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अपशिष्ट तेल पर ड्राफ्ट EPR अधिसूचना

  • 11 May 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व, चक्रीय अर्थव्यवस्था

मेन्स के लिये:

अपशिष्ट तेल प्रबंधन का महत्त्व और EPR का संभावित प्रभाव, चक्रीय अर्थव्यवस्था में ईपीआर का महत्त्व  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने अपशिष्ट तेल पर विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) पर एक ड्राफ्ट अधिसूचना पेश की।

EPR: 

  • यह उत्पादकों को उनके जीवन चक्र के दौरान उनके उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभावों के लिये ज़िम्मेदार बनाता है।
  • EPR का उद्देश्य बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना और नगरपालिकाओं पर बोझ कम करना है।
  • यह पर्यावरण की लागत को उत्पाद की कीमतों में एकीकृत करता है और पर्यावरण की दृष्टि से अच्छे उत्पादों के डिज़ाइन को प्रोत्साहित करता है।
  • EPR विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट पर लागू होता है, जिसमें प्लास्टिक अपशिष्ट, ई-अपशिष्ट और बैटरी अपशिष्ट शामिल है।
  • ई-वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 के तहत भारत में पहली बार EPR की अवधारणा प्रस्तुत की गई।

अपशिष्ट तेल पर ड्राफ्ट EPR अधिसूचना:

  • परिचय: 
    • अपशिष्ट तेल पर EPR से तात्पर्य अपशिष्ट तेल प्रबंधन की चक्रीयता में सुधार करना है। अपशिष्ट तेल एक संदूषक है जिसमें हानिकारक पदार्थ होते हैं जो मीठे पानी और मृदा को प्रदूषित कर सकते हैं।
      • अपशिष्ट तेल एक संदूषक के रूप में कार्य कर सकता है क्योंकि इसमें बेंजीन, जिंक, कैडमियम और अन्य अशुद्धियाँ होती हैं जो मीठे पानी को प्रदूषित करने की क्षमता रखती हैं।
  • उद्देश्य: 
    • प्रदूषण को रोकना तथा अपशिष्ट तेल संग्रह एवं पुनर्चक्रण को औपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत लाना।
  • अनुशंसा: 
  • प्रयोज्यता: 
    • EPR अपशिष्ट तेल संबंधी उत्पादक और बड़े उत्पादकों (जैसे उद्योग, रेलवे, परिवहन कंपनियों, विद्युत पारेषण कंपनियों आदि) पर लागू होता है।
  • EPR लक्ष्य: 
    • वर्ष 2024-25 से अपशिष्ट तेल पुनर्चक्रण लक्ष्यों में धीरे-धीरे वृद्धि करना।
    • आधार वर्ष लक्ष्य 10% निर्धारित किया गया है, जो वर्ष 2029 तक सालाना 10% बढ़ रहा है।
    • वार्षिक बेचे जाने वाले या आयात किये जाने वाले लूब्रिकेंट तेल की मात्रा के आधार पर भविष्य के लक्ष्य निर्धारित करना।
  • प्रावधान और उत्तरदायित्व: 
    • EPR प्रमाणपत्र बनाना, उपलब्ध मात्रा की गणना और लेन-देन विवरण साझा करना।
    • उत्पादकों, आयातकों, एजेंटों, पुनर्चक्रणकर्ताओं आदि के लिये उत्तरदायित्वों का स्पष्ट सीमांकन करना।
    • पंजीकरण, रिटर्न दाखिल करने और उत्पादित या उत्पन्न तेल का पता लगाने के लिये ऑनलाइन पोर्टल।
    • भारतीय मानक ब्यूरो को रि-रिफाइंड तेल के लिये आवश्यक मानक स्थापित करने का कार्य सौंपा गया है।
  • चुनौतियाँ: 
  • विशेषज्ञ राय: 
    • अपशिष्ट तेल पर EPR के लिये गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा सकारात्मक विचार रखना।
    • चूककर्त्ताओं के लिये कार्यान्वयन, निगरानी, और दंड पर चिंता व्यक्त करना।

सर्कुलर इकॉनमी की दिशा में भारत की प्रगति:

  • अपशिष्ट प्रबंधन के लिये विभिन्न नियमों एवं नीतियों को अधिसूचित करना, जैसे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022; ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022; बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2022 आदि।
  • कृषि, गतिशीलता, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि जैसे 11 प्रमुख क्षेत्रों में रैखिक से चक्रीय अर्थव्यवस्था में संक्रमण हेतु व्यापक कार्ययोजना तैयार करने के लिये संबंधित मंत्रालयों के नेतृत्त्व में 11 समितियों का गठन करना।
  • नीति आयोग ने 'राष्ट्रीय पुनर्चक्रण के माध्यम से सतत् विकास' पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया।
  • संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था पर सर्वोत्तम प्रथाओं और ज्ञान का आदान-प्रदान करने हेतु यूरोपीय संघ एवं संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करना।
  • अपशिष्ट प्रबंधन हेतु चक्रीय अर्थव्यवस्था समाधान विकसित करने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय नवप्रवर्तकों का समर्थन करना, जैसे कि वर्ल्ड इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल एनर्जी।
  • व्यवसायों और उद्योगों को उनकी उत्पादन प्रणालियों एवं आपूर्ति शृंखलाओं में चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों तथा प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत की प्रगति अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है और कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे जागरूकता का आभाव, डेटा अंतराल, नियामक बाधाएँ, ढाँचागत बाधाएँ तथा व्यवहारिक जड़ता।
    • हालाँकि सभी हितधारकों और निरंतर सीखने एवं नवाचार के मज़बूत प्रयासों के साथ भारत लचीली तथा समावेशी चक्रीय अर्थव्यवस्था के अपने दृष्टिकोण को प्राप्त कर सकता है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था

  • परिचय: 
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था ऐसी अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादों को स्थायित्त्व, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के लिये अभिकल्पित किया जाता है एवं इस प्रकार लगभग प्रत्येक चीज़ का पुन: उपयोग, पुनर्निर्माण व कच्चे माल के रूप में पुनर्चक्रण किया जाता है अथवा ऊर्जा स्रोत के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
    • इसमें 6 R की अवधारणा शामिल है- Reduce (सामग्री के उपयोग को कम करना), Reuse (पुनः उपयोग), Recycle (पुनर्चक्रण), Refurbishment (पुनर्निर्माण), Recover (पुनरुद्धार) और Repairing (मरम्मत)।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकता: 
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था अपशिष्ट को न्यूनतम और उपयोगिता को अधिकतम करने पर केंद्रित है तथा एक ऐसे उत्पादन मॉडल का आह्वान करती है जो अधिकतम मूल्य/महत्त्व को बनाए रखने पर लक्षित हो ताकि एक ऐसे तंत्र का निर्माण हो सके जो संवहनीय, दीर्घ जीवन, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देती हो।
    • यद्यपि भारत में हमेशा से पुनर्चक्रण एवं पुन:उपयोग की संस्कृति रही है, तीव्र आर्थिक वृद्धि, बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के परिदृश्य में इसके लिये एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाना अब अधिक अनिवार्य हो गया है।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था अधिक संवहनीय उत्पादन एवं उपभोग पैटर्न के उभार की ओर ले जा सकती है और इस प्रकार विकासशील तथा विकसित देशों को सतत् विकास के एजेंडा 2030 के अनुरूप आर्थिक विकास व समावेशी एवं संवहनीय औद्योगिक विकास (Inclusive and Sustainable Industrial Development- ISID) प्राप्त करने के अवसर प्रदान कर सकती है।

Circular-Economy

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्त्व' आरंभ किया गया था? (2019) 

(a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998
(b) पुनर्चक्रित प्लास्टिक (विनिर्माण और उपयोग) नियम, 1999
(c) ई-वेस्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 2011
(d) खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011

उत्तर: (c) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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