इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 31 Dec, 2019
  • 49 min read
शासन व्यवस्था

द्वीपीय देश समोआ

प्रीलिम्स के लिये:

खसरा, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन, टीकाकरण

चर्चा में क्यों?

28 दिसंबर, 2019 को समोआ (Samoa) सरकार की ओर से जारी एक अधिसूचना के अनुसार, सरकार ने खसरे के प्रकोप के कारण लगाए गए छह सप्ताह के आपातकाल को हटा दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • मात्र 2 लाख की आबादी वाले दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित इस द्वीपीय देश में इस वर्ष 5600 से अधिक लोग खसरे के संक्रमण से प्रभावित हुए, जबकि इस महामारी में 81 लोगों की मृत्यु हो गई जिसमें से अधिकतर संख्या कम उम्र के बच्चों की थी।
  • इस वर्ष 16 अक्तूबर को समोआ सरकार ने देश में खसरे के फैलने की चेतावनी जारी की और इसके एक महीने बाद देश भर में इसे लेकर आपातकाल घोषित कर दिया गया, इस दौरान स्कूलों और यातायात के साथ बच्चों के समूह में इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई।
  • वर्ष 2019 में ही न्यूज़ीलैंड में बड़ी संख्या लोग खसरे से प्रभावित हुए थे, देश के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, जनवरी से सितंबर माह के बीच ऐसे लोगों की संख्या 1,051 से अधिक थी। एक अनुमान के अनुसार, न्यूज़ीलैंड से ही यह बीमारी के समोआ में भी फैल गई।
  • विभिन्न देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं के सहयोग से देश में बड़े पैमाने पर टीकाकरण और उपचार के अन्य कार्यक्रम चलाए गए जिसके परिणाम स्वरूप दिसंबर 2019 के मध्य से खसरे से संक्रमित लोगों की संख्या में कमी देखने को मिली।

समोआ: संक्षिप्त परिचय

स्वतंत्र राज्य समोआ दक्षिण प्रशांत महासागर का एक देश है, वर्ष 1997 तक इसे पश्चिमी समोआ के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1961 में स्वतंत्रता से पहले इस द्वीपीय देश पर न्यूजीलैंड का शासन रहा। इस देश का प्रमुख व्यवसाय मत्स्य पालन, कृषि और पर्यटन है।

Samoa

इतनी बड़ी संख्या में लोगों के खसरे से संक्रमित होने के कारण:

  • इस वर्ष विश्व के विभिन्न देशों में खसरे का प्रकोप देखने को मिला, विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) के अनुसार, वर्ष 2019 के पहले तीन महीनों में पिछले वर्ष की तुलना में खसरे से पीड़ित लोगों की संख्या चार गुना अधिक थी।
  • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, समोआ में वर्ष 2013 में 90% बच्चों का सफल टीकाकरण किया गया परंतु पिछले वर्ष गलत टीकाकरण से हुई दो बच्चों की मौत के बाद भय का माहौल बन गया।
  • इसके अतिरिक्त टीकाकरण के बारे में बहुत सी अफवाहों की वजह से बच्चों के टीकाकरण में 30% की कमी देखी गई जिससे संक्रमण का खतरा और बढ़ गया।

खसरा (Measles) क्या है?

Measles

  • खसरा एक अति संक्रामक विषाणुजनित रोग है जो पैरामिक्सोवायरस परिवार के एक वायरस के कारण होता है।
  • इसका वायरस संक्रमित व्यक्ति के नाक और गले में पाया जाता है जो सांस, स्पर्श, लार और अन्य कई माध्यमों से तेज़ी से फैलता है।
  • WHO के अनुसार, यह आज भी विश्व भर में होने वाली बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण है।
  • इसके लक्षणों में खांसी, बुखार शरीर में लाल चकत्ते पड़ना है तथा इसके अतिरिक्त रोगी को कान में इंफेक्शन, न्यूमोनिया और खतरनाक डायरिया हो सकता है।
  • कई बार डायरिया से होने वाले डिहाइड्रेशन का सही समय पर इलाज न होने पर मौत भी हो सकती है।
  • खसरे का सबसे सफल इलाज टीकाकरण और बचाव ही है।

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा संचालित “मिशन इन्द्रधनुष” के अंतर्गत खसरा, तपेदिक और कई अन्य बिमारियों से बचने के लिये बच्चों का टीकाकरण किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक -2019

प्रीलिम्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक

मेन्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक, नीति आयोग

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग ने 30 दिसंबर, 2019 को सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक (Sustainable Development Goal India Index) के दूसरे संस्करण में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट जारी की, पिछले वर्ष की ही तरह इस बार भी केरल इस सूची में प्रथम स्थान पर रहा।

सतत् विकास लक्ष्य

(Sustainable Development Goal-SDG)

वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने विकास के 17 लक्ष्यों को आम सहमति से स्वीकार किया। UN ने विश्व के बेहतर भविष्य के लिये इन लक्ष्यों को महत्त्वपूर्ण बताया तथा वर्ष 2030 तक इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये इसके क्रिन्वयन की रूपरेखा सदस्य देशों के साथ साझा की।

सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक:

नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के आधार पर भारत की प्राथमिकताओं के अनुरूप अपना सूचकांक तैयार किया है। इस वर्ष नीति आयोग की रिपोर्ट में UN के 17 में से 16 लक्ष्यों को शामिल किया गया है जबकि वर्ष 2018 में इसमें केवल 13 लक्ष्यों को ही शामिल किया गया था।

नीति आयोग UN के 232 सूचकांकों की प्रणाली पर आधारित 100 निजी सूचकांकों पर राज्यों के प्रदर्शन की समीक्षा करता है, जिनमें शामिल हैं-

  1. आकांक्षी (Aspirant): 0–49
  2. परफार्मर (Performer): 50-64
  3. फ्रंट रनर (Front Runner): 65–99
  4. अचीवर (Achiever): 100

Sustainable-Development

मुख्य बिंदु:

  • सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक को ‘सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’, संयुक्त राष्ट्र संघ की भारतीय शाखा और वैश्विक हरित विकास संस्थान (Global Green Growth Institute-GGGI) के सहयोग से तैयार किया गया है।
  • नीति आयोग द्वारा जारी वर्ष 2019 के सूचकांक में केरल (70) का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा जबकि बिहार (50) इस सूची में सबसे निचले स्थान पर रहा।
  • इस सूचकांक में पिछले वर्ष के मुकाबले उत्तर प्रदेश (55), ओडिशा (58) और सिक्किम (65) के प्रदर्शनों में सबसे अधिक सुधार देखने को मिले।
  • इस सूचकांक में 69 अंकों के साथ हिमाचल दूसरे और आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु 67 अंकों के साथ संयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर रहे।
  • भुखमरी से मुक्ति और लैंगिक समानता के क्षेत्र में लगभग सभी राज्यों का प्रदर्शन खराब रहा, इन क्षेत्रों में भारत को राष्ट्रीय स्तर पर 100 में से क्रमशः मात्र 35 और 42 अंक ही प्राप्त हुए।
  • सभी 16 क्षेत्रों में भारत को संयुक्त रूप से 60 अंक प्राप्त हुए, पिछले वर्ष इसी श्रेणी में भारत को 57 अंक प्राप्त हुए थे।
    • भारत के इस प्रदर्शन का कारण नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छता के क्षेत्र में हुई प्रगति (88), शांति, न्याय और सशक्त संस्थानों (72) तथा सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा (70) आदि क्षेत्रों में हुए सफल प्रयास हैं।
  • दूसरे SDG ‘भुखमरी से मुक्ति’ में राज्यों के प्रदर्शन में ह्रास देखने को मिला केरल, गोवा और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोड़कर 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 50 से कम अंक प्राप्त हुए।
  • मिज़ोरम (67), नगालैंड (70), अरुणाचल प्रदेश (66) और सिक्किम (66) को भुखमरी से मुक्ति में 65 से अधिक अंक प्राप्त हुए जबकि मध्य भारत के राज्यों झारखंड (22), मध्यप्रदेश (24), बिहार (26) और छत्तीसगढ़ (27) को इस श्रेणी में 30 से भी कम अंक प्राप्त हुए। (इस श्रेणी में प्राप्त अंक राज्य के भीतर बच्चों में कुपोषण, बाल-विकास, एनीमिया तथा खाद्य उत्पादन और वितरण की दिशा में किये गए कार्यों को दर्शाते हैं)
  • पाँचवें SDG- ‘लैंगिक समानता’ के क्षेत्र में सभी राज्यों का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा। केवल जम्मू और कश्मीर-J&K (53), हिमाचल (52) तथा केरल (51) को छोड़कर सभी राज्य 50 का आँकड़ा पार करने में असफल रहे। (यह गणना J&K राज्य के विभाजन से पूर्व की हैं )
    • इस सूचकांक में महिलाओं के खिलाफ अपराध, महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव तथा गर्भधारण से संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को देखा गया।
    • इसके साथ ही महिलाओं के आर्थिक और राजनीतिक सशक्तीकरण तथा इन क्षेत्रों में उनके लिये नेतृत्व के अवसरों की उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिया गया।
    • भारत का असमान लैंगिक अनुपात 896/1000, कार्यक्षेत्रों में केवल 17.5% महिलाओं की भागीदारी और 3 में से 1 महिला के वैवाहिक उत्पीड़न के मामलों को इस खराब प्रदर्शन का कारण माना जा रहा है।
  • छठे SDG ‘स्वच्छ जल और सफाई’ (Clean Water and Sanitation) में बेहतर प्रदर्शन का श्रेय स्वच्छ भारत मिशन को जाता है, यद्यपि इसका एक कारण यह भी है कि इस लक्ष्य के सात संकेताकों में से चार शौचालय और स्वच्छता से जुड़े हुए थे जबकि एक सुरक्षित और साफ पेयजल से संबंधित था।
  • दिल्ली को छोड़कर सभी केन्द्रशासित प्रदेशों को इस सूचकांक में 65 से अधिक अंक प्राप्त हुए। दिल्ली का प्रदर्शन स्वच्छता के मामले में बहुत ही ख़राब रहा।
  • सरकार की घर-घर बिजली और भोजन पकाने के लिये LPG वितरण की योजनाओं को 7वें SDG लक्ष्य ‘सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा’ (Affordable and Clean energy) में बेहतर प्रदर्शन का कारण माना जा रहा है।

सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक के लक्ष्य :

  • इस रिपोर्ट के आँकड़े UN की SDG योजना में भागीदारी के प्रति भारत सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
  • इस वार्षिक आकलन के पीछे नीति आयोग के दो उद्देश्य है-
  1. SDG की प्रगति में राज्यों की स्थिति का आकलन करना।
  2. इसके माध्यम से राज्यों के मध्य विकास की दिशा में प्रतिस्पर्द्धा और परस्पर सहयोग को बढ़ाना।
  • इस रिपोर्ट का उद्देश्य देश में वैश्विक स्तर के विकास के लिये रणनीतिक चर्चा, नीति निर्धारण और उनके क्रियान्वन को बढ़ावा देना है।
  • रिपोर्ट का एक अन्य उद्देश्य राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों को उनके विकास के मार्ग में बाधाओं की पहचान करने और प्राथमिकताओं को चुनने में सहायता के साथ राज्यों को आपसी सहयोग के लिये प्रेरित करना है।

निष्कर्ष :UN की SDG योजना के अनुसार 2020 की शुरूआत के साथ ही हम ‘कार्यवाही के दशक’ (Decade of Action) में प्रवेश का जायेंगे ऐसे में राज्य स्तर पर अपनी कमियों की जानकारी और उस अनुरूप योजनाओं क्रियान्वन में सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक के आंकड़े बहुत ही मददगार साबित होंगें। SDG के लक्ष्यों के अतिरिक्त भी ये आंकड़े केंद्र तथा राज्य सरकारों के समक्ष वर्तमान भारत की वास्तविक छवि प्रकट करते है, जिसके अनुरूप ही सरकारों को भविष्य की योजनाओं और उनके क्रियान्वन की रूपरेखा तैयार करनी होगी।

स्रोत: द हिंदू, पीआईबी


सामाजिक न्याय

भारत में कुपोषण की स्थिति

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय पोषण मिशन, कुपोषण

मेन्स के लिये:

भारत में कुपोषण की समस्या, भारत में स्वास्थ्य चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हॉवर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक टीम ने कुपोषण के प्रसार में धन असमानता के प्रभाव का आकलन ज़िला-स्तरीय रुझानों के आधार पर किया है।

  • ध्यातव्य है कि यह आकलन कुपोषण के पाँचों संकेतकों {स्टंटिंग (Stunting), कम वज़न (Underweight), वेस्टिंग (Wasting), जन्म के समय कम वज़न और एनीमिया} और धन असमानता के संदर्भ में किया गया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • टीम ने प्रत्येक ज़िले को समग्र भार और धन असमानता पर आधारित चार श्रेणियों- असमानता (Disparity), ख़तरा (Pitfall), तीव्रता (Intensity) या समृद्धि (Prosperity) के अंतर्गत वर्गीकृत किया था।
  • शोधकर्ताओं ने वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (National Family Health Survey- NFHS 4) के डाटा का विश्लेषण किया और पाया कि चार संकेतकों में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में गरीबों में एनीमिया के सर्वाधिक 54.6% मामले पाये गए थे।
  • गुजरात, झारखंड और बिहार के सभी ज़िलों में कम वज़न वाले बच्चों के संदर्भ में धन संबंधी असमानताएँ सबसे अधिक जबकि मिज़ोरम, नगालैंड तथा मणिपुर में सबसे कम थीं।
  • भारत के उत्तर और मध्य क्षेत्र जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड शामिल हैं; मुख्य रूप से स्टंटिंग एवं अंडरवेट के मामलों में अधिकतर ‘ख़तरा’ तथा ‘तीव्रता’ वाले ज़िलों की श्रेणी में शामिल हैं।
  • शोध के अनुसार यद्यपि भारत सरकार की नई पहल राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission) से बाल कुपोषण में एक प्रगतिशील गिरावट आई है किंतु यह गिरावट धीमी रही है और सुधारों के संपूर्ण जनसंख्या में समान रूप से वितरण का अभाव है।
  • विश्व स्तर पर मध्यम और निम्न-आय वाले देशों में पाँच वर्ष से कम उम्र के 200 मिलियन से अधिक बच्चों का कुपोषित होना एक बड़ी समस्या है। हालाँकि भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, देश में बाल कुपोषण की संख्या में गिरावट आई है किंतु विभिन्न अध्ययनों के अनुसार गिरावट की दर बहुत धीमी है और भारत अभी भी कुपोषण के खिलाफ संघर्ष कर रहा है।

क्या है कुपोषण?

  • कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन, अव्यवस्थित रूप से ग्रहण करने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है। चूँकि हम स्वस्थ रहने के लिये भोजन के ज़रिये ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, लेकिन यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन तथा खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण के शिकार हो सकते हैं।
  • कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा उपलब्ध नहीं होती है।

भारत में कुपोषण के कारण

  • क्रय शक्ति कम होने के कारण गरीब परिवारों को आवश्यक मात्रा में पौष्टिक आहार क्रय करना मुश्किल हो जाता है और जिसके कारण वे कुपोषण का शिकार होते हैं। परिणामस्वरूप उनकी उत्पादन क्षमता में कमी आती है और निर्धनता तथा कुपोषण का चक्र इसी प्रकार चलता रहता है।
  • देश में पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण आहार के संबंध में जागरूकता की कमी स्पष्ट दिखाई देती है फलतः पोषण के प्रति जागरूकता के अभाव के कारण पूरा परिवार कुपोषण का शिकार होता है।
  • पोषण की कमी और बीमारियाँ कुपोषण के प्रमुख कारण हैं। अशिक्षा और गरीबी के चलते भारतीयों के भोजन में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी पाई जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग, जैसे- एनीमिया, घेंघा व बच्चों की हड्डियाँ कमज़ोर हो जाती हैं। साथ ही पारिवारिक खाद्य असुरक्षा तथा जागरूकता की कमी भी कुपोषण का एक बड़ा कारण माना जा सकता है।
  • देश में स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता भी इसका एक मुख्य कारण माना जा सकता है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, भारत में लगभग 1700 मरीज़ों पर एक डॉक्टर उपलब्ध हो पाता है, जबकि वैश्विक स्तर पर 1000 मरीज़ों पर 1.5 डॉक्टर होते हैं।
  • कुपोषण का बड़ा कारण लैंगिक असमानता भी है। भारतीय महिला के निम्न सामाजिक स्तर के कारण उसके भोजन की मात्रा और गुणवत्ता में पुरुष के भोजन की अपेक्षा कहीं अधिक अंतर होता है।
  • स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता तथा गंदगी भी कुपोषण का एक बहुत बड़ा कारण है।

कुपोषण से निपटने की महत्त्वपूर्ण रणनीतियाँ:

  • जिन ज़िलों में कुपोषण का प्रसार समान रूप से अधिक है, उन ज़िलों में हस्तक्षेप की एक अलग रणनीति की अपनाने आवश्यकता है।
  • बाल पोषण (Child Nutrition) की प्रगति प्रभावी और समान रूप से सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • कृषि को अधिक उत्पादक एवं विविधतापूर्ण बनाना ताकि बेहतर पोषण उपलब्ध हो सके।
  • आय में वृद्धि से संबंधित कार्यक्रमों को गरीबों एवं कुपोषितों के लिये और अधिक लक्षित करना।
  • खाद्य असुरक्षा की सतत् निगरानी करना।
  • स्वास्थ्य सेवाओं के साथ पोषण को भी सम्मिलित करना।

सरकारी प्रयास-

एकीकृत बाल विकास सेवा

(Integrated Child Development Service- ICDS)

  • एकीकृत बाल विकास योजना 6 वर्ष तक के उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य, पोषण एवं शैक्षणिक सेवाओं का एकीकृत पैकेज़ प्रदान करने की योजना है।
  • महिला और बाल विकास मंत्रालय के द्वारा वर्ष 1975 में यह योजना प्रारंभ की गई थी।

स्त्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

पोषण अभियान और आवंटित धन का उपयोग

प्रीलिम्स के लिये:

पोषण अभियान और संबंधी आँकड़े

मेन्स के लिये:

पोषण अभियान के प्रभाव और देश में कुपोषण की समस्या

चर्चा में क्यों?

संसद के हालिया सत्र में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने वर्ष 2017 से अभी तक पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन) के तहत आवंटित कुल धन का लगभग 30 प्रतिशत ही प्रयोग किया है।

  • मिज़ोरम, लक्षद्वीप, हिमाचल प्रदेश, मेघालय और बिहार के अतिरिक्त अन्य किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने विगत तीन वर्षों में आवंटित राशि के आधे हिस्से का भी उपयोग नहीं किया।

प्रमुख बिंदु

  • पोषण अभियान के तहत आवंटित धन के उपयोग के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन मिज़ोरम का रहा जिसने अपने लिये आवंटित कुल धन का लगभग 66 प्रतिशत हिस्सा प्रयोग किया। ज्ञात हो कि अभियान के तहत मिज़ोरम को तीन वर्षों में 1979.03 लाख रुपए दिये जाए जिसमें से उसने कुल 1310.52 लाख रुपए प्रयोग किये।
  • वहीं इस मामले में सबसे खराब प्रदर्शन पंजाब का रहा जिसने कुल आवंटित धन का मात्र 0.45 प्रतिशत धन ही उपयोग किया। पंजाब को तीन वर्षों की अवधि में कुल 6909.84 लाख रुपए जारी किये गए जिसमें से उसने मात्र 30.88 लाख रुपए प्रयोग किये।
  • विदित है कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल ने अब तक अपने-अपने राज्यों में इस योजना को कार्यान्वयित नहीं किया है। हालाँकि ओडिशा सरकार ने हाल ही में राज्य के अंतर्गत अभियान के कार्यान्वयन को मंज़ूरी दे दी थी, परंतु पश्चिम बंगाल में अभी भी योजना का क्रियान्वयन बाकी है।
  • विशेषज्ञों का मानना है की फंड के उपयोग को लेकर मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आँकड़े पोषण अभियान की एक गंभीर तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।

पोषण अभियान

(POSHAN Abhiyaan)

  • दिसंबर 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देशभर में कुपोषण की समस्या को संबोधित करने हेतु पोषण अभियान की शुरुआत की थी।
  • अभियान का उद्देश्य परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण के माध्यम से देश भर के छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण तथा एनीमिया को चरणबद्ध तरीके से कम करना है।
  • इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अभियान के तहत राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों को शामिल किया गया है।
  • पोषण अभियान या राष्ट्रीय पोषण मिशन की अभिकल्पना नीति आयोग द्वारा ‘राष्ट्रीय पोषण रणनीति’ के तहत की गई है। इस रणनीति का उद्देश्य वर्ष 2022 तक “कुपोषण मुक्त भारत” का निर्माण करना है।
  • इस अभियान का लक्ष्य लगभग 9046.17 करोड़ रुपए के बजट के साथ देश भर के 10 करोड़ लोगों को लाभ पहुँचाना है।
  • अभियान की कुल लागत का 50 प्रतिशत हिस्सा बजटीय समर्थन के माध्यम से दिया जा रहा है, जबकि शेष 50 प्रतिशत हिस्सा विश्व बैंक तथा अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों द्वारा दिया जा रहा है।
    • बजटीय समर्थन के माध्यम से दिये जा रहे हिस्से को तीन भागों में बाँटा गया है: (1) पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 जिसमें 90 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा 10 प्रतिशत राज्यों द्वारा (2) बिना विधायिका के केंद्रशासित प्रदेशों कि स्थिति में 100 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा (3) अन्य राज्यों की स्थिति में 60:40 जिसमें 60 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा और 40 प्रतिशत राज्यों द्वारा।

अभियान का प्रभाव

  • हालाँकि पोषण अभियान के परिणामों को कार्यक्रम की स्वीकृत अवधि पूरी होने के बाद ही जाना जा सकता है, परंतु इस संदर्भ में व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (Comprehensive National Nutrition Survey-CNNS) के आँकड़ों पर गौर किया जा सकता है।
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा आयोजित व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार, 5 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में से 34.7% बच्चे स्टंटिंग अर्थात् कद न बढ़ने की समस्या का सामना कर रहे हैं, वहीं इसी आयु वर्ग के 33.4% बच्चे अल्प-वज़न की समस्या से जूझ रहे हैं।

आगे की राह

  • पोषण अभियान के तहत आवंटित धन के उपयोग संबंधी आँकड़े स्पष्ट रूप से इस अभियान के प्रति राज्य सरकारों की गैर-ज़िम्मेदारी प्रदर्शित करते हैं।
  • देशभर में कुपोषण और एनीमिया जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने के लिये एक सक्रिय तंत्र की आवश्यकता है और राज्य सरकारों के सहयोग के बिना इस तंत्र का निर्माण संभव नहीं है।
  • अतः आवश्यक है की राज्य सरकारें इस ओर गंभीरता से ध्यान दें ताकि इस समस्या को जल्द-से-जल्द समाप्त किया जा सके।

स्रोत: पीआईबी


आंतरिक सुरक्षा

CDS की अधिकतम आयु सीमा

प्रीलिम्स के लिये :

चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ, CDS की नियुक्ति, कार्यकाल,पदावधि एवं कार्य, रक्षा मंत्रालय से संबंधित तथ्य

मेन्स के लिये :

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति से संबंधित मुद्दे, निहितार्थ, महत्त्व

चर्चा में क्यों?

रक्षा मंत्रालय ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को 65 वर्ष की अधिकतम आयु सीमा तक सेवा देने के लिये नियमों में संशोधन किया है।

महत्तवपूर्ण बिंदु

  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) अधिकतम 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर रह सकेंगे। केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने नौसेना, वायुसेना और थल सेना के सर्विस रूल में भी बदलाव किया है।
  • वर्तमान में सेना प्रमुख अधिकतम 62 वर्ष या तीन वर्ष के कार्यकाल (दोनों में से जो पहले हो) तक अपने पद पर रह सकते हैं। किसी सेना प्रमुख को CDS बनाए जाने पर आयु सीमा का नियम बाधा न बने इसलिये रक्षा मंत्रालय ने इन नियमों में सुधार किया है।
  • CDS का कार्यकाल कितना होगा, इस बारे में मंत्रालय ने कोई जानकारी नहीं दी है। आर्मी चीफ बिपिन रावत को देश का पहला CDS नियुक्त किया गया है।
    • केंद्र सरकार ने आयु की ऊपरी सीमा के निर्धारण के लिये सेना के नियम 1954, नौसेना (अनुशासन और विविध प्रावधान) विनियम, 1965, नौसेना समारोह, सेवा की शर्तें और विविध विनियम, 1963 और वायु सेना विनियम, 1964 में संशोधन किया है।
  • गौरतलब है कि सेवा नियमों में संशोधन किया गया है न कि अधिनियमों में।
  • सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति ने 24 दिसंबर, 2019 को CDS के निर्माण को मंज़ूरी दी।
  • CDS तीनों सेवाओं से संबंधित सभी मामलों पर रक्षा मंत्री के प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करेगा।
  • CDS, सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी पद को धारण करने का पात्र नहीं होगा साथ ही उसे सेवानिवृत्ति के 5 वर्षों बाद तक बिना पूर्व स्वीकृति के किसी भी निजी रोज़गार की अनुमति भी नहीं होगी।

स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत वन स्थिति रिपोर्ट -2019

प्रीलिम्स के लिये:

भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 से संबंधित तथ्य, भारतीय वन सर्वेक्षण

मेन्स के लिये:

भारत में बदलते हुए पर्यवारणीय परिदृश्य में वनों की स्थिति

चर्चा मे क्यों?

हाल ही में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (The Ministry of Environment, Forest and Climate Change-MoEFCC) के अधीन एक संगठन भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) द्वारा भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2019 (India State of Forest Report, 2019- ISFR, 2019) जारी की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 1987 से भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट को द्विवार्षिक रूप से ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • यह इस श्रेणी की 16वीं रिपोर्ट है।
  • इस रिपोर्ट में वन एवं वन संसाधनों के आकलन के लिये भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह रिसोर्स सेट-2 से प्राप्‍त आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। रिपोर्ट में सटीकता लाने के लिये आँकड़ों की जाँच हेतु वैज्ञानिक पद्धति अपनाई गई है।
  • इस रिपोर्ट में वन एवं वन संसाधनों के आकलन के लिये पूरे देश में 2200 से अधिक स्थानों से प्राप्‍त आँकड़ों का प्रयोग किया गया है।
  • वर्तमान रिपोर्ट में ‘वनों के प्रकार एवं जैव विविधता’ (Forest Types and Biodiversity) नामक एक नए अध्याय को जोड़ा गया है, इसके अंतर्गत वृक्षों की प्रजातियों को 16 मुख्य वर्गों में विभाजित करके उनका ‘चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण’ (Champion & Seth Classification) के आधार पर आकलन किया जाएगा।

चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण:

  • वर्ष 1936 में हैरी जॉर्ज चैंपियन (Harry George Champion) ने भारत की वनस्पति का सबसे लोकप्रिय एवं मान्य वर्गीकरण किया था।
  • वर्ष 1968 में चैंपियन एवं एस.के. सेठ (S.K Seth) ने मिलकर स्वतंत्र भारत के लिये इसे पुनः प्रकाशित किया।
  • यह वर्गीकरण पौधों की संरचना, आकृति विज्ञान और पादपी स्वरुप पर आधारित है।
  • इस वर्गीकरण में वनों को 16 मुख्य वर्गों में विभाजित कर उन्हें 221 उपवर्गों में बाँटा गया है।
  • वनों में रहने वाले व्यक्तियों की ईंधन, चारा, इमारती लकड़ियों एवं बाँस पर आश्रितता के आकलन के लिये एक राष्ट्रीय स्तर का अध्ययन किया गया है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण ने भूमि के ऊपर स्थित जैवभार (Above Ground Biomass) के आकलन के लिये भारतीय राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान (Indian Space Research Organisation) के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय स्तर की परियोजना प्रारंभ की है और असम राज्य में ‘पल्सर’ (Phased array Type L-band Synthetic Aperture Radar-PALSAR) मोज़ैक (Mosaic) तथा भारतीय वन सर्वेक्षण के आँकड़ों के आधार पर जैवभार का आकलन किया जा चुका है।

ISFR, 2019 से संबंधित प्रमुख तथ्य:

देश में वनों एवं वृक्षों से आच्छादित कुल क्षेत्रफल 8,07,276 वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56%)
कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वनावरण क्षेत्र 7,12,249 वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.67%)
कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वृक्षावरण क्षेत्र 95,027 वर्ग किमी. (कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.89%)
वनाच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि 3,976 वर्ग किमी. (0.56%)
वृक्षों से आच्छादित क्षेत्रफल में वृद्धि 1,212 वर्ग किमी. (1.29%)
वनावरण और वृक्षावरण क्षेत्रफल में कुल वृद्धि 5,188 वर्ग किमी. (0.65%)

वनों की स्थिति से संबंधित राज्यवार आँकड़े:

सर्वाधिक वनावरण प्रतिशत वाले राज्य:

मिज़ोरम 85.41%
अरुणाचल प्रदेश 79.63%
मेघालय 76.33%
मणिपुर 75.46%
नगालैंड 75.31%

सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्य:

मध्य प्रदेश 77,482 वर्ग किमी.
अरुणाचल प्रदेश 66,688 वर्ग किमी.
छत्तीसगढ़ 55,611 वर्ग किमी.
ओडिशा 51,619 वर्ग किमी.
महाराष्ट्र 50,778 वर्ग किमी.

वन क्षेत्रफल में वृद्धि वाले शीर्ष राज्य:

कर्नाटक 1,025 वर्ग किमी.
आंध्र प्रदेश 990 वर्ग किमी.
केरल 823 वर्ग किमी.
जम्मू-कश्मीर 371 वर्ग किमी.
हिमाचल प्रदेश 334 वर्ग किमी.

रिपोर्ट से संबंधित अन्य तथ्य:

रिकार्डेड फारेस्ट एरिया:

(Recorded Forest Area)

  • RFA/GW पद का उपयोग ऐसी भूमि के लिये किया जाता है, जिन्हें किसी सरकारी अधिनियम या नियम के तहत वन के रूप में अधिसूचित किया गया हो या उसे सरकारी रिकॉर्ड में ‘वन’ के रूप में दर्ज़ किया गया हो। ISFR-2019 में आद्रभूमियों को भी RFA के तौर पर शामिल किया गया है
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के रिकार्डेड फारेस्ट एरिया (Recorded Forest Area-RFA/GW) में 330 (0.05%) वर्ग किमी. की मामूली कमी आई है।
  • भारत में 62,466 आर्द्रभूमियाँ देश के RFA/GW क्षेत्र के लगभग 3.83% क्षेत्र को कवर करती हैं।
  • भारतीय राज्यों में गुजरात का सर्वाधिक और दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल का आर्द्रभूमि क्षेत्र RFA के अंतर्गत आता है।

भारत के वनों में बढ़ता हुआ कार्बन स्टॉक:

(Total Carbon Stock in Indian Forest):

  • वर्तमान आकलनों के अनुसार, भारत के वनों का कुल कार्बन स्टॉक लगभग 7,142.6 मिलियन टन अनुमानित है। वर्ष 2017 के आकलन की तुलना में इसमें लगभग 42.6 मिलियन टन की वृद्धि हुई है।
  • भारतीय वनों की कुल वार्षिक कार्बन स्टॉक में वृद्धि 21.3 मिलियन टन है, जोकि लगभग 78.1 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) के बराबर है।
  • भारत के वनों में ‘मृदा जैविक कार्बन’ (Soil Organic Carbon-SOC) कार्बन स्टॉक में सर्वाधिक भूमिका निभाते हैं जोकि अनुमानतः 4004 मिलियन टन की मात्रा में उपस्थित हैं।
  • SOC भारत के वनों के कुल कार्बन स्टॉक में लगभग 56% का योगदान देते हैं।

बाँस क्षेत्र:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बाँस भूमि लगभग 1,60,037 वर्ग किमी. अनुमानित है। ISFR-2017 की तुलना में कुल बाँस भूमि में 3,229 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।

मैंग्रोव वनों की स्थिति:

  • देश में मैंग्रोव वनस्‍पति में वर्ष 2017 के आकलन की तुलना में कुल 54 वर्ग किमी.. (1.10%) की वृद्धि हुई है।

पहाड़ी क्षेत्रों की स्थिति:

  • भारत के पहाड़ी ज़िलों में कुल वनावरण क्षेत्र 2,84,006 वर्ग किमी. है जोकि इन ज़िलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 40.30% है।
  • वर्तमान आकलन में ISFR-2017 की तुलना में भारत के 144 पहाड़ी जिलों में 544 वर्ग किमी. (0.19%) की वृद्धि देखी गई है।

जनजातीय क्षेत्रों की स्थिति:

  • भारत के जनजातीय ज़िलों में कुल वनावरण क्षेत्र 4,22,351 वर्ग किमी. है जोकि इन ज़िलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 37.54% है।
  • वर्तमान आकलन के अनुसार, इन ज़िलों में RFA/GW के अंतर्गत आने वाले कुल वनावरण क्षेत्र में 741 वर्ग किमी. की कमी आई है तथा RFA/GW के बाहर के वनावरण क्षेत्र में 1,922 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।

उत्तर-पूर्व क्षेत्र की स्थिति:

  • उत्तर-पूर्व क्षेत्र में कुल वनावरण क्षेत्र 1,70,541 वर्ग किमी. है जोकि इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 65.05% है।
  • वर्तमान आकलन के अनुसार, उत्तर-पूर्वीय क्षेत्र में कुल वनावरण क्षेत्र में 765 वर्ग किमी. (0.45%) की कमी आई है।
  • असम और त्रिपुरा को छोड़कर बाकी सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों के वनावरण क्षेत्र में कमी आई है।

ईंधन की लकड़ियों के लिये आश्रितता:

  • भारत में वनों पर ईंधन की लकड़ियों के लिये आश्रित राज्यों में महाराष्ट्र सर्वाधिक आश्रित राज्य है जबकि चारा, इमारती लकड़ी और बाँस पर सर्वाधिक आश्रित राज्य मध्य प्रदेश है।
  • यह देखा गया है कि भारत के वनों में रहने वाले लोगों द्वारा छोटी इमारती लकड़ी का दोहन भारत के वनों में वार्षिक रूप से होने वाली वृद्धि के 7% के बराबर है।
  • भारत के कुल वनावरण का 21.40% क्षेत्र वनों में लगने वाली आग से प्रभावित है।

किसी देश की संपन्नता उसके निवासियों की भौतिक समृद्धि से अधिक वहाँ की जैव विविधता से आँकी जाती है। भारत में भले ही विकास के नाम पर बीते कुछ दशकों में वनों को बेतहाशा उजाड़ा गया है, लेकिन हमारी वन संपदा दुनियाभर में अनूठी और विशिष्ट है। ऑक्सीजन का एकमात्र स्रोत वृक्ष हैं, इसलिये वृक्षों पर ही हमारा जीवन आश्रित है। यदि वृक्ष नहीं रहेंगे तो किसी भी जीव-जंतु का अस्तित्व नहीं रहेगा।

स्रोत- द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

नगालैंड में AFSPA

प्रीलिम्स के लिये:

AFSPA से संबंधित तथ्य

मेन्स के लिये:

AFSPA के अनुपालन से संबंधित मुद्दे, AFSPA और मूल अधिकार, AFSPA और मानवाधिकार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

30 दिसंबर 2019 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संपूर्ण नगालैंड में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून [Armed force (Special Power) Act- AFSPA] को 6 महीनों के लिये बढ़ा दिया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • केंद्र सरकार ने नगालैंड की जोखिमपूर्ण और अशांत स्थिति के आधार पर संपूर्ण राज्य में AFSPA को अगले 6 महीनों के लिये 30 दिसंबर, 2019 से बढ़ाने को मंज़ूरी दी है।
  • गौरतलब है कि गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने पूरे नगालैंड राज्य को इस कानून के तहत छह और महीनों के लिये "अशांत क्षेत्र" घोषित किया है, जो सुरक्षा बलों को बिना किसी पूर्व अनुमति के कहीं भी ऑपरेशन करने और किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार देता है।
  • केंद्र सरकार ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, 1958 की धारा 3 के अंतर्गत नगालैंड के संपूर्ण क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित किया है।
  • वर्तमान समय में असम, नगालैंड और मणिपुर (इम्फाल नगरपालिका क्षेत्र को छोड़कर) के संपूर्ण क्षेत्र में लागू है।
  • अरुणाचल प्रदेश के तीन ज़िलों- तीरप, चांगलांग और लोंगडिंग के साथ-साथ असम से लगने वाले अरुणाचल प्रदेश के अधिकार क्षेत्र वाले 8 पुलिस स्टेशनों में यह कानून लागू है।
  • गौरतलब है कि मणिपुर और असम को “अशांत क्षेत्र” घोषित करने वाली अधिसूचना राज्य सरकारों द्वारा जारी की गई है। जबकि नगालैंड के संपूर्ण क्षेत्र और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों को “अशांत क्षेत्र” घोषित करने वाली अधिसूचना गृह मंत्रालय द्वारा घोषित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स) 31 दिसंबर, 2019

CBDT ने बढ़ाई पैन को आधार से जोड़ने की तारीख

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड अर्थात् CBDT ने पैन (PAN) को आधार से जोड़ने की तारीख को मार्च 2020 तक बढ़ा दिया है। ध्यातव्य है कि पहले इस कार्य के लिये 31 दिसंबर 2019 अंतिम तारीख थी। इस संदर्भ में सूचना देते हुए CBDT के कहा कि “आयकर अधिनियम 1961 की धारा 139 (A)(A) की उप-धारा (2) के तहत पैन को आधार के साथ जोड़ने की अंतिम तिथि को 31 दिसंबर, 2019 से बढ़ाकर 31 मार्च, 2020 की गई है।” उल्लेखनीय है कि यह आठवीं बार है जब CBDT ने पैन को आधार से जोड़ने कि समयसीमा में बढ़ोतरी की है।


हुआवे को 5G ट्रायल की अनुमति

केंद्र सरकार ने चीनी टेक कंपनी हुआवे (Huawei) को अगले वर्ष होने वाले 5G ट्रायल में भाग लेने की अनुमति दे दी है। गौरतलब है कि हुआवे वही चीनी कंपनी है जिस पर अमेरिका ने जासूसी का आरोप लगाते हुए प्रतिबंध लगा दिया था। अमेरिकी इंटेलिजेंस विभाग का मानना था कि हुआवे द्वारा तैयार किये जा रहे उपकरण देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं। इसी को मद्देनज़र रखते हुए अमेरिका ने विश्व के कई देशों के लिये भी हुआवे के साथ व्यापार न करने कि चेतावनी जारी की थी। भारत के लिये एक बड़ी समस्या यह थी कि वह चीन जैसे महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देश की कंपनी को अपने बाज़ार में स्थान न देकर उसके साथ अपने संबंधों को खराब नहीं कर सकता था। ऐसी स्थिति में भारत ने एक दूरगामी दृष्टिकोण अपनाते हुए हुआवे को अनुमति देने संबंधी अपना आधिकारिक रुख तय कर लिया है।


पीटर सिडल

ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच तीन मैचों की टेस्ट सीरीज़ के दूसरा मुकाबले में ऑस्ट्रेलियाई टीम के तेज़ गेंदबाज़ पीटर सिडल ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का ऐलान कर दिया है। पीटर सिडल ने ऑस्ट्रेलियाई टीम के लिये 67 टेस्ट, 20 वनडे इंटरनेशनल और 2 T20 इंटरनेशनल मैच खेले हैं। दाएं हाथ के तेज़ गेंदबाज़ पीटर सिडल 67 टेस्ट मैचों की 126 पारियों में गेंदबाज़ी करते हुए कुल 221 विकेट अपने नाम किये हैं। साथ ही उन्होंने टेस्ट मैच में 6777 रन भी बनाए हैं, जिसमें 2 अर्द्धशतक भी शामिल हैं।


क्रिस्टीना कोच

नासा (NASA) की अंतरिक्ष यात्री क्रिस्टीना कोच अंतरिक्ष में सबसे ज़्यादा समय तक रहने वाली महिला बन गई हैं। फ्लाइट इंजीनियर क्रिस्टीना ने बीते शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISA) में 288 दिनों तक रहने का नासा की ही अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिट्सन का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। ज्ञात हो कि क्रिस्टीना कोच इस वर्ष अक्तूबर में ISA से बाहर आकर अंतरिक्ष में चहलकदमी करने वाली महिलाओं की टीम में भी शामिल थीं।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2