प्रारंभिक परीक्षा
भारत में डुगोंग आबादी के लिये खतरा
चर्चा में क्यों?
अबू धाबी में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) कंज़र्वेशन कांग्रेस में हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में भारत में डुगोंग की आबादी पर बढ़ते खतरे पर प्रकाश डाला गया है।
डुगोंग क्या हैं?
- डुगोंग: डुगोंग समुद्री स्तनधारी हैं, जो मैनेटी से संबंधित हैं। इनका आकार मोटा होता है तथा इनकी पूँछ डॉल्फिन जैसी होती है। इनकी लंबाई 10 फीट तक होती है और इनका वज़न लगभग 420 किलोग्राम होता है।
- मैनेटी सिरेनिया समूह के बड़े, शाकाहारी जलीय स्तनधारी जीव हैं, जो दक्षिण अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और कैरिबियन के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- आहार: डुगोंग शाकाहारी समुद्री स्तनधारी हैं, जो मुख्य रूप से साइमोडोसिया, हेलोफिला, थैलासिया और हेलोड्यूल जैसे समुद्री घास ( के मैदानों पर भोजन करते हैं, जिसके कारण उन्हें ‘समुद्री गाय (sea cows)’ और ‘समुद्र के किसान (farmers of the sea)’ उपनाम दिया गया है।
- आहार: डुगोंग शाकाहारी समुद्री स्तनधारी हैं, जो मुख्य रूप से समुद्री घास जैसे साइमोडोसिया, हेलोफिला, थैलासिया और हेलोड्यूल पर निर्भर रहते हैं। इसी कारण उन्हें "समुद्री गाय" और "समुद्र के किसान" कहा जाता है।
- इन्हें जीवनयापन के लिये प्रतिदिन 30-40 किलोग्राम समुद्री घास (सीग्रस) की आवश्यकता होती है और ये उथले, गर्म तटीय जल जैसे खाड़ियों, लैगूनों और मुहाना में रहते हैं, जो आमतौर पर 10 मीटर से कम गहरे होते हैं।
- वितरण: ये मुख्य रूप से कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी - पाक खाड़ी क्षेत्र (भारत और श्रीलंका के बीच) तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं।
- ‘ए ग्लोबल असेसमेंट ऑफ डुगोंग स्टेटस एंड कंज़रवेशन नीड्स’' शीर्षक वाली रिपोर्ट में बताया गया है कि कच्छ की खाड़ी तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में डुगोंग का अस्तित्व अनिश्चित एवं अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है, जबकि मन्नार-पाक खाड़ी में उनकी आबादी में काफी कमी आई है।
- व्यवहार: डुगोंग एक लंबी उम्र वाली प्रजाति है, जो लगभग 70 वर्ष तक जीवित रह सकती है। यह आमतौर पर अकेला रहता है या माता और उसके बच्चे को एक साथ देखा जाता है तथा ऑस्ट्रेलियाई जल में पाए जाने वाले बड़े समूह भारत में दुर्लभ हैं।
- प्रजनन: डुगोंग 9–10 वर्ष की आयु में प्रजनन क्षमता प्राप्त करते हैं और हर 3–5 वर्ष में एक संतति को जन्म देते हैं। जिसके परिणामस्वरूप उनका प्रजनन चक्र धीमा हो जाता है, जो उनकी जनसंख्या वृद्धि दर को लगभग 5% प्रति वर्ष तक सीमित कर देता है।
- सुरक्षा:
- डुगोंग को IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में संवेदनशील के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- वन्य जीव और वनस्पति की संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के परिशिष्ट I में ड्युगोंग या उनके भागों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा सख्त सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
- भारत में डुगोंग को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के अंतर्गत संरक्षित किया गया है।
- महत्त्व:
- पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु लाभ: डुगोंग की भूमिका इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र के इंजीनियर कहा जाता है, क्योंकि वे समुद्री घास के मैदानों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- ये समुद्री घास के मैदान जैवविविधता को बढ़ावा देते हैं, कार्बन अवशोषण को सुदृढ़ करते हैं और पोषक तत्त्वों का उत्सर्जन करके मछली, शंखजीवी और कृमि सहित समुद्री जीवन का समर्थन करते हैं।
- आर्थिक प्रभाव: डुगोंग वाले समुद्री घास के मैदान प्रति वर्ष कम-से-कम 2 करोड़ रुपये अतिरिक्त मत्स्य उत्पादन में योगदान देते हैं, जो उनकी महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक और आर्थिक मूल्य को दर्शाता है।
- पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु लाभ: डुगोंग की भूमिका इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र के इंजीनियर कहा जाता है, क्योंकि वे समुद्री घास के मैदानों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
डुगोंग आबादी के लिये चुनौतियाँ और संरक्षण उपाय क्या हैं?
चुनौतियाँ
- आबादी में गिरावट: भारतीय जल क्षेत्रों में कभी प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले डुगोंग की संख्या वर्षों में तेज़ी से घटी है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वर्ष 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इनकी अनुमानित संख्या लगभग 200 व्यक्तियों के आसपास थी।
- कुछ पर्यावरणविद्, वर्तमान में डुगोंग की आबादी 400 से 450 के बीच मानते हैं, जबकि अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इनकी संख्या अब भी 250 से कम है, जो दर्शाता है कि आबादी में कोई बड़ी या ठोस वृद्धि नहीं हुई है।
- भारत में डुगोंग की सही संख्या का निर्धारण अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, क्योंकि वे अस्पष्ट तटीय जल में रहने वाली मायावी प्रजाति हैं, जहाँ पारंपरिक सर्वेक्षण विधियाँ प्राय: विश्वसनीय आँकड़े प्रदान करने में असमर्थ रहती हैं।
- प्रदूषण: मरीन पॉल्यूशन बुलेटिन में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पाया गया कि किनारे पर मृत अवस्था में मिले डुगोंग के ऊतकों में आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, पारा और सीसा जैसे विषैले धातु मौजूद थे। इसका मुख्य कारण औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि बहाव और उपचार रहित छोड़ा गया दूषित जल है।
- धीमी प्रजनन दर: डुगोंग का प्रजनन चक्र बहुत धीमा होता है, जिसमें मादा कई वर्षों में केवल एक बार बच्चे को जन्म देती है, जिससे उनका विलुप्ति के प्रति जोखिम और बढ़ जाता है।
- आवास हानि: यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि सीग्रास की घासभूमियाँ बंदरगाह निर्माण, ड्रेजिंग, भूमि पुनर्निर्माण एवं कृषि बहाव, सीवेज तथा औद्योगिक अपशिष्ट से होने वाले प्रदूषण के कारण नष्ट हो रही हैं।
- जलवायु परिवर्तन: इसने डुगोंग की संवेदनशीलता और बढ़ा दी है। बढ़ते समुद्री तापमान, महासागरीय अम्लीकरण और चरम मौसम की घटनाएँ इनके भोजन की उपलब्धता तथा प्रजनन दोनों को प्रभावित कर रही हैं।
संरक्षण उपाय
- प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (CMS): भारत वर्ष 1983 से प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (CMS) का हस्ताक्षरकर्त्ता है और वर्ष 2008 से CMS डुगोंग समझौता ज्ञापन (MoU) का भी भागीदार है।
- वर्ष 2010 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने डुगोंग के संरक्षण के लिये एक टास्क फोर्स का गठन किया।
- डुगोंग संरक्षण रिज़र्व: तमिलनाडु सरकार द्वारा वर्ष 2022 में पाक खाड़ी में 448 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में डुगोंग संरक्षण रिज़र्व स्थापित किया गया, जिसका उद्देश्य सीग्रास की घासभूमियों और डुगोंग की रक्षा करना है।
- डुगोंग पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम: यह एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसे तमिलनाडु, गुजरात और अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह की राज्य सरकारों के सहयोग से प्रारंभ किया गया है।
- सीग्रास हैबिटेट प्रोटेक्शन: डुगोंग संरक्षण के लिये सीग्रास की घासभूमियों की रक्षा और पुनर्स्थापना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिये इन आवासों का मानचित्रण, निगरानी, हानिकारक गतिविधियों पर नियंत्रण तथा स्थानीय समुदायों विशेषकर मछुआरों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
- हानिकारक मत्स्यन प्रथाओं का नियमन: डुगोंग आवासों में गिल नेट और ट्रॉलिंग जैसी विनाशकारी मत्स्यन प्रथाओं को सीमित करने के लिये नियमों का कार्यान्वयन आवश्यक है, ताकि आकस्मिक हानि कम की जा सके और प्रजाति की सुरक्षा हो सके।
- अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में वृद्धि: दीर्घकालिक डुगोंग अध्ययनों के लिये अतिरिक्त वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। इसमें नागरिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान पर ध्यान दिया जाना चाहिये, जबकि टैगिंग एवं ड्रोन जैसी तकनीकें महत्त्वपूर्ण आवासों का पता लगाने तथा निगरानी में सहायता कर सकती हैं।
सीग्रास
- सीग्रास जल के नीचे उगने वाला एक फूलदार पौधा है, जो समुद्री शैवाल (Seaweed) से भिन्न होता है और जिसे आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा माना जाता है।
- सीग्रास की घासभूमियाँ समुद्र-तल को स्थिर रखने, मछलियों की संख्या बनाए रखने में सहायता करने, कार्बन अवशोषित करने और समुद्री जीवों को आश्रय प्रदान करने में सहायता करती हैं।
- भारत में सबसे विस्तृत सीग्रास की घासभूमियाँ तमिलनाडु तट के पास मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य में पाई जाती हैं, जहाँ 13 से अधिक समुद्री घास प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो पूरे हिंद महासागर में सबसे अधिक विविधता है।
- लक्षद्वीप और कच्छ में सीग्रास का वितरण असंगत है तथा बंदरगाह गतिविधियों व प्रदूषण के कारण खतरे में है। आंध्र प्रदेश और ओडिशा में सीग्रास के छोटे, सीमित आवास हैं, जो डुगोंग के लिये उपयुक्त नहीं हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1: डुगोंग क्या हैं और भारत में कहाँ पाए जाते हैं?
डुगोंग समुद्री स्तनधारी हैं, जो कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी–पाक जलडमरूमध्य और अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह में पाए जाते हैं।
2: भारत में डुगोंग की आबादी के लिये मुख्य खतरे क्या हैं?
मुख्य खतरे आबादी में गिरावट, प्रदूषण, धीमी प्रजनन दर, आवास का नुकसान और जलवायु परिवर्तन हैं।
3: डुगोंग पारिस्थितिकी तंत्र और अर्थव्यवस्था में कैसे योगदान करते हैं?
डुगोंग समुद्री घास (सीग्रास) की घासभूमियों को बनाए रखते हैं, जो समुद्री जीवन का समर्थन करती हैं, कार्बन अवशोषण में सहायता करती हैं और मछली उत्पादन में लगभग 2 करोड़ रुपये वार्षिक योगदान देती हैं।
4: भारत में डुगोंग की सुरक्षा के लिये कौन-से संरक्षण उपाय लागू किये जा रहे हैं?
संरक्षण उपायों में समुद्री घास की रक्षा, मत्स्यनियमन, समुदाय की भागीदारी और अनुसंधान बढ़ाना शामिल है।
5: डुगोंग संरक्षण के लिये समुद्री घास (सीग्रास) का क्या महत्त्व है?
समुद्री घास डुगोंग के लिये भोजन और आवास प्रदान करती है, समुद्र-तल को स्थिर रखती है और समुद्री जैव-विविधता को बढ़ावा देती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत में पाए जाने वाले स्तनधारी 'ड्यूगोंग' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)
- यह एक शाकाहारी समुद्री जानवर है।
- यह भारत के पूरे समुद्र तट के साथ-साथ पाया जाता है।
- इसे वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के अधीन विधिक संरक्षण दिया गया है।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3
उत्तर: C
प्रारंभिक परीक्षा
CoP30 में बिग कैट के संरक्षण पर भारत का पक्ष
चर्चा में क्यों?
भारत ने ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (CoP30) के दौरान इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBCA) के उच्च-स्तरीय मंत्रीस्तरीय सत्र में बिग कैट्स की सुरक्षा के लिये मज़बूत वैश्विक सहयोग का आह्वान किया।
- भारत वर्ष 2026 में नई दिल्ली में ग्लोबल बिग कैट्स समिट की मेज़बानी करेगा।
- भारत ने ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर: ए डिकेड ऑफ क्लाइमेट एक्शन’ रिपोर्ट भी जारी की, जिसमें शमन, अनुकूलन और जलवायु वित्त में हुई प्रगति का सार प्रस्तुत किया गया है तथा विकसित एवं सस्टेनेबल भारत 2047 के मार्ग की रूपरेखा बताई गई है।
बिग कैट्स का जलवायु और जैव विविधता के लिये महत्त्व क्या है?
- सर्वोच्च शिकारी: ये शिकार प्रजातियों की संख्या को नियंत्रित करते हैं और वनों एवं घासभूमियों में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं।
- स्वस्थ शिकारी–शिकार संबंध पारिस्थितिकी तंत्र को जलवायु परिवर्तन, सूखे और आवास क्षरण के प्रति अधिक अनुकूल बनाते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य संकेतक: बिग कैट्स की समृद्ध आबादी उच्च गुणवत्ता वाले वनों, पुनर्जीवित होती घासभूमियों और सुचारू रूप से कार्यरत जलग्रहण क्षेत्रों का संकेत देती है।
- प्रकृति-आधारित जलवायु समाधान: बिग कैट के आवासीय परिदृश्य कार्बन को संग्रहित करते हैं, प्राकृतिक पुनरुत्थान को समर्थन देते हैं और दीर्घकालिक जलवायु शमन प्रयासों को मज़बूत करते हैं, जिससे वे महत्त्वपूर्ण प्रकृति-आधारित जलवायु समाधान बन जाते हैं।
- बिग कैट का संरक्षण कार्बन सिंक, जल सुरक्षा, जैव विविधता और मृदा की स्थिरता की रक्षा करता है, जो जलवायु तथा पारिस्थितिक स्वास्थ्य के मुख्य घटक हैं।
इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस (IBCA) के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- IBCA: यह भारत-प्रेरित बहु-देशीय एवं बहु-एजेंसी गठबंधन है, जो 95 बिग कैट रेंज-देशों, संरक्षण में रुचि रखने वाले नॉन-रेंज देशों, वैश्विक संरक्षण साझेदारों तथा बिग कैट के अनुसंधान में संलग्न वैज्ञानिक संगठनों को एक साझा मंच पर लाता है, ताकि सहयोगात्मक कार्यवाही और ज्ञान-विनिमय को सुदृढ़ किया जा सके।
- वर्ष 2023 में प्रोजेक्ट टाइगर की 50वीं वर्षगाँठ के अवसर पर भारत द्वारा प्रारंभ किये गए IBCA को बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया, जिसका सचिवालय भारत में स्थित है।
- IBCA की स्थापना पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के माध्यम से की गई थी।
- सम्मिलित प्रजातियाँ: IBCA का उद्देश्य सात बिग कैट प्रजातियों (बाघ, सिंह, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, चीता, जगुआर, प्यूमा) के संरक्षण को बढ़ावा देना है। भारत इनमें से पाँच प्रजातियों का प्राकृतिक निवास-स्थान है (प्यूमा और जगुआर भारत में नहीं पाए जाते)।
- उद्देश्य: अवैध वन्यजीव व्यापार को रोकना, प्राकृतिक आवासों का संरक्षण करना, वित्तीय और तकनीकी संसाधनों का संकलन करना तथा बिग कैट प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना।
- सदस्यता: यह सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों, उन रेंज देशों जहाँ ये बिग कैट प्रजातियाँ स्वाभाविक रूप से पाई जाती हैं तथा उन नॉन-रेंज देशों के लिये खुला है जो वैश्विक संरक्षण प्रयासों में सहयोग देना चाहते हैं।
- वित्तपोषण: भारत ने IBCA के लिये वर्ष 2023–2028 की अवधि में 150 करोड़ रुपये का योगदान देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है तथा द्विपक्षीय, बहुपक्षीय एवं दाता संगठनों के माध्यम से अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने का प्रयास कर रहा है।
- महत्त्व: यह बिग कैट प्रजातियों के संरक्षण के लिये एक एकीकृत वैश्विक मंच प्रदान करता है।
- यह सहयोग, क्षमता-विकास, दक्षिण–दक्षिण सहयोग तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुदृढ़ बनाता है।
- IBCA प्रकृति-आधारित जलवायु समाधानों के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र की सहनशीलता, कार्बन भंडारण तथा जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण में भी सहायता करता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस (IBCA) क्या है?
IBCA भारत द्वारा शुरू किया गया एक बहु-देशीय और बहु-संस्थागत गठबंधन है, जिसका उद्देश्य सात बड़े बिल्ली प्रजातियों (शेर, बाघ, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, चीता, जगुआर, प्यूमा) का संरक्षण करना, सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देना, तकनीकी सहायता प्रदान करना और संबंधित देशों के लिये वित्त जुटाना है।
2. अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट अलायंस (IBCA) से कितनी प्रजातियाँ और देश जुड़े हैं:
IBCA सात बड़ी बिल्ली प्रजातियों को कवर करता है: बाघ (Tiger), सिंह (Lion), तेंदुआ (Leopard), हिम तेंदुआ (Snow Leopard), चीता (Cheetah), जगुआर (Jaguar) और प्यूमा (Puma)। यह 95 बड़े-बिल्ली वाले देशों के साथ-साथ गैर-रेंज देश, वैज्ञानिक संस्थाएँ, NGO और निजी साझेदारों को एक साथ लाकर समन्वित संरक्षण कार्य को बढ़ावा देता है।
3. बड़ी बिल्लियाँ जलवायु परिवर्तन को कम करने में कैसे योगदान देती हैं?
बड़ी बिल्लियाँ स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत देती हैं; उनके आवासों का संरक्षण जंगलों और घास के मैदानों को बचाता है, जो कार्बन अवशोषक के रूप में काम करते हैं, जल स्रोतों की रक्षा करते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता बढ़ाते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
- एशियाई शेर प्राकृतिक रूप से सिर्फ भारत में पाया जाता है।
- दो-कूबड़ वाला ऊँट प्राकृतिक रूप से सिर्फ भारत में पाया जाता है।
- एक-सींग वाला गैंडा प्राकृतिक रूप से सिर्फ भारत में पाया जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर : (a)
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2024)
- सिंह की कोई विशेष प्रजनन ऋतु नहीं होती है।
- अधिकांश अन्य बड़ी बिल्लियों से भिन्न, चीता दहाड़ता नहीं है।
- नर सिंह से भिन्न, नर तेंदुए गंध चिह्न द्वारा अपना क्षेत्र घोषित नहीं करते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2012)
- ब्लैक नेक क्रेन
- चीता
- उड़न गिलहरी
- हिम तेंदुआ
उपर्युक्त में से कौन-से स्वाभाविक रूप से भारत में पाए जाते हैं?
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (b)
प्रारंभिक परीक्षा
PMFBY का विस्तार: वन्यजीवों के कारण होने वाली क्षति और धान जलमग्नता भी हुए शामिल
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने घोषणा की है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) अब खरीफ सत्र 2026 से वन्यजीवों के हमले और धान की बुवाई में जलभराव के कारण होने वाले फसल नुकसान को भी कवर करेगी।
- वर्ष 2018 में धान की बुवाई में जलभराव (बाढ़ और भारी वर्षा के कारण होने वाला नुकसान) को स्थानीय आपदा (Localised Calamity) श्रेणी से हटा दिया गया था, क्योंकि इसके मूल्यांकन में चुनौतियाँ थीं, लेकिन अब इसे फिर से शामिल किया गया है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) क्या है?
- PMFBY एक केंद्रीय क्षेत्रीय योजना है, जिसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2016 में लॉन्च किया था।
- यह किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, कीटों या रोगों से होने वाली फसल हानि के लिये वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है और किसानों को आर्थिक सहायता देने का उद्देश्य रखती है।
- उद्देश्य:
- पात्रता और कवरेज: निर्धारित क्षेत्रों में अधिसूचित फसलों की खेती करने वाले सभी किसान जिसमें बटाईदार और पट्टेदार किसान भी शामिल हैं, PMFBY के तहत कवरेज के पात्र हैं।
- इसमें भागीदारी स्वैच्छिक है और कुल लाभार्थियों में से 55% गैर-ऋणी किसान हैं।
- किसानों के आवेदनों की संख्या वर्ष 2014-15 में 371 लाख से बढ़कर वर्ष 2024-25 में 1510 लाख हो गई है, जबकि इसी अवधि में गैर-ऋणी किसानों के आवेदन 20 लाख से बढ़कर 522 लाख तक पहुँच गए हैं।
- जोखिम संरक्षण: PMFBY विभिन्न प्रकार के जोखिमों से व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है।
- प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, सूखा, चक्रवात, ओलावृष्टि, भूस्खलन और असमय वर्षा से होने वाले नुकसानों को शामिल करता है।
- कीट एवं रोग संरक्षण: फसलों को कीट प्रकोप और रोगों से होने वाले नुकसान से सुरक्षा प्रदान करता है।
- कटाई पश्चात् हानि (व्यक्तिगत खेत स्तर पर): कटाई के 14 दिनों के भीतर होने वाले नुकसान के लिये मुआवज़ा देता है, विशेषकर उन फसलों के लिये जो ‘कट एंड स्प्रेड’ अवस्था में होती हैं।
- स्थानीयकृत आपदाएँ: स्थानीय स्तर पर होने वाली आपदाओं जैसे ओलावृष्टि, भूस्खलन आदि के लिये व्यक्तिगत खेत-आधारित मुआवज़ा उपलब्ध कराता है।
- बुवाई न हो पाना (अधिसूचित क्षेत्र के आधार पर): यदि किसान प्रतिकूल मौसम की वजह से, तैयारी और खर्च करने के बावजूद बुवाई नहीं कर पाते हैं तो वे बीमित राशि के 25% तक का दावा कर सकते हैं।
- प्रीमियम दर: किसान खरीफ फसलों के लिये 2%, रबी फसलों के लिये 1.5% और वार्षिक वाणिज्यिक या बागवानी फसलों के लिये 5% का किफायती प्रीमियम देते हैं।
- पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के किसानों के लिये सरकार पूर्ण प्रीमियम सब्सिडी प्रदान करती है।
- हानि आकलन हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग
- सैटेलाइट इमेजरी और ड्रोन: फसल क्षेत्र का अनुमान लगाने, उत्पादकता से जुड़े विवादों को सुलझाने और फसल हानियों का आकलन करने के लिये उपयोग किये जाते हैं।
- फसल कटाई प्रयोग (CCEs): CCE-Agri ऐप के माध्यम से डेटा सीधे राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल (NCIP) पर अपलोड किया जाता है, जिससे उपज मूल्यांकन पारदर्शी बनता है।
- YES-TECH (टेक्नोलॉजी पर आधारित यील्ड एस्टिमेशन सिस्टम): यह रिमोट सेंसिंग के आधार पर फसल उपज का आकलन करने में सक्षम बनाता है, ताकि निष्पक्ष और सटीक मूल्यांकन हो सके।
- अतिरिक्त उपकरण: यह स्कीम सही और समय पर असेसमेंट के लिये DigiClaim, CROPIC (फसलों के वास्तविक समय का अवलोकन एवं फोटोग्राफ संग्रह) और WINDS (वेदर इन्फाॅर्मेशन नेटवर्क डेटा सिस्टम) का भी उपयोग करती है।
- त्वरित निपटान: PMFBY फसल कटाई के दो महीनों के भीतर दावा निपटारे की गारंटी देता है, जिससे किसानों को समय पर मुआवज़ा मिल सके और वे ऋणग्रस्त होने से बच पाएँ।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1.PMFBY क्या है?
PMFBY एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जो प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और रोगों के कारण फसल में होने वाली क्षति पर किसानों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है।
2.PMFBY कवरेज के लिये कौन पात्र है?
सभी किसान—जिसमें बटाईदार और किरायेदार किसान भी शामिल हैं—जो अधिसूचित फसलों की खेती निर्धारित क्षेत्रों में करते हैं। इसकी भागीदारी स्वैच्छिक है।
3.खरीफ 2026 से PMFBY में कौन-से नए बदलाव लागू किये जा रहे हैं?
कमज़ोर क्षेत्रों के किसानों को बेहतर संरक्षण देने के लिये जंगली जानवरों के हमलों को स्थानीय जोखिम के रूप में शामिल किया जा रहा है तथा धान की फसल के जलमग्न होने (paddy inundation) के कवरेज को पुनः शुरू किया जा रहा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न
प्रश्न: 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजये: (2016))
- इस योजना के तहत किसानों को वर्ष के किसी भी मौसम में खेती की जाने वाली किसी भी फसल के लिये दो प्रतिशत का एक समान प्रीमियम का भुगतान करना होगा।
- इस योजना में चक्रवातों और बेमौसम बारिश तथा फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को शामिल किया गया है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: b
रैपिड फायर
तीन दशकों बाद गुजरात में बाघ की वापसी
गुजरात के रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य (WLS) में आधिकारिक रूप से बाघ देखा गया है, जो वर्ष 1989 में बाघ के विलुप्त घोषित होने के बाद से राज्य में पहली पुष्टि है।
- अब गुजरात में शेर, बाघ और तेंदुए तीनों मौजूद हैं तथा बन्नी घासभूमि को प्रोजेक्ट चीता के तहत चीता प्रजनन एवं संरक्षण केंद्र के रूप में तैयार किया जा रहा है।
रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य
- स्थान एवं स्थापना: गुजरात के दाहोद ज़िले में मौजूद इस अभयारण्य को रतनमहल स्लॉथ बियर सैंक्चुअरी के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश के झाबुआ और काठीवाड़ा इलाकों की सीमा पर है, जो बाघ की आबादी के लिये जाने जाते हैं।
- इसे वर्ष 1982 में अभयारण्य घोषित किया गया था।
- वनस्पति: इसके निम्न पहाड़ी क्षेत्रों में शुष्क सागौन के वन हैं और बाह्य हिस्सों में शुष्क बाँस के झुरमुटों वाले मिश्रित पर्णपाती वन पाए जाते हैं। यहाँ महुआ और जामुन के वृक्षों की अधिकता है, जो स्लॉथ बियर के मुख्य खाद्य स्रोत हैं।
- जीव-जंतु: यह स्लॉथ बियर के लिये एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण आवास है, जो गुजरात राज्य में इस प्रजाति की सर्वाधिक आबादी को सहारा देता है। यहाँ तेंदुओं की भी बड़ी संख्या पाई जाती है।
- पारिस्थितिक महत्त्व: यह पनम नदी के कैचमेंट का निर्माण करता है, जो दाहोद और पंचमहल ज़िलों में जल संरक्षण और सिंचाई को समर्थन देता है।
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रैपिड फायर
आठ प्रमुख उद्योगों का सूचकांक अक्तूबर 2025
अक्तूबर 2025 में आठ कोर इंडस्ट्रीज का संयुक्त सूचकांक (ICI) 162.4 पर स्थिर रहा, जो अक्तूबर 2024 के समान है।
- आठ प्रमुख उद्योगों का सूचकांक (ICI): ICI एक उत्पादन-आयतन सूचकांक है, जो आठ प्रमुख उद्योगों कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और विद्युत के संयुक्त एवं व्यक्तिगत उत्पादन प्रदर्शन को मापता है।
- इसे वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आर्थिक सलाहकार कार्यालय द्वारा संकलित किया जाता है।
- यह सूचकांक अब वर्ष 2011–12 को आधार वर्ष के रूप में उपयोग करता है, जो औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के अनुरूप है और ये आठ सेक्टर IIP में कुल 40.27% का भार रखते हैं।
- उर्वरक (सबसे कम) < सीमेंट < प्राकृतिक गैस < कच्चा तेल < कोयला < इस्पात < विद्युत < रिफाइनरी उत्पाद (सबसे अधिक)
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP): यह देश में औद्योगिक गतिविधियों की गति को ट्रैक करने के लिये उपयोग किये जाने वाले प्रमुख सूचकांकों में से एक है।
- इसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), (सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, MoSPI) द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
- सूचकांक विभिन्न उद्योगों के उत्पादन स्तर का भारित औसत है, जिसे लैसपेयरेस (Laspeyres) सूत्र का उपयोग करके गणना की जाती है।
- IIP एक क्वांटम सूचकांक है, जिसमें वस्तुओं का उत्पादन भौतिक रूप में व्यक्त किया जाता है, जबकि मशीनरी या शिपबिल्डिंग जैसी वस्तुएँ मूल्य के आधार पर रिपोर्ट की जाती हैं और फिर थोक मूल्य सूचकांक के अनुसार समायोजित की जाती हैं ताकि वास्तविक उत्पादन परिलक्षित हो सके।
- संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी कार्यालय (UNSO) द्वारा अनुशंसित IIP का दायरा खनन, निर्माण, निर्माण कार्य, विद्युत, गैस और जल आपूर्ति शामिल करता है।
- लेकिन डेटा की कमी की वजह से भारत में बनाए गए IIP में निर्माण कार्य, गैस और जल सप्लाई सेक्टर को शामिल नहीं किया गया है।
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