शासन व्यवस्था
भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्रांति
- 06 Jun 2025
- 19 min read
प्रिलिम्स के लिये:सौर विनिर्माण के लिये PLI योजना, PM सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना, PM-कुसुम, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (NGHM), इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम, किफायती परिवहन के लिये सतत् विकल्प (SATAT), अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, ग्रीन बॉण्ड, महत्त्वपूर्ण खनिज, विशेष आर्थिक क्षेत्र, अपशिष्ट से ऊर्जा, लॉस एंड डैमेज फंड, वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF), ग्रीन क्लाइमेट फंड। मेन्स के लिये:भारत के नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन को प्रेरित करने वाले कारक, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ और उनसे निपटने के लिये सुझाए गए उपाय। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
भारत एक वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अभिकर्त्ता के रूप में उभरा है, जिसने केवल वर्ष 2024 में ही रिकॉर्ड 29 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन किया।
- 232 गीगावॉट की स्थापित क्षमता और 176 गीगावॉट निर्माणाधीन क्षमता के साथ, भारत का ऊर्जा संक्रमण साहसिक सुधारों तथा दूरदर्शी नेतृत्व द्वारा संचालित होकर वैश्विक सतत् विकास प्रयासों को गति दे रहा है।
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा विकास की वर्तमान स्थिति क्या है?
- स्थिति: भारत वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा में तीसरे, पवन ऊर्जा में चौथे और कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में चौथे स्थान पर है। सौर ऊर्जा क्षमता वर्ष 2014 में 2.63 गीगावॉट से बढ़कर वर्ष 2025 में 108 गीगावॉट हो गई है (41 गुना वृद्धि), जबकि पवन ऊर्जा क्षमता 51 गीगावॉट से अधिक हो चुकी है।
- भारत का लक्ष्य है कि वह वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षमता और वर्ष 2047 तक 1,800 गीगावॉट हासिल करे।
- किये गए सुधार:
- बाज़ार आधारित निविदा प्रक्रिया: भारत ने फीड-इन टैरिफ को पारदर्शी बोली प्रक्रिया से बदल दिया, जिससे सौर टैरिफ वर्ष 2010 में 10.95 रुपए प्रति यूनिट से घटकर वर्ष 2021 में 1.99 रुपए प्रति यूनिट रह गया।
- ISTS शुल्क से छूट: इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम (ISTS) शुल्क में छूट ने भौगोलिक बाधाएँ हटा दी हैं, जिससे पूरे देश में नवीकरणीय ऊर्जा का निर्बाध प्रवाह संभव हुआ है।
- प्रमुख कार्यक्रम और पहल:
- सौर विनिर्माण के लिये PLI योजना: इस योजना के कारण भारत की सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता मार्च 2024 के 38 गीगावॉट से बढ़कर मार्च 2025 में 74 गीगावॉट हो गई।
- PM सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना: यह योजना 1 करोड़ घरों में 30 गीगावॉट विकेंद्रीकृत क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखती है, जिसमें 10 लाख से अधिक घर पहले ही शामिल हो चुके हैं।
- PM-कुसुम योजना: इस योजना के तहत किसानों को सौर पंपों पर 60% तक सब्सिडी दी जाती है, जिससे उन्हें दिन के समय बिजली उपलब्ध होती है और अतिरिक्त आय सुनिश्चित होती है।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (NGHM) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर में निवेश और वर्ष 2030 के लिये एक सुदृढ़ ट्रांसमिशन रोडमैप तैयार किया गया है, ताकि ग्रिड में इसकी कुशल एकीकृत आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
- इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम के तहत पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण वर्ष 2013 में 1.5% से बढ़कर वर्ष 2024 में 15% हो गया है।
- इससे ₹1.26 लाख करोड़ की विदेशी मुद्रा की बचत हुई है।
- किफायती परिवहन के लिये सतत् विकल्प (SATAT) पहल के तहत 100 से अधिक संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्र स्थापित किये गए हैं और इसका लक्ष्य वर्ष 2028 तक 5% CBG मिश्रण को अनिवार्य बनाना है।
- इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम के तहत पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण वर्ष 2013 में 1.5% से बढ़कर वर्ष 2024 में 15% हो गया है।
- उभरते ऊर्जा क्षेत्र: अपतटीय पवन ऊर्जा पहलों के तहत वर्ष 2030 तक 37 गीगावाॅट की निविदाएँ जारी करने की योजना है, जिसे व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण का समर्थन प्राप्त है। गुजरात और तमिलनाडु में प्रायोगिक परियोजनाएँ आरंभ की गई हैं।
- हाइब्रिड और राउंड-द-क्लॉक पावर नीति पवन-सौर हाइब्रिड संयोजनों तथा फर्म एंड डिस्पैचेबल रिन्यूएबल एनर्जी (FDRE) को प्रोत्साहित करती है, ताकि 24x7 स्वच्छ ऊर्जा समाधान विकसित किये जा सकें।
- निवेश और वैश्विक नेतृत्व: भारत द्वारा प्रारंभ की गई अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) पहल, "एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड" की दृष्टि के तहत 100 से अधिक देशों को एकजुट करती है।
- वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का योगदान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह में लगभग 8% रहा, जो कि वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग 1% था।
- री-इन्वेस्ट (RE-Invest) 2024 में वैश्विक निवेशकों ने भारत के स्वच्छ ऊर्जा भविष्य के लिये वर्ष 2030 तक ₹32.45 लाख करोड़ के निवेश का संकल्प लिया।
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण में बाधाएँ: भारत का कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण कई प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में रोज़गार तथा स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिये कोयले पर भारी निर्भरता एवं कोयला-आधारित ऊर्जा उत्पादन के अनुरूप विकसित बुनियादी ढाँचा शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त, कोयला आधारित संयंत्रों को लगातार मंज़ूरी दिये जाने जैसी नीतिगत असंगतताएँ नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निवेशकों के विश्वास को प्रभावित करती हैं और उनके उत्साह में कमी लाती हैं।
- वित्तपोषण अंतराल: वर्ष 2030 तक लक्षित 500 गीगावाॅट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लिये भारत को वार्षिक ₹2 ट्रिलियन की आवश्यकता है—जो कि उसके संपूर्ण वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट का आधा हिस्सा है।
- इसके अतिरिक्त, नवीकरणीय ऊर्जा बुनियादी ढाँचे की उच्च पूंजी लागत और निवेश पर अपेक्षाकृत धीमा प्रतिफल कई निवेशकों के लिये बाधा उत्पन्न करता है।
- ग्रिड एकीकरण और भंडारण की चुनौतियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर और पवन ऊर्जा की अस्थायी प्रकृति, ग्रिड की स्थिरता के लिये चुनौती प्रस्तुत करती है, जिसके लिये मज़बूत ऊर्जा भंडारण तथा बेहतर बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है।
- मार्च 2024 तक, कुल स्थापित ऊर्जा भंडारण क्षमता 219.1 MWh थी, जबकि वर्ष 2032 तक 411 गीगावाॅट-घंटे (GWh) की ऊर्जा भंडारण क्षमता की आवश्यकता है। साथ ही, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे नवीकरणीय ऊर्जा समृद्ध राज्यों में क्रमशः 18.9% और 18% उच्च AT&C नुकसान की समस्या भी बनी हुई है।
- आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियाँ: चीन भारत का सबसे बड़ा सौर सेल आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है, जिसने वित्त वर्ष 2024 में लगभग 56% बाज़ार हिस्सेदारी हासिल की है और साथ ही पवन टरबाइन आपूर्ति में भी इसका प्रभुत्व है।
- भारत महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये चीन पर निर्भर है और अपनी लिथियम तथा कोबाल्ट की अधिकांश आवश्यकता आयात करता है, जिसमें से 70% से अधिक लिथियम चीन से प्राप्त होता है, जो नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों के निर्माण के लिये आवश्यक हैं।
- भूमि एवं पर्यावरणीय बाधाएँ: सौर और पवन फार्मों की बढ़ती मांग के कारण भूमि संबंधी महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, स्थान तथा बुनियादी ढाँचे के आधार पर सौर ऊर्जा के लिये 4-5 एकड़/मेगावाट और पवन ऊर्जा के लिये 2-40 एकड़/मेगावाट की आवश्यकता होती है।
- भूमि के बड़े भू-भाग की आवश्यकता के कारण अक्सर कृषि उपयोग, शहरी विकास और प्राकृतिक आवासों के साथ प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न होती है, जिससे स्थानीय समुदायों तथा पारिस्थितिकी तंत्रों के साथ संभावित संघर्ष उत्पन्न होता है।
- उदाहरण के लिये, तमिलनाडु की सिल्लहल्ला जलविद्युत परियोजना जैवविविधता की हानि और पुनर्वास को लेकर चिंताएँ उजागर करती है, जो स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को सामाजिक और पर्यावरणीय स्थिरता के साथ संतुलित करने की चुनौती को रेखांकित करता है।
- ई-कचरा और उपयोग के बाद प्रबंधन की समस्याएँ: सौर पैनलों से निकलने वाले बढ़ते ई-कचरे की मात्रा सतत् विकास के लिये एक बड़ी चुनौती उत्पन्न करती है, क्योंकि अनुचित निपटान से कैडमियम और लेड जैसे विषैले पदार्थ पर्यावरण में मिल सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, भारत वर्ष 2050 तक सौर पैनल अपशिष्ट का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक बन सकता है ।
- भारत में अभी कोई व्यापक सोलर रीसाइक्लिंग नीति नहीं है तथा बड़े पैमाने पर रीसाइक्लिंग सुविधाओं की कमी गंभीर पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न करती है।
बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिये भारत नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में किस प्रकार तेज़ी ला सकता है?
- भूमि और जल संसाधनों का अनुकूलन: तैरते सौर पैनलों की स्थापना (जैसे- मध्य प्रदेश का ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पार्क) के माध्यम से जलाशयों, झीलों और तटीय क्षेत्रों का उपयोग करते हुए ‘फ्लोटिंग सोलर क्रांति’ को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे भूमि संरक्षण सुनिश्चित होगा, जल का वाष्पीकरण कम होगा और ऊर्जा दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- इसके साथ ही, दीर्घकालिक सौर कृषि पट्टों के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन और कृषि के लिये दोहरी भूमि उपयोग को सक्षम करने हेतु भूमि पट्टे तथा कृषिवोल्टाइक को बढ़ावा देना है।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्लस्टर विकसित करना: स्वच्छ ऊर्जा विकास को बढ़ावा देने के लिये सुव्यवस्थित मंज़ूरी, राजकोषीय प्रोत्साहन और अनुसंधान एवं विकास से विनिर्माण तक एकीकृत मूल्य शृंखलाओं के साथ नवीकरणीय ऊर्जा विशेष आर्थिक क्षेत्र (RE-SEZ) स्थापित करना।
- एकीकृत ट्रांसमिशन पहुँच के साथ अवनत या बंजर भूमि पर नवीकरणीय ऊर्जा पार्क विकसित कर कृषि को प्रभावित किये बिना भूमि उपयोग को अनुकूलित किया जा सकता है।
- डिजिटल और उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना: ब्लॉकचेन-आधारित पीयर-टू-पीयर (P2P) नवीकरणीय ऊर्जा ट्रेडिंग को अपनाकर बाज़ारों को विकेंद्रीकृत करना और उत्पादक-उपभोक्ताओं (प्रोज्यूमर्स) को सशक्त बनाना।
- इसके साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति की परिवर्तनशीलता को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये स्मार्ट ग्रिड, पंप हाइड्रो और बैटरी भंडारण में निवेश करना।
- नवीकरणीय अवसंरचना का विस्तार: भारत शहरी पवन ऊर्जा को एकत्रित करने के लिये छतों पर वर्टिकल एक्सिस विंड टर्बाइन (VAWTs) स्थापित करके नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दे सकता है, साथ ही छत पर सौर ऊर्जा, माइक्रोग्रिड एवं सौर सिंचाई पंप जैसे विकेंद्रीकृत समाधान भी स्थापित कर सकता है।
- ये प्रणालियाँ ग्रामीण विद्युतीकरण को बढ़ाती हैं, कार्बन उत्सर्जन को कम करती हैं तथा ऑफ-ग्रिड क्षेत्रों को विश्वसनीय ऊर्जा प्रदान करती हैं।
- अपशिष्ट से ऊर्जा और जैव ऊर्जा को बढ़ावा देना: अपशिष्ट को ऊर्जा और मूल्यवान उपोत्पादों में परिवर्तित करने के लिये अवायवीय पाचन, गैसीकरण एवं पायरोलिसिस का उपयोग करके परिपत्र अपशिष्ट से ऊर्जा पार्क (जैसे, जामनगर अपशिष्ट से ऊर्जा पार्क) विकसित करना।
- ग्रामीण आय को बढ़ावा देने और ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के लिये इथेनॉल मिश्रण और SATAT के माध्यम से जैव ईंधन एवं संपीड़ित बायोगैस (CBG) का विस्तार करना।
- वैश्विक सहभागिता का विस्तार: भारत बड़े पैमाने पर नवीकरणीय परियोजनाओं के लिये वित्तीय संसाधन सुरक्षित करने हेतु हानि एवं क्षति कोष तथा हरित जलवायु कोष जैसे वैश्विक वित्तपोषण साधनों का उपयोग कर सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन और प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देने के लिये G-20 , अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुदृढ़ करना।
- भारत नवीकरणीय ऊर्जा हेतु वैश्विक मानक स्थापित करने के लिये IRENA जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग कर सकता है, जिसमें वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी अपनाने और क्षमता निर्माण के लिये साझा रूपरेखाएँ शामिल हैं ।
निष्कर्ष
भारत का अक्षय ऊर्जा अभियान इसे वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी बनाता है। वित्तीय कमी और ग्रिड एकीकरण जैसी चुनौतियों के बावजूद , फ्लोटिंग सोलर, RE-SEZ तथा ग्रीन हाइड्रोजन जैसे नवाचार वर्ष 2030 तक 500 गीगावाॅट के लक्ष्य की ओर प्रगति को गति दे सकते हैं। यह परिवर्तन SDG 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा), SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) एवं SDG 9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी ढाँचा) का समर्थन करता है, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करता है, सतत् विकास को बढ़ावा देता है व जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: उन प्रमुख सुधारों पर चर्चा कीजिये जिन्होंने भारत के नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार को तीव्र गति से संभव बनाया है तथा वैश्विक स्थिरता प्रयासों पर उनके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न: भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:
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