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आर्य समाज के 150 वर्ष

  • 01 Nov 2025
  • 48 min read

स्रोत: पी. आई. बी.

प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन 2025 को संबोधित किया। यह कार्यक्रम आर्य समाज की 150वीं स्थापना वर्षगाँठ और महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर आयोजित किया गया था।

  • ज्ञान ज्योति महोत्सव का हिस्सा, यह कार्यक्रम महर्षि दयानंद की सुधारवादी विरासत के सम्मान को दर्शाता है, इसमें "सेवा के 150 स्वर्णिम वर्ष" शीर्षक से एक प्रदर्शनी भी की गई है और विकसित भारत 2047 के साथ जुड़े वैदिक तथा स्वदेशी मूल्यों को बढ़ावा देता है।

आर्य समाज क्या है?

  • परिचय: आर्य समाज एक हिंदू सुधारवादी आंदोलन है जो वेदों को ज्ञान और सत्य का सबसे बड़ा स्रोत मानता है। इसकी स्थापना महर्षि दयानंद सरस्वती ने वर्ष 1875 में बॉम्बे (अब मुंबई) में की थी।
  • दार्शनिक सिद्धांत: यह वैदिक शिक्षाओं को मानता है, लेकिन मूर्ति पूजा, विस्तृत रीति-रिवाज़, पशु बलि, सामाजिक बुराइयों और अंधविश्वासों को खारिज करता है।
    • यह कर्म सिद्धांत (कार्य का नियम), संसार (जन्म और पुनर्जन्म का चक्र) तथा गौ-संरक्षण की पवित्रता के सिद्धांतों पर बल देता है, साथ ही वैदिक अग्नि अनुष्ठानों (हवन/यज्ञ) और संस्कारों (धार्मिक संस्कारों) को प्रोत्साहित करता है।
  • सामाजिक सुधार: इसने महिला शिक्षा, अंतरजातीय विवाह और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया, साथ ही विद्यालयों, अनाथालयों और विधवाओं के लिये आश्रय गृहों की स्थापना भी की।
    • इसने अकाल राहत और चिकित्सीय सहायता में भी योगदान दिया तथा अन्य धर्म अपनाने वालों को पुनः हिंदू धर्म में लाने के लिये शुद्धि आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • आर्य समाज के अन्य नेता: आर्य समाज को कई प्रमुख व्यक्तित्वों ने आकार दिया, जिनमें स्वामी विरजानंद दंडीश शामिल हैं, जिन्होंने अपनी वैदिक विद्वता से स्वामी दयानंद को प्रेरित किया; स्वामी श्रद्धानंद, जो गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्थापक और एक सुधारवादी शहीद थे तथा पंडित लेख राम, जो वैदिक शिक्षाओं के प्रबल समर्थक और धार्मिक कट्टरता के प्रखर विरोधी थे।
  • आर्य समाज का विभाजन: वर्ष 1893 में आर्य समाज दो प्रमुख मुद्दों पर विभाजित हो गया- मांसाहार बनाम शाकाहार और आंग्ल शिक्षा बनाम संस्कृत-आधारित शिक्षा।
    • लाला हंसराज के नेतृत्व में गुरुकुल प्रणाली के तहत पारंपरिक वैदिक शिक्षा को आधुनिक शिक्षा के साथ संयोजित कर बढ़ावा दिया गया, जबकि लाला लाजपत राय और अन्य नेताओं ने दयानंद आंग्ल वैदिक (DAV) संस्थानों के माध्यम से आधुनिक, अंग्रेज़ी आधारित शिक्षा का समर्थन किया।

महर्षि दयानंद सरस्वती कौन थे?

  • परिचय: महर्षि दयानंद सरस्वती 19वीं शताब्दी के प्रसिद्ध धार्मिक सुधारक, दार्शनिक एवं सामाजिक चिंतक थे। उन्होंने वैदिक शिक्षाओं की शुद्धता को पुनर्जीवित करने के साथ हिंदू समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के क्रम में आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • प्रारंभिक काल: 12 फरवरी, 1824 को गुजरात में एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में मूलशंकर तिवारी के रूप में जन्मे, उन्होंने प्रारंभ से ही आध्यात्मिक जिज्ञासा में रुचि दिखाई और मूर्ति पूजा, कर्मकांड तथा अंधविश्वासों पर प्रश्न उठाए।
    • 19 वर्ष की आयु में उन्होंने आध्यात्मिक सत्य की खोज के लिये सांसारिक जीवन त्याग दिया और लगभग 15 वर्षों (1845–1860) तक संन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत किया। मथुरा में स्वामी विरजानंद के मार्गदर्शन में उन्होंने हिंदू धर्म में सुधार लाने और उसकी वैदिक परंपराओं के पुनरुत्थान की प्रेरणा प्राप्त की। 
  • सुधारवादी दृष्टिकोण: उन्होंने मूर्ति पूजा, अस्पृश्यता, जातिगत भेदभाव, बहुविवाह, बाल विवाह और लैंगिक असमानता का विरोध किया तथा एक वर्गहीन एवं योग्यता-आधारित समाज का समर्थन किया।
    • उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, निम्न वर्गों के उत्थान, शुद्धि आंदोलन, सती प्रथा और बाल विवाह के उन्मूलन को बढ़ावा दिया। उन्होंने “वेदों की ओर लौटो” के मंत्र के माध्यम से तार्किकता, समानता और न्याय पर बल दिया।
    • उनके विचार सत्यार्थ प्रकाश’ (The Light of Truth) में संकलित हैं, जिसमें शिशुहत्या और दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों की निंदा करते हुए वैदिक ज्ञान को प्रोत्साहित किया गया है।
  • शैक्षणिक योगदान: उन्होंने गुरुकुलों, बालिका गुरुकुलों और दयानंद एंग्लो वैदिक (DAV) संस्थानों की स्थापना की प्रेरणा दी। वर्ष 1886 में महात्मा हंसराज के नेतृत्व में पहला DAV विद्यालय लाहौर में स्थापित किया गया।
    • उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली का विरोध करते हुए आधुनिक, वैज्ञानिक और वैदिक शिक्षा का समर्थन किया।
  • राष्ट्रवादी उद्देश्यों के प्रति समर्थन: वे वर्ष 1876 में ‘स्वराज’ का आह्वान करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी जैसे नेताओं को प्रेरित किया।
    • उन्होंने स्वदेशी (आर्थिक आत्मनिर्भरता), गोरक्षा और हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाने का भी समर्थन किया।
  • स्थायी विरासत: स्वामी दयानंद सरस्वती को अपने सुधारात्मक प्रयासों के लिये रूढ़िवादी विरोध का सामना करना पड़ा, फिर भी उन्होंने आर्य समाज और DAV संस्थानों के माध्यम से एक स्थायी विरासत छोड़ी, जो आज भी समाज के लिये लाभकारी सिद्ध हो रही है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. महर्षि दयानंद सरस्वती कौन थे?

महर्षि दयानंद सरस्वती (1824–1883) एक हिंदू सुधारक, दार्शनिक और आर्य समाज (1875) के संस्थापक थे। उन्होंने तर्कवाद, समानता, महिला शिक्षा और सामाजिक सुधार का समर्थन किया तथा भारत के प्रारंभिक राष्ट्रवादी और स्वदेशी आंदोलनों को प्रेरित किया।

2. आर्य समाज का मुख्य दार्शनिक आदर्श वाक्य क्या था?

आर्य समाज का मुख्य आदर्श वाक्य था - "वेदों की ओर लौटो", जो वेदों में निहित मूल, तर्कसंगत और समतावादी सिद्धांतों को परम सत्य का स्रोत मानते हुए उन्हीं की ओर पुनः अभिमुख होने पर बल देता था।

3. आर्य समाज द्वारा संचालित शुद्धि आंदोलन का क्या महत्त्व था?

 शुद्धि आंदोलन का उद्देश्य उन व्यक्तियों को धार्मिक रूप से पुनः हिंदू धर्म में दीक्षित करना था जिन्होंने अन्य धर्म अपना लिये थे। यह आंदोलन हिंदू समाज के सुधार और एकीकरण के प्रयास के रूप में अत्यंत महत्त्वपूर्ण था।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी घटना सबसे पहले हुई? (2018)

(a) स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की।

(b) दीनबंधु मित्र ने नीलदर्पण का लेखन किया।

(c) बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘आनंदमठ' का लेखन किया।

(d) सत्येन्द्रनाथ टैगोर इंडियन सिविल सर्विस परीक्षा में सफलता पाने वाले प्रथम भारतीय बने। 

उत्तर: (b)

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