढ़ाना तथा इनके प्रबंधन को सशक्त करना ताकि वित्तीय सहायता एवं विपणन समर्थन सुनिश्चित किया जा सके। 
    • पशुओं के लिये प्रभावी स्वास्थ्य प्रबंधन, जिसमें प्रमुख पशु रोगों के नियंत्रण तथा उन्मूलन को भी शामिल किया जाए। 
    • चारा उत्पादन तथा प्रबंधन से संबंधित गतिविधियाँ, जैसे कि चारा बैंक की स्थापना इत्यादि को बल देना।
    • उत्पादकता बढ़ाने के लिये पशुओं की नस्लों में सुधार हेतु शोध को बढ़ावा देना तथा प्रजनन निविष्टियों की समयबद्ध उपलब्धता सुनिश्चित करना। 
    • पशुपालन क्षेत्र के ऊपर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किया जाना चाहिये तथा उन प्रभावों के न्यूनीकरण के लिये समुचित कदम उठाए जाने चाहियें। 
    • पशुपालन के लिये आधारभूत संरचना में सुधार तथा बैक एंड सपोर्ट सिस्टम विकसित किये जाने की आवश्यकता है। 
    • पशुओं का चयन करते समय क्षेत्रीय सुयोग्यता का ध्यान रखा जाना चाहिये।

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