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डेली न्यूज़

  • 24 Nov, 2020
  • 36 min read
भारतीय समाज

लिंगानुपात और भारत

प्रिलिम्स के लिये:

लिंगानुपात आँकड़ों में राज्यों का स्थान

मेन्स के लिये:

लिंगानुपात से संबंधित मुद्दे तथा उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में "नागरिक पंजीकरण प्रणाली के आधार पर भारत के जन्म-मृत्यु संबंधी आँकड़ों" पर वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में अरुणाचल प्रदेश में जन्म के समय सबसे अच्छा लिंगानुपात दर्ज किया गया है, जबकि मणिपुर में जन्म के समय सबसे खराब लिंगानुपात दर्ज किया।

प्रमुख बिंदु:

  • इस रिपोर्ट को भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of India) द्वारा प्रकाशित किया गया था।
  • जन्म के समय लिंगानुपात प्रति हज़ार पुरुषों पर पैदा होने वाली महिलाओं की संख्या है। यह किसी जनसंख्या के लिंगानुपात को मापने का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
  • अरुणाचल प्रदेश में प्रति हज़ार पुरुषों पर पैदा होने वाली महिलाओं की संख्या 1,084 है। उसके बाद क्रमशः नगालैंड (965), मिज़ोरम (964), केरल (963) हैं।
  • सबसे खराब लिंगानुपात मणिपुर (757), लक्षद्वीप (839), दमन और दीव (877), पंजाब (896) तथा गुजरात (896) में दर्ज किया गया।
  • दिल्ली में 929, जबकि हरियाणा में 914 लिंगानुपात दर्ज किया गया।
    • यह अनुपात 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्रदान किये गए डेटा के आधार पर निर्धारित किया गया था, क्योंकि छह राज्यों बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से अपेक्षित जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रमुख राज्य 10 मिलियन और उससे अधिक आबादी वाले राज्य हैं।
  • सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) रिपोर्ट, 2018 से पता चलता है कि भारत में जन्म के समय लिंगानुपात वर्ष 2011 में 906 से घटकर वर्ष 2018 में 899 हो गया है।
    • इंडियास्पेंड (IndiaSpend) द्वारा किये गए सरकारी आँकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, भारत में जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट आई है, जबकि पिछले 65 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय  लगभग 10 गुना बढ़ गई है। 
    • इसका कारण लोगों की बढ़ती आय हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप साक्षरता बढ़ रही है और इससे परिवारों की सेक्स-सेलेक्टिव प्रक्रियाओं तक पहुँच आसान हो जाती है।

भारत के रजिस्ट्रार जनरल

(Registrar General of India):

  • भारत सरकार ने वर्ष 1961 में गृह मंत्रालय के अधीन भारत के रजिस्ट्रार जनरल की स्थापना की थी।
  • यह भारत की जनगणना सर्वेक्षण और भारत के भाषाई सर्वेक्षण सहित भारत के जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण के परिणामों की व्यवस्था, संचालन तथा विश्लेषण करता है।
  • रजिस्ट्रार का पद पर आमतौर पर एक सिविल सेवक होता है जो संयुक्त सचिव होता है।
  • भारत में नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) महत्त्वपूर्ण घटनाओं (जन्म, मृत्यु, स्टिलबर्थ) और उसके बाद की विशेषताओं की निरंतर, स्थायी, अनिवार्य और सार्वभौमिक रिकॉर्डिंग की एकीकृत प्रक्रिया है। एक पूर्ण और अद्यतित CRS के माध्यम से प्राप्त डेटा सामाजिक-आर्थिक नियोजन के लिये आवश्यक है।

जन्म के समय निम्न लिंगानुपात से संबंधित मुद्दे:

लिंग-असंतुलन-

  • प्रो अमर्त्य कुमार सेन ने अपने विश्व प्रसिद्ध लेख "मिसिंग वूमेन" में सांख्यिकीय रूप से यह साबित किया है कि पिछली शताब्दी के दौरान दक्षिण एशिया में 100 मिलियन महिलाएँ गायब हुई हैं।
  • यह उनके संपूर्ण जीवन चक्र में जन्म से मृत्यु तक अनुभव किये गए भेदभाव के कारण है।
  • एक प्रतिकूल बाल लिंगानुपात भी पूरी आबादी के विकृत लिंग ढाँचे में परिलक्षित होता है।

विवाह प्रणाली में विकृति-

  • प्रतिकूल लिंगानुपात के परिणामस्वरूप पुरुषों और महिलाओं की संख्या में व्यापक अंतर आ जाता है और विवाह प्रणालियों पर इसके अपरिहार्य प्रभाव के साथ-साथ महिलाओं को अन्य परेशानियां होती हैं।
  • भारत में, हरियाणा और पंजाब के कुछ गाँवों में ऐसे लिंगानुपात हैं, जिसमें जो पुरुष, महिलाओं को दुल्हन के तौर पर दूसरे राज्यों से खरीद कर लाते हैं। ऐसी स्थितियों में अक्सर इन दुल्हनों का शोषण होता है।

Gap-Persists

आगे की राह:

व्यवहारिक परिवर्तन लाना-

  • महिला शिक्षा और आर्थिक समृद्धि बढ़ाने से लिंगानुपात में सुधार करने में मदद मिलती है। उदहारण के लिये, सरकार के बेटी-बचाओ बेटी पढाओ अभियान ने समाज में व्यवहार परिवर्तन लाने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।

युवाओं को संवेदनशील बनाना-

  • प्रजनन, स्वास्थ्य शिक्षा और सेवाओं के साथ-साथ लिंग इक्विटी मानदंडों के विकास के लिये युवाओं तक पहुँचने की तत्काल आवश्यकता है।
  • इसके लिये, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा) की सेवाओं का लाभ उठाया जा सकता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।

कानून का सख्त प्रवर्तन-

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जी-20 सम्मेलन, 2020

प्रिलिम्स के लिये:

जी-20, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन, संयुक्त राष्ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम सम्मेलन, नमामि गंगे कार्यक्रम, नई शिक्षा नीति, प्रधान मंत्री नवीन शिक्षण कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

नये वैश्विक सूचकांक की ज़रूरत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, G-20 (Group of Twenty) वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भारत ने कोरोना के बाद वाली दुनिया के लिये "नया वैश्विक सूचकांक" बनाने का सुझाव दिया।

प्रमुख बिंदु

  • नया वैश्विक सूचकांक 4 स्तंभों पर आधारित होगा
    • प्रतिभा,
    • प्रौद्योगिकी,
    • पारदर्शिता और
    • पृथ्वी के संरक्षण का भाव।
  • इस वर्ष के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी सऊदी अरब ने की थी।
  • प्रतिभा:
    • मानव प्रतिभाओं का बड़ा पूल (Pool) तैयार करने के लिये बहु-कौशल (Multi-Skilling) तथा पुन: कौशल (Reskilling) पर ध्यान दिया जाए।
    • भारतीय पहल जैसे कि राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन (National Skill Development Mission) जिसका उद्देश्य कौशल प्रशिक्षण गतिविधियों के संदर्भ में क्षेत्रों और राज्यों में पहुँच बनाना है।
    • भारत की नई शिक्षा नीति (New Education policy) और प्रधान मंत्री नवीन शिक्षण कार्यक्रम (Pradhan Mantri Innovative Learning Program) जैसे कार्यक्रम इसके साथ अच्छी तरह से मेल खाते हैं।
  • प्रौद्योगिकी:
    • नई प्रौद्योगिकी का कोई भी आकलन जीवन की सुगमता और जीवन की गुणवत्ता पर उसके प्रभाव के आधार पर होना चाहिये
    • भारत ने एक अनुवर्ती और प्रलेखन भंडार के रूप में एक G-20 “आभासी सचिवालय” के निर्माण का सुझाव दिया।
    • भारत के डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस अभियानों ने लोगों की तकनीक और अन्य सरकारी सेवाओं तक पहुँच बढ़ा दी है।
  • पारदर्शिता:
    • सूचना का अधिकार और ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ में सुधार जैसे सुधार भारत में शासन में पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं।
  • न्यासिता:
    • पर्यावरण के साथ “मालिकों के बजाय न्यासी” के रूप में व्यवहार करने से समग्र और स्वस्थ जीवन शैली का जन्म होगा
    • जलवायु परिवर्तन को साइलो (Silo) में नहीं बल्कि एकीकृत, व्यापक और समग्र तरीके से लड़ा जाना चाहिये।
    • कार्बन फुटप्रिंट ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा है जो मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड को एक विशेष मानवीय गतिविधि द्वारा वायुमंडल में छोड़ा जाता है।
  • भविष्य की बैठकें: वर्ष 2021 में इटली,  वर्ष 2022 में इंडोनेशिया, वर्ष 2023 में भारत और वर्ष 2024 में ब्राज़ील।

उत्सर्जन को कम करने के लिये भारत की पहल

  • ढाँचागत क्षेत्र: भारत का अगली पीढ़ी का बुनियादी ढाँचा न केवल सुविधाजनक और कुशल होगा, बल्कि यह एक स्वच्छ वातावरण में भी योगदान देगा। उदाहरण: वर्ष 2017 में हैम्बर्ग जी-20 बैठक में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित आपदा रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन। यह एक संयोजक निकाय के रूप में कार्य करेगा जो निर्माण, परिवहन, ऊर्जा, दूरसंचार और पानी के पुनर्निर्माण के लिये दुनिया भर से सर्वोत्तम प्रथाओं और संसाधनों को पूल (Pool) करेगा ताकि प्राकृतिक आपदाओं में इन बुनियादी ढाँचागत क्षेत्रों के कारकों का निर्माण हो।
  • स्वच्छ ऊर्जा का निर्माण: भारत-फ्राँस अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) की संयुक्त पहल।
    • ISA कार्बन फुट-प्रिंट को कम करने में योगदान देगा।
    • भारत वर्ष 2022 के लक्ष्य से पहले पेरिस जलवायु समझौते के तहत किये गए अपने जलवायु प्रतिबद्धताओं के एक हिस्से के रूप में 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के अपने लक्ष्य को पूरा करेगा।
    • उजाला (Unnat Jeevan by Affordable LED and Appliances for All -UJALA) और LED राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम (LED Street Lighting National Programme) योजना ने LED लाइट्स को लोकप्रिय बना दिया है, जिससे प्रति वर्ष लगभग 38 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की बचत होती है।
    • उज्जवला योजना: इसके तहत धुआं-रहित रसोई 80 मिलियन से अधिक घरों में  उपलब्ध कराई गई है।
  • मरुस्थलीकरण: संयुक्त राष्ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (United Nations Convention to Combat Desertification) विकास और पर्यावरण को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ता है और इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण और सूखे के बुरे प्रभावों का मुकाबला करना है।
  • स्वच्छ वायु और जल: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme) का उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करना है और नमामि गंगे कार्यक्रम गंगा नदी का कायाकल्प करना तथा शासन में ट्रस्टीशिप की भावना को प्रदर्शित करता है।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय अर्थव्यवस्था

नेगेटिव यील्ड बॉण्ड

प्रिलिम्स के लिये 

नेगेटिव यील्ड बॉण्ड

मेन्स के लिये

नेगेटिव यील्ड बॉण्ड का महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

बीते कुछ समय में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में नेगेटिव यील्ड बॉण्ड (Negative Yield Bonds) की मांग काफी तेज़ी से बढ़ गई है।

प्रमुख बिंदु

  • क्या है नेगेटिव यील्ड बॉण्ड?
    • सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि नेगेटिव यील्ड बॉण्ड ऐसे ऋण विलेख होते हैं, जिनकी बॉण्ड यील्ड नकारात्मक होती है यानी इस प्रकार के बॉण्ड खरीदने पर निवेशक को बॉण्ड की परिपक्वता अवधि पर बॉण्ड के कुल मूल्य से कम राशि प्राप्त होती है।
      • बॉण्ड यील्ड का अभिप्राय बॉण्ड पर मिलने वाली रिटर्न की धनराशि से होता है।  बॉण्ड की कीमत और बॉण्ड यील्ड के बीच नकारात्मक संबंध होता है। जब बॉण्ड की कीमत बढ़ती है तो बॉण्ड यील्ड घटता है तथा इसके विपरीत जब बॉण्ड की कीमत घटती है तो बॉण्ड यील्ड बढ़ता है। 
    • नेगेटिव यील्ड बॉण्ड को एक विचित्र वित्तीय विलेख माना जाता है, क्योंकि इसमें बॉण्ड जारी करने वाली कंपनी अथवा संस्थान को ऋण लेने के लिये भुगतान किया जाता है। 

क्या होता है बॉण्ड?

  • बॉण्ड एक प्रकार का ऋण विलेख होता है, जिसके द्वारा कंपनियों और अलग-अलग देशों की सरकारों द्वारा धन जुटाने के उद्देश्य से जारी किये जाते हैं। बॉण्ड के माध्यम से जुटाए गए धन को ऋण के रूप में देखा जाता है।
  • आमतौर पर निवेशक अंकित मूल्य पर किसी बॉण्ड को खरीदते हैं, जो कि निवेश की गई मूल राशि होती है। बॉण्ड खरीदने के बदलने में निवेशकों को बॉण्ड यील्ड प्राप्त होती है।
  • प्रत्येक बॉण्ड की एक परिपक्वता अवधि होती है, और इसी अवधि पर निवेशक को अपनी मूल राशि वापस मिल जाती है।

क्यों खरीदते हैं नेगेटिव यील्ड बॉण्ड?

  • विविध पोर्टफोलियो बनाने के लिये: म्यूच्यूअल फंड का प्रबंधन करने वाले कई निवेशक और कंपनियाँ, अपने निवेश पोर्टफोलियो को विविध बनाकर अपने जोखिम को कम करने के उद्देश्य से नेगेटिव यील्ड बॉण्ड में निवेश करते हैं।
  • कोलैटरल के रूप में प्रयोग करने हेतु: बॉण्ड का उपयोग प्रायः वित्तपोषण के लिये कोलैटरल (Collateral) के रूप में भी किया जाता है और इसी वजह से निवेशकों को इन ऋण विलेखों की आवश्यकता पड़ती है, भले ही उनकी बॉण्ड यील्ड नकारात्मक ही क्यों न हो।
  • विनिमय दर से लाभ प्राप्त करने के लिये: अक्सर विदेशी निवेशक इस उम्मीद के साथ भी नेगेटिव यील्ड बॉण्ड में निवेश करते हैं कि उन्हें मुद्रा विनिमय दर (Exchange Rate) में परिवर्तन के कारण भविष्य में लाभ प्राप्त होगा। 
  • घरेलू अपस्फीति जोखिम से बचने के लिये: कई बार निवेशक घरेलू अर्थव्यवस्था में अपस्फीति जोखिम अथवा कीमतों के कम हो जाने के कारण होने वाले जोखिम से बचने के लिये भी नेगेटिव यील्ड बॉण्ड में निवेश करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, हमारे पास कोई एक वर्षीय नेगेटिव यील्ड बॉण्ड है, जिसकी बॉण्ड यील्ड (-) 5 प्रतिशत है, किंतु अनुमान के मुताबिक इसी अवधि में मुद्रास्फीति (-) 10 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।
    • इसका अर्थ है कि बॉण्ड के निवेशक के पास वर्ष के अंत में अधिक क्रय शक्ति होगी, क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में आई गिरावट बॉण्ड की कीमतों में होने वाली गिरावट से अधिक है।
  • निवेश की सुरक्षा के लिये: निवेशक तब भी नेगेटिव यील्ड बॉण्ड के प्रति आकर्षित हो सकते हैं जब उनमें किये जाने वाले निवेश का नुकसान किसी अन्य वित्तीय प्रपत्र में किये जाने निवेश के नुकसान से कम हो। मौजूदा आर्थिक अनिश्चितता के दौर में कई निवेशक नेगेटिव यील्ड बॉण्ड खरीद रहे हैं, क्योंकि उन्हें ऐसी स्थिति में सुरक्षित निवेश माना जाता है।

मौजूदा स्थिति

  • मौजूदा समय में जब संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस महामारी का सामना कर रहा है और यूरोप समेत कई अन्य विकसित बाज़ारों में बॉण्ड और अन्य वित्तीय प्रपत्रों की ब्याज़ दरें काफी नीचे चली गईं हैं तो अधिकांश निवेशक अपने हितों की रक्षा करने के लिये अपेक्षाकृत बेहतर विकल्पों की खोज कर रहे हैं और नेगेटिव यील्ड बॉण्ड इसी विकल्प के तौर पर कार्य कर रहा है।
  • हाल ही में चीन ने पहली बार नेगेटिव यील्ड बॉण्ड जारी किये हैं और संपूर्ण यूरोप में निवेशकों के बीच इनकी काफी उच्च मांग देखी गई है।
  • कारण: 
    • चीन के बॉण्ड की अधिक मांग का सबसे मुख्य कारण है कि यूरोपीय बाज़ारों द्वारा दिया जा रहा बॉण्ड यील्ड चीन के बॉण्ड यील्ड से काफी कम है।
    • चीन द्वारा जारी किये गए 5-वर्षीय बॉण्ड की यील्ड (-) 0.15 प्रतिशत है, जबकि यूरोपीय बाज़ारों में जारी बॉण्ड की यील्ड (-) 0.5 प्रतिशत से (-) 0.75 प्रतिशत के बीच है।
    • ध्यातव्य है कि जहाँ एक ओर महामारी के प्रभावस्वरूप विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्था में नकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की गई है, वहीं चीन उन कुछ चुनिंदा देशों में शामिल है जिन्होंने मौजूदा वित्तीय वर्ष में महामारी के बावजूद आर्थिक वृद्धि दर्ज की है। चीन की ये आर्थिक वृद्धि भी निवेशकों के आकर्षण का कारण हो सकती है।
    • यूरोप, अमेरिका और विश्व के अन्य हिस्सों में संक्रमण की दर अभी भी काफी तेज़ी से बढ़ रही है, जबकि चीन ने महामारी के प्रसार को नियंत्रित कर लिया है और वहाँ कुछ हद तक स्थिरता दिखाई दे रही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जापान - मालदीव समझौता

प्रिलिम्स के लिये:

समुद्री मार्ग, क्वाड

मेन्स के लिये:

हिन्द महासागर का भू-राजनीतिक महत्व 

चर्चा में क्यों?

भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत के रणनीतिक साझेदार जापान ने हाल ही में मालदीव के सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं जो दक्षिणी हिंद महासागर में स्थिरता प्रदान करने में योगदान देगा।

प्रमुख बिंदु:

  • मालदीव और जापान ने हाल ही में जापान सरकार के आर्थिक और सामाजिक विकास कार्यक्रम (Economic and Social Development Programme) के तहत एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • इसके तहत, मालदीव कोस्ट गार्ड और ‘मैरीटाइम रेस्क्यू एंड कोआर्डिनेशन सेंटर’ (Maldives Coast Guard and the Maritime Rescue and Coordination Center) को 800 मिलियन जापानी येन की अनुदान सहायता दी जानी है।
  • अनुदान सहायता का उपयोग मालदीव द्वारा तटरक्षक बल, समुद्री बचाव और समन्वय केंद्र, उप-क्षेत्रीय केंद्रों और पोत (Vessels) की क्षमताओं को और मज़बूत करने के लिये किया जाएगा।
    • इसमें संचार उपकरण, पेशेवर खोजी और बचाव करने वाले गोताखोरों के उपकरणों को खरीदने का प्रावधान शामिल है, जिसका उपयोग खोज और बचाव कार्यों के दौरान मालदीव कोस्ट गार्ड द्वारा किया जाता है।
  • इससे पहले अक्तूबर, 2019 में, जापान ने मालदीव के स्वास्थ्य क्षेत्र में 21 पैरामेडिक एंबुलेंस (Paramedic Ambulances) का अनुदान दिया था।

लाभ:

  • समुद्री डकैती से संबंधित घटनाओं का मुकाबला करना
  • हिंसक अतिवाद और मादक तस्करी का मुकाबला करना।
  • एक स्वतंत्र और खुला हिंद महासागर सुनिश्चित करना जो इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि लाएगा।
    • हिंद महासागर द्वीप समूह जो लगभग 4 लाख लोगों का घर है, रणनीतिक स्थिति के कारण भू-राजनीतिक महत्व रखता है।

भारत के लिये महत्व:

मालदीव, हिंद महासागर में एक टोल गेट:

  • इस द्वीप श्रृंखला के दक्षिणी और उत्तरी भाग में संचार के दो महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग (Sea Lanes of Communication) स्थित हैं।
  • ये SLOC पश्चिम एशिया में अदन की खाड़ी और होर्मुज़ की खाड़ी तथा दक्षिण पूर्व एशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार प्रवाह के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत के बाहरी व्यापार का लगभग 50% और उसके ऊर्जा आयात का 80% हिस्सा अरब सागर में स्थित है, इसलिये SLOCs भारत के लिये महत्वपूर्ण हैं।
  • क्वाड सदस्य के साथ समझौता: यह "अनुदान सहायता" संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के अनौपचारिक रणनीतिक समूह 'क्वाड' के किसी सदस्य के साथ मालदीव का दूसरा प्रमुख समझौता है।
    • पहले, यूएसए के साथ रक्षा और सुरक्षा से संबंधित एक रूपरेखा पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • क्वाड सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों ने पिछले महीने टोक्यो में बैठक की और क्षेत्र में चीनी उपस्थिति तथा प्रभाव का मुकाबला करने के तरीकों पर चर्चा की।

Maldives

स्रोत:द हिंदू


सामाजिक न्याय

ऑनलाइन शिक्षा का संकट

प्रिलिम्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

मेन्स के लिये:

ऑनलाइन शिक्षा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (Azim Premji University) द्वारा ई-लर्निंग की प्रभावकारिता और पहुँच पर किये गए अध्ययन ने देश में ऑनलाइन शिक्षा में शामिल विभिन्न चुनौतियों पर प्रकाश डाला है।

प्रमुख बिंदु:

  • छात्र विशिष्ट निष्कर्ष:
    • छात्रों की ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुँच की कमी के कारण:
      • उपयोग या साझा करने के लिये स्मार्टफोन की गैर-उपलब्धता या अपर्याप्त संख्या।
      • ऑनलाइन सीखने के लिये एप्लिकेशन का उपयोग करने में कठिनाई।
      • दिव्यांग बच्चों को ऑनलाइन सत्र में भाग लेना अधिक कठिन लगा।
  • माता-पिता विशिष्ट निष्कर्ष:
    • सर्वे के अनुसार, सरकारी स्कूल के छात्रों के 90% अभिभावक इस स्थिति में अपने बच्चों को वापस स्कूल भेजने के लिये तैयार थे यदि उनके बच्चों की सेहत का ख्याल रखा जाएगा।
    • सर्वेक्षण में शामिल 70% माता-पिताओं का मानना था कि ऑनलाइन कक्षाएँ प्रभावी नहीं रहीं और उनके बच्चों के सीखने में भी सहायक नहीं रहीं।
  • शिक्षक विशिष्ट निष्कर्ष:
    • ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान शिक्षकों की मुख्य समस्या एकतरफा संचार का होना थी, जिसमें उनके लिये यह आकलन करना मुश्किल हो गया था कि छात्र समझ भी पा रहे हैं या नहीं कि उन्हें क्या पढ़ाया जा रहा है।
    • सर्वेक्षण में शामिल 80% से अधिक शिक्षकों ने कहा कि वे ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान छात्रों के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखने में असमर्थ थे, जबकि 90% शिक्षकों ने महसूस किया कि बच्चों के सीखने का कोई सार्थक आकलन संभव नहीं था।
    • सर्वे में 50% शिक्षकों ने बताया कि बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान साझा किये गए असाइनमेंट को पूरा करने में असमर्थ थे, जिसके कारण सीखने में गंभीर कमी आई है।
    • सर्वेक्षण में यह भी पता चला कि लगभग 75% शिक्षकों ने औसतन, किसी भी ग्रेड के लिये ऑनलाइन कक्षाओं में एक घंटे से भी कम का समय दिया है।
    • कुछ शिक्षकों ने यह भी बताया कि वे ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफार्मों के माध्यम से पढ़ाने में समर्थ नहीं थे।
    • सर्वेक्षण में आधे से अधिक शिक्षकों ने साझा किया कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और शिक्षण के तरीकों पर उनका ज्ञान और उपयोगकर्ता-अनुभव अपर्याप्त था।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिये सिंगल-विंडो सिस्टम

प्रिलिम्स के लिये

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश

मेन्स के लिये 

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का महत्त्व और भारत में इसकी स्थिति 

चर्चा में क्यों?

उद्योग और आंतरिक संवर्द्धन विभाग (DPIIT) द्वारा अगले वर्ष मार्च माह के अंत तक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) से संबंधित प्रस्तावों के लिये एक नया एकीकृत सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम शुरू किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • इस प्रभावी और एकीकृत सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम में नियामक तथा नीति निर्धारक सभी  एक ही स्थान पर उपलब्ध होंगे, जिन्हें डिजिटल माध्यम से आसानी से एक्सेस किया जा सकेगा।
  • इस सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम में केंद्र और राज्य दोनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, जिससे विदेशी निवेशकों को सभी प्रासंगिक अनुमोदन और मंज़ूरी प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
    • यह नया सिस्टम सभी संभावित निवेशकों को एक ही स्थान पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के उन सभी संबंधित मंत्रालयों और विभागों से अनुमोदन और स्वीकृति प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा, जो कि किसी विदेशी कंपनी के लिये एक राज्य, ज़िले अथवा शहर में निवेश करने या संयंत्र स्थापित करने के लिये आवश्यक होंगे।
  • यह न केवल निवेशकों को अपने प्रस्ताव की स्थिति जानने में मदद करेगा, बल्कि इससे विदेशी निवेश के संबंध में जल्द-से-जल्द अनुमोदन प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।

महत्त्व

  • पारदर्शिता: इस प्रणाली के माध्यम से निवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी, जिससे अधिकारियों को बिना किसी बाधा के दस्तावेज़ों और रिकॉर्ड की जाँच करने में मदद मिलेगी।
  • शीघ्र अनुमोदन: सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के प्रतिनिधियों और विदेशी निवेशकों को अधिक सुविधाजनक तरीके से समय बर्बाद किये बिना अनुमोदन की प्रक्रिया में तेज़ी लाने में मदद करेगा।
  • सुरक्षा: सीमापार व्यापार सौदों में सुरक्षा सदैव एक महत्त्वपूर्ण कारक रहता है और यह सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम सुरक्षा बनाए रखने की दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण होगा।

क्या होता है विदेशी प्रत्यक्ष निवेश?

  • जब कोई देश विकासात्मक कार्यो के लिये अपने घरेलू स्रोत से संसाधनों को नहीं जुटा पाता है तो उसे देश के बाहर जाकर शेष विश्व की अर्थव्यवस्था से संसाधनों को जुटाना पड़ता है।
  • शेष विश्व से ये संसाधन या तो कर्ज (ऋण) के रूप में जुटाए जाते हैं या फिर निवेश के रूप में। कर्ज के रूप में जुटाए गए संसाधनों पर ब्याज देना पड़ता है, जबकि निवेश की स्थिति में हमें लाभ में भागीदारी प्रदान करनी होती है।
  • विदेशी निवेश विकासात्मक कार्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन है। विदेशी निवेश मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI)
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): यदि किसी विदेशी निवेशक को अपने निवेश से कंपनी के 10 प्रतिशत या अधिक शेयर प्राप्त हो जाएँ, जिससे कि वह कंपनी के निदेशक मंडल में प्रत्यक्ष भागीदारी कर सके तो इस निवेश को ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ कहते हैं। इसके अंतर्गत निवेशक किसी फर्म की उत्पादन, वितरण और अन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से निवेश करते हैं।
    • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI): इसके विपरीत यदि किसी विदेशी निवेशक को अपने निवेश से कंपनी के 10 प्रतिशत या उससे कम शेयर प्राप्त हों, तो इसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) कहा जाता है। इसके अंतर्गत निवेश को व्यवसाय की गतिविधियों में संचालन का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।

भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश 

  • 1990 के दशक में आर्थिक सुधारों के बाद से भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयासों की बदौलत भारत में विदेशी निवेश में काफी सुधार देखने को मिला है। 
  • आँकड़ों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2014-15 में भारत में FDI अंतर्वाह 45.15 डॉलर था और तब से इसमें लगातार वृद्धि दर्ज की गई है। 
  • वर्ष 2014-20 में वर्ष 2008-14 की तुलना में FDI अंतर्वाह में कुल 55 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है, जहाँ एक ओर वर्ष 2008-14 के मध्य भारत ने कुल 231.37 बिलियन डॉलर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) प्राप्त किया था, वहीं वर्ष 2014-20 में भारत ने कुल 358.29 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त किया।
  • विगत 20 वर्ष (अप्रैल 2000- जून 2020) में देश में कुल FDI प्रवाह 693.3 बिलियन डॉलर रहा है, जबकि गत 5 वर्ष (अप्रैल 2014- सितंबर 2019) में कुल 319 बिलियन डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्राप्त किया गया है।
  • वर्ष 2019-20 (31.60 बिलियन अमेरिकी डाॅलर) की तुलना में वर्ष 2020-21 के पहले 5 माह में 13 प्रतिशत अधिक FDI (35.73 बिलियन अमेरिकी डाॅलर) प्राप्त हुआ है।

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का महत्त्व 

  • रोज़गार का सृजन और आर्थिक विकास विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का सबसे बड़ा लाभ है, जिसके कारण प्रायः विश्व के सभी देश, विशेष रूप से विकासशील देश, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं।
  • FDI में बढ़ोतरी के कारण विनिर्माण और सेवा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को बढ़ावा मिलता है, रोज़गार सृजन में बढ़ोतरी होती है और शिक्षित युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर कम करने में मदद मिलती है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • FDI किसी एक देश के पिछड़े क्षेत्रों को औद्योगिक केंद्रों में बदलने में सहायता करता है, जिससे उस क्षेत्र विशिष्ट की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।

स्रोत: द हिंदू


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