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जैव विविधता और पर्यावरण

1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग लक्ष्य और जलवायु अनुमान

  • 26 Jul 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग लक्ष्य, अल नीनो, पेरिस समझौता, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल, तटीय क्षरण, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन निधि (NAFCC), इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP), जीवनशैली (LiFE) पहल  

मेन्स के लिये:

1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग लक्ष्य की पृष्ठभूमि, भारत पर वार्मिंग का प्रभाव

चर्चा में क्यों?   

अल नीनो और 1.5 डिग्री सेल्सियस की औसत तापमान वृद्धि इस वर्ष सबसे चिंतनीय विषयों में रही है। रिपोर्टों से पता चलता है कि बढ़ती जलवायु परिघटना के कारण ग्रह इस तापमान सीमा को पार कर सकता है।

1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग लक्ष्य की पृष्ठभूमि:

  • पेरिस समझौते का लक्ष्य इस सदी के अंत तक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है। यह लक्ष्य महत्त्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन याद रखने योग्य कुछ महत्त्वपूर्ण बातें हैं।
    • हालाँकि देश 20 वर्षों से इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं, लेकिन वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा उतनी कम नहीं हुई है जितनी आवश्यकता थी।
    • 2 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य सुदृढ़ वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर निर्धारित नहीं किया गया था। इसके बजाय इसे शुरुआत में 1970 के दशक में विलियम नॉर्डहॉस नामक एक अर्थशास्त्री द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
    • बाद में कुछ राजनेताओं और जलवायु वैज्ञानिकों ने इस लक्ष्य को अपनाया।
  • छोटे द्वीपीय राष्ट्रों के गठबंधन ने लक्ष्य को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने पर ज़ोर दिया, ताकि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये भविष्य के परिदृश्यों में और सुधार किया जा सके।
    • जलवायु परिवर्तन पर अग्रणी वैज्ञानिक निकाय इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के अनुसार, यदि वर्तमान रुझान जारी रहता है, तो वर्ष 2030-2052 तक विश्व में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ने की संभावना है।
    • इसके अलावा 1.5 डिग्री सेल्सियस बनाम 2 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के बीच प्रभावों के अंतर पर IPCC  की विशेष रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण आर्थिक विकास पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने का अनुमान है।

जलवायु परिवर्तन से प्रेरित वार्मिंग का भारत पर प्रभाव: 

  • परिचय:  
    • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1901-2018 के दौरान भारत का औसत तापमान लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, हाल के दशकों में इसमें और अधिक तेज़ी से वृद्धि हुई है।
  • प्रभाव:  
    • कृषि: भारत की कृषि काफी हद तक मानसूनी बारिश पर निर्भर है और गर्मी के कारण वर्षा के पैटर्न में कोई भी बदलाव फसल की पैदावार को काफी प्रभावित कर सकता है।
      • इससे अनियमित मानसून, सूखे की आवृत्ति में वृद्धि और लू जैसी चरम मौसमी घटनाएँ घटित होंगी, जिससे कृषि उत्पादकता कम हो जाएगी तथा लाखों किसानों की खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका के लिये संकट पैदा हो जाएगा।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य: गर्म तापमान से मलेरिया, डेंगू और अन्य वेक्टर जनित बीमारियाँ फैल सकती हैं क्योंकि रोग फैलाने वाले जीवों की सीमा बढ़ जाती है।  
      • हीटवेव गर्मी से संबंधित बीमारियों और मृत्यु दर को बढ़ा सकती है, खासकर कमज़ोर आबादी के बीच, जिससे स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर दबाव पड़ता है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता: वार्मिंग पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकती है और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ला सकती है, जिससे विभिन्न पौधों तथा पशुओं की प्रजातियों के आवास स्थान में परिवर्तन हो सकता है।
      • भारत में कई स्थानिक प्रजातियों को विलुप्त होने का सामना करना पड़ सकता है या उन्हें अधिक उपयुक्त क्षेत्रों में स्थानांतरित होने के लिये मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन में व्यवधान और जैवविविधता की हानि हो सकती है।
    • तटीय भेद्यता: भारत में एक व्यापक तटरेखा है और वार्मिंग के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि के परिणामस्वरूप तटीय क्षरण, निचले इलाकों में बाढ़ एवं चक्रवात जैसी चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ सकती है।
      • इससे तटीय समुदायों, बुनियादी ढाँचे और आर्थिक गतिविधियों के लिये संकट पैदा हो गया है। 
    • प्रवासन और सामाजिक व्यवधान: जैसे-जैसे जलवायु-प्रेरित चुनौतियाँ तीव्र होंगी, जलवायु-प्रेरित प्रवासन में वृद्धि हो सकती है, जिसमें लोग गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों से रहने हेतु अधिक अनुकूल क्षेत्रों में जा सकते हैं।
      • इससे सामाजिक तनाव, संसाधन प्रतिस्पर्द्धा और शहरी केंद्रों पर तनाव पैदा हो सकता है, जिससे नीति निर्माताओं के लिये चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
  • सरकार की पहल:  

आगे की राह

  • राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं डेटा: भारत को क्षेत्रीय विविधताओं को ध्यान में रखते हुए जलवायु प्रभावों तथा भेद्यता का व्यापक एवं निरंतर राष्ट्रीय मूल्यांकन करना चाहिये।
    • सटीक डेटा साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के साथ यह लक्षित नीतिगत हस्तक्षेपों में सहायता करेगा। 
  • हरित अवसंरचना एवं शहरी नियोजन: शहरों में नीली-हरित अवसंरचना तथा टिकाऊ शहरी नियोजन प्रथाओं को लागू करना शामिल है।
    • इसमें हरित क्षेत्रों का निर्माण, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना तथा शहरी ताप द्वीप प्रभाव को कम करने के लिये पर्यावरण-अनुकूल भवन डिज़ाइनों को प्रोत्साहित करना शामिल है।
  • कार्बन मूल्य निर्धारण: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की पर्यावरणीय लागत को कम करने के लिये कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र को स्थापित करना।
    • इसे कार्बन कर या कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है ताकि उद्योगों को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: एक चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल अपनाने को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जहाँ अपशिष्ट को कम किये जाने के साथ संसाधनों का पुन: उपयोग, मरम्मत या पुनर्चक्रण किया जाता है, जिससे उत्पादों एवं प्रक्रियाओं के कार्बन पदचिह्न को कम किया जा सके है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत साझा लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) के माध्यम से वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिये संयुक्त जलवायु पहल, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के साथ संसाधनों का लाभ उठाने पर अन्य देशों और मंचों के साथ सहयोग कर सकता है

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. भारत में जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज) दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम - जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है। 
  2. सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आई.ए.आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय फ्राँस में है।
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्द्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी.), सी.जी.आई.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन (Green India Mission)' के उद्देश्य को सर्वोत्तम रूप से वर्णित करता है/करते हैं? (2016) 

  1. पर्यावरणीय लाभों और लागतों को केंद्र एवं राज्य के बजट में सम्मिलित करते हुए 'हरित लेखाकरण (ग्रीन एकाउंटिंग)' को अमल में लाना।
  2. कृषि उत्पाद के संवर्द्धन हेतु दूसरी हरित क्रांति आरंभ करना जिससे भविष्य में सभी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो।
  3. वन आच्छादन की पुनप्राप्ति और संवर्द्धन करना तथा अनुकूलन एवं न्यूनीकरण के संयुक्त उपायों से जलवायु परिवर्तन का प्रत्युत्तर देना। 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 3  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (c) 


प्रश्न. ‘भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि (ग्लोबल क्लाइमेट, चेंज एलाएन्स)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

1. यह यूरोपीय संघ की पहल है।
2. यह लक्ष्याधीन विकासशील देशों को उनकी विकास नीतियों और बजटों में जलवायु परिवर्तन के एकीकरण हेतु तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
3. इसका समन्वय विश्व संसाधन संस्थान (WRI) और धारणीय विकास हेतु विश्व व्यापार परिषद (WBCSD) द्वारा किया जाता है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2  
(b) केवल 3  
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) 

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017) 

स्रोत: द हिंदू

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