मुख्य परीक्षा
वन स्टॉप सेंटर योजना
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंसा से प्रभावित महिलाओं की सहायता के लिये वन स्टॉप सेंटर (OSC) योजना के तहत स्थापित वन स्टॉप सेंटर (OSC) की खराब स्थिति के संबंध में दिल्ली सरकार को कई निर्देश जारी किये।
वन स्टॉप सेंटर योजना क्या है?
- परिचय: वन स्टॉप सेंटर (OSC) योजना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जिसका उद्देश्य निजी व सार्वजनिक स्थानों जैसे परिवार, समुदाय और कार्यस्थल में हिंसा से प्रभावित महिलाओं को समेकित सहायता तथा समर्थन प्रदान करना है।
- इन्हें सखी सेंटर के नाम से भी जाना जाता है और ये मिशन शक्ति के संबल घटक का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- यह योजना निर्भया फंड के माध्यम से 100% केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है और इसका क्रियान्वयन राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों द्वारा किया जाता है।
- उद्देश्य: वे शारीरिक, यौन, भावनात्मक, मानसिक या आर्थिक हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं के लिये चिकित्सा, कानूनी, मनोवैज्ञानिक और परामर्श सेवाओं तक तत्काल एवं दीर्घकालिक पहुँच सुनिश्चित करते हैं।
- लक्षित लाभार्थी: यह योजना 18 वर्ष से कम आयु की बालिकाओं सहित सभी महिलाओं और बालिकाओं को समर्थन प्रदान करती है, जो किसी भी प्रकार की हिंसा से प्रभावित हों — चाहे उनकी जाति, वर्ग, धर्म, क्षेत्र, वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, लैंगिक पहचान या संस्कृति कुछ भी हो।
- यह योजना किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और POCSO अधिनियम, 2012 से भी जुड़ी हुई है, ताकि अल्पवयस्क बालिकाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- प्रदान की जाने वाली सेवाएँ:
- आपातकालीन प्रतिक्रिया एवं बचाव सेवा (जिसमें पुलिस सहायता शामिल है)
- चिकित्सकीय सहायता (प्राथमिक उपचार, इलाज, रेफरल सेवाएँ) और कानूनी सहायता एवं परामर्श (FIR दर्ज करना, NALSA के माध्यम से कानूनी सलाह)
- मनो-सामाजिक परामर्श (मानसिक स्वास्थ्य समर्थन) और अस्थायी आश्रय (कम अवधि के लिये रुकने की सुविधा)
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (दूरस्थ कानूनी/चिकित्सकीय परामर्श के लिये)
- दायरा (Coverage): प्रत्येक ज़िले में कम से कम एक OSC को प्रोत्साहित किया जाता है तथा अपराध-प्रवण, बड़े या आकांक्षी ज़िलों में अतिरिक्त केंद्रों की स्थापना की जाती है।
- वित्तीय एवं लेखा प्रणाली: वित्तीय संसाधनों का वितरण सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (PFMS) के माध्यम से एकल नोडल एजेंसी (SNA) या SNA SPARSH के तहत किया जाता है।
- लेखा परीक्षण नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के मानदंडों के अनुसार किया जाता है, साथ ही नागरिक समाज संगठनों द्वारा सामाजिक लेखा परीक्षण भी किये जाते हैं।
OSC दिशा-निर्देशों की क्या आवश्यकता थी?
- कर्मचारी की कमी: कई वन स्टॉप सेंटर (विशेषकर अस्पतालों में स्थित) समर्पित कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं और इन्हें प्रायः मौजूदा अस्पताल स्टाफ द्वारा चलाया जा रहा है। आवश्यकता पड़ने पर परामर्शदाता बाहरी एजेंसियों से बुलाए जाते हैं।
- मानक संचालन प्रक्रियाओं (SoP) का उल्लंघन: दिल्ली जैसे मामलों में OSC के लिये तय SoP में 5 परामर्शदाता, 5 वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर, 5 स्टाफ नर्स और 5 नर्सिंग सहायक अनिवार्य रूप से नियुक्त करने का निर्देश है, लेकिन ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि इन मानकों का पालन नियमित रूप से नहीं किया गया।
- रिकॉर्ड प्रबंधन में कमी: बच्चों की मृत्यु की समीक्षा और एंटी-नेटल केयर (ANC) जैसे महत्त्वपूर्ण रिकॉर्ड ठीक से संधारित नहीं किये जाते, जिससे निगरानी एवं सेवा सुधार में बाधा आती है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने क्या निर्देश जारी किये?
- जन-जागरूकता अभियान: सरकार को निर्देश दिया गया कि वह समाचार पत्रों और प्रमुख स्थानों जैसे स्कूलों, अस्पतालों, बस स्टॉप्स पर हेल्पलाइन नंबरों सहित साइनबोर्ड लगाकर वन स्टॉप सेंटर्स (OSC) का व्यापक प्रचार करना चाहिये।
- अवसरंचना सुदृढ़ीकरण: न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि वह पर्याप्त आधारभूत सुविधाएँ सुनिश्चित करे और तत्काल स्टाफ की भर्ती कर सभी OSC को पूर्ण रूप से क्रियाशील बनाए।
- मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का क्रियान्वयन: न्यायालय ने निर्देश दिया कि बाल गर्भावस्था और बाल विवाह से संबंधित SOP को सभी संबंधित पक्षों विशेषकर पुलिस व OSC स्टाफ के बीच प्रसारित किया जाए।
- नोडल अधिकारी की नियुक्ति: दिल्ली सरकार को निर्देशित किया गया कि वह एक नोडल अधिकारी नियुक्त करे, जो क्रियान्वयन और निगरानी की ज़िम्मेदारी संभाले।
नोट: उपरोक्त समस्याओं को पहले भी भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में उजागर किया गया था, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन से संबंधित थी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में लैंगिक आधारित हिंसा से निपटने में वन स्टॉप सेंटर (OSC) की भूमिका पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. महिलाएँ जिन समस्याओं का सार्वजनिक एवं निजी दोनों स्थलों पर सामना कर रही हैं, क्या राष्ट्रीय महिला आयोग उनका समाधान निकालने की रणनीति बनाने में सफल रहा है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2017) |
जैव विविधता और पर्यावरण
टूवर्ड्स रेजिलिएंट एंड प्रॉस्परस सिटीज़ इन इंडिया
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992, वस्तु एवं सेवा कर, स्मार्ट सिटी मिशन मेन्स के लिये:भारत में शहरी जलवायु जोखिम और लचीलापन रणनीतियाँ, भारत में शहरी नियोजन और सतत् विकास की चुनौतियाँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक की केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के सहयोग से तैयार की गई रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है टूवर्ड्स रेजिलिएंट एंड प्रॉस्परस सिटीज इन इंडिया’ (Towards Resilient and Prosperous Cities in India), में पूर्वानुमान लगाया गया है। हालाँकि इन शहरों को बाढ़ और अत्यधिक गर्मी जैसे जलवायु जोखिमों का भी सामना करना पड़ेगा। रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि शहरों को अधिक स्वायत्तता तथा जलवायु-लचीली योजना की आवश्यकता है।
भारतीय शहरों को प्रभावित करने वाले प्रमुख जलवायु जोखिम क्या हैं?
- शहरी विकास: अनुमान है कि वर्ष 2050 तक शहरी जनसंख्या लगभग दोगुनी होकर 951 मिलियन हो जाएगी। वर्ष 2030 तक सभी नई नौकरियों में से 70% शहरों में पैदा होंगी, लेकिन तेज़ी से हो रहे शहरीकरण से जलवायु संबंधी झटकों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
- भारतीय शहरों को वर्ष 2050 तक जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचा और सेवाएँ विकसित करने के लिये 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।
- बाढ़: बाढ़-प्रवण बाढ़-संभावित क्षेत्रों में शहरी विस्तार और कंक्रीट निर्माण में वृद्धि वर्षा जनित बाढ़ (वृष्टि जनित बाढ़) की स्थिति को और गंभीर बना रही है, क्योंकि इससे वर्षा जल का अवशोषण बाधित होता है।
- विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ के कारण वार्षिक हानि वर्ष 2030 तक 5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है। यदि पर्याप्त अनुकूलन उपाय नहीं किये गए, तो वर्ष 2070 यह हानि बढ़कर 30 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की आशंका है।
- सिर्फ 10–20% सड़कों पर जलभराव होने से किसी शहर की परिवहन प्रणाली का 50% से अधिक हिस्सा प्रभावित हो सकता है।
- अत्यधिक गर्मी: विश्व बैंक की रिपोर्ट भारतीय शहरों में शहरी हीट आइलैंड प्रभाव की बढ़ती तीव्रता को उजागर करती है, जहाँ कंक्रीट और डामर (एस्फाल्ट) दिन के समय ताप को अवशोषित कर लेते हैं और रात में धीरे-धीरे उसे वापस वातावरण में उत्सर्जित करते हैं, जिससे रात के समय तापमान बढ़ जाता है।
- वर्ष 2050 तक प्रतिवर्ष गर्मी से संबंधित लगभग 3 लाख मृत्यु होने की आशंका है। शहरी हरियाली (Urban Greening) और कूल रूफ्स जैसी समाधान योजनाएँ प्रतिवर्ष 1.3 लाख से अधिक मृत्यु को रोक सकती हैं, जो शहरी नियोजन में जलवायु अनुकूलन (Climate Adaptation) की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
- वायु प्रदूषण: वर्ष 2023 में, विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 42 भारत के हैं, जबकि वर्ष 2022 में यह संख्या 39 थी। खराब वायु गुणवत्ता के प्राथमिक कारणों में वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, निर्माण कार्य से उत्पन्न धूलकण और बायोमास का जलना शामिल हैं।
- इससे श्वसन रोगों का खतरा बढ़ता है, जिससे दिल्ली, मुंबई और बंगलूरू जैसे शहरों में लाखों लोग प्रभावित होते हैं।
जलवायु समुत्थानशीलता बढ़ाने में शहरी स्वायत्तता की चुनौतियाँ क्या हैं?
- शहरी स्थानीय निकायों को कमजोर हस्तांतरण: शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) भारत में स्थानीय स्वशासन के रूप में कार्य करते हैं, जिन्हें 1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया है।
- इस अधिनियम ने राज्यों को शहरी नियोजन, भूमि उपयोग का विनियमन, जल आपूर्ति और झुग्गी पुनर्विकास जैसी ज़िम्मेदारियाँ शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को सौंपने का अधिकार दिया, लेकिन कई राज्यों ने इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं किया है।
- सीमित वित्तीय संसाधन: शहरी स्थानीय निकायों के पास अक्सर जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे और नीतियों को लागू करने के लिये आवश्यक वित्तीय संसाधनों की कमी होती है, जिससे वे जलवायु जोखिमों का प्रभावी ढंग से समाधान करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
- अधिकांश शहरों को राजस्व जुटाने में कठिनाई होती है; भारत में संपत्ति कर संग्रह GDP का केवल 0.2% है, जबकि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) देशों में यह औसतन 1.1% है।
- भारत में शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को वित्तीय संसाधनों का हस्तांतरण उन देशों की तुलना में काफी कम है, जैसे कि दक्षिण अफ्रीका (2.6%), मैक्सिको (1.6%), फिलीपींस (2.5%) और ब्राज़ील (5.1%)।
- यह सीमित धनराशि शहरी उत्पादकता और जीवन स्तर को कम करती है। वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने से शहरी स्थानीय निकायों के राजस्व स्रोत और भी कम हो गए, जिससे उनकी वित्तीय स्वायत्तता कमज़ोर हो गई।
- कमज़ोर संस्थागत क्षमता: कई शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के पास जलवायु अनुकूलन रणनीतियों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिये तकनीकी विशेषज्ञता और प्रशासनिक क्षमता का अभाव है।
- आँकड़ों की कमी: शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के पास अक्सर जलवायु जोखिमों और शहरी बुनियादी ढाँचे से संबंधित सटीक और अद्यतन डेटा की पहुँच नहीं होती, जो सूझबूझ भरे निर्णय लेने के लिये आवश्यक है।
- खंडित शासन व्यवस्था: विभिन्न शहरी प्राधिकरणों के बीच समन्वय की कमी से विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु लचीलापन रणनीतियों का एकीकृत रूप से क्रियान्वयन बाधित होता है।
भारतीय शहरों में जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने हेतु प्रमुख रणनीतियाँ क्या हैं?
- शहरों को अधिक स्वायत्तता: विश्व बैंक ने बताया है कि जिन शहरों को अधिक स्वायत्तता प्राप्त होती है, वे संसाधन जुटाने, जलवायु लचीलापन बनाए रखने और जवाबदेही के मामले में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
- विकेंद्रीकृत शासन उन्हें स्थानीय चुनौतियों का सामना करने और विशेष रूप से जलवायु अनुकूलन के लिये राजस्व बढ़ाने में मदद करता है।
- नगरपालिका राजस्व सुदृढ़ करना वित्त आयोगों (FC) की लगातार प्राथमिकता रही है। 12वें वित्त आयोग ने संपत्ति कर संग्रह में सुधार के लिये भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया, जबकि 14वें वित्त आयोग ने नगरपालिका को रिक्त भूमि कर लगाने का अधिकार देने की सिफारिश की।
- शहरी नियोजन और डिज़ाइन: पार्क, आर्द्रभूमि और खुले क्षेत्र जैसे हरित अवसंरचना वर्षा जल के प्रबंधन और शहरी गर्मी को कम करने में मदद करते हैं। अमृत 2.0 (अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन) जैसी योजनाएँ हरित क्षेत्र और जल-केंद्रित परियोजनाओं के माध्यम से इसका समर्थन करती हैं।
- शहरों को बाढ़ के मैदानों में निर्माण कार्य से बचने तथा जलवायु के प्रति जागरूक क्षेत्रीकरण मानदंडों को लागू करके जलवायु-लचीले शहरी नियोजन की भी आवश्यकता है।
- औद्योगिक उपयोग के लिये जल का पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग करके तूफानी जल निकासी को उन्नत करना तथा कुशल नियोजन हेतु स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत जलवायु स्मार्ट सिटी मूल्यांकन ढाँचे को लागू करना।
- जोखिम मूल्यांकन और अनुकूलन उपाय: शहरों को विस्तृत जलवायु जोखिम मूल्यांकन करना चाहिये और अनुकूलन उपायों (जैसे अहमदाबाद हीट एक्शन प्लान मॉडल) को शहर विकास योजनाओं में शामिल करना चाहिये।
- वास्तविक समय जोखिम प्रबंधन और सामुदायिक तैयारी का समर्थन करने के लिये भू-स्थानिक डेटा, जलवायु मॉडल और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों का उपयोग करना।
- ऊर्जा-कुशल और लचीली इमारतें: राष्ट्रीय सतत् आवास मिशन (NMSH) के तहत, भारतीय शहरों के निर्मित वातावरण में जलवायु परिवर्तन शमन तथा अनुकूलन को बढ़ावा देना, टिकाऊ भवनों, कुशल अपशिष्ट प्रबंधन और कम कार्बन शहरी परिवहन प्रणालियों जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
- भारत का कूलिंग एक्शन प्लान में वर्ष 2037 तक कूलिंग की मांग में आठ गुना वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। ऊर्जा-कुशल भवन उत्सर्जन को कम कर सकते हैं, आरामदायक वातावरण प्रदान कर सकते हैं और इनडोर वायु गुणवत्ता को बेहतर बना सकते हैं।
- निवेश बढ़ाएँ: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) जलवायु लचीलापन परियोजनाओं के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जलवायु अनुकूलित बुनियादी ढाँचे में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने से शहर अतिरिक्त धन और तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठा सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारतीय शहर जलवायु परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में हैं। प्रमुख जोखिम और भारत के शहरी जलवायु लचीलापन निर्माण के दृष्टिकोण पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा के पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्सप्रश्न. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016) प्रश्न. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनकों बहिष्कृत कर देती है? (2014) |
मुख्य परीक्षा
जलवायु कार्रवाई हेतु राज्य के कर्त्तव्यों पर ICJ की एडवाइजरी
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने एक लैंडमार्क एडवाइजरी जारी की है, जिसमें कहा गया है कि देशों को जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका के लिये कानूनी रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- इससे पहले, वर्ष 2021 में वानुआतु ने जलवायु परिवर्तन पर ICJ से एडवाइजरी मांगी थी, जिसे मार्च 2023 में अन्य संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों का समर्थन प्राप्त हुआ।
जलवायु परिवर्तन पर राज्यों की ज़िम्मेदारियों को लेकर ICJ का रुख क्या है?
- जलवायु कार्रवाई एक कानूनी कर्त्तव्य है: अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत राज्यों पर यह बाध्यता है कि वे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करें और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन की दिशा में कार्य करें।
- ये ज़िम्मेदारियाँ केवल जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) और वर्ष 2015 के पेरिस समझौते (जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान को औद्योगिक पूर्व स्तर से अधिकतम 1.5°C तक सीमित करना है) तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें अन्य पर्यावरणीय संधियाँ भी शामिल हैं, जैसे — मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, जैव विविधता पर कन्वेंशन, मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और समुद्री कानून (Law of the Seas)।
- ये ज़िम्मेदारियाँ केवल वर्तमान पीढ़ी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों के अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिये भी हैं।
- विफलता एक अनुचित कृत्य है: अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने यह स्पष्ट किया है कि हर देश, चाहे वह आकार या विकास स्तर में कोई भी हो, उसकी जलवायु परिवर्तन से संबंधित ज़िम्मेदारियाँ अनिवार्य हैं।
- यह स्थिति जलवायु क्षतिपूर्ति और "हानि और क्षति" (Loss and Damage) वित्तपोषण के लिये वैश्विक स्तर पर उठ रही मांगों को और अधिक बल प्रदान करती है।
- विकसित देशों की भूमिका: विकसित देशों (विशेषकर UNFCCC के अनुलग्नक I में सूचीबद्ध देशों) को उत्सर्जन कम करने तथा अन्य देशों को सहयोग देने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये।
- मुख्य न्यायाधीश (CJ) ने यह उल्लेख किया कि जलवायु का संरक्षण करना, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों को पूरा करने का एक अभिन्न हिस्सा है।
- महत्त्व: हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की यह राय कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, फिर भी इसका प्रभाव अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जा रहा
- परिचय: अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की स्थापना वर्ष 1945 में की गई थी और यह वर्ष 1946 से सक्रिय है। यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है।
- यह राज्यों सलाहकार राय के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करता है तथा अइसके फैसले अंतिम और बाध्यकारी होते हैं, जिन पर कोई अपील नहीं की जा सकती। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 के तहत, संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को इसका पालन करना होगा। सलाहकार राय बाध्यकारी नहीं होती हैं।
- यह राय ब्राज़ील में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 30) के 30वें सत्र में वैश्विक जलवायु नीति निर्धारण को प्रभावित कर सकती है।
- यह राय जलवायु कार्रवाई को और अधिक सशक्त बनाने की वैश्विक मांग को बल देती है, विशेषकर उन देशों से जो ऐतिहासिक रूप से उच्च उत्सर्जनकर्त्ता रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ((ICJ)) क्या है?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की उत्पत्ति विश्व स्तर पर विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के प्रयासों से हुई। इसकी शुरुआत वर्ष 1899 की हेग शांति सम्मेलन से हुई, जिसमें स्थायी पंचाट न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) की स्थापना की गई। इसके बाद वर्ष 1922 में राष्ट्र संघ (League of Nations) के तहत स्थायी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (PCIJ) की स्थापना की गई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद PCIJ को समाप्त कर दिया गया और उसकी जगह वर्ष 1945 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की स्थापना की गई।
- संरचना: इस न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा नौ वर्ष के कार्यकाल के लिये चुना जाता है।
- महत्त्व: यह शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान को बढ़ावा देता है, अंतर्राष्ट्रीय कानून को कायम रखता है, वैश्विक कानूनी मानदंडों (जैसे जलवायु परिवर्तन, आत्मनिर्णय) को स्पष्ट करता है, मानवाधिकारों का समर्थन करता है, और बहुपक्षीय सहयोग को मज़बूत करता है।
- ICJ के साथ भारत की सहभागिता:
- भारतीय क्षेत्र में आवागमन का अधिकार (पुर्तगाल बनाम भारत, 1960): पुर्तगाल को नागरिकों के लिये आवागमन का अधिकार दिया गया था, लेकिन भारत अपनी संप्रभुता की पुष्टि करते हुए सैन्य या राजनीतिक पहुँच को अवरुद्ध कर सकता था।
- कुलभूषण जाधव मामला (भारत बनाम पाकिस्तान, 2019): ICJ ने फैसला सुनाया कि पाकिस्तान ने भारत को वाणिज्य दूतावास संबंधी पहुँच से वंचित कर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन किया है और उसने पाकिस्तान को सज़ा की समीक्षा करने का आदेश दिया।
नोट: अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) से अलग है। ICC व्यक्तियों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की सुनवाई करता है, जबकि ICJ देशों के बीच कानूनी विवादों से संबंधित होता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) का अधिकार-क्षेत्र और जलवायु शासन में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. "विधि का नियम सूचकांक" (रुल ऑफ लॉ इंडेक्स) को निम्नलिखित में से किसके द्वारा जारी किया जाता है? (2018) (a) एमनेस्टी इंटरनेशनल उत्तर: (D) मेन्सप्रश्न. ‘स्वच्छ ऊर्जा आज की ज़रूरत है।’ भू-राजनीति के संदर्भ में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों में जलवायु परिवर्तन की दिशा में भारत की बदलती नीति का संक्षिप्त वर्णन कीजिये। (2022) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत–ब्रिटेन विज़न 2035 और CETA
प्रिलिम्स के लिये:मुक्त व्यापार समझौता, द्विपक्षीय निवेश संधि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, ‘नेट ज़ीरो’ इनोवेशन वर्चुअल सेंटर मेन्स के लिये:भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय संबंध और विकसित होती रणनीतिक साझेदारी, मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) का महत्त्व |
स्रोत: पी. आई. बी.
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रधानमंत्री की लंदन यात्रा के दौरान भारत–ब्रिटेन विज़न 2035 का अनावरण किया गया और व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (CETA), जो एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, को औपचारिक रूप दिया गया। इसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार को वर्ष 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक करना है।
भारत-ब्रिटेन विज़न 2035 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- व्यापार और आर्थिक सहयोग: नव हस्ताक्षरित CETA विज़न 2035 का केंद्रीय विषय है, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाना और रोज़गार सृजन करना है।
- संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति (JETCO) इसके कार्यान्वयन की देखरेख करेगी तथा द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) को आगे बढ़ाने की योजना बनाएगी।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार: प्रौद्योगिकी सुरक्षा पहल पर मुख्य ध्यान दिया जा रहा है, जिसका लक्ष्य अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग, दूरसंचार और महत्त्वपूर्ण खनिजों में प्रगति करना है।
- रक्षा: दोनों देशों ने 10 वर्षीय रक्षा औद्योगिक रोडमैप पर सहमति व्यक्त की है, जिसमें जेट इंजन प्रौद्योगिकी, समुद्री सुरक्षा और निर्देशित ऊर्जा हथियारों जैसे क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान और विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- ब्रिटेन हिंद महासागर क्षेत्र में रसद के लिये भी भारत पर निर्भर रहेगा और गैर-पारंपरिक समुद्री सुरक्षा खतरों से निपटने हेतु क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा उत्कृष्टता केंद्र (RMSCE) की स्थापना हेतु हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) के तहत भारत के साथ काम करेगा।
- जलवायु एवं स्थायित्व: भारत और ब्रिटेन हरित वित्त जुटाने, अपतटीय पवन तथा परमाणु प्रौद्योगिकियों पर सहयोग करने एवं हरित वस्तुओं में संयुक्त आपूर्ति शृंखला बनाने के लिये मिलकर काम करेंगे।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन जैसे मंच इन प्रयासों को सुगम बनाएंगे।
- शिक्षा और कौशल: ब्रिटेन भारत में विश्वविद्यालय परिसरों की स्थापना को प्रोत्साहित करेगा तथा दोनों देश हरित कौशल साझेदारी के माध्यम से योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता और जलवायु से जुड़े रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
- वैश्विक शासन: बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है तथा संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में सुधारों का समर्थन करता है।
भारत-ब्रिटेन CETA की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रमुख विशेषताएँ:
- शुल्क-मुक्त पहुँच: भारत को ब्रिटेन बाज़ार में 99% शुल्क-मुक्त पहुँच प्राप्त होगी, जिससे वस्त्र, चमड़ा, समुद्री उत्पाद, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहन तथा ऑटो पार्ट्स जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को लाभ मिलेगा।
- भारत 90% टैरिफ लाइनों पर शुल्क में कटौती करेगा या उसे समाप्त करेगा, जो ब्रिटेन से आयातित 92% वस्तुओं को शामिल करती हैं (जिसमें कार, शराब शामिल हैं)।
- भारत समझौते के छठे वर्ष में ब्रिटेन के इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैरिफ समाप्त कर देगा तथा 40,000 GBP से कम कीमत वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर कोई शुल्क नहीं लगेगा।
- सेवा क्षेत्र: भारतीय पेशेवरों और कंपनियों को IT, वित्तीय सेवाएँ, शिक्षा आदि क्षेत्रों में विस्तारित बाज़ार पहुँच प्राप्त होगी। साथ ही, इंजीनियरिंग, वास्तुकला और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्रों के लिये वीज़ा प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा।
- डबल कंट्रीब्यूशन कन्वेंशन: डबल कंट्रीब्यूशन कन्वेंशन के तहत, भारत-ब्रिटेन CETA भारतीय पेशेवरों और उनके नियोक्ताओं को ब्रिटेन में सामाजिक सुरक्षा योगदान से तीन वर्षों के लिये छूट देगा, जिससे भारतीय प्रतिभा की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
- समावेशी विकास: यह समझौता महिलाओं, युवाओं, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME), किसानों और नवप्रवर्तकों की भागीदारी को बढ़ावा देगा, जिससे उन्हें वैश्विक मूल्य शृंखलाओं तक पहुँच मिलेगी तथा सतत् प्रथाओं को समर्थन मिलेगा।
- कृषि लाभ: भारत के कृषि उत्पादों जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, खाद्य तेल और समुद्री खाद्य पदार्थों पर शुल्क में कटौती की जाएगी, जिससे ब्रिटेन को निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- शुल्क-मुक्त पहुँच: भारत को ब्रिटेन बाज़ार में 99% शुल्क-मुक्त पहुँच प्राप्त होगी, जिससे वस्त्र, चमड़ा, समुद्री उत्पाद, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहन तथा ऑटो पार्ट्स जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को लाभ मिलेगा।
- प्रभाव:
- व्यापार विस्तार: CETA का लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करना है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं का संयुक्त व्यापार लगभग 112 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। इस समझौते से वर्ष 2040 तक भारत को ब्रिटेन के निर्यात में 60% की वृद्धि होने का अनुमान है।
- रोज़गार सृजन: यह समझौता आर्थिक गतिविधियों के विस्तार के माध्यम से दोनों देशों में विशेष रूप से विनिर्माण, सेवा और कृषि जैसे क्षेत्रों में रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करेगा।
- बढ़ा हुआ निवेश: समझौते में MSME, स्टार्टअप्स तथा उद्यमियों के लिये अनुकूल प्रावधानों को शामिल किये जाने से भारत और ब्रिटेन के बीच निवेश प्रवाह को बढ़ावा मिलेगा।
भारत-ब्रिटेन संबंधों का समय के साथ विकास कैसे हुआ?
- व्यापार और निवेश: वर्ष 2023–24 में द्विपक्षीय व्यापार 21.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। वर्ष 2024–25 में भारत का ब्रिटेन को निर्यात 12.6% बढ़कर 14.5 बिलियन डॉलर हो गया, जबकि ब्रिटेन से आयात 2.3% बढ़कर 8.6 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार: वर्ष 2024 में शुरू की गई भारत–ब्रिटेन टेक्नोलॉजी सिक्योरिटी इनिशिएटिव (TSI) कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), सेमीकंडक्टर्स और साइबर सुरक्षा जैसे उभरते क्षेत्रों पर केंद्रित है।
- ब्रिटेन अब अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा अनुसंधान साझेदार है। भारत-ब्रिटेन ‘नेट ज़ीरो’ इनोवेशन वर्चुअल सेंटर हरित हाइड्रोजन और डीकार्बोनाइज़ेशन पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- ब्रिटेन ने भारत को अपने इंटरनेशनल साइंस पार्टनरशिप फंड में भागीदार भी घोषित किया है।
- रक्षा और सुरक्षा: भारत और ब्रिटेन ने कोंकण, कोबरा वॉरियर और अजेय वॉरियर जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यासों के माध्यम से रक्षा सहयोग को मज़बूत किया है, जो इंडो-पैसिफिक सहयोग तथा रक्षा तकनीक पर केंद्रित हैं।
- स्वास्थ्य: कोविड-19 महामारी के दौरान भारत और ब्रिटेन ने मिलकर कार्य किया, विशेष रूप से एस्ट्राज़ेनेका–सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन साझेदारी के माध्यम से। ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) में 60,000 से अधिक भारतीय कार्य कर रहे हैं।
- भारतीय प्रवासी: ब्रिटेन में 1.86 मिलियन भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जो विज्ञान, कला, व्यापार और राजनीति में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
भारत-ब्रिटेन के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?
- प्रत्यर्पण मुद्दे: भारत ब्रिटेन पर भगोड़ों (जैसे, विजय माल्या) को शरण देने का आरोप लगाता है। प्रत्यर्पण पर ब्रिटेन की अनिच्छा कानूनी और कूटनीतिक विश्वास को प्रभावित करती है।
- रूस-यूक्रेन युद्ध: इस युद्ध पर भारत की तटस्थ नीति, ब्रिटेन की यूक्रेन समर्थक सख्त रणनीति से मेल नहीं खाती, जिससे रणनीतिक असहजता उत्पन्न होती है।
- जलवायु शुल्क: ब्रिटेन की योजनाबद्ध कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली (CBAM) स्टील जैसे भारतीय निर्यातों को नुकसान पहुँचा सकती है। भारत इसे संरक्षणवाद के रूप में देखता है।
- खालिस्तानी गतिविधियाँ: ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनों से द्विपक्षीय संबंधों में तनाव उत्पन्न होता है। भारत चाहता है कि ब्रिटेन इन अलगाववादी गतिविधियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करे।
- बौद्धिक संपदा अधिकार: ब्रिटेन द्वारा सख्त बौद्धिक संपदा संरक्षण की मांग, भारत की किफायती दवाओं और लचीले नवाचार नियमों की आवश्यकता के साथ टकराती है।
भारत-ब्रिटेन संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?
- सुरक्षा संबंधों को मज़बूत करना: AUKUS जैसे मंचों का लाभ उठाते हुए भारत-ब्रिटेन को इंडो-पैसिफिक रणनीति, आतंकवाद-रोधी सहयोग और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अपनी साझेदारी को विस्तारित करना चाहिये।
- संयुक्त जलवायु कार्रवाई: साझा अनुसंधान मंचों के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा, सतत् कृषि और हरित नवाचार पर सहयोग करना।
- व्यापार और निवेश कूटनीति: निवेश को बढ़ावा देने और भारत को वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) के रूप में बढ़ावा देने हेतु बाज़ार पहुँच का विस्तार करना।
- प्रवासी भारतीयों का लाभ उठाना: ब्रिटेन में 18.6 लाख की आबादी वाले भारतीय समुदाय को राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहुँच के लिये शामिल करना।
निष्कर्ष:
भारत-ब्रिटेन विज़न 2035 और CETA रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी संबंधों को और मज़बूत बनाते हैं, जिससे व्यापार, नवाचार, रक्षा और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में अवसर उपलब्ध होते हैं। नीतिगत मतभेदों को सावधानीपूर्वक सुलझाने और केंद्रित कूटनीति से एक मज़बूत एवं भविष्य के लिये तैयार साझेदारी बनाने में मदद मिलेगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न प्रश्न. भारत–ब्रिटेन विज़न 2035 की रणनीतिक प्रासंगिकता की समीक्षा कीजिये और यह किस प्रकार ब्रेक्जिट के बाद द्विपक्षीय संबंधों को पुनर्परिभाषित करता है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. हमने ब्रिटिश मॉडल के आधार पर संसदीय लोकतंत्र को अपनाया, लेकिन हमारा मॉडल उस मॉडल से कैसे अलग है?( 2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त में से कौन 'आर्कटिक परिषद्' के सदस्य हैं? (A) 1, 2 और 3 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न: भारत और ब्रिटेन की न्यायिक व्यवस्था हाल के दिनों में अभिसरण के साथ-साथ अलग-अलग होती दिख रही है। न्यायिक प्रथाओं के संदर्भ में दोनों देशों के बीच अभिसरण एवं विचलन के प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालिये। (2020) |