प्रारंभिक परीक्षा
CRGN के उपचार हेतु प्रतिजैविक औषध का अभाव
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
द लांसेट इन्फेक्शियस डिजीज़ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार भारत में कार्बापेनम-प्रतिरोधी ग्राम-नेगेटिव (CRGN) संक्रमण से ग्रस्त केवल 7.8% रोगियों को ही उचित एंटीबायोटिक अथवा प्रतिजैविक उपचार प्राप्त हुआ, जो बहुऔषधि प्रतिरोधी संक्रमणों के प्रभावी उपचार की सुविधा के अभाव को उजागर करता है।
इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- उपयुक्त एंटीबायोटिक दवाओं तक सीमित पहुँच: भारत सहित आठ निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में लगभग 1.5 मिलियन CRGN संक्रमण मामलों के एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2019 में भारत में लगभग 10 लाख CRGN संक्रमण के मामले थे जिनमें से 1 लाख से भी कम रोगियों को उपयुक्त एंटीबायोटिक उपचार प्राप्त हुआ।
- भारत में केवल 7.8% रोगियों को सही उपचार मिल पाता है जो अध्ययन किये गए आठ LMIC (बांग्लादेश, ब्राज़ील, मिस्र, भारत, केन्या, मैक्सिको, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका) के 6.9% औसत से थोड़ा ही अधिक है। उचित उपचार के अभाव में अनुमानित 3.5 लाख मृत्यु हुई हैं।
- प्रभावी उपचार में बाधाएँ: इस अध्ययन में विभिन्न बाधाओं पर प्रकाश डाला गया जिनमें अपर्याप्त नैदानिक परीक्षण, मानकीकृत उपचार प्रोटोकॉल की कमी तथा एंटीबायोटिक आपूर्ति एवं सामर्थ्य से संबंधित समस्याएँ शामिल हैं।
- सिफारिशें: अध्ययन में दो-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की बात कही गई है: एंटीबायोटिक दवाओं का ज़िम्मेदार उपयोग और ज़रूरतमंद लोगों तक इनकी पहुँच सुनिश्चित करना।
- इसमें एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रमों तथा नियामक ढाँचे को मज़बूत करने का आह्वान किया गया है।
- इसमें पहुँच संबंधी अंतराल को कम करने की वकालत की गई ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी रोगियों को सही उपचार मिले।
कार्बापेनम-प्रतिरोधी ग्राम-नेगेटिव (CRGN) क्या है?
- परिभाषा: CRGN का आशय बैक्टीरिया के एक ऐसे समूह से है जो कार्बापेनम एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं और जिनका उपयोग आमतौर पर मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंस प्रतिरोधी संक्रमणों के खिलाफ अंतिम पंक्ति के रूप में किया जाता है।
- इन जीवाणुओं को ग्राम-नकारात्मक (Gram-Negative) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि वे ग्राम अभिरंजन प्रक्रिया के दौरान क्रिस्टल वायलेट डाई को बरकरार नहीं रखते हैं, जिसका उपयोग उनकी कोशिका भित्ति संरचना के आधार पर जीवाणुओं को वर्गीकृत करने के लिये किया जाता है।
- CRGN संक्रमण के उदाहरणों में एस्चेरिचिया कोली (Escherichia Coli), क्लेबसिएला न्यूमोनिया (Klebsiella Pneumoniae) और स्यूडोमोनास एरुगिनोसा (Pseudomonas Aeruginosa) के कारण होने वाले संक्रमण शामिल हैं।
- प्रतिरोध के तंत्र: प्रतिरोध इसलिये होता है क्योंकि इन जीवाणुओं ने कार्बापेनम एंटीबायोटिक्स को विघटित करने या उससे बचने के लिये प्रक्रिया विकसित कर ली है, जो प्रायः कार्बापेनमेस (Carbapenemases) नामक एंजाइम के उत्पादन के माध्यम से होता है।
- CRGN संक्रमण: CRGN संक्रमण से निमोनिया, रक्तप्रवाह संक्रमण और मूत्र पथ संक्रमण जैसी गंभीर स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध के कारण इन संक्रमणों का इलाज करना चुनौतीपूर्ण होता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा: CRGN संक्रमण का इलाज करना दुःसाध्य है और इससे रुग्णता और मृत्यु दर उच्च होती है।
- इन संक्रमणों के उपचार के लिये प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं की कमी के कारण अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ सकता है, स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ सकती है और मृत्यु दर भी बढ़ सकती है।
ग्राम स्टेनिंग
- बैक्टीरिया: ये एककोशिकीय सूक्ष्मजीव हैं जिन्हें प्रोकैरियोट्स के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिनमें वास्तविक रूप से नाभिक नहीं होता है। इनकी संरचना सरल होती है, जिसमें कोशिका भित्ति, कैप्सूल, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड, पिली, फ्लैगेलम, साइटोप्लाज्म और राइबोसोम शामिल होते हैं।
- बैक्टीरिया को उनकी कोशिका भित्ति संरचना के आधार पर ग्राम-पॉजिटिव या ग्राम-नेगेटिव के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- ग्राम स्टेनिंग: ग्राम अभिरंजन प्रक्रिया है, जो बैक्टीरिया को उनके रंग परिवर्तन के आधार पर ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव वर्गों में विभाजित करती है।
- ग्राम-पॉजिटिव बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति मोटी होती है, जो क्रिस्टल वायलेट डाई को रोक कर रखती है, जिससे ये बैंगनी (violet) रंग के दिखाई देते हैं।
- इसके विपरीत, ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया की भित्ति पतली होती है, जिससे क्रिस्टल वायलेट धुल जाता है और वे लाल (red) रंग के दिखाई देते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत में सूक्ष्मजीवी रोगजनकों में बहु-दवा प्रतिरोध की घटना के कारण हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न: क्या डॉक्टर के निर्देश के बिना एंटीबायोटिक दवाओं का अति प्रयोग और मुफ्त उपलब्धता भारत में दवा प्रतिरोधी रोगों के उद्भव में योगदान कर सकते हैं? निगरानी एवं नियंत्रण के लिये उपलब्ध तंत्र क्या हैं? इसमें शामिल विभिन्न मुद्दों पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014) |
रैपिड फायर
टिड्डी दल
स्रोत: द हिंदू
एक नए अध्ययन से पता चला है कि टिड्डी दल यादृच्छिक व्यवहार से नहीं, बल्कि संज्ञानात्मक निर्णय लेने वाले मॉडल द्वारा निर्देशित होते हैं। टिड्डे अपनी गति के लिये अनेक दृश्य संकेतों का उपयोग करते हैं, जिससे विकेंद्रित निर्णय-प्रक्रिया के माध्यम से समन्वित दल बनते हैं। यह मॉडल दल के व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने और प्रारंभिक हस्तक्षेप रणनीतियों को बेहतर बनाने में मदद करता है।
टिड्डियाँ
- टिड्डे एक प्रकार के तृण-भोजी परिग (Grasshopper) हैं जो एक्रिडिडे (Acrididae) परिवार से संबंधित हैं। रेगिस्तानी टिड्डा (Schistocerca Gregaria) को सबसे विनाशकारी प्रवासी कीट माना जाता है।
- टिड्डे तब तक एकांतवासी कीट होते हैं, जब तक कि उनमें समूहीकरण नामक परिवर्तन नहीं आ जाता, जिसके बाद वे अधिक सामाजिक हो जाते हैं और बड़े दलों में एकत्र होते हैं।
- एक छोटे दल (1 वर्ग किमी) में 80 मिलियन टिड्डियाँ हो सकती हैं, जो एक दिन में 35,000 लोगों के बराबर भोजन खा जाती हैं, जबकि एक बड़ा दल 1.8 मिलियन मीट्रिक टन वनस्पति खा सकता है।
- टिड्डे प्रवासी कीट हैं जो दल में सैकड़ों किलोमीटर तक उड़ने में सक्षम हैं। वे एक सीमा पार के कीट हैं जो अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के बीच यात्रा करते हैं।
- भारत का अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र, जिसमें राजस्थान, गुजरात और हरियाणा राज्य शामिल हैं, 2 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, विशेष रूप से टिड्डियों के आक्रमण के प्रति संवेदनशील है, जो प्रायः अफ्रीका और खाड़ी जैसे क्षेत्रों से आते हैं।
- भारत में रेगिस्तानी टिड्डी (Schistocerca Gregaria), प्रवासी टिड्डी (Locusta Migratoria), बॉम्बे टिड्डी (Nomadacris Succincta), और ट्री टिड्डी (Anacridium Sp.) रिपोर्ट की गई है।
- भारत का टिड्डी चेतावनी संगठन, राजस्थान और गुजरात में 10 टिड्डी सर्किल कार्यालयों के साथ मिलकर अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र में राज्य सरकारों के समन्वय से रेगिस्तानी टिड्डियों की निगरानी, सर्वेक्षण और नियंत्रण करता है।
और पढ़ें: रेगिस्तानी टिड्डियों का दल
रैपिड फायर
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड
स्रोत: द हिंदू
सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) का पुनर्गठन किया है जिसमें नए सदस्यों की नियुक्ति की गई है। इसमें पूर्व रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) प्रमुख आलोक जोशी को अध्यक्ष बनाया गया है। इसके अलावा 7 अन्य सदस्य भी शामिल हैं। ऐसा पहलगाम आतंकी हमले पर भारत की प्रतिक्रिया पर बढ़ती चर्चाओं के बीच किया गया है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड: वर्ष 1998 में स्थापित, यह राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) के अधीन कार्यरत है तथा दो अन्य प्रमुख निकायों; सामरिक नीतिगत समूह (SPG) और संयुक्त खुफिया समिति (JIC) के साथ मिलकर कार्य करता है।
- कार्य: NSAB द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) को बाहरी खतरों, आंतरिक स्थिरता और उभरती चुनौतियों पर सलाह दी जाती है। इसके द्वारा स्वतंत्र, दीर्घकालिक विश्लेषण प्रदान करने के साथ नीतिगत विकल्पों की सिफारिश की जाती है।
- NSAB ने परमाणु नीति (2001) और राष्ट्रीय सुरक्षा समीक्षा (2007) में योगदान दिया है।
- संरचना: NSAB का नेतृत्व एक अध्यक्ष द्वारा किया जाता है जो आमतौर पर एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी होता है और इसमें कूटनीति, सैन्य, शिक्षा, अर्थशास्त्र तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे विविध क्षेत्रों के सदस्य शामिल होते हैं।
- NSAB में सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं होती है जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं के आधार पर इसके गठन में लचीलापन बना रहता है।
- कार्यकाल: बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति दो वर्ष के कार्यकाल के लिये की जाती है।
प्रारंभिक परीक्षा
क्लोरपाइरीफोस पर वैश्विक प्रतिबंध की मांग
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
जिनेवा में बेसल, रॉटरडैम और स्टॉकहोम (BRS) कन्वेंशनों के लिये आयोजित कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (COP), में यह प्रस्ताव रखा गया कि विषाक्त कीटनाशक क्लोरपाइरीफो (Chlorpyrifos) को स्टॉकहोम कन्वेंशन के परिशिष्ट-A (Annex A) में शामिल किया जाए, जिससे इस पर वैश्विक स्तर पर बिना किसी अपवाद के पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सके।
- हालाँकि, भारत ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, यह कहते हुए कि इसके व्यवहारिक विकल्पों की अनुपलब्धता और खाद्य सुरक्षा पर संभावित खतरे के कारण ऐसा प्रतिबंध उपयुक्त नहीं है।
क्लोरपाइरीफोस क्या है?
- परिचय: क्लोरपाइरीफलोस एक कृत्रिम क्लोरीनयुक्त ऑर्गेनोफॉस्फेट (अल्कोहल के साथ फॉस्फोरिक एसिड को एस्टरीकृत करके बनाया गया) कीटनाशक है जिसका उपयोग कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य में दीमक, मच्छरों और गोल कृमियों जैसे कीटों को नियंत्रित करने के लिये किया जाता है ।
- यह एसिटाइलकोलिनेस्टरेज़ नामक एंज़ाइम को अवरुद्ध करके कार्य करता है, जो तंत्रिका क्रिया के लिये आवश्यक होता है। इसका प्रभाव केवल लक्षित कीटों पर ही नहीं, बल्कि अन्य जीवों (non-target species) सहित मानवों पर भी पड़ता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: त्वचा के संपर्क, श्वास के माध्यम से, या निगलने के जरिये इसके संपर्क में आने से सिरदर्द, मतली, चक्कर आना, मांसपेशियों में ऐंठन, और गंभीर मामलों में लकवा (paralysis) तथा साँस लेने में कठिनाई हो सकती है।
- यह शरीर में एक विषैला उपोत्पाद (क्लोरपाइरीफोस ऑक्सन) बनाता है, जो इन प्रभावों का कारण बनता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: यह रसायन मिट्टी में कई सप्ताह से लेकर वर्षों तक बना रह सकता है, विशेषकर अम्लीय परिस्थितियों में यह बहुत धीरे-धीरे विघटित होता है, और मृदा क्षरण के माध्यम से जल स्रोतों को प्रदूषित कर सकता है।
- यह पक्षियों (जैसे रॉबिन, मॉलर्ड), मछलियों, मधुमक्खियों और केचुओं के लिये अत्यधिक विषैला है, जो भोजन श्रृंखला में जैव संचयन (Bioaccumulation) कर सकता है।
- भारत में उपयोग:
- भारत में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला कीटनाशक क्लोरपाइरीफोस (2016-17 में कुल कीटनाशक खपत का 9.4%) वर्ष 1977 से कीटनाशक अधिनियम के तहत पंजीकृत है। (IPEN रिपोर्ट)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसे मध्यम रूप से खतरनाक तथा यूरोपीय पर्यावरण संरक्षण एजेंसी द्वारा संभावित कैंसरकारी पदार्थ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इसके अवशेष उत्पाद, जल, रक्त और स्तन के दूध में पाए जाते हैं।
- भारत में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला कीटनाशक क्लोरपाइरीफोस (2016-17 में कुल कीटनाशक खपत का 9.4%) वर्ष 1977 से कीटनाशक अधिनियम के तहत पंजीकृत है। (IPEN रिपोर्ट)
स्टॉकहोम कन्वेंशन क्या है?
- स्टॉकहोम कन्वेंशन ऑन पर्सिस्टेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स (POP) एक वैश्विक संधि है जिसे वर्ष 2001 में अपनाया तथा वर्ष 2004 में लागू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पर्सिस्टेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स (POP) से बचाना है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- एनेक्स A: सूचीबद्ध रसायनों का उन्मूलन
- उदाहरण: एल्ड्रिन, क्लोरडेन, डाइएलड्रिन, एंड्रिन, हेप्टाक्लोर, हेक्साक्लोरोबेंज़ीन, मिरेक्स, पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल्स
- एनेक्स B: सूचीबद्ध रसायनों पर प्रतिबंध
- एनेक्स C: सूचीबद्ध रसायनों के अनैच्छिक उत्सर्जन में कमी
- एनेक्स A: सूचीबद्ध रसायनों का उन्मूलन
- वित्तीय तंत्र: वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) स्टॉकहोम कन्वेंशन के लिये निर्दिष्ट अंतरिम वित्तीय तंत्र के रूप में कार्य करती है, जो विकासशील देशों को इसके दायित्वों को लागू करने में सहायता करती है।
- भारत और स्टॉकहोम कन्वेंशन: भारत ने वर्ष 2006 में स्टॉकहोम कन्वेंशन की पुष्टि की। स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (POP) को विनियमित करने के लिये, MoEFCC ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत 'स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों के विनियमन नियम, 2018' को अधिसूचित किया।
POP क्या हैं?
- परिचय: स्थायी कार्बनिक प्रदूषक (POP) विषाक्त, कार्बन-आधारित रासायनिक पदार्थ हैं जो पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं, अपघटन का विरोध करते हैं, और जीवित जीवों में संचित होते हैं।
- स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव: कैंसर, प्रतिरक्षा दमन (Immune Suppression), न्यूरोटॉक्सिसिटी, प्रजनन संबंधी विकार और अंतःस्रावी व्यवधान उत्पन्न कर सकता है और इसके संपर्क में आने से तीव्र और दीर्घकालिक दोनों तरह के प्रभाव हो सकते हैं।
- जैवसंचय: POP समय के साथ जीवित जीवों के वसा ऊतकों में संचित हो जाते हैं।
- जैव आवर्द्धन: जैसे-जैसे वे खाद्य शृंखला में ऊपर की ओर बढ़ते हैं, उनकी सांद्रता बढ़ती जाती है, जिससे शीर्ष शिकारी और मनुष्य प्रभावित होते हैं।
- उदाहरण:
- एंडोसल्फान: कई देशों में प्रतिबंधित; अंतःस्रावी व्यवधान (Endocrine Disruption) के लिये जाना जाता है।
- DDT: भारत में कृषि के लिये प्रतिबंधित है, लेकिन अभी भी वेक्टर नियंत्रण के लिये उपयोग किया जाता है (उदाहरण के लिये, मलेरिया-प्रवण क्षेत्रों में मच्छरों का धूमन)।
- अन्य में एल्ड्रिन, डाइएलड्रिन, PCB और टोक्साफीन शामिल हैं।
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: बेसल कन्वेंशन और रॉटरडैम कन्वेंशन
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
रैपिड फायर
एम्डेन डीप
स्रोत: द हिंदू
फिलीपींस ट्रेंच में स्थित एम्डेन डीप, चैलेंजर डीप (मारियाना ट्रेंच) और होराइजन डीप (टोंगा ट्रेंच) के बाद विश्व का तीसरा सबसे गहरा बिंदु है।
- एम्डेन डीप (जिसे गैलाथिया डीप के नाम से भी जाना जाता है) की खोज सबसे पहले वर्ष 1927 में जर्मन जहाज एम्डेन द्वारा हुई थी। आगे चलकर वर्ष 1951 में डेनिश जहाज गैलाथिया द्वारा इसका और विस्तार से अन्वेषण किया गया और इसका नाम परिवर्तित किया गया।
- एम्डेन डीप का नाम जर्मन क्रूज़र SMS एम्डेन के नाम पर रखा गया है जिसके द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चेन्नई (तब मद्रास) पर बमबारी की गई थी।
- फिलीपींस ट्रेंच: फिलीपींस ट्रेंच पश्चिमी प्रशांत महासागर में एक संकीर्ण, गहरा समुद्री गर्त है, जो फिलीपींस सागर के पूर्व में स्थित है।
- प्लियो-प्लीस्टोसिन युग के दौरान लगभग 8-9 मिलियन वर्ष पूर्व निर्मित यह गर्त भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय क्षेत्र है, जहाँ टेक्टोनिक प्लेटों के अभिसरण के कारण अक्सर भूकंप आते रहते हैं।
रैपिड फायर
आगामी जनगणना में जाति गणना
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
राजनीतिक कार्य मंत्रिमंडलीय समिति (प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में) ने आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल किये जाने को स्वीकृति दे दी है।
- जाति संबंधी आँकड़ों का ऐतिहासिक संदर्भ: अंतिम विस्तृत जाति संबंधी आँकड़े 1931 की जनगणना में दर्ज किये गए थे। हालाँकि 1941 की जनगणना में भी जाति संबंधी जानकारी एकत्र की गई थी, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के कारण इसे जारी नहीं किया गया था।
- वर्ष 1951 से भारत की जनगणना में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आँकड़े शामिल किये जाते रहे हैं, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के जातिगत आँकड़े मुख्य रूप से दर्ज नहीं किये गए।
- जातिगत आँकड़ों के अभाव के कारण OBC वर्ग के अनुमान को लेकर अस्पष्टता है। मंडल आयोग (1979) के अनुसार यह 52% था।
- वर्ष 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति गणना (SECC) का उद्देश्य बेहतर कल्याण लक्ष्य निर्धारण करना था, लेकिन इसका अधिकांश जातिगत डेटा अप्रकाशित है, जिससे इसका नीतिगत प्रभाव सीमित हो गया है।
- वर्ष 1951 से भारत की जनगणना में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आँकड़े शामिल किये जाते रहे हैं, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के जातिगत आँकड़े मुख्य रूप से दर्ज नहीं किये गए।
- जनगणना: भारत की पहली समन्वित जनगणना वर्ष 1881 में भारत के तत्कालीन जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन द्वारा आयोजित की गई थी।
- वर्तमान में, जनगणना का संचालन गृह मंत्रालय द्वारा भारत के महारजिस्ट्रार और जनगणना आयुक्त के माध्यम से किया जाता है।
- यद्यपि भारतीय जनगणना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत विधिक ढाँचा प्रदान किया गया है, लेकिन इसमें इसके आयोजन को लेकर किसी विशिष्ट आवृत्ति को अनिवार्य नहीं किया गया है, जिससे दशवर्षीय पैटर्न एक संवैधानिक आवश्यकता न होकर एक परिपाटी बन गई है।
और पढ़ें: भारत की अगली राष्ट्रीय जनगणना के संबंध में अनिश्चितता