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डेली न्यूज़

  • 30 Nov, 2020
  • 19 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

गुरु नानक जयंती

चर्चा में क्यों?

30 नवंबर, 2020 को भारत के राष्ट्रपति ने गुरु नानक जयंती के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएँ दीं।

  • सिखों के प्रथम गुरु व सिख समुदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्मदिन गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक जयंती कार्तिक महीने में पूर्णिमा (Poornima) के दिन होती है, इस कारण इसे कार्तिक पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

गुरु नानक देव:

  • जन्म: वर्ष 1469 में लाहौर के पास तलवंडी राय भोई (Talwandi Rai Bhoe) गाँव में हुआ था जिसे बाद में ननकाना साहिब नाम दिया गया।
  • वह सिख धर्म के 10 गुरुओं में से पहले और सिख धर्म के संस्थापक थे।
  • योगदान:
    • गुरु नानक देव जी एक दार्शनिक, समाज सुधारक, चिंतक एवं कवि थे।
    • इन्होंने समानता और भाईचारे पर आधारित समाज तथा महिलाओं के सम्मान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
    • गुरु नानक देव जी ने विश्व को 'नाम जपो, किरत करो, वंड छको' का संदेश दिया जिसका अर्थ है- ईश्वर के नाम का जप करो, ईमानदारी व मेहनत के साथ अपनी ज़िम्‍मेदारी निभाओ तथा जो कुछ भी कमाते हो उसे ज़रूरतमंदों के साथ बाँटो।
    • उन्होंने यज्ञ, धार्मिक स्नान, मूर्ति पूजा, कठोर तपस्या को नकार दिया।
    • वे एक आदर्श व्यक्ति थे, जो एक संत की तरह रहे और पूरे विश्व को 'कर्म' का संदेश दिया।
    • उन्होंने भक्ति के 'निर्गुण' रूप की शिक्षा दी।
    • इसके अलावा उन्होंने अपने अनुयायियों को एक समुदाय में संगठित किया और सामूहिक पूजा (संगत) के लिये कुछ नियम बनाए।
      • उन्होंने अपने अनुयायियों को ‘एक ओंकार’ (Ek Onkar) का मूल मंत्र दिया और जाति, पंथ एवं लिंग के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार करने पर ज़ोर दिया।
  • मृत्यु: वर्ष 1539 में करतारपुर, पंजाब में।

आधुनिक भारत के लिये गुरु नानक देव की प्रासंगिकता:

  • एक समतावादी समाज का निर्माण: समानता का उनका विचार निम्नलिखित नवीन सामाजिक संस्थानों में देखा जा सकता है, जो उनके द्वारा शुरू किया गया था:
    • लंगर: सामूहिक खाना बनाना और भोजन को वितरित करना।
    • पंगत: उच्च एवं निम्न जाति के भेद के बिना भोजन करना।
    • संगत: सामूहिक निर्णय लेना।
  • सामाजिक सद्भाव:
    • उनके अनुसार, पूरी दुनिया ईश्वर की रचना है और सभी एक समान हैं, केवल  एक सार्वभौमिक रचनाकार है अर्थात् "एक ओंकार सतनाम" (Ek Onkar Satnam)
    • इसके अलावा क्षमा, धैर्य, संयम और दया उनके उपदेशों के मूल केंद्र हैं।
  • एक समाज का निर्माण:
    • उन्होंने अपने शिष्यों के सम्मुख ‘कीरत करो, नाम जपो और वंड छको’ (काम, पूजा और साझा) का आदर्श रखा।
    • उनके धर्म का आधार कर्म के सिद्धांत पर आधारित था और उन्होंने अध्यात्मवाद के विचार को सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं सामाजिक परिवर्तन की विचारधारा में परिणत कर दिया।
    • उन्होंने ‘दशवंध’ (Dasvandh) की अवधारणा या ज़रूरतमंद व्यक्तियों को अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा दान करने की वकालत की।
  • लैंगिक समानता:
    • उनके अनुसार, ‘महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी ईश्वर की कृपा को साझा करते हैं और अपने कार्यों के लिये समान रूप से ज़िम्मेदार होते हैं।
    • महिलाओं के लिये सम्मान और लैंगिक समानता शायद उनके जीवन से सीखने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण सबक है।
  • शांति स्थापना:
    • भारतीय दर्शन के अनुसार, एक गुरु वह है जो रोशनी (अर्थात् ज्ञान) प्रदान करता है, संदेह को दूर करता है और सही रास्ता दिखाता है। इस संदर्भ में गुरु नानक देव के विचार दुनिया भर में शांति, समानता और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
    • वर्ष 2019 में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती मनाई गई और करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया गया, जो भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

स्रोत: पी.आई.बी


शासन व्यवस्था

मिशन COVID सुरक्षा

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने भारतीय COVID-19 वैक्सीन के विकास में तेज़ी लाने के लिये 900 करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज के साथ मिशन COVID सुरक्षा (Mission COVID Suraksha) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • मिशन COVID सुरक्षा
    • मिशन COVID सुरक्षा भारत के लिये स्वदेशी, सस्ती और सुलभ वैक्सीन के विकास को सक्षम बनाने हेतु भारत का लक्षित प्रयास है. जो कि भारत सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ मिशन की दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण होगा।
    • यह मिशन त्वरित उत्पाद विकास के लिये सभी उपलब्ध और वित्तपोषित संसाधनों को समेकित करेगा, जिससे 5-6 वैक्सीन कैंडिडेट्स के विकास में मदद मिलेगी तथा लाइसेंस प्राप्ति और बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित होगी।
  • अनुदान
    • COVID सुरक्षा मिशन के पहले चरण के 12 माह की अवधि के लिये 900 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
    • यह अनुदान, भारतीय COVID-19 वैक्सीन के अनुसंधान और विकास (R&D) के लिये जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) को प्रदान किया जाएगा।
  • हितधारक
    • इस मिशन का नेतृत्त्व जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा किया जाएगा और इसका कार्यान्वयन जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) की एक समर्पित मिशन कार्यान्वयन इकाई द्वारा किया जाएगा।
    • राष्ट्रीय जैव फार्मा मिशन (NBM) और इंड-सीईपीआई (Ind-CEPI) मिशन के तहत मौजूदा गतिविधियाँ मिशन COVID सुरक्षा को पूरक शक्ति प्रदान करेंगी।
      • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा समर्थित इंड-सीईपीआई (Ind-CEPI) मिशन को मार्च 2019 में अनुमोदित किया गया था।
  • उद्देश्य
    • वैक्सीन के पूर्व नैदानिक ​​और नैदानिक ​​विकास में तेज़ी लाना।
    • ऐसे COVID-19 वैक्सीन कैंडिडेट्स को लाइसेंस प्राप्त करने में मदद करना, जो वर्तमान में नैदानिक ​​चरण में हैं या नैदानिक ​​चरण में प्रवेश करने हेतु तैयार हैं।
    • नैदानिक ​​परीक्षण स्थलों की स्थापना करना।
    • मौजूदा केंद्रीय प्रयोगशालाओं, जानवरों पर अध्ययन के लिये उपयुक्त सुविधाओं, उत्पादन सुविधाओं और अन्य परीक्षण सुविधाओं को मज़बूती प्रदान करना।
    • सामान्य प्रोटोकॉल, प्रशिक्षण, डेटा प्रबंधन प्रणाली, नियामक प्रस्तुतियाँ, आंतरिक और बाह्य गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली के विकास का समर्थन करना। 
    • लक्ष्य उत्पाद प्रोफाइल (TPP) का विकास करना भी एक प्रमुख कार्य होगा, ताकि इस मिशन के माध्यम से पेश किये जाने वाले वैक्सीन भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
      • लक्ष्य उत्पाद प्रोफाइल (TPP) किसी एक विशिष्ट रोग के संबंध में एक लक्षित उत्पाद की वांछित विशेषताओं को रेखांकित करती है।
  • महत्त्वपूर्ण वैक्सीन कैंडिडेट्स 
    • अब तक कुल 10 वैक्सीन कैंडिडेट्स को अकादमिक और उद्योग दोनों स्तरों पर जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा समर्थन प्रदान किया गया है और अब तक कुल 5 वैक्सीन कैंडिडेट्स मानव परीक्षण के चरण में हैं।
      • कोविशील्ड: सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा भारत में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका COVID-19 वैक्सीन (कोविशील्ड) के तीसरे चरण का परीक्षण आयोजित किया जा रहा है।
      • कोवाक्सिन: भारत बायोटेक कंपनी द्वारा इस वैक्सीन को ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (ICMR) तथा ‘राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान’ (NIV) के सहयोग से स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है।

      • ZyCoV-D: ज़ाइडस कैडिला फर्म द्वारा स्वदेशी रूप से निर्मित वैक्सीन ZyCoV-D ने देश में नैदानिक ​​परीक्षण के दूसरे चरण को पूरा कर लिया है।
      • स्पुतनिक वी: रूस द्वारा निर्मित वैक्सीन स्पुतनिक वी (Sputnik V) के संयुक्त चरण 2 और चरण 3 के नैदानिक परीक्षण भारत में जल्द ही शुरू किये जाएंगे। 
      • BNT162b2: भारत सरकार अमेरिकी कंपनी फाइज़र द्वारा विकसित वैक्सीन के दूसरे और तीसरे चरण के नैदानिक ​​परीक्षणों के संचालन हेतु प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

नैदानिक परीक्षण 

  • नैदानिक परीक्षण का अभिप्राय किसी भी दवा की नैदानिक विशेषताओं की खोज करने अथवा मानवीय स्वास्थ्य पर उस विशिष्ट दवा के प्रभावों को स्पष्ट करने का एक व्यवस्थित अध्ययन है।
  • यह किसी भी दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता को स्थापित करने का एकमात्र तरीका है, जिसे  मानव उपयोग के लिये बाज़ार में प्रस्तुत करने से पूर्व और पशु परीक्षणों के बाद कार्यान्वित किया जाता है। 
    • पशु परीक्षण के दौरान जानवरों पर किसी दवा की प्रभावकारिता और दुष्प्रभावओं का अध्ययन किया जाता है, साथ ही इस प्रक्रिया के दौरान दवा की अनुमानित खुराक भी निर्धारित की जाती है।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा निर्मित नवीन बाँध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीनी अधिकारियों ने एक चीनी पनविद्युत कंपनी को ब्रह्मपुत्र नदी (जो तिब्बत में यारलुंग ज़ान्गबो के नाम से जानी जाती है) के निम्न-प्रवाह में प्रथम ‘अनुप्रवाह पनविद्युत परियोजना’ (Downstream Hydropower Project) के निर्माण की अनुमति दे दी है।

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प्रमुख बिंदु:

  • ब्रह्मपुत्र:

    • इसे उत्पत्ति स्थल पर सियांग या दिहांग के नाम से जाना जाता है, जिसका उद्गम मानसरोवर झील के पास कैलाश पर्वत के चेमायुंगडुंग (Chemayungdung) ग्लेशियर से है। यह अरुणाचल प्रदेश के सदिया शहर के पश्चिम में भारत में प्रवेश करती है।
    • सहायक नदियाँ:
    • इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ दिबांग, लोहित, सियांग, बुढ़ी दिहिंग, तीस्ता और धनसरी हैं।
    • यह एक बारहमासी नदी है, जो अपने भूगोल और विशिष्ट जलवायु परिस्थितियों के कारण अनेक विलक्षण विशेषताओं से युक्त है।
    • इसमें वर्ष में दो बार बाढ़ की स्थिति रहती है। पहली, गर्मियों में हिमालयी हिम के पिघलने के कारण और दूसरी मानसून के प्रवाह के कारण उत्पन्न होती है।
      • हाल ही में इन बाढ़ों की आवृत्ति बढ़ गई है। जलवायु परिवर्तन तथा उच्च एवं निम्न प्रवाह के प्रभाव के कारण इन बाढ़ों की विनाशकता बढ़ गई है।
      • यह भारत और बांग्लादेश के निचले राज्यों में जनसंख्या और खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से चिंता का विषय है।
    • नदी की गतिशील भूस्खलन और भूगर्भीय गतिविधियों के कारण प्राय: नदी मार्ग में परिवर्तन देखने को मिलता है।

परियोजना के बारे में:

  • चीनी राज्य के स्वामित्व वाली पनविद्युत कंपनी 'पॉवरचाइना' (POWERCHINA) द्वारा नवीन 'पंचवर्षीय योजना' (अवधि 2021-2025) के हिस्से के रूप में यारलुंग ज़ान्गबो नदी के अनुप्रवाह में पनविद्युत के दोहन के लिये 'तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र' (Tibet Autonomous Region- TAR) सरकार के साथ एक रणनीतिक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • यह पहली बार होगा जब नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र का दोहन किया जाएगा। हालाँकि नियोजित परियोजना के स्थान का कहीं भी उल्लेख नहीं है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी का ‘महान अक्षसंघीय वलन’ (ग्रेट बेंड) और मेडोग काउंटी में यारलुंग ज़ान्गबो नदी पर स्थित 'ग्रैंड कैनियन' क्षेत्र- जहाँ नदी का बहाव बहुत तेज़ है तथा यह अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सीमा में प्रवेश करती है, इस परियोजना के लिये संभावित स्थान हो सकता है।
    • इस 50 किमी. लंबाई के अकेले खंड में 70 'मिलियन किलोवाट घंटे' (Kwh) की पनविद्युत विकसित करने की क्षमता है।

चीन की पूर्ववर्ती परियोजनाएँ:

  • वर्ष 2015 में चीन द्वारा तिब्बत के ज़ान्ग्मु (Zangmu) में अपनी पहली पनविद्युत परियोजना का संचालन किया गया था, जबकि डागू (Dagu), जिएक्सु (Jiexu) और जियाचा (Jiacha) में तीन अन्य बाँध निर्मित किये जा रहे हैं, जो नदी के ऊपरी और मध्य प्रवाह में हैं।

water Power

चीन के लिये परियोजना का महत्त्व:

  • 60 मिलियन kWh पनविद्युत के दोहन से प्रतिवर्ष 300 बिलियन kWh स्वच्छ, नवीकरणीय और शून्य-कार्बन उत्सर्जन युक्त विद्युत प्रदान की जा सकती है।
  • परियोजना वर्ष 2030 से पहले 'कार्बन उत्सर्जन' के शिखर पर पहुँचने और वर्ष 2060 तक कार्बन तटस्थता (शुद्ध कार्बन उत्सर्जन शून्य) की स्थिति प्राप्त करने के चीन के लक्ष्य को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

भारत के लिये चिंता का विषय:

  • भारत वर्ष 2015 से- जब चीन ने ज़ान्ग्मु पर अपनी परियोजना का संचालन शुरू किया था, पर चिंता व्यक्त कर रहा है।
  • अगर ग्रेट बेंड में एक बाँध के निर्माण को मंज़ूरी दे दी जाती है, तो इसके स्थान को लेकर (जो नदी के अनुप्रवाह और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित होगा) भारत द्वारा नई चिंताओं को उठाया जाएगा।
    • इस परियोजना में भारत के लिये जल की मात्रा एक मुद्दा नहीं है क्योंकि ये बाँध 'रन-ऑफ-द-रिवर' प्रकार के हैं और ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को प्रभावित नहीं करेंगे।
    • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ब्रह्मपुत्र पूरी तरह से ऊपरी-प्रवाह (Upstream) पर निर्भर नहीं है। इसके बेसिन का अनुमानित 35% हिस्सा भारत में है।
  • हालाँकि भारत, चीनी गतिविधियों के कारण प्रभावित होने वाली जल की गुणवत्ता, पारिस्थितिक संतुलन और बाढ़ प्रबंधन को लेकर चिंतित है।
  • भारत और चीन के बीच कोई जल साझाकरण समझौता नहीं हैं, दोनों देश हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करते हैं। इसलिये वास्तविक डेटा साझा करना और सूखे, बाढ़ तथा भारी मात्रा में जल के निर्वहन की चेतावनी जैसे मुद्दों पर निरंतर संवाद करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

आगे की राह:

  • भारत को हाइड्रोलॉजिकल डेटा के आदान-प्रदान से आगे बढ़कर चीन से पूरे बेसिन की स्थलाकृतिक स्थिति के बारे में जानकारी के आदान-प्रदान की मांग करनी चाहिये।
  • ब्रह्मपुत्र बेसिन में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले किसी भी कदम के लिये दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक समझ की आवश्यकता होगी। भारत के लिये चीन को निरंतर वार्ता में शामिल करना एवं जल-साझाकरण संधि को अपनाना दोनों देशों के हितों की रक्षा के दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: द हिंदू


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