प्रारंभिक परीक्षा
राष्ट्रीय आपातकाल के 50 वर्ष
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
12 जून, 1975 को, 50 वर्ष पूर्व, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण मामला, 1975 में इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप 25 जून, 1975 को राष्ट्रीय आपातकाल (NE) घोषित किया गया, जो मार्च 1977 तक जारी रहा।
इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण केस, 1975 के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: यह भारत के संवैधानिक और लोकतांत्रिक इतिहास में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है, जिसकी उत्पत्ति वर्ष 1971 के आम चुनावों से हुई, जहाँ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने समाजवादी नेता राज नारायण को पराजित किया था। इसके बाद चुनावी कदाचार के आधार पर इस परिणाम को न्यायिक चुनौती दी गई।
- चुनावी संदर्भ और आरोप: राज नारायण ने आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने चुनावी लाभ के लिये सरकारी मशीनरी और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया, जिससे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का उल्लंघन हुआ। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर इन कथित कदाचार के आधार पर उनके चुनाव को अमान्य घोषित करने की मांग की।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय: न्यायालय ने इंदिरा गांधी को चुनाव प्रचार के लिये सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाया।
- परिणामस्वरूप, उनके चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया और उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिये अयोग्य ठहरा दिया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय में अपील: इंदिरा गांधी ने उच्च न्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन (स्टे) और उसके निष्कर्षों को चुनौती देने का अवसर मांगा।
- आपातकाल की घोषणा: राजनीतिक संकट के बीच 25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी की सरकार ने राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप नागरिक स्वतंत्रताओं का निलंबन, प्रेस पर सेंसरशिप और चुनावों को स्थगित कर दिया गया।
राष्ट्रीय आपातकाल से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- राष्ट्रीय आपातकाल का परिचय: जब भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध, बाह्य आक्रमण (बाह्य आपातकाल) या सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक आपातकाल) से खतरा हो तो राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है।
- 38वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 ने राष्ट्रपति को युद्ध, बाह्य आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह या उसके आसन्न खतरे के आधार पर आपातकाल की घोषणा करने की अनुमति दी।
वहीं, 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 ने "आंतरिक अशांति (internal disturbance)" को हटाकर उसकी जगह "सशस्त्र विद्रोह (armed rebellion)" शब्द को शामिल किया।
- 38वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 ने राष्ट्रपति को युद्ध, बाह्य आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह या उसके आसन्न खतरे के आधार पर आपातकाल की घोषणा करने की अनुमति दी।
- प्रादेशिक विस्तार: पूर्वोत्तर पूरे देश या उसके केवल एक हिस्से तक विस्तारित हो सकता है। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 ने राष्ट्रपति को पूर्वोत्तर के संचालन को भारत के एक विशिष्ट हिस्से तक सीमित करने में सक्षम बनाया।
- संसदीय अनुमोदन: 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के अनुसार, राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) को दोनों सदनों द्वारा एक माह के भीतर विशेष बहुमत (special majority) से अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। (पहले यह अवधि दो महीने थी, जिसे संशोधन द्वारा घटाकर एक माह कर दिया गया।)
- यदि घोषणा के समय लोकसभा भंग हो जाती है, तो राज्यसभा का अनुमोदन वैध रहता है, लेकिन पुनर्गठित लोकसभा को अपनी पहली बैठक के 30 दिनों के भीतर इसे अनुमोदित करना होगा।
- अवधि: यह 6 महीने तक जारी रहता है और प्रति 6 महीने पर संसद की मंज़ूरी से इसे अनिश्चित काल तक बढ़ाया जा सकता है (44वाँ संशोधन अधिनियम 1978)।
- निरसन: इसे संसद की मंज़ूरी की आवश्यकता के बिना राष्ट्रपति द्वारा कभी भी निरस्त किया जा सकता है।
- लोकसभा राष्ट्रीय आपातकाल को जारी रखने को अस्वीकार करने के लिये प्रस्ताव पारित कर सकती है। यदि इसके कुल सदस्यों का दसवाँ हिस्सा अध्यक्ष (यदि सत्र चल रहा हो) या राष्ट्रपति (यदि सत्र नहीं चल रहा हो) को लिखित सूचना देता है, तो 14 दिनों के भीतर विशेष बैठक आयोजित की जानी चाहिये। प्रस्ताव को साधारण बहुमत से पारित किया जाना चाहिये।
- न्यायिक समीक्षा: 38वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को न्यायिक समीक्षा से बाहर (immune) कर दिया था अर्थात् इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। हालाँकि बाद में 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा इस प्रावधान को निरस्त कर दिया गया और आपातकाल की घोषणा को न्यायिक समीक्षा के अधीन कर दिया गया।
- मिनर्वा मिल्स मामला, 1980: इस ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) की घोषणा दुराशयपूर्ण (mala fide) हो या अप्रासंगिक/बाह्य तथ्यों पर आधारित हो या फिर वह असंगत या विकृत (absurd or perverse) हो, तो उसे चुनौती दी जा सकती है और यह न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
संवैधानिक ढाँचे पर राष्ट्रीय आपातकाल लागू करने के क्या निहितार्थ हैं?
- केंद्र-राज्य संबंधों पर:
- कार्यपालिका: केंद्र सरकार को किसी भी मामले पर राज्यों को कार्यपालिका संबंधी निर्देश देने का अधिकार प्राप्त होता है, जिससे राज्य सरकारें केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में आ जाती हैं, यद्यपि उन्हें निलंबित नहीं किया जाता।
- विधान मंडल: राज्य विधान मंडल को निलंबित नहीं किया जाता है, लेकिन संसद राज्य सूची में किसी भी विषय पर कानून बना सकती है। आपातकाल समाप्त होने के छह महीने पश्चात ऐसे कानून लागू नहीं होते। यदि संसद सत्र में नहीं है, तो राष्ट्रपति राज्य के विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, संसद संघ सूची से बाहर के मामलों के संबंध में केंद्र या उसके अधिकारियों को शक्तियाँ प्रदान कर सकती है और कर्त्तव्य निर्दिष्ट कर सकती है।
- वित्तीय: राष्ट्रपति केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकते हैं, जिसमें हस्तांतरण को कम करना या रद्द करना शामिल है। इस प्रकार के संशोधन उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक प्रभावी रहते हैं, जिसमें आपातकाल की समाप्ति होती है और प्रत्येक आदेश को संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक होता है।
- विधानमंडल का कार्यकाल :
- लोकसभा: इसे संसद के कानून द्वारा एक बार में एक वर्ष के लिये (किसी भी अवधि के लिये) अपने सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे बढ़ाया जा सकता है।
- राज्य विधान सभा: संसद किसी राज्य विधान सभा के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष के लिये, किसी भी अवधि के लिये बढ़ा सकती है। हालाँकि आपातकाल समाप्त होने के बाद यह विस्तार छह महीने से अधिक नहीं हो सकता।
- मौलिक अधिकारों पर: अनुच्छेद 358 युद्ध या बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित राष्ट्रीय आपातकाल की पूरी अवधि के लिये अनुच्छेद 19 को स्वचालित रूप से निलंबित कर देता है। यह केवल अनुच्छेद 19 पर तथा पूरे देश पर लागू होता है।
- अनुच्छेद 359 के अनुसार आपातकाल की संपूर्ण अवधि या उससे कम अवधि के लिये मौलिक अधिकारों (FR) को निलंबित करने हेतु राष्ट्रपति के आदेश की आवश्यकता होती है। यह अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर आदेश में उल्लिखित सभी मौलिक अधिकारों पर लागू होता है, यह आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की आपात स्थितियों तथा देश के कुछ हिस्से या पूरे देश पर लागू हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित में कौन-सी लोकसभा की अनन्य शक्ति (याँ) है/हैं ? (2022)
नीचे दिये कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. यदि भारत का राष्ट्रपति किसी विशेष राज्य के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत प्रदत्त अपनी शक्ति का प्रयोग करता है, तो (2018) (a) राज्य की विधानसभा स्वतः विघटित हो जाती है। उत्तर: (B) |
रैपिड फायर
इलायची में घोंघा संक्रमण
स्रोत: द हिंदू
केरल के इडुक्की के इलायची उत्पादक क्षेत्रों में (समर रेन) गर्मी के मौसम के दौरान भारी बारिश के बाद छोटे घोंघों के हमले का खतरा उत्पन्न हो गया है। ये घोंघे नई मंजरी, फूलों और कोमल फलियों को खाते हैं, जिससे फसल को नुकसान, उपज में कमी और गुणवत्ता में गिरावट होती है।
- किसान घोंघे के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिये (अंतिम उपाय के रूप में) मेटलडिहाइड जैसे रासायनिक स्प्रे का उपयोग कर रहे हैं।
इलायची (एलेटेरिया इलायची ):
- परिचय: इसे "मसालों की रानी" के रूप में जाना जाता है, यह जिंजिबेरेसी (अदरक) परिवार का एक अत्यधिक सुगंधित मसाला है।
- यह पश्चिमी घाट के सदाबहार वर्षावनों में प्रमुख रूप से पाई जाती है।
- जलवायु परिस्थितियाँ: इसके लिये 1500-4000 मिमी वर्षा, 10°C से 35°C के बीच तापमान और 600-1500 मीटर की ऊँचाई तथा अम्लीय, दोमट, ह्यूमस युक्त मिट्टी की आवश्यकता होती है जिसका pH मान 5.0-6.5 हो।
- उत्पादन के प्रमुख केंद्र: केरल भारत के इलायची उत्पादन में 58% का योगदान देता है, जिसमें इडुक्की अग्रणी ज़िला है।
- कर्नाटक में इसे कोडगु और चिकमंगलूर जैसे ज़िलों में उगाया जाता है।
- तमिलनाडु में इसकी खेती नीलगिरी पहाड़ियों में की जाती है।
- हाल ही में पहचानी गई इलायची प्रजातियों में एलेटेरिया फेसिफेरा (पेरियार टाइगर रिज़र्व, इडुक्की) और एलेटेरिया ट्यूलिपिफेरा (अगस्त्यमलाई पहाड़ियाँ, तिरुवनंतपुरम और मुन्नार, इडुक्की) शामिल हैं।
भारत में मसाला बाज़ार: भारत ने वित्त वर्ष 2022-23 में 11.14 मिलियन टन मसालों का उत्पादन किया, जिसमें 109 ISO-सूचीबद्ध मसालों में से 75 की खेती की गई।
- मिर्च, जीरा, हल्दी, अदरक और धनिया का कुल उत्पादन में 76% हिस्सा था।
- प्रमुख उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और आंध्र प्रदेश शामिल हैं।
- वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत ने लगभग 14 लाख टन मसालों का निर्यात किया, जिसमें चीन, बांग्लादेश, पश्चिम एशिया और अमेरिका जैसे प्रमुख बाज़ारों में मिर्च का सबसे अधिक निर्यात (31%) रहा।
और पढ़ें: भारत के मसाला उद्योग का सुदृढ़ीकरण
रैपिड फायर
डंक रहित मधुमक्खियाँ
स्रोत: डी.टी.ई.
नगालैंड में शोधकर्त्ताओं ने देशी डंक रहित मधुमक्खियों — टेट्रागोनुला इरिडिपेनिस और लेपिडोट्रिगोना आर्किफेरा को सुरक्षित एवं प्रभावी परागणकर्त्ता पाया है, जो फसल उत्पादन में वृद्धि करती हैं तथा औषधीय शहद का उत्पादन करती हैं। ये पूर्वोत्तर भारत के लिये उपयुक्त हैं और पारंपरिक मधुमक्खियों की तुलना में अधिक सुरक्षित मानी जाती हैं।
- डंक रहित मधुमक्खी: ये छोटे, यूसोशल कीट हैं, जो एपिडे (Apidae) कुल के मेलिपोनीनी (Meliponini) जनजाति से संबंधित हैं और सामान्यतः उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
मुख्य विशेषताएँ:
- पहचान संबंधी विशेषताएँ: डंक रहित मधुमक्खियाँ छोटी, काली या गहरे रंग की शरीर वाली तथा पीले धब्बे वाली होती हैं।
- इनके दो जोड़ी पंख होते हैं, छोटी ऐंटीना, बड़े अंडाकार नेत्र, अंडाकार चेहरा और ठुड्डी नुकीली होती है।
- आवास और घोंसल: ये पेड़ों के तनों, दीमकों के टीले, दीवारों की दरारों या लकड़ी के बक्सों में घोंसला बनाती हैं।
- घोंसले राल, मिट्टी और मोम से बने होते हैं, जिनमें शहद के पात्र तथा ब्रूड सेल सर्पिल या अनियमित रूप में व्यवस्थित रहते हैं।
- आहार: इनका आहार अमृत और पराग होता है। पराग का उपयोग प्रोटीन बॉल बनाने में किया जाता है, जो लार्वा की वृद्धि के लिये आवश्यक होते हैं। कुछ प्रजातियाँ सड़े हुए फलों या मृत जीवों को भी खाती हैं।
- प्रजनन और जीवन चक्र: रानी मधुमक्खी केवल एक बार संभोग करती है। निषेचित अंडों से पोषण के आधार पर श्रमिक या रानी मधुमक्खियाँ विकसित होती हैं, जबकि अनिषेचित अंडे ड्रोन बन जाते हैं। लार्वा सीलबंद मोमयुक्त कोशिकाओं के भीतर प्यूपा में परिवर्तित होते हैं।
- रक्षा तंत्र: इनमें कार्यात्मक डंक नहीं होता, लेकिन ये जबड़ों से काटती हैं। कुछ प्रजातियाँ, जैसे ट्राइगोना, काटने के माध्यम से विष भी प्रविष्ट कर सकती हैं।
- परागण में भूमिका: डंक रहित मधुमक्खियाँ भिनभिनाने वाली परागणकर्त्ता होती हैं, जो उष्णकटिबंधीय पौधों और फसलों के परागण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य एवं कृषि में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
और पढ़ें: मधुमक्खियों के लिये खतरा, KVIC का शहद मिशन
रैपिड फायर
गहरे समुद्रतल का अन्वेषण
स्रोत: TH
एक अध्ययन के अनुसार पृथ्वी के गहरे समुद्र तल का लगभग 99.999% भाग, जो 200 मीटर की गहराई से नीचे पृथ्वी के दो-तिहाई क्षेत्र को कवर करता है, अभी भी अदृश्य बना हुआ है।
- 97% से अधिक गहरे समुद्र में गोते लगाने का काम सिर्फ 5 देशों (अमेरिका, जापान, न्यूज़ीलैंड, फ्राँस और जर्मनी) द्वारा किया जाता है।
- भू-आकृति विज्ञान संबंधी विशेषताओं जैसे पर्वतमालाओं और घाटियों की ओर अधिक ध्यान दिया गया है, जबकि विशाल अथाह मैदान, जो समुद्र तल के अधिकांश भाग को कवर करते हैं, का अध्ययन कम हुआ है।
गहरे महासागर (Deep Ocean):
- गहरे महासागर से तात्पर्य 200 मीटर से अधिक गहराई पर स्थित महासागर के उस भाग से है, जहाँ सूर्य का प्रकाश प्रवेश नहीं कर पाता है।
- गहरे महासागर ठंडे होते हैं, जिनका औसत तापमान केवल 4°C होता है। इसके अलावा, गहरे महासागर में अत्यधिक दाब होता है, जो पृथ्वी के वायुमंडल के दाब से 40 से 110 गुना अधिक होता है।
- गहरे महासागरीय क्षेत्र में प्रकाश की कमी के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया नहीं होती है तथा पोषक तत्त्वों की भी कमी होती है, फिर भी वहाँ की कठोर परिस्थितियों में जीवन पनपता रहता है।
- मेसोपेलाजिक क्षेत्र (200-1,000 मीटर) में वैश्विक मछली बायोमास का लगभग 90% पाया जाता है । इसमें मछली, स्क्विड और क्रिल जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं ।
- भारत ने गहरे महासागर के संसाधनों की खोज और उनका स्थायी दोहन करने के लिये वर्ष 2021 में डीप ओशन मिशन (DOM) शुरू किया।
- अन्वेषण का महत्त्व: गहरे सागर का अन्वेषण ऊर्जा के संभावित स्रोत (जैसे- तेल, गैस, मीथेन हाइड्रेट और समुद्री धाराएँ), नए एंटीबायोटिक्स का एक आशाजनक भंडार, बहुधात्विक नोड्यूलों की खोज तथा जलवायु परिवर्तन को समझने, उसका पूर्वानुमान लगाने एवं उसके प्रभाव को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
और पढ़ें: डीप ओशन मिशन (DOM)
रैपिड फायर
IREDA को 'उत्कृष्ट' रेटिंग
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत एक PSU) को वित्त वर्ष 2023-24 में विद्युत तथा NBFC क्षेत्रों में इसके असाधारण प्रदर्शन के लिये लोक उद्यम विभाग (DPE) द्वारा 'उत्कृष्ट' रेटिंग दी गई है।
- वित्त वर्ष 2023-24 के लिये अपने वार्षिक प्रदर्शन के आधार पर IREDA को लगातार चौथे वर्ष 'उत्कृष्ट' रेटिंग प्राप्त हुई।
- इस मान्यता से हरित वित्तपोषण में IREDA के नेतृत्व पर प्रकाश पड़ता है तथा धारणीय ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देकर राष्ट्र निर्माण के प्रति इसकी प्रतिबद्धता की पुष्टि होती है।
IREDA:
- यह नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र की एक नवरत्न कंपनी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1987 में एक गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान के रूप में की गई थी।
- यह हरित वित्तपोषण के क्षेत्र में भारत की सबसे बड़ी NBFC है, जो नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं को बढ़ावा देने, विकसित करने तथा वित्तपोषित करने के लिये समर्पित है। इसके साथ ही यह बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों से ऋण को प्रोत्साहित करके इस क्षेत्र को समर्थन देने पर केंद्रित है।
DPE रेटिंग:
- वित्त मंत्रालय के अधीन DPE द्वारा CPSE के प्रदर्शन, स्वायत्तता और वित्त पर नीतियाँ तैयार करने के साथ लोक उद्यम सर्वेक्षण प्रकाशित किया जाता है।
- DPE रेटिंग्स द्वारा वार्षिक रूप से लाभप्रदता एवं दक्षता जैसे समझौता ज्ञापन लक्ष्यों के आधार पर CPSE का मूल्यांकन किया जाता है तथा जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के क्रम में उन्हें खराब प्रदर्शन से लेकर उत्कृष्ट तक का दर्जा दिया जाता है।
भारत की नवीकरणीय ऊर्जा पहल:
और पढ़ें: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का दोहन