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ध्यान दें:

प्रिलिम्स फैक्ट्स

प्रारंभिक परीक्षा

उपग्रहों की सुरक्षा के प्रति भारत का दृष्टिकोण

स्रोत: TH 

चर्चा में क्यों?  

भारत अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा के लिये सुरक्षा के कई स्तरों के साथ "बॉडीगार्ड सैटेलाइट" की योजना बना रहा है, क्योंकि संचार, नेविगेशन, सुरक्षा, इंटरनेट सेवाओं और जलवायु निगरानी के लिये उपग्रह अपरिहार्य हो गए हैं। 

  • बॉडीगार्ड सैटेलाइट समर्पित अंतरिक्ष यान होते हैं जिन्हें निकटवर्ती दृष्टिकोणों की निगरानी, खतरों का पता लगाने और कक्षा में शत्रुतापूर्ण युद्धाभ्यासों का मुकाबला करके उच्च-मूल्य वाले उपग्रहों की सुरक्षा एवं अनुरक्षण के लिये डिज़ाइन किया गया है।

उपग्रहों के लिये प्रमुख खतरे 

  • भौतिक जोखिम: अंतरिक्ष मलबे से भरा हुआ है और एक छोटा सा टुकड़ा भी 28,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहे उपग्रह को नुकसान पहुँचा सकता है। 
  • डिजिटल जोखिम: उपग्रह रेडियो सिग्नल जैमिंग, स्पूफिंग और ग्राउंड सिस्टम पर होने वाले साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील होते हैं। 
  • प्राकृतिक खतरे: सौर तूफान उपग्रह की इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों को नुकसान पहुँचा सकते हैं और उनकी कक्षाओं को प्रभावित कर सकते हैं। 
  • भू-राजनीतिक खतरे: उपग्रहों को शत्रुतापूर्ण देशों द्वारा निकटता संचालन (proximity operations) के माध्यम से ट्रैक किया जा सकता है या निशाना बनाया जा सकता है।

भारत उन्नत प्रौद्योगिकियों और बहुस्तरीय रक्षा के साथ अपने उपग्रहों की सुरक्षा किस प्रकार कर रहा है? 

  • आईएसआरओ सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशन्स मैनेजमेंट (IS4OM): भारत ने बेंगलुरु में आईएसआरओ का IS4OM केंद्र स्थापित किया है, जो उपग्रहों और अंतरिक्ष मलबे की निगरानी करता है, टकराव की चेतावनी जारी करता है तथा कक्षीय संचालन (maneuvers) का समन्वय करता है।  
  • प्रोजेक्ट NETRA: भारत के प्रोजेक्ट NETRA का उद्देश्य कक्षा में वस्तुओं की बेहतर ट्रैकिंग के लिये नए रडार और दूरबीनों की तैनाती करके अंतरिक्ष निगरानी क्षमताओं में सुधार करना है।  
    • श्रीहरिकोटा में मल्टी-ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग रडार पहले से ही चालू है, तथा देश भर में और अधिक स्थानों पर इसकी स्थापना की योजना है। 
  • नेविगेशन संदेश प्रमाणीकरण (NMA): अपने भारतीय नक्षत्र में नेविगेशन (NavIC) प्रणाली के लिये भारत स्पूफिंग को रोकने और नेविगेशन संकेतों की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने हेतु नेविगेशन संदेश प्रमाणीकरण का परीक्षण कर रहा है। 
  • साइबर सुरक्षा उपाय: भारत की CERT-In (भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम) ने उपग्रह ऑपरेटरों के लिये सुरक्षा बढ़ाने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिसमें मज़बूत एन्क्रिप्शन, नेटवर्क विभाजन और साइबर हमलों से उपग्रह प्रणालियों की सुरक्षा हेतु नियमित पैचिंग शामिल है। 
  • सौर तूफान की तैयारी: आदित्य-L1 मिशन उपग्रहों की सुरक्षा के लिये सौर तूफान की पूर्व चेतावनी प्रदान करता है। 
  • LiDAR उपग्रह: भारत संभावित खतरों का पता लगाने और शत्रुतापूर्ण उपग्रह युद्धाभ्यासों पर प्रतिक्रिया के लिये अधिक समय प्रदान करने हेतु LiDAR उपग्रहों के उपयोग की संभावना तलाश रहा है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (COPUOS) और अंतर-एजेंसी मलबा समन्वय समिति (IADC) जैसे वैश्विक मंचों में सक्रिय रूप से भाग लेता है, जो मलबा प्रबंधन और ज़िम्मेदार अंतरिक्ष संचालन पर ध्यान केंद्रित करता है।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष सुरक्षा प्रणालियाँ 

  • बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (COPUOS): वर्ष 2019 में दीर्घकालिक अंतरिक्ष स्थिरता के लिये स्वैच्छिक दिशा-निर्देशों को अपनाया गया, जिसमें मलबे के शमन और अंतरिक्ष सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया। 
  • अंतर-एजेंसी मलबा समन्वय समिति (IADC): अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन के लिये वैश्विक प्रयासों का समन्वय करती है और अंतरिक्ष में टकराव को रोकने हेतु सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करती है। 
  • संयुक्त अंतरिक्ष संचालन पहल (CSO): अंतरिक्ष में ज़िम्मेदार व्यवहार को बढ़ावा देने और उपग्रह गतिविधियों के लिये परिचालन मानदंड निर्धारित करने हेतु अमेरिका सहित 10 देशों की साझेदारी 
  • NATO की अंतरिक्ष नीति: अंतरिक्ष को एक परिचालन क्षेत्र के रूप में घोषित करता है, जो देशों के बीच सहयोग और अंतरिक्ष के ज़िम्मेदार उपयोग पर ज़ोर देता है। 
  • अमेरिका: 
    • स्पेस फेंस: एक राडार प्रणाली जो मारबल जितनी छोटी अंतरिक्ष वस्तुओं को ट्रैक कर सकती है। 
    • संरक्षित सामरिक तरंग: जामिंग को रोककर सुरक्षित उपग्रह संचार सुनिश्चित करता है। 
    • उन्नत अत्यधिक उच्च आवृत्ति (AEHF) उपग्रह: सुरक्षित संचार के लिये प्रतिरोधी आवृत्तियों का उपयोग करते हैं। 
    • एन्क्रिप्टेड GPS M-कोड: अनधिकृत पहुँच को रोकने के लिये GPS सिग्नल सुरक्षा को बढ़ाता है। 
    • अंतरिक्ष सूचना साझाकरण और विश्लेषण केंद्र (ISAC): उपग्रह संचार की सुरक्षा के लिये साइबर खतरे की खुफिया जानकारी का समन्वय करता है। 
  • यूरोप: 
    • यूरोपीय संघ अंतरिक्ष निगरानी और ट्रैकिंग (EUSST): अंतरिक्ष मलबे की निगरानी करता है और उपग्रह संचालकों को संभावित खतरों के प्रति आगाह करता है। 
    • गैलीलियो OSNMA: स्पूफिंग को कम करने और सिग्नल की अखंडता सुनिश्चित करने के लिये नेविगेशन संदेशों को प्रमाणित करता है। 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संदर्भ में, हाल ही में समाचारों में रहा "भुवन" क्या है? (2010) 

(a) भारत में दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये इसरो द्वारा शुरू किया गया एक छोटा उपग्रह। 
(b) चन्द्रयान- II के लिये अगले मून इम्पैक्ट प्रोब को दिया गया नाम। 
(c) भारत के 3D इमेजिंग क्षमताओं के साथ इसरो का एक जिओ पोर्टल। 
(d) भारत द्वारा विकसित एक अंतरिक्ष दूरबीन। 

उत्तर: (c)


रैपिड फायर

मोरक्को में भारत की पहली विदेशी रक्षा सुविधा

स्रोत: पी.आई.बी 

भारत के रक्षा मंत्री ने मोरक्को में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) की रक्षा विनिर्माण सुविधा का उद्घाटन किया और मोरक्को के साथ रक्षा सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये, जो भारत-मोरक्को रक्षा संबंधों में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। 

  • महत्त्व: यह किसी भारतीय निजी कंपनी द्वारा स्थापित पहली विदेशी रक्षा सुविधा है तथा मोरक्को में सबसे बड़ा रक्षा विनिर्माण संयंत्र है। 
    • यह सुविधा भारत के आत्मनिर्भर भारत का समर्थन करती है और भारत की मेक इन इंडिया, मेक विद फ्रेंड्स, मेक फॉर द वर्ल्ड रणनीति का प्रतिनिधित्व करती है। 
    • यह भारत-मोरक्को रणनीतिक साझेदारी, स्थानीय क्षमता को मज़बूत करती है और क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान देती है।
    • अफ्रीका और यूरोप के प्रवेश द्वार के रूप में मोरक्को की रणनीतिक स्थिति निर्यात क्षमता तथा द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को बढ़ाती है। 
  • सुविधा का उद्देश्य: TASL और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा संयुक्त रूप से डिज़ाइन किये गए पहियेदार बख्तरबंद प्लेटफॉर्म (WhAP) 8x8 का उत्पादन। 
    • WhAP एक स्वदेशी रूप से विकसित मॉड्यूलर लड़ाकू वाहन है जो उन्नत सुरक्षा, गतिशीलता और बहुमुखी प्रतिभा प्रदान करता है। 
    • इसे पैदल सेना के लड़ाकू वाहन, टोही वाहन, कमांड पोस्ट, मोर्टार वाहक या एम्बुलेंस के रूप में कॉन्फिगर किया जा सकता है, जिसमें दूरस्थ हथियार स्टेशनों और एंटी-टैंक मिसाइलों के विकल्प भी शामिल हैं।

मोरक्को 

  • यह पश्चिमी उत्तरी अफ्रीका में स्पेन से जिब्राल्टर जलडमरूमध्य के पार स्थित एक पहाड़ी देश है। 
  • इसकी सीमा पश्चिमी सहारा (दक्षिण) और अल्जीरिया (पूर्व) से लगती है, जिसकी तटरेखाएँ अटलांटिक महासागर (पश्चिम) एवं भूमध्य सागर (उत्तर) तक विस्तृत हैं, जिससे यह दोनों तक पहुँच वाला एकमात्र अफ्रीकी देश बन गया है। 
  • भौगोलिक दृष्टि से मोरक्को में उच्च एटलस पर्वतमालाएँ स्थित हैं। इसका सबसे ऊँचा बिंदु माउंट टूबकल है जो एटलस पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी भी है। ड्रा नदी (Draa River) देश की सबसे लंबी नदी है।

Morocco

और पढ़ें: भारत-मोरक्को रक्षा उद्योग 

रैपिड फायर

INS आन्द्रोत

स्रोत: पी.आई.बी

भारतीय नौसेना, विशाखापत्तनम स्थित नौसेना डॉकयार्ड में अपने दूसरे अत्याधुनिक पनडुब्बी रोधी युद्धक उथले पानी के जहाज़ (ASW-SWC), ‘आन्द्रोत’ को कमीशन करने के लिये तैयार है।  

  • लक्षद्वीप के आन्द्रोत द्वीप के नाम पर रखा गया यह जहाज़ भारत की अपनी समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। 
  • इसके पूर्ववर्ती स्वरूप में आईएनएस आन्द्रोत (P69) ने सेवामुक्त होने से पहले 27 वर्षों तक राष्ट्र की विशिष्ट एवं गौरवपूर्ण सेवा की। 
  • इसका निर्माण गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) कोलकाता द्वारा किया गया था और इसमें 80% से अधिक घटक स्वदेशी हैं जो सरकार के आत्मनिर्भरता विज़न के अनुरूप हैं। 
  • ये जहाज़ डीजल इंजन-वॉटरजेट संयोजन द्वारा संचालित होते हैं तथा अत्याधुनिक हल्के टॉरपीडो और स्वदेशी पनडुब्बी रोधी युद्धक रॉकेटों से लैस हैं। 

ASW-SWC  

  • इन जहाज़ों को तटीय जल में पनडुब्बी रोधी अभियानों, निम्न तीव्रता वाले समुद्री अभियानों (LIMO) और बारूदी सुरंग बिछाने के अभियानों के लिये डिज़ाइन किया गया है। 
  • भारत की ASW क्षमताएँ: 
    • इंटीग्रेटेड ASW डिफेंस सुइट्स (IADS): महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स के सहयोग से विकसित, ये प्रणालियाँ जल के भीतर प्रभावी पहचान और खतरे से सुरक्षा प्रदान करती हैं। 
    • कामोर्टा श्रेणी के जहाज़: INS कामोर्टा और INS कदमत्त जैसे ये स्टील्थ युद्धपोत, कम विकिरण वाले जल के भीतर ध्वनि संकेतों से लैस हैं। 
    • समुद्री गश्ती विमान: भारत पनडुब्बी रोधी टोही के लिये बोइंग P-8I (पोसिडॉन) विमान का उपयोग करता है। 
    • SMART प्रणाली: DRDO ने जल के भीतर बेहतर सुरक्षा के लिये एक मिसाइल-आधारित, हल्की टारपीडो वितरण प्रणाली विकसित की है। 
    • ASW हेलीकॉप्टर: MH-60R सीहॉक बहु-भूमिका हेलीकॉप्टरों को पनडुब्बी रोधी युद्ध के लिये तैनात किया जाता है। 
  • ASW का महत्त्व : 
    • भारत की समुद्री सुरक्षा उसकी विशाल तटरेखा और रणनीतिक स्थिति के कारण महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि हिंद महासागर क्षेत्र में परमाणु हथियार संपन्न पनडुब्बियाँ संचालित होती हैं। 
    • क्षेत्र से बाहर की शक्तियों और उनकी उन्नत पनडुब्बियों की बढ़ती उपस्थिति भारत के लिये सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ा रही है।
और पढ़ें: भारतीय नौसेना ने ASW SWC परियोजना के साथ आत्मनिर्भर भारत को आगे बढ़ाया 

रैपिड फायर

सुपर टाइफून रागासा

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

सुपर टाइफून रागासा ने ताइवान में भारी नुकसान पहुँचाया। मूसलाधार बारिश के साथ आया यह तूफान पूर्वी एशिया (फिलीपींस, ताइवान, चीन और हॉन्गकॉन्ग) में व्यापक क्षति का कारण बना। तूफान के कारण दर्जनों लोग लापता हो गए हैं और कई क्षेत्रों में जनजीवन प्रभावित हुआ है। 

  • यह वर्ष 2025 का एक शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात है, जिसे सुपर टाइफून के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसके केंद्र (आँख) के पास अधिकतम स्थिर हवाओं की गति 260 किमी प्रति घंटे तक पहुँच गई।

सुपर टाइफून (चक्रवात)

  • परिचय: एक सुपर टाइफून (चक्रवात) एक बहुत ही शक्तिशाली तूफान होता है, जो कैटेगरी 5 के हरिकेन के समान होता है, जिसकी हवाएँ लगभग 253 किमी/घंटा की गति से चलती हैं। ये तूफान आमतौर पर पश्चिमी प्रशांत महासागर में चीन, जापान और फिलीपींस के पास बनते हैं। 
  • कैटेगरी: नीचे दिये गए मानदंड भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा तैयार किये गए हैं, जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में कम दबाव वाली प्रणालियों को उनकी क्षति पहुँचाने की क्षमता के आधार पर वर्गीकृत करता है, यह प्रणाली WMO द्वारा अपनाई गई है। 

विक्षोभ के प्रकार 

वायु की गति (किमी/घंटा में) 

लो प्रेशर (निम्न दाब)  

31 से कम 

डिप्रेशन 

31-49 

डीप डिप्रेशन 

49-61 

साइक्लोन स्टॉर्म (चक्रवाती तूफान) 

61-88 

सीवियर साइक्लोन स्टॉर्म (गंभीर चक्रवाती तूफान) 

88-117 

सुपर साइक्लोन 

221 से अधिक 

Cyclone

और पढ़ें: चक्रवात का लैंडफॉल 

रैपिड फायर

मोहनजोदड़ो डांसिंग गर्ल

स्रोत: IE

दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय से प्रसिद्ध मोहनजोदड़ो की ‘डांसिंग गर्ल’ की रेप्लिका (अनुकृति) चोरी हो गई थी, लेकिन आरोपी पकड़े जाने के बाद उसे बरामद कर लिया गया।

  • परिचय:डांसिंग गर्ल’ सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2500 ई.पू.) की एक कांस्य प्रतिमा है, जिसे वर्ष 1926 में पुरातत्वविद् अर्नेस्ट मैके ने मोहनजोदड़ो से खोजा था।
  • कला: यह प्रतिमा लॉस्ट-वैक्स कास्टिंग तकनीक (गुम मोम ढलाई विधि) से बनाई गई थी, जो उस समय की एक उन्नत धातुकर्म प्रक्रिया थी। 
    • लॉस्ट-वैक्स कास्टिंग एक प्रक्रिया है, जिसमें मोम के मॉडल को ऊष्मा-रोधी साँचे (मोल्ड) से ढक दिया जाता है। फिर मोम को पिघलाकर बाहर निकाल दिया जाता है तथा उस खोखले स्थान में पिघला हुआ धातु डाला जाता है। जब वह ठंडी हो जाती है तो धातु की वस्तु को बाहर निकालने के लिये साँचे को हटा दिया जाता है।
  • कलात्मक महत्त्व: यह प्रतिमा एक युवा लड़की को आत्मविश्वास से भरे आसन में दर्शाती है, जिसमें उसका सिर झुका तथा भुजाएँ लंबी दिखाई गई हैं, जो यथार्थ और कलात्मक शैली का अनोखा मिश्रण है। यह मुद्रा आभूषण लयात्मक सौंदर्य को दर्शाती है, इसी कारण इसे “डांसिंग गर्ल (नृत्य करती हुई लड़की)” नाम दिया गया है।

और पढ़ें..: डांसिंग गर्ल मूर्ति


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