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एडिटोरियल

  • 30 May, 2025
  • 26 min read
शासन व्यवस्था

डिजिटल युग में डेटा गवर्नेंस

यह एडिटोरियल 29/05/2025 को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “Publicly funded data must be public” पर आधारित है। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि AI-संचालित, पारदर्शी और सुरक्षित अभिगम के माध्यम से भारत के विशाल, विस्तृत सार्वजनिक डेटा को अनलॉक करने से नवाचार, शासन एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल इंडिया पहल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023, शिक्षा के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE), ड्राफ्ट डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियम, 2025, दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील अधिकरण, डेटा स्थानीयकरण, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, डिजिटल निरक्षरता, यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन

मेन्स के लिये:

डिजिटल वर्ल्ड में डेटा संरक्षण और शासन का महत्त्व।

आज के डिजिटल युग में, डेटा नवाचार, आर्थिक विकास और शासन को शक्ति प्रदान करने वाली एक महत्त्वपूर्ण परिसंपत्ति है। डिजिटल इंडिया पहल जैसी पहलों ने विशाल, विस्तृत डेटासेट तैयार किये हैं, जबकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता डेटा एनालिसिस और इनसाइट्स को बढ़ाती है। इस क्षमता को अनलॉक करने के लिये सुदृढ़ डेटा सुरक्षा और जवाबदेह संस्थानों की आवश्यकता है। भारत का डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 और प्रस्तावित डेटा संरक्षण बोर्ड गोपनीयता, पारदर्शिता और नवाचार को संतुलित करने का लक्ष्य रखता है। स्थायी डिजिटल विकास और प्रतिस्पर्द्धी लाभ को बढ़ावा देते हुए अधिकारों की रक्षा के लिये प्रभावी रूपरेखाएँ स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है।

डिजिटल युग में डेटा सबसे मूल्यवान संपत्ति क्यों है? 

  • डेटा डिजिटल परिवर्तन का ईंधन है: आज के परस्पर जुड़े विश्व में, डिजिटल डेटा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रणालियों की आधारभूत परिसंपत्ति बन गया है।
    • उदाहरण के लिये, भारत में आधार डिजिटल पहचान कार्यक्रम, 1.3 बिलियन से अधिक नामांकनों के साथ, विश्व की सबसे बड़ी बायोमेट्रिक ID प्रणाली है।
      • यह डिजिटल भुगतान (UPI), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) और ई-केवाईसी प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है तथा सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्र की सेवाओं को सुव्यवस्थित करता है।
    • इससे विभिन्न क्षेत्रों और उद्योगों में नवाचार, वैयक्तिकृत सेवाएँ, कुशल प्रशासन एवं व्यावसायिक निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
  • विस्तृत डेटा सटीकता को सक्षम बनाता है: डिजिटल इंडिया और सार्वजनिक सेवा डिजिटलीकरण जैसे कार्यक्रमों के तहत सरकारी विभागों द्वारा अत्यधिक विस्तृत डेटासेट तैयार किये जाते हैं।
    • विस्तृत सार्वजनिक डेटा से तात्पर्य बार-बार एकत्रित किये जाने वाले विस्तृत, सूक्ष्म-स्तरीय डेटासेट से है, जो सटीक विश्लेषण के लिये छोटी भौगोलिक या जनसांख्यिकीय इकाइयों में विशिष्ट जानकारी प्रदान करता है।
    • इनमें स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी अवसंरचना और कराधान पर गतिशील डेटा शामिल होता है, जिसे प्रायः वास्तविक काल में अद्यतन किया जाता है।
      • उदाहरण के लिये, सत्र 2023-24 में, शिक्षा के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE) ने 1.5 मिलियन स्कूलों को कवर किया, लक्षित शैक्षिक हस्तक्षेपों का समर्थन करने के लिये नामांकन, बुनियादी अवसंरचना, शिक्षक उपस्थिति एवं अधिगम के परिणामों पर विस्तृत डेटा प्रदान किया।
  • वैकल्पिक स्रोत मूल्य विस्तार करते हैं: निजी कंपनियाँ खुफिया जानकारी के लिये सैटेलाइट इमेजरी, लेन-देन रिकॉर्ड और ओपन-सोर्स स्क्रैपिंग जैसे वैकल्पिक डेटा का उपयोग करती हैं।
    • इससे सूचना का दायरा बढ़ता है और स्वतंत्र एवं वास्तविक दुनिया के संकेतकों के साथ निर्णय लेने की प्रक्रिया समृद्ध होती है।
    • उदाहरण के लिये, क्रॉपइन जैसी निजी फर्में वास्तविक काल फसल स्वास्थ्य विश्लेषण प्रदान करने के लिये उपग्रह और IoT डेटा का उपयोग करती हैं, 5 मिलियन से अधिक भारतीय किसानों को सेवा प्रदान करती हैं तथा परिशुद्ध कृषि एवं जोखिम प्रबंधन में सुधार करती हैं।
  • AI डेटा एनालिसिस को गति प्रदान करता है: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रणालियाँ विशाल डेटासेट को संसाधित करती हैं, पैटर्न का पता लगाती हैं और असाधारण दक्षता के साथ पूर्वानुमानात्मक अंतर्दृष्टि उत्पन्न करती हैं।
    • इन उपकरणों ने डेटा तक पहुँच को लोकतांत्रिक बना दिया है, विशेष रूप से जटिल उद्योग मूल्य शृंखलाओं को समझने में जूनियर विश्लेषकों की सहायता की है।
  • पब्लिक डेटा से शासन में सुधार होता है: उच्च आवृत्ति, मशीन रीडेबल पब्लिक डेटासेट का प्रकाशन पारदर्शिता, जवाबदेही और बेहतर नीति परिणामों को समर्थन देता है।
    • ओपन गवर्नमेंट डेटा प्लेटफॉर्म इंडिया 500,000 से अधिक डेटासेट प्रदान करता है, जिसमें वास्तविक काल की वायु गुणवत्ता, वर्षा और बिजली डेटा शामिल हैं, जो गैर सरकारी संगठनों को प्रदूषण की निगरानी करने तथा पर्यावरण अनुपालन को बढ़ावा देने में मदद करता है।
  • आर्थिक संभावनाओं का दोहन: भारत के सार्वजनिक आँकड़ों में अप्रयुक्त आर्थिक मूल्य समाहित है, जिससे बेहतर समष्टि आर्थिक पूर्वानुमान और क्षेत्रीय नवाचार संभव हो सकेगा।
    • कर संबंधी आँकड़ों से भारत के राजकोषीय व्यवहार और कॉर्पोरेट कर गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण रुझान पहले ही उजागर हो चुके हैं।
    • उदाहरण के लिये, वस्तु एवं सेवा कर (GST) डेटा एनालिसिस से पता चला है कि महामारी के बाद क्षेत्रीय सुधार हुआ है, जिससे लक्षित प्रोत्साहन को मदद मिली है; वित्त मंत्रालय ने विनिर्माण और ई-कॉमर्स वृद्धि के कारण वित्त वर्ष 2024 में 15% GST राजस्व वृद्धि की सूचना दी है।

भारत कानूनों और नीतियों के माध्यम से किस प्रकार प्रतिक्रिया दे रहा है? 

  • DPDP अधिनियम, 2023: भारत ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा को विनियमित करने और उपयोगकर्त्ता अधिकारों की रक्षा के लिये डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 अधिनियमित किया।
    • यह डेटा प्रिंसिपल्स (नागरिकों) और डेटा फिड्युशरीज़ (प्रोसेसरों) की भूमिकाओं को परिभाषित करता है तथा उनके अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को रेखांकित करता है।
  • सरकार की भूमिका: इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय कार्यान्वयन नियमों का प्रारूप तैयार करने तथा उन्हें अधिसूचित करने के लिये जिम्मेदार है।
  • डेटा संरक्षण बोर्ड के कार्य: भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड (DPBI) डेटा उल्लंघनों की जाँच करता है, विवादों का समाधान करता है और दंड का प्रावधान करता है।
  • सहमति कार्यढाँचा और डेटा अधिकार: आपातकालीन स्थितियों और राज्य सेवा वितरण के लिये छूट के साथ, वैध प्रसंस्करण के लिये सहमति आवश्यक है।
    • डेटा प्रिंसिपल्स को अपने डेटा तक एक्सेस प्राप्त करने, उसमें सुधार करने या उसे मिटाने का अधिकार है तथा अक्षमता या मृत्यु की स्थिति में प्रतिनिधि नियुक्त करने का भी अधिकार है।
  • डेटा न्यासियों के कर्त्तव्य: न्यासियों को डेटा की सटीकता, सुरक्षा उपाय और उपयोग के बाद डेटा को मिटाना सुनिश्चित करना चाहिये, जब तक कि कानूनी रूप से इसे बनाए रखना आवश्यक न हो।
    • उन्हें उल्लंघनों की सूचना तुरंत DPBI और प्रभावित व्यक्तियों दोनों को देनी होगी
  • सहमति प्रबंधक और शिकायत निवारण: कानून में सहमति प्रबंधकों, पंजीकृत संस्थाओं को शामिल किया गया है जो उपयोगकर्त्ताओं को सहमति का प्रबंधन करने, वापस लेने या संशोधित करने में मदद करते हैं।
  • बच्चों के डेटा के लिये प्रावधान: 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के डेटा को संसाधित करने से पहले न्यासी को माता-पिता की सत्यापन योग्य सहमति प्राप्त करनी होगी।
  • प्रमुख डाटा न्यासियों का विनियमन: वे संस्थाएँ जो बड़े या संवेदनशील डाटा सेट्स का प्रसंस्करण करती हैं, सरकार द्वारा 'प्रमुख डाटा न्यासी' घोषित की जा सकती हैं।      
    •  ऐसी संस्थाओं को डाटा संरक्षण प्रभाव मूल्यांकन (Data Protection Impact Assessment) करना आवश्यक होगा, डाटा संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी तथा स्वतंत्र ऑडिट्स से गुजरना होगा।
  • छूट का दायरा और सरकारी शक्तियाँ: अधिनियम राष्ट्रीय हित, न्यायिक उद्देश्यों और उपयोगकर्त्ता अधिकारों के आवेदन के बिना अनुसंधान के लिये राज्य एजेंसियों को छूट देता है।
    • ऐसी शक्तियाँ विवेकाधीन हैं और उनमें न्यायिक निगरानी का अभाव है, जिससे नियामकीय अतिक्रमण की चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • सीमापार स्थानांतरण और स्थानीयकरण: यह अधिनियम अधिसूचित देशों पर प्रतिबंधों के साथ भारत के बाहर डेटा फ्लो की अनुमति देता है।
    • अन्य वैश्विक व्यवस्थाओं के विपरीत, यह डेटा लोकलाइज़ेशन को अनिवार्य नहीं बनाता है या डेटा स्टोरेज प्रोटोकॉल निर्दिष्ट नहीं करता है।

डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • गोपनीयता और पारदर्शिता में सामंजस्य स्थापित करना: अनुच्छेद 21 के तहत निजता के मूल अधिकार और अनुच्छेद 19 के तहत सूचना के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करना कठिन है।
    • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम की धारा 44(3) व्यापक सार्वजनिक हित में भी सूचना तक पहुँच को प्रतिबंधित करती है।
  • राज्य निगरानी संबंधी चिंताएँ: अधिनियम राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और सार्वजनिक व्यवस्था के लिये सरकार को छूट देता है, जिससे अनियंत्रित निगरानी संभव हो जाती है।
    • अस्पष्ट छूट प्रावधानों में प्रक्रियागत सुरक्षा का अभाव है तथा इससे संवैधानिक गोपनीयता सुरक्षा का उल्लंघन होने का खतरा है।
  • RTI को कमज़ोर करना: यह संशोधन सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(j) को रद्द कर देता है, जिससे इसकी पारदर्शिता संबंधी अनिवार्यता कमज़ोर हो जाती है।
    • यह उस प्रावधान को हटा देता है जो संसद या राज्य विधानमंडलों को अस्वीकार न किये जा सकने वाले डेटा तक सार्वजनिक पहुँच की गारंटी देता है।
  • कमज़ोर नियामक स्वतंत्रता: भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल 2 वर्ष का है, जबकि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) जैसे नियामकों का कार्यकाल 5 वर्ष का है।
    • सरकार-प्रधान नियुक्ति समितियाँ संस्थागत स्वतंत्रता को सीमित करती हैं, जिससे अनुकरणीय प्रवर्तन और जनविश्वास दोनों ही प्रभावित होते हैं।
  • अस्पष्ट नियुक्तियाँ और प्रक्रियाएँ: चयन समितियों में विविधता का अभाव नियामक संस्थाओं में नियुक्तियों में पक्षपातपूर्ण पूर्वाग्रह के जोखिम को बढ़ाता है।
    • वर्तमान कार्यढाँचे में नियुक्तियों के औचित्य के प्रकाशन सहित पारदर्शी प्रक्रियाएँ अनुपस्थित हैं।
  • नियम कार्यान्वयन में विलंब: अधिनियम- 2023 को लागू करने के लिये वर्ष 2025 के नियमों को अधिसूचित करने में 16 महीने का विलंब हुआ।
    • इससे प्रवर्तन अवरुद्ध हो गया, शिकायतें अनसुलझी रह गईं तथा नागरिकों के डेटा अधिकारों की महत्त्वपूर्ण सुरक्षा में विलंब हुआ।
  • सहमति-आधारित मॉडल की सीमाएँ: यह अधिनियम डेटा प्रसंस्करण के लिये नोटिस और सहमति पर निर्भर करता है, यह मानते हुए कि उपयोगकर्त्ता जोखिमों को समझते हैं तथा सूचित विकल्प का प्रयोग करते हैं।
    • उपयोगकर्त्ताओं और निगमों के बीच व्यापक डिजिटल निरक्षरता एवं सूचना विषमता को देखते हुए यह अव्यवहारिक है।
  • डिजिटल मैनीपुलेशन रिस्क: कंपनियाँ प्रायः डार्क पैटर्न और मैनीपुलेटिंग इंटरफेस का उपयोग करती हैं, जिससे वास्तविक सहमति तंत्र अमान्य हो जाता है।
    • ये प्रथाएँ उपयोगकर्त्ता के व्यवहार का शोषण करती हैं तथा व्यक्तिगत डेटा प्रशासन में एजेंसी और विकल्प को कम करती हैं।
  • बच्चों के डेटा की भेद्यता: बच्चों के डेटा के लिये माता-पिता की पहचान का अनिवार्य सत्यापन अव्यावहारिक और अपवर्जनकारी है।
    • यह गैर-दस्तावेज़ी परिवारों की वास्तविकताओं की उपेक्षा करता है तथा भारत में डिजिटल डिवाइड को बढ़ाता है।
  • बाल-सुरक्षा प्रावधानों का क्षरण: विधेयक के पूर्व प्रारूपों में बच्चों की व्यवहार निगरानी और प्रोफाइलिंग पर रोक संबंधी प्रावधान शामिल थे, जिन्हें हटा दिया गया है।
    • वर्तमान नियमों में विज्ञापन लक्षित करने (ad targeting) के लिये छूट दी गई है, जिससे बिना समुचित औचित्य के बच्चों के डेटा की सुरक्षा कमज़ोर पड़ जाती है।
  • महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्युसरी के लिये अपरिभाषित मानदंड: कानून के तहत महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्युसरी के रूप में कौन अर्हता प्राप्त करता है, इसके लिये कोई स्पष्ट मानक नहीं है।
    • यह अस्पष्टता उच्च जोखिम वाले डेटा प्रोसेसरों के लिये असंगत प्रवर्तन और सीमित जवाबदेही का कारण बनती है।
  • नवोन्मेषी हानियों की उपेक्षा:  भारत का डेटा संरक्षण अधिनियम ऐसी हानियों को मान्यता नहीं देता जो व्यक्ति की सहमति के बिना होती हैं, जैसे कि 'एल्गोरिदमिक भेदभाव', 'पहचान की चोरी' या 'वित्तीय धोखाधड़ी'।  
  • सीमा-पार डेटा विनियमन में खामियाँ: डेटा को विदेशों में स्थानांतरित किया जा सकता है तथा सरकार स्पष्ट मानदंडों के बिना केवल प्रतिबंधित क्षेत्राधिकार निर्दिष्ट कर सकती है।
    • यह कमज़ोर विनियमन नागरिकों की गोपनीयता के उल्लंघन को उजागर करता है तथा अंतर्राष्ट्रीय डेटा संप्रभुता को कमज़ोर करता है।
  • RTI वेब पोर्टल गोपनीयता का उल्लंघन करते हैं: पंजाब, ओडिशा और अन्य राज्यों में राज्य द्वारा संचालित RTI पोर्टल आधार या डिवाइस लोकेशन की मांग करते हैं, जो गोपनीयता नियमों का उल्लंघन है।
    • इस तरह के अनिवार्य खुलासे, डेटा संग्रहण की आनुपातिकता और आवश्यकता पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन करते हैं।

एक सुदृढ़ डेटा गवर्नेंस कार्यढाँचे के लिये आगे की राह क्या होनी चाहिये?

  • डेटा स्थानांतरण के लिये वैश्विक मानकों का अंगीकरण: भारत को सुरक्षित डेटा फ्लो के लिये यूरोपीय संघ-संयुक्त राज्य अमेरिका डेटा गोपनीयता फ्रेमवर्क जैसी सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
    • इससे वैश्विक अंतर-संचालनीयता बढ़ेगी, विश्वास को बढ़ावा मिलेगा और सीमा-पार डिजिटल व्यापार संभव होगा।
  • संस्थागत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना: भारतीय डेटा संरक्षण बोर्ड को लंबी अवधि और विविध नियुक्तियों के माध्यम से स्वायत्तता एवं जवाबदेही के लिये पुनर्गठित किया जाना चाहिये।
    • न्यायपालिका, विधायिका और नागरिक समाज को शामिल करने से निष्पक्षता सुनिश्चित होती है तथा हितधारकों का विश्वास बढ़ता है।
  • AI-गोपनीयता टास्क फोर्स का गठन: एक गतिशील आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और गोपनीयता टास्क फोर्स (संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ स्टेट लेजिस्लेचर (NCSL) की भांति) उभरते जोखिमों की पहचान कर सकती है तथा नियामक उपायों का सह-विकास कर सकती है।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत तेजी से विकसित हो रहे डेटा व्यवस्था परिदृश्य में अनुकूलनीय और प्रौद्योगिकी-तटस्थ बना रहेगा।
  • सरकारी छूट को परिभाषित करना: ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ और ‘संप्रभुता’ जैसे शब्दों को कानूनी रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये तथा दुरुपयोग से बचने के लिये न्यायिक रूप से समीक्षा योग्य होना चाहिये।
    • गोपनीयता और राष्ट्रीय हित के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये छूट प्रदान करने की पारदर्शी प्रक्रिया आवश्यक है।
  • बच्चों के डेटा के लिये सुरक्षा में संशोधन: सरकार को बिना किसी छूट के बच्चों के डेटा की व्यवहारिक निगरानी, ​​प्रोफाइलिंग और लक्ष्यीकरण पर प्रतिबंध लगाना चाहिये।
    • बच्चों के ऑनलाइन गोपनीयता संरक्षण अधिनियम (COPPA) की तरह, संयुक्त राज्य अमेरिका का कानून भी सत्यापित अभिभावकीय सहमति के बिना व्यवहार संबंधी ट्रैकिंग या लक्षित विज्ञापनों के लिये 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के व्यक्तिगत डेटा को एकत्र करने या उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाता है।
  • महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्युसरी मानदंडों को स्पष्ट करना: जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण डेटा फिड्युसरी के लिये विस्तृत मानदंड और दायित्व प्रदान करना।
    • स्वचालित निर्णय लेने वाली प्रणालियों में ऑडिट ट्रेल्स और पारदर्शिता सहित AI-संबंधी उचित परिश्रम को निर्दिष्ट करें।
  • RTI पोर्टल पर गोपनीयता उल्लंघन में सुधार करना: सूचना के अधिकार वेब पोर्टल से आधार या डिवाइस स्थान संबंधी आवश्यकताओं को समाप्त किया जाना चाहिये।
    • नागरिक तक पहुँच हेतु डिजिटल इंटरफेस पर डेटा न्यूनीकरण और गोपनीयता को नियंत्रित किया जाना चाहिये।
  • समय पर नियमों की अधिसूचना और प्रवर्तन: नियमों में विलंबता से जनता का विश्वास और कानूनी प्रवर्तनीयता कमज़ोर होती है।
    • अधिसूचना और कार्यान्वयन के लिये एक निश्चित समयसीमा को नियामक संरचना में शामिल किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

मज़बूत डेटा गवर्नेंस निजता की सुरक्षा, पारदर्शिता को बढ़ाने और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिये अत्यंत आवश्यक है। जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा, “आज कहा जाता है कि डेटा नया तेल है। मैं इसमें यह भी जोड़ूंगा कि डेटा नया सोना है।” भारत को संस्थागत स्वतंत्रता को मज़बूत करना, वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना तथा कानूनों के समय पर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहिये। संतुलित नीतियाँ नागरिकों को सशक्त बनाएंगी, विश्वास को बढ़ावा देंगी और भारत को बदलती डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं AI-आधारित भविष्य में एक अग्रणी स्थान दिलाएंगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के डिजिटल युग में डेटा संरक्षण और गोपनीयता के लिये प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं और नीतिगत सुधार पारदर्शिता, सुरक्षा एवं नवाचार के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित कर सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न 1. बढ़ते साइबर अपराधों के कारण डिजीटल दुनिया में डेटा सुरक्षा महत्त्वपूर्ण हो गई है। न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट डेटा सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को संबोधित करती है। आपके विचार में साइबरस्पेस में व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा से संबंधित रिपोर्ट की शक्ति और कमज़ोरियाँ क्या हैं?  (2018)


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