रैपिड फायर
ताप-सहिष्णु अरहर की उन्नत किस्म
स्रोत: बी.एल.
वैज्ञानिकों ने स्पीड ब्रीडिंग तकनीक का उपयोग करते हुए ICPV 25444 नामक एक ताप-सहिष्णु अरहर (तुअर दाल) की किस्म विकसित की है। इस किस्म में परती भूमि को कृषि योग्य बनाने और दालों के आयात पर निर्भरता कम करने की अपार क्षमता है।
- मुख्य विशेषताएँ: यह किस्म 45°C तक के तापमान को सहन कर सकती है, जिससे यह भारत के उष्ण एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिये उपयुक्त बन जाती है। इसके माध्यम से खरीफ फसल के बाद जल संकट और अत्यधिक गर्मी के कारण परती छोड़ी गई लगभग 1.2 करोड़ हेक्टेयर धान की भूमि का उपयोग किया जा सकता है।
- यह किस्म वर्ष में 4 फसल चक्र पूर्ण करने की अनुमति देती है, जिससे अरहर की नई किस्मों के विकास का समय 15 वर्ष से घटकर केवल 5 वर्ष हो गया है। इसकी उपज क्षमता 1.1–1.2 टन/हेक्टेयर से बढ़कर 2 टन/हेक्टेयर हो गई है और फसल की कटाई अवधि भी सामान्यतः 6–7 महीनों से घटकर 4 महीने रह गई है, जिससे फसल चक्र बेहतर होता है और लाभप्रदता बढ़ती है।
- यह घरेलू उत्पादन में 1.5 मिलियन टन की कमी को पूरा कर सकती है, जिससे भारत की अरहर दाल (India’s pigeonpea imports) की लगभग 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर वार्षिक आयात लागत में महत्त्वपूर्ण कमी संभव है।
- दालों के बारे में: भारत विश्व का सबसे बड़ा दाल उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक देश है। सरकार का लक्ष्य वर्ष 2028 तक दालों के आयात को पूरी तरह समाप्त करना है।
- शीर्ष 3 दाल उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं।
- अरहर दाल भारत में प्रोटीन से भरपूर एक प्रमुख फलीदार फसल है, जो उष्णकटिबंधीय और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में प्रचुरता से उगती है।
- मूल्य समर्थन योजना (PSS) के अंतर्गत जब बाज़ार मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे चला जाता है, तब सरकार किसानों से अधिसूचित दालों, तिलहन और नारियल (खोपरा) की MSP पर खरीद सुनिश्चित करती है।
- केंद्रीय बजट 2025-26 में दलहन में आत्मनिर्भरता के लिये 6 वर्षीय मिशन की घोषणा की गई, जिसका लक्ष्य अरहर, उड़द और मसूर जैसी फसलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।
स्पीड ब्रीडिंग प्रकाश, तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित करके पौधों की वृद्धि को तेज़ करती है, जिससे प्रतिवर्ष कई फसल चक्र संभव हो पाते हैं।
और पढ़ें: भारत में मोज़ाम्बिक से तुअर दाल का आयात
रैपिड फायर
अभ्यास खान क्वेस्ट
स्रोत: पी,आई,बी,
भारतीय सेना का एक दस्ता (कुमाऊँ रेजीमेंट) बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास "खान क्वेस्ट" में भाग लेने के लिये उलानबाटार, मंगोलिया पहुँचा।
अभ्यास खान क्वेस्ट
- उत्पत्ति: वर्ष 2003 में अमेरिका और मंगोलिया के बीच द्विपक्षीय अभ्यास के रूप में प्रारंभ हुआ तथा वर्ष 2006 से बहुराष्ट्रीय शांति स्थापना अभ्यास बन गया।
- वर्ष 2025 संस्करण इस अभ्यास का 22वाँ संस्करण है।
- आयोजक: मंगोलियाई सशस्त्र बल।
- उद्देश्य: संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय VII के अंतर्गत शांति स्थापना क्षमताओं, अंतर-संचालन क्षमता और सैन्य तत्परता को बढ़ाना।
- अध्याय VII संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिये खतरे, शांति भंग और आक्रामक कृत्यों पर कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करता है। यह वैश्विक शांति तथा सुरक्षा बनाए रखने या पुनः स्थापित करने के लिये सैन्य एवं गैर-सैन्य (जैसे प्रतिबंध) दोनों प्रकार के उपायों को अधिकृत करता है।
- केंद्रित क्षेत्र: अभ्यास में संयुक्त योजना, सामरिक अभ्यास, शारीरिक दक्षता और समन्वय शामिल हैं। इसमें चेकपॉइंट संचालन, घेराबंदी तथा तलाशी, नागरिकों का निकासी अभ्यास, काउंटर-इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) निरोधक कार्रवाई एवं हताहत प्रबंधन जैसे अभ्यास किये जाते हैं।
- महत्त्व: यह रणनीति, तकनीकों और प्रक्रियाओं (TTP) के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है तथा भाग लेने वाले देशों के बीच सैन्य सहयोग एवं सौहार्द को सुदृढ़ करता है।
भारत के अन्य देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास |
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अभ्यास का नाम |
देश |
गरुड़ शक्ति |
इंडोनेशिया |
एकुवेरिन |
मालदीव |
हैंड-इन-हैंड |
चीन |
बोल्ड कुरुक्षेत्र |
सिंगापुर |
मित्र शक्ति |
श्रीलंका |
नोमैडिक एलीफैंट |
मंगोलिया |
शक्ति |
फ्राँस |
सूर्य किरण |
नेपाल |
युद्ध अभ्यास |
अमेरिका |
और पढ़ें: भारत के प्रमुख सैन्य अभ्यास
रैपिड फायर
लेसर फ्लेमिंगो
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में बड़ी संख्या में लेसर फ्लेमिंगो (छोटे राजहंस) गुजरात के पोरबंदर स्थित छाया तालाब में पहुँचे हैं। यहाँ से वे भारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित ग्रेट रण ऑफ कच्छ की ओर प्रजनन के लिये प्रवास करेंगे।
लेसर फ्लेमिंगो (फीनिकोनायस माइनर):
- यह फ्लेमिंगो की सबसे छोटी प्रजाति है, जो उप-सहारा अफ्रीका, भारत, पाकिस्तान और अरब खाड़ी के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।
- भारत में यह मुख्य रूप से लवणीय जलाशयों और तटीय क्षेत्रों में निवास करती है।
- IUCN द्वारा इसे निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। यह CITES के परिशिष्ट-II में सूचीबद्ध है। साथ ही, यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972 की अनुसूची-IV के अंतर्गत संरक्षित है।
फ्लेमिंगो:
- परिचय: फ्लेमिंगो लंबे, जलीय पक्षी होते हैं, जो अपनी लंबी, एस-आकार की गर्दन और पतली, स्तंभनुमा टाँगों (stick-like legs) के लिये जाने जाते हैं।
- ये अत्यंत सामाजिक होते हैं और प्रायः बड़े झुंडों में देखे जाते हैं, जो उथले तथा सुपोषण के जलाशयों जैसे- लवणीय लैगून, साल्टपैन और क्षारीय झीलों में निवास करते हैं।
- प्रजातियाँ: विश्वभर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फ्लेमिंगो की 6 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से भारत में केवल 2 प्रजातियाँ (ग्रेटर फ्लेमिंगो और लेसर फ्लेमिंगो) पाई जाती हैं।
- अन्य प्रजातियाँ:
- चिली फ्लेमिंगो (फीनिकोप्टेरस चिलेंसिस)
- अमेरिकन/कैरेबियन फ्लेमिंगो (फीनिकोप्टेरस रूबर)
- एंडियन फ्लेमिंगो (फीनकूपर्स एंडिनस)
- जेम्स या पुना फ्लेमिंगो (फीनकूपर्स जेम्सी)
- अन्य प्रजातियाँ:
- आहार एवं रंग-रूप: फ्लेमिंगो शैवाल, शंख-घोंघे और क्रस्टेशियन का आहार करते हैं। उनके पंखों का रंग, जो सफेद से लेकर गुलाबी और नारंगी तक हो सकता है, उनके आहार में उपस्थित कैरोटीनॉयड पिगमेंट द्वारा निर्धारित होता है।
- सामान्य प्रवास मार्ग:
और पढ़ें: फ्लेमिंगो, हिमालयन आइबेक्स और ब्लू शीप
रैपिड फायर
पैसेज अभ्यास (PASSEX) 2025
स्रोत: द हिंदू
भारतीय नौसेना और यूके रॉयल नेवी ने उत्तरी अरब सागर में एक पैसेज अभ्यास (PASSEX) का आयोजन किया।
पैसेज अभ्यास (PASSEX)
- PASSEX: PASSEX उन संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों को कहा जाता है जो मित्र देशों की नौसेनाओं के बीच तब किये जाते हैं जब उनके अभियानों का मार्ग एक-दूसरे से मिलता है। इसका उद्देश्य समुद्र में पारस्परिक संचालन क्षमता, संचार और रणनीतिक सहयोग को मज़बूत करना होता है।
- इसका उद्देश्य सामरिक युद्धाभ्यास, समुद्री क्षेत्र जागरूकता को बढ़ाना तथा हिंद-प्रशांत समुद्री सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि करना है।
- प्रमुख विशेषताएँ: हेलीकॉप्टर नियंत्रण अभ्यास, बेड़े का संचालन, संयुक्त ASW संचालन, अधिकारियों का आदान-प्रदान, वास्तविक समय डेटा साझाकरण तथा निर्बाध समन्वय के लिये संचार प्रोटोकॉल परीक्षण।
- भारत के बेड़े में स्टील्थ फ्रिगेट INS तबर, एक पारंपरिक पनडुब्बी और P-8I लंबी दूरी का समुद्री विमान शामिल हैं।
- व्यापक दृष्टिकोण: यह भारत-यूके व्यापक रणनीतिक साझेदारी और भारत-यूके 2030 रोडमैप के अनुरूप है, साथ ही यह भारत के SAGAR दृष्टिकोण (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक उपस्थिति का भी समर्थन करता है।
INS तबर:
- यह रूस में अप्रैल 2004 में शामिल किया गया तलवार श्रेणी का तीसरा स्टील्थ फ्रिगेट तथा ब्रह्मोस मिसाइल ले जाने वाला पहला युद्धपोत है।
- पश्चिमी बेड़े के साथ मुंबई में तैनात यह जहाज़ वायु, सतह और जलतल (सब-सर्फेस) अभियानों के लिये सुसज्जित है। यह स्वतंत्र रूप से या किसी नौसैनिक कार्यबल के हिस्से के रूप में संचालित हो सकता है, और इसमें बराक-1 जैसे उन्नत हथियार तथा आधुनिक सेंसर लगे हुए हैं।
P-8:
- P-8I एक लंबी दूरी का समुद्री गश्ती और पनडुब्बी रोधी विमान है, जिसे अमेरिकी बोइंग ने भारत के लिये विकसित किया है।
- 1,200 समुद्री मील से अधिक की रेंज और 907 किलोमीटर प्रति घंटे की गति के साथ, यह भारतीय तटों से दूर खतरों का पता लगाकर उन्हें निष्क्रिय कर सकता है, जिससे समुद्री सुरक्षा को मज़बूती मिलती है।
और पढ़ें: भारत के प्रमुख सैन्य अभ्यास
प्रारंभिक परीक्षा
संत कबीर दास की 648वीं जयंती
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
11 जून, 2025 को प्रधानमंत्री ने संत कबीर दास को उनकी 648वीं जयंती, जिसे कबीरदास जयंती (कबीर प्रकट दिवस) के रूप में मनाया गया, के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
संत कबीरदास कौन थे और उनका योगदान क्या था?
- परिचय: संत कबीर दास (1440-1518) एक प्रतिष्ठित रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक थे, जिनका जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
- कबीर अक्सर स्वयं को "जुलाहा" (बुनकर) और "कोरी" (निम्न जाति) के रूप में संदर्भित करते थे, जो हाशिये पर रह रहे लोगों के प्रति उनकी विनम्रता तथा एकजुटता को दर्शाता था।
- शिक्षाएँ एवं दर्शन: संत कबीर दास निर्गुण भक्ति परंपरा के एक प्रमुख प्रस्तावक हैं, जो एक निराकार, गुण-रहित ईश्वर (निर्गुण ब्रह्म) के प्रति भक्ति पर ज़ोर देते हैं।
- उन्होंने भक्ति संत रामानंद और सूफी गुरु शेख तकी से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त किया।
- रामानंद के साथ मिलकर उन्होंने स्थानीय भाषाओं में भक्ति उपासना को लोकप्रिय बनाया और आध्यात्मिकता को आम जनता के समीप पहुँचाया।
- उनकी शिक्षाओं ने धार्मिक रूढ़िवादिता, अंध कर्मकांडों और सामाजिक विभाजनों को चुनौती दी तथा ईश्वर तक पहुँचने के लिये एक सार्वभौमिक, समावेशी मार्ग का समर्थन किया।
- उन्होंने औपचारिक धर्म की अपेक्षा सत्य, करुणा, समानता और प्रत्यक्ष आध्यात्मिक अनुभव पर अधिक ज़ोर दिया।
- भक्ति आंदोलन में भूमिका: कबीर भक्ति आंदोलन (7 वीं -15 वीं शताब्दी) के एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्होंने कर्मकांड और जातिवाद को खारिज करते हुए भक्ति, आंतरिक शुद्धता तथा सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया।
- साहित्य: कबीर ने ब्रजभाषा, अवधी और संत भाषा में दोहे तथा भजन की रचना की, जो हिंदी साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- उनकी रचनाओं में सादगी, गहनता एवं सार्वभौमिक निवेदन की विशेषता होती है, जिनमें अक्सर "उलटबांसी" होती है, जो चिंतन को प्रेरित करने के लिये उलट अर्थ वाले विरोधाभासी छंद होते हैं।
- उनके प्रमुख संकलनों में कबीर बीजक (वाराणसी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कबीरपंथ द्वारा संरक्षित), कबीर परचाई, साखी ग्रंथ, अनुराग गाथा तथा कबीर ग्रंथावली (राजस्थान में दादूपंथ संप्रदाय से संबद्ध) शामिल हैं।
- उनके कई छंद गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं, जिसे गुरु अर्जन देव (5वें सिख गुरु) द्वारा संकलित किया गया था, जो सिख धर्म पर उनके प्रभाव को दर्शाते हैं।
- विरासत और अनुसरण: कबीर को हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी मानते हैं तथा उनकी शिक्षाओं ने कबीर पंथ की नींव रखी, जो एक आध्यात्मिक संप्रदाय है जिसके अनुयायी कबीर पंथी के रूप में जाने जाते हैं।
- उनकी विरासत सांप्रदायिक सद्भाव, नैतिक अखंडता और आंतरिक आध्यात्मिक जागृति का प्रतिनिधित्व करती है।
और पढ़ें: संत कबीर दास