इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

तीव्र गति से विकसित होता खाद्यान्नों का साइलो भंडारण तरीका

  • 06 Sep 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

साइलो में खाद्यान्नों को भंडारित करना भारत में तीव्र गति से बढ़ रहा है क्योंकि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (भारत) आधुनिक भंडारण सुविधाओं की कमी से होने वाले भारी नुकसान को कम करने के लिये प्रयासरत है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में बड़े पैमाने पर खाद्यान्नों को बिना किसी प्रौद्योगिकी के उपयोग के पुराने गोदामों में संगृहीत किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन का कहना है कि नतीजतन, 14 अरब डॉलर की उपज सालाना खराब हो जाती है, जबकि 194 मिलियन भारतीय हर दिन भूखे रह जाते हैं।
  • उदाहरणस्वरूप 2010 में, भारत ने 68 मिलियन टन फल और 129 मिलियन टन सब्जियों का उत्पादन किया और उस वर्ष यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बागवानी उपज का उत्पादक था। फल और सब्ज़ियों का लगभग 30 प्रतिशत बर्बाद हो गया था। 2005 से मार्च 2013 के बीच भारत ने अनुमानतः 1.94 लाख टन खाद्यान्न बर्बाद कर दिया।
  • व्यापक रूप से स्वीकार्य एक वैश्विक अवधारणा साइलो स्टोरेज को एक दशक पहले भारत में प्रस्तुत किया गया था, जो कि मूल्य श्रृंखला में शामिल सभी हितधारकों की धारणाओं और किस्मत को बदल रहा है। साइलो संरचनाएँ अनाज भंडारण करने की एक वैज्ञानिक विधि का पालन करती हैं, जो लम्बी अवधि तक उपज की बड़ी मात्रा को संरक्षित रखने में सक्षम होती हैं।

विकासोन्मुख क्षेत्र

  • अडानी कृषि लॉजिस्टिक्स लिमिटेड, साइलो स्टोरेज को सर्वप्रथम अपनाने वाली कंपनियों में से एक थी। वर्तमान में, 8.75 लाख टन की क्षमता के साथ यह देश में एकमात्र साइलो स्टोरेज प्रचालक है तथा इसके द्वारा एक और 4 लाख टन की क्षमता का साइलो निर्मित किया जा रहा है। 
  • साइलो में संगृहीत सम्पूर्ण मात्रा के साथ केंद्रीय और राज्य सरकारों के लिये लगभग 1 मिलियन टन अनाज धारण करते हुए इस फर्म की उपस्थिति पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात में है। कंपनी का लक्ष्य 2022 तक 2 मिलियन टन की साइलो स्टोरेज क्षमता हासिल करना है। 
  • अडानी के अलावा, एलटी फूड्स, नेशनल कोलैटरल मैनेजमेंट लिमिटेड, श्री कार्तिकेयन इंडस्ट्रीज और टोटल शिपिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन 21.5 लाख टन साइलो क्षमता का निर्माण कर रहे हैं। 
  • दो प्रकार के साइलो होते हैं: एक रेल कनेक्टिविटी के साथ और दूसरा रेल कनेक्टिविटी के बिना। रेल कनेक्टिविटी के बिना  50,000 टन क्षमता के एक विशिष्ट स्वचलित साइलो की लागत  6,000 रुपए प्रति टन या स्क्रैच से निर्माण करने पर लगभग 30 करोड़ रुपए की लागत आती है, जबकि जमीन सहित रेल कनेक्टिविटी के साथ एक साइलो (50,000 टन की इकाई के लिये) की लागत करीब 55-60 करोड़ रुपए प्रति इकाई होती है। यदि जमीन को ध्यान में रखा जाता है, पारंपरिक गोदामों के निर्माण से साइलो सस्ता है।

खराब भंडारण व्यवस्था

  • भारत 65 मिलियन टन खाद्यान्नों का भंडारण करता है, जिनमें से अधिकांश पारंपरिक खुले या ढके हुए गोदामों में रखे जाते हैं। वास्तव में, खुले गोदामों में 10 मिलियन टन से अधिक अनाज भंडारित होते हैं जो कि आसानी से नुकसान तथा मौसम की अनियमितता से ग्रस्त हो जाते हैं। 
  • विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, खाद्य उत्पादन कभी भारत के लिये चिंता का विषय नहीं रहा है। भारत ने 2016-17 में 270 मिलियन टन से अधिक भोजन का उत्पादन किया, जो इसकी आबादी को खिलाने के लिये 230 मिलियन टन की वार्षिक आवश्यकता से अधिक है। ये आँकड़े अनाज भंडारण के लिये नई तकनीक अपनाने पर बल देते हैं। 
  • काफी हद तक पंजाब और हरियाणा को भारत की रोटी की टोकरी के रूप में जाना जाता है। इन दो राज्यों से लगभग दो-तिहाई खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति होती है। एक बेहतर साइलो स्टोरेज अवसंरचना निश्चित रूप से देश में भूखे लोगों की संख्या में कमी लाने में मदद कर सकती है। भारत को अपनी खाद्यान्न सुरक्षा को मज़बूती प्रदान करने के लिये आधुनिक खाद्यान्न भंडारण अवसंरचना अपनाने की आवश्यकता है।

क्या है साइलो स्टोरेज?

  • साइलो स्टोरेज एक विशाल स्टील ढाँचा होता है जिसमें थोक सामग्री भंडारित की जा सकती है। इसमें कई विशाल बेलनाकार टैंक होते हैं। नमी और तापमान से अप्रभावित रहने के कारण इनमें अनाज लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है। 
  • एक अत्याधुनिक साइलो में रेलवे साइडिंग के जरिये बड़ी मात्रा में अनाज की लोडिंग/अनलोडिंग की जा सकती है। इससे भंडारण और परिवहन के दौरान होने वाले अनाज के नुकसान में काफी कमी आती है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow