रैपिड फायर
दूसरा क्षेत्रीय मुक्त डिजिटल स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन (RODHS) 2025
भारत ने नई दिल्ली में दूसरे क्षेत्रीय मुक्त डिजिटल स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन (RODHS) 2025 की मेज़बानी की, जिसमें दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को एक साथ लाकर डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) और खुले मानकों के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) को बढ़ावा देने पर चर्चा की गई।
- इसका आयोजन इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन (NeGD), नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (NHA), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय और UNICEF द्वारा किया गया।
- भारत ने अपने DPI स्टैक की ताकत को उजागर किया, जैसे कि आधार, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), CoWIN तथा आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन और इनके सुरक्षित एवं स्केलेबल स्वास्थ्य प्रणालियों में योगदान को प्रदर्शित किया।
- WHO और UNICEF ने सफल डिजिटल स्वास्थ्य अपनाने के लिये विश्वास, कौशल, इंटरऑपरेबिलिटी और समुदाय-केंद्रित डिज़ाइन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
RODHS
- यह WHO दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में खुले, इंटरऑपरेबल और जनता-केंद्रित डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख क्षेत्रीय मंच है।
- यह नीति निर्धारकों, तकनीकी विशेषज्ञों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को एक साथ लाता है ताकि डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, WHO SMART (स्टैंडर्ड्स-बेस्ड, मशीन-रीडेबल, अडैप्टिव, रिक्वायरमेंट्स-बेस्ड, एवं टेस्टेबल) दिशानिर्देशों और AI-सक्षम नवाचार पर चर्चा की जा सके।
- समिट का उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करना और देश-विशिष्ट रोडमैप विकसित करना है, ताकि स्केलेबल डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियाँ बनाई जा सकें जो UHC, स्वास्थ्य सुरक्षा तथा सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का समर्थन करें और साथ ही नैरोबी में आयोजित उद्घाटन समिट की गति को आगे बढ़ाया जा सके।
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फार्माकोजेनोमिक्स
फार्माकोजेनोमिक्स स्वास्थ्य सेवा में क्रांति बनकर उभरा है, इसने परंपरागत रूप से ‘सभी के लिये एक ही दवा’ (one-size-fits-all) के दृष्टिकोण को बदल दिया है। अब व्यक्ति की आनुवंशिक संरचना के आधार पर दवाएँ परामर्शित की जाती है, जिससे दवा की प्रभावकारिता बढ़ती है और हानिकारक प्रतिक्रियाओं की संभावना कम होती है।
- फार्माकोजेनोमिक्स: यह फार्माकोलॉजी (Pharmacology – दवाओं का अध्ययन) और जीनोमिक्स (Genomics – जीनों का अध्ययन) का संयोजन है। यह अध्ययन करता है कि आनुवंशिक विविधताएँ किस प्रकार किसी व्यक्ति की दवा पर प्रतिक्रिया को प्रभावित करती हैं। यह निर्धारित करता है कि कोई दवा प्रभावी होगी, अप्रभावी होंगी या हानिकारक सिद्ध होंगी।
- प्रासंगिकता और लाभ: लगभग 90% लोग कम-से-कम एक क्रियाशील फार्माकोजेनेटिक वेरिएंट रखते हैं। इसका अर्थ है कि यह समस्या असामान्य नहीं बल्कि सामान्य है, इसे स्वास्थ्य सेवा में अनदेखा नहीं किया जा सकता।
- जेनेटिक टेस्टिंग की कीमत अब 200–500 अमेरिकी डॉलर है, जिससे यह अधिक सुलभ हो गया है, यह पुराने रोगों के उपचार के लिये अधिक कॉस्ट-इफेक्टिव है।
- दवाएँ विशेष रोगों से संबंधित प्रोटीन, एंजाइम और RNA के आधार पर बनाई जाएँगी, जिससे प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं के हिसाब से बेहतर दवाओं का परामर्श किया जाएगा।
- जेनेटिक प्रोफाइल डॉक्टर शुरू से ही सबसे असरदार दवा लिखते हैं, जिससे साइड इफेक्ट कम होते हैं और रिकवरी तेज़ी से होती है।
- फार्माकोजेनोमिक्स से संबंधित मुख्य चिंताएँ: लाखों SNP (सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉर्फिज्म) का एनालिसिस करने की आवश्यकता है, इन्हें दवा के रिस्पॉन्स से जोड़ना मुश्किल है।
- जेनेटिक वेरिएंट कुछ रोगों के लिये मौज़ूद इलाज को कम कर सकते हैं।
- छोटे जेनेटिक ग्रुप के लिये दवाएँ बनाना महंगा है, जिससे इन्वेस्टमेंट में रुकावट आती है।
- क्लिनिकल प्रभाव: यह क्लिनिकली सिद्ध हो चुका है कि यह वारफेरिन (ब्लड थिनर) और क्लोपिडोग्रेल (हार्ट ड्रग) जैसी दवाओं के इलाज को बेहतर बनाता है, साइकेट्री और ऑन्कोलॉजी में साइड इफेक्ट को रोकने तथा परिणामों को बेहतर बनाने के लिये अधिक आवश्यक है।
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