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डेली न्यूज़

  • 23 Oct, 2020
  • 63 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

श्रीलंका का 20वाँ संविधान संशोधन पारित

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में संविधान संशोधन की प्रक्रिया

मेन्स के लिये:

श्रीलंका का 20वाँ संविधान संशोधन और भारत के हित

चर्चा में क्यों?

श्रीलंका की संसद ने दो-दिवसीय बहस के बाद दो-तिहाई बहुमत के साथ विवादास्पद 20वाँ संविधान संशोधन पारित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • 20वाँ संविधान संशोधन पारित कराना विधायिका में राजपक्षे प्रशासन की पहली बड़ी परीक्षा थी क्योंकि इसने न केवल राजनीतिक विरोध, बल्कि श्रीलंका की दक्षिणी राजनीति को प्रभावित करने वाले प्रभावशाली बौद्ध गुरुओं की चिंता और प्रतिरोध को भी जन्म दिया।
  • श्रीलंका की संसद के 225 सदस्यीय सदन में 156 सांसदों ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि 65 विधायकों ने इस विधेयक के खिलाफ मतदान किया।
  • गौरतलब है कि आठ विपक्षी सांसदों ने कानून के पक्ष में मतदान किया, जबकि उनकी पार्टियों और नेताओं ने न केवल इसका विरोध किया है बल्कि इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है।
  • विपक्षी दलों और सिविल सोसाइटी समूहों द्वारा दायर की गई 39 याचिकाओं के बाद श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि कानून पारित होने के लिये केवल दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, परंतु इस कानून के चार खंडों को पारित करने के लिये एक जनमत संग्रह के माध्यम से अतिरिक्त सार्वजनिक स्वीकृति की आवश्यकता है।

20वाँ संविधान संशोधन से संबंधित प्रावधान:

  • 2 सितंबर, 2020 को श्रीलंका सरकार ने संविधान संशोधन का एक मसौदा प्रकाशित किया था, जिसके माध्यम से राष्ट्रपति की शक्तियों पर अंकुश लगाने वाले 19वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को बदलने के लिये विधायी प्रक्रिया भी शुरू की गई थी।
  • हाल ही में पारित संविधान संशोधन तकरीबन 42 वर्ष पूर्व श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री जे.आर. जयवर्धने द्वारा लागू किये गए श्रीलंका के संविधान में 20वाँ संशोधन है।
  • पारित संविधान संशोधन में संवैधानिक परिषद को संसदीय परिषद में बदलने का प्रावधान किया गया है। मौजूदा नियमों के अनुसार, संवैधानिक परिषद के निर्णय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी हैं, किंतु पारित संसदीय परिषद के निर्णय मानने के लिये राष्ट्रपति बाध्य नहीं है।
  • संविधान संशोधन के माध्यम से मंत्रिमंडल और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति एवं बर्खास्तगी में प्रधानमंत्री की सलाह की आवश्यकता से संबंधित प्रावधान को हटा दिया गया है। साथ ही  अब श्रीलंका में प्रधानमंत्री की बर्खास्तगी संसद के विश्वास पर नहीं बल्कि राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करेगी। 
  • पारित संशोधन के तहत राष्ट्रपति को कुछ सीमित परिस्थितियों के अलावा संसद की एक वर्ष की अवधि के बाद उसे भंग करने के संबंध में निर्णय लेने की शक्ति दी गई है, जिसका अर्थ है कि संसद की एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति उसे किसी भी समय भंग कर सकता है।
  • पारित संशोधन में किसी भी विधेयक को संसद के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व आम जनता के लिये प्रकाशित करने की अवधि को 14 दिन से घटाकर 7 दिन कर दिया गया है।

संविधान संशोधन के विरोधियों का पक्ष:

  • श्रीलंकाई संसद में दो दिवसीय बहस के दौरान विपक्षी सांसदों ने तर्क दिया कि इस संशोधन ने राष्ट्रपति को बेलगाम अधिकार देते हुए देश को सत्तावाद के रास्ते पर ले जाने की राह प्रस्तुत की है, जबकि सरकार के सांसदों ने बेहतर प्रशासन के लिये केंद्रीकृत शक्ति की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • 20वाँ संविधान संशोधन ऐसे समय में पारित किया गया है जब देश COVID-19 की एक नई लहर का सामना कर रहा है, जिसमें मामलों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 
  • 20वाँ संविधान संशोधन संवैधानिक परिषद की बहुलवादी और विचारशील प्रक्रिया के माध्यम से स्वतंत्र संस्थानों के लिये महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों के संबंध में राष्ट्रपति की शक्तियों पर बाध्यकारी सीमाओं को समाप्त करने का प्रावधान करता है।
  • श्रीलंका के कई कानून विशेषज्ञों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से देश की संस्थाओं के राजनीतिकरण का प्रयास कर रही है,  जबकि इन्हें राजनीति के दायरे से स्वतंत्र कर आम नागरिकों के कल्याण के लिये गठित किया गया था। 
  • सरकार द्वारा किये जा रहे ये संविधान संशोधन जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही को प्रभावित करेंगे और श्रीलंका के संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों के समक्ष चुनौती उत्पन्न करेंगे।
  • संवैधानिक नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत की समाप्ति से सार्वजनिक धन के कुशल, प्रभावी और पारदर्शी उपयोग पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

भारत का पक्ष:

  • भारत ने श्रीलंका के 20वें संविधान संशोधन को लेकर अभी तक कोई भी आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है और न ही भारत द्वारा बयान जारी करने का कोई अनुमान है, क्योंकि यह संशोधन पूरी तरह से श्रीलंका का आंतरिक मामला है।
  • हालाँकि भारत सरकार निश्चित रूप से श्रीलंका के घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है, क्योंकि 20वें संशोधन के प्रावधान स्पष्ट रूप से राष्ट्रवादी सिंहली भावनाओं को प्रकट करते हैं। ऐसे में यह घटनाक्रम भारत-श्रीलंका के दीर्घकालिक संबंधों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • हालाँकि भारत के दृष्टिकोण से 19वें संविधान संशोधन से ज़्यादा 13वाँ संविधान संशोधन महत्त्वपूर्ण है। इसी वर्ष फरवरी माह में जब श्रीलंका के वर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे भारत के दौरे पर आए थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को दोहराया था कि श्रीलंका को 13वें संशोधन के कार्यान्वयन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • ध्यातव्य है कि 13वें संविधान संशोधन के प्रावधानों का हटना श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यकों के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकता है।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय राजनीति

चुनावी व्यय सीमा की समीक्षा हेतु समिति

प्रिलिम्स के लिये:

 निर्वाचन आयोग, लागत मुद्रास्फीति सूचकांक, जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम

मेन्स के लिये:

 चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के संदर्भ में गठित समिति का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) ने चुनाव के दौरान उम्मीदवार द्वारा किये गए कुल व्यय सीमा से संबंधित मुद्दों की जाँच/समीक्षा के लिये एक समिति का गठन किया है

प्रमुख बिंदु:

  • समिति के बारे में:
    • इस समिति को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में निर्वाचकों की संख्या में परिवर्तन और लागत मुद्रास्फीति सूचकांक (Cost Inflation Index-CII) में परिवर्तन का आकलन और हाल में संपन्न चुनावों में उम्मीदवारों के खर्च पैटर्न पर पड़ने वाले असर का आकलन करने का काम सौंपा गया है।

पृष्ठभूमि:

  • आयोग द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण पर राजनीतिक दलों ने कहा कि COVID-19 महामारी के कारण बढ़े हुए डिजिटल अभियान के खर्चों को पूरा करने के लिये बिहार विधानसभा चुनावों की खर्च सीमा में वृद्धि की जाए।
  • विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव नियम, 1961 के नियम 90 के एक संशोधन को अधिसूचित किया गया। इसके तहत तत्काल प्रभाव से लागू व्यय की सीमा में 10% की बढ़ोत्तरी कर दी गई।

पूर्व में किये गए संशोधन:

  • चुनावी खर्च की सीमा को अंतिम बार वर्ष 2014 में संशोधित किया गया था जबकि वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विभाजन के बाद वर्ष 2018 में उनके चुनावी खर्च सीमा में संशोधन किया गया।
  • उसके बाद वर्ष 2014 से वर्ष 2020 के दौरान मतदाताओं की संख्या में 834 मिलियन से 921 मिलियन तक की वृद्धि होने के बावजूद खर्च सीमा में वृद्धि नहीं की गई है और वर्ष 2014 का लागत मुद्रास्फीति सूचकांक (Cost Inflation Index), 220 से बढ़कर वर्ष 2020 में 301 हो गया।

व्यय सीमा

  • यह वह राशि है जो एक उम्मीदवार द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च की जा सकती है जिसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है।
  • विधानसभा चुनावों के लिये यह सीमा 20 लाख रुपए से 28 लाख रुपए तक तथा  लोकसभा चुनाव के लिये 54 लाख रुपए से 70 लाख रुपए तक है।
  • जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act-RPA), 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किये गए सभी व्यय का एक अलग और सही खाता रखना होता है।
  • चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों के भीतर सभी उम्मीदवारों को ECI के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है।
  • उम्मीदवार द्वारा सीमा से अधिक व्यय या खाते का गलत विवरण प्रस्तुत करने पर RPA, 1951 की धारा 10 के तहत ECI द्वारा उसे तीन साल के लिये अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
  • ECI द्वारा निर्धारित व्यय सीमा चुनाव के दौरान किये जाने वाले वैध खर्च के लिये निर्धारित है क्योंकि चुनाव में बहुत सारा पैसा गलत एवं अवांछित कार्यों पर खर्च किया जाता है।
  • अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि चुनावी खर्च की यह सीमा अवास्तविक है क्योंकि उम्मीदवार द्वारा किया गया खर्च वास्तविक व्यय से बहुत अधिक होता है।
  • उम्मीदवारों द्वारा चुनाव के दौरान अधिकतम खर्च की सीमा के निर्धारण के संदर्भ में दिसंबर 2019 में एक निजी सदस्य द्वारा संसद में बिल पेश किया गया-
    • यह कदम इस आधार पर उठाया गया कि प्रत्याशियों के चुनाव खर्च के संबंध में किसी भी राजनीतिक पार्टी द्वारा खर्च की कोई उच्चतम सीमा निर्धारित नहीं है, जिस कारण अक्सर राजनीतिक पार्टियों द्वारा उम्मीदवारों का शोषण किया जाता है।
  • हालाँकि सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को चुनाव पूरा होने के 90 दिनों के भीतर चुनाव आयोग को अपने चुनाव खर्च का ब्योरा प्रस्तुत करना होता है।

राज्यों द्वारा चुनाव की फंडिंग:

  • इस प्रणाली में राज्य द्वारा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च वहन किया जाता है।
  • यह प्रणाली वित्तपोषण प्रक्रिया में पारदर्शिता ला सकती है क्योंकि यह चुनावों में इच्छुक सार्वजनिक वित्तदाताओं के प्रभाव को सीमित कर सकती है तथा इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

राज्य अनुदान पर सिफारिशें:

  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) द्वारा यह सुझाव दिया गया कि राज्य द्वारा वित्तपोषण आर्थिक रूप से कमज़ोर राजनीतिक दलों के लिये एक समान आधार को सुनिश्चित करेगा एवं ऐसा कदम सार्वजनिक हित में होगा।
    • यह भी सिफारिश की गई कि राज्य द्वारा यह धन केवल मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों को दिया जाना चाहिये तथा यह आर्थिक सहायता उम्मीदवारों को प्रदान की जाने वाली मुफ्त सुविधाओं के रूप में दी जानी चाहिये।
  • विधि आयोग की रिपोर्ट (1999) के अनुसार, राजनीतिक दलों को चुनाव के लिये राज्य द्वारा वित्तीय सहायता देना वांछनीय/उचित (Desirable) है, बशर्ते राजनीतिक दल अन्य स्रोतों से आर्थिक सहायता प्राप्त न करे ।
  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये गठित राष्ट्रीय आयोग (वर्ष 2000) द्वारा इस विचार का समर्थन नहीं किया गया लेकिन इसके द्वारा उल्लेख किया गया कि राजनीतिक दलों के नियमन के लिये एक उपयुक्त रूपरेखा को राज्य द्वारा वित्तपोषण से पहले लागू करने की आवश्यकता है।
  • चुनाव आयोग राज्य को चुनावों के आधार पर धन देने के पक्ष में नहीं है। आयोग का पक्ष है कि वह राज्य द्वारा प्रदत्त धनराशि का उपयोग उम्मीदवारों द्वारा किये जाने वाले व्यय की जाँच करने और अन्य खर्चों पर रोक लगाने सक्षम नहीं होगा।

लागत मुद्रास्फीति सूचकांक

  • इसका उपयोग मुद्रास्फीति के कारण वर्ष-दर-वर्ष माल और संपत्ति की कीमतों में वृद्धि का अनुमान लगाने के लिये किया जाता है।
  • इसकी गणना महँगाई दर की कीमतों से मिलान करने के लिये की जाती है। सरल शब्दों में समय के साथ मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि से कीमतों में वृद्धि होगी।
  • मूल्य मुद्रास्फीति सूचकांक = पूर्व वर्ष के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (शहरी) में औसत वृद्धि का 75%।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक कीमतों में हुई वृद्धि की गणना करने के लिये पिछले वर्ष की वस्तुओं और सेवाओं की बास्केट की लागत की तुलना वर्तमान वस्तुओं और सेवाओं (जो अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं) की बास्केट कीमत से करता है।
  • केंद्र सरकार द्वारा CII कोआधिकारिक गजट में अधिसूचित किया जाता है। 

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का नया आधार वर्ष

प्रिलिम्स के लिये

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), थोक मूल्य सूचकांक (WPI)

मेन्स के लिये 

आधार वर्ष में परिवर्तन की आवश्यकता और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

श्रम एवं रोज़गार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने हाल ही में वर्ष 2016 के आधार पर औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) की नई शृंखला जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय मंत्री द्वारा जारी नई शृंखला, मौजूदा शृंखला आधार वर्ष 2001=100 को वर्ष आधार 2016=100 के साथ प्रतिस्थापित करेगी।
  • ध्यातव्य है कि इस संशोधन से पूर्व श्रम ब्यूरो की स्थापना के बाद से शृंखला को वर्ष 1944 से वर्ष 1949; वर्ष 1949 से वर्ष 1960; वर्ष 1960 से वर्ष 1982 और वर्ष 1982 से वर्ष 2001 तक संशोधित किया गया था। 
  • केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि भविष्य में इस सूचकांक के आधार वर्ष में प्रत्येक पाँच वर्ष बाद परिवर्तन किया जाएगा। 

नई शृंखला में किये गए सुधार

  • वर्ष 2016 के आधार पर जारी नई शृंखला में कुल 88 केंद्रों को शामिल किया गया है, जबकि वर्ष 2001 के आधार वर्ष पर जारी होने वाली शृंखला में केवल 78 केंद्र ही शामिल थे।
  • खुदरा शृंखला के आँकड़ों के संग्रह के लिये चयनित बाज़ारों की संख्या भी वर्ष 2016 के आधार वर्ष वाली शृंखला के तहत 317 बाज़ारों तक बढ़ा दी गई है, जबकि वर्ष 2001 की शृंखला में 289 बाज़ारों को ही शामिल किया गया था।
  • वर्ष 2016 की शृंखला के तहत राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की संख्या 28 हो गई है, जबकि वर्ष 2001 शृंखला में राज्यों की संख्या केवल 25 ही थी।
  • नई शृंखला के तहत खाद्य समूह के भार को घटाकर 39.17 प्रतिशत कर दिया गया है, जो कि वर्ष 2001 में 46.2 प्रतिशत था, वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी विविध मदों के भार को 23.26 प्रतिशत (वर्ष 2001) से बढ़ाकर 30.31 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • नई शृंखला में ज्यामितीय माध्य (Geometric Mean) आधारित कार्यप्रणाली का उपयोग सूचकांकों के संकलन के लिये किया जाता है, जबकि वर्ष 2001 की शृंखला में अंकगणितीय माध्य (Arithmetic Mean) का उपयोग किया जाता था।

उद्देश्य

  • औद्योगिक श्रमिकों हेतु उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) के लिये आधार वर्ष में परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य इस सूचकांक में श्रमिक वर्ग की आबादी के नवीनतम उपभोग पैटर्न को सही ढंग से प्रदर्शित करना है।
  • मज़दूर और श्रमिक वर्ग के उपभोग पैटर्न में बीते वर्षों में काफी बदलाव आया है, इसलिये समय के साथ ‘कंज़म्पशन बास्केट’ (Consumption Basket) को भी अपडेट करना आवश्यक है, ताकि आँकड़ों की विश्वसनीयता बरकरार रखी जा सके।
  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठनों और राष्ट्रीय आयोगों ने लक्षित समूह के तेज़ी से बदलते उपयोग पैटर्न के आधार पर लगातार संशोधन करने की सिफारिश की थी।

महत्त्व

  • इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के वृहद् आर्थिक संकेतकों को मापने में मदद मिलेगी। साथ ही नई शृंखला में सुधार करते हुए इसमें अंतर्राष्ट्रीय मानकों और प्रथाओं को शामिल किया गया है एवं इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक तुलनीय बनाया गया है।
  • ध्यातव्य है कि सरकारी कर्मचारियों और औद्योगिक क्षेत्र में श्रमिकों को मिलने वाला महँगाई भत्ता इसी सूचकांक के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
    • हालाँकि सरकार ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि वर्तमान में औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) के आधार पर निर्धारित किये जाने वाले महँगाई भत्ते (Dearness Allowance) में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) 

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) का उपयोग आधार वर्ष के संदर्भ में कुछ चयनित वस्तुओं और सेवाओं के खुदरा मूल्यों के स्तर में समय के साथ बदलाव को मापने के लिये किया जाता है, जिस पर एक परिभाषित उपभोक्ता समूह द्वारा अपनी आय खर्च की जाती है।
  • जहाँ एक ओर थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति की गणना की जाती है, वहीं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में उपभोक्ता के स्तर पर कीमतों में होने वाले परिवर्तन को मापने का प्रयास किया जाता है।
  • CPI के चार प्रकार निम्नलिखित हैं:
    1. औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers-IW) के लिये CPI 
    2. कृषि मज़दूर (Agricultural Labourer-AL) के लिये CPI
    3. ग्रामीण मज़दूर (Rural Labourer-RL) के लिये CPI
    4. CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)
  • इनमें से प्रथम तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित किया जाता है, जबकि चौथे प्रकार के CPI को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा संकलित किया जाता है।

आधार वर्ष और उसकी आवश्यकता

  • आधार वर्ष वह बेंचमार्क होता है जिसके संदर्भ में विभिन्न राष्ट्रीय आँकड़ों और सूचकांकों जैसे- सकल घरेलू उत्पाद (GDP), सकल घरेलू बचत और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आदि की गणना की जाती है। 
  • आधार वर्ष को एक प्रतिनिधि वर्ष के रूप में माना जाता है, अतः यह आवश्यक है कि उस वर्ष किसी भी प्रकार की असामान्य घटना जैसे-सूखा, बाढ़, भूकंप आदि न हुई हो। 
  • अधिकांश विशेषज्ञ मानते हैं कि अर्थव्यवस्था के भीतर होने वाले संरचनात्मक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने के लिये आधार वर्ष को समय-समय पर संशोधित करना काफी आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

मृत पशुधन के सुरक्षित निपटान पर दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

मेन्स के लिये:

मवेशियों के सुरक्षित निपटान पर दिशा-निर्देश 

चर्चा में क्यों?

हाल में ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा 'मृत पशुधन' के सुरक्षित निपटान पर मसौदा दिशा-निर्देशों को प्रस्तुत किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • मसौदा दिशा-निर्देशों में मृत पशुधन के निपटान की वर्तमान प्रणालियों, संबंधित पर्यावरणीय मुद्दों, आवश्यक प्रदूषण नियंत्रण मानकों तथा उनके क्रियान्वयन की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। 
  •  हालाँकि CPCB द्वारा इन दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन के लिये कोई निर्दिष्ट समय-सीमा तय नहीं की गई है।

दिशा-निर्देशों की आवश्यकता:

  • प्रतिवर्ष लगभग 25 मिलियन मवेशी प्राकृतिक कारणों से मर जाते हैं। इनके सुरक्षित निपटान के लिये कोई संगठित व्यवस्था नहीं है। इसलिये ये मृत पशु पर्यावरण के लिये एक प्रमुख खतरा बनकर उभर रहे हैं। 
  • एनिमल स्लॉटर/पशु वध के अलावा मृत पशु पर्यावरण के लिये प्रमुख खतरा हैं। इन मृत पशुओं के कारण हवाई अड्डों के आसपास पक्षियों की आबादी में वृद्धि देखी जाती है जो आंशिक रूप से वायुयानों से 'बर्ड-हिट ’ खतरों के लिये ज़िम्मेदार हैं।

मृत पशु निपटान विधियाँ: 

  • भस्मीकरण (Incineration)
  • गहन शवाधान (Deep Burial)
  • मृत पशु उपयोग संयंत्र

प्रमुख दिशा-निर्देश:

  • मृत पशुधन निपटान की विधियों यथा- भस्मीकरण, गहन शवाधान, मृत पशु उपयोग संयंत्र आदि के लिये स्पष्ट मानक और प्रक्रिया निर्धारित की गई है। 
  • आवारा पशुओं के मरने पर उनके शवों को भस्म करने की आवश्यकता होती है। मसौदा दिशा-निर्देशों के अनुसार, नगरपालिका के अधिकारियों की इस कार्य के लिये स्पष्ट भूमिका सुनिश्चित की गई है। 
  • नगरपालिका द्वारा मृत पशुओं के निपटान के लिये भस्मीकरण (Incinerators) सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।

महत्त्व:

  • मवेशियों के उचित निपटान का व्यावसायिक महत्त्व है। मृत पशुओं के निपटान के लिये स्थापित संयंत्रों से प्राप्त उप-उत्पाद से वसा, पौष्टिक सामग्री और उर्वरक आदि प्राप्त किये जा सकते हैं।

निष्कर्ष:

  • मृत पशुधन निपटान में संलग्न संबंधित प्राधिकरणों को संबंधित क्षेत्र में आवश्यक अवसंरचना स्थापित करने की दिशा में कार्य करना चाहिये ताकि मृत पशुधन का निपटान न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल रहे अपितु आर्थिक दृष्टि से भी व्यावहारिक हो।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

(Central Pollution Control Board): 

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत किया गया था।
    • इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए। 
  • यह बोर्ड पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़

प्रिलिम्स के लिये:

 मोनोक्लोनल इनेमल एंटीबॉडी, श्वेत रक्त कोशिका, एंटीजन, एंटीबॉडी

मेन्स के लिये:

मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ का चिकित्सा क्षेत्र में महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंटरनेशनल एड्स वैक्सीन इनिशिएटिव (International AIDS Vaccine Initiative-IAVI) तथा पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ( Serum Institute of India-SII) द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी कंपनी मर्क (Merck) के साथ एक समझौते की घोषणा की गई है जिसके तहत SARS-CoV-2 को बेअसर करने के लिये मोनोक्लोनल इनेमल एंटीबॉडी (Monoclonal Antibodies-mAbs) को विकसित किया जाएगा और इसका इस्तेमाल COVID-19 के बचाव में किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • IAVI एक गैर-लाभकारी वैज्ञानिक अनुसंधान संगठन है जो तात्कालिक वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों को संबोधित करने के लिये समर्पित है। इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित है।
  • भारत स्थित SII विश्व में सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता संस्थान है।

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी:

  • एंटीबॉडीज प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा स्वाभाविक रूप से उत्पादित प्रोटीन हैं जो  एक विशिष्ट एंटीज़न को लक्षित करते हैं। जब इनका निर्माण सिंगल पैरेंट सेल (Single Parent Cell) से प्राप्त क्लोन द्वारा किया जाता है तो उन्हें मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs) कहा जाता है।
  • ये मानव निर्मित प्रोटीन हैं जो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली में एंटीबॉडी की तरह कार्य करते हैं। इन्हें विशिष्ट श्वेत रक्त कोशिका (Unique White Blood Cell) की क्लोनिंग करके बनाया जाता है।
  • mAbs में मोनोवालेंट समानता (Monovalent Affinity) पाई जाती जो केवल समान एपिटोप ( Same Epitope) अर्थात् एंटीजन के जिस हिस्से की पहचान एंटीबॉडी द्वारा की जाती है, को ही एक साथ जोड़ती है।
  • इन एंटीबॉडीज़ को कई कार्यों को करने के लिये डिज़ाइन किया गया है ताकि इनका उपयोग दवाओं, विषाक्त पदार्थों या रेडियोधर्मी पदार्थों से प्रभावित कोशिकाओं तक ले जाने के लिये किया जा सके।
  • mAbs का उपयोग कई प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिये  किया जाता है, जिसमें कई प्रकार के कैंसर भी शामिल हैं।

mAbs and COVID-19:

  • IAVI एवं  स्क्रिप्स रिसर्च (Scripps Research) द्वारा SARS-CoV-2 के लिये मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs) को एक साथ विकसित किया गया।
  • इन एंटीबॉडीज़ को व्यापक रूप से COVID-19 उपचार और रोकथाम के लिये एक उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है।
  •  COVID-19 एंटीबॉडी उपचार के लिये उत्साहजनक परिणाम प्रीक्लिनिकल रिसर्च एवं  प्रारंभिक नैदानिक परीक्षणों से प्राप्त हुए हैं।
  • इन एंटीबॉडीज़ में COVID-19 टीके  की पूरक भूमिका (Complementary Role) निभाने की भी क्षमता है।
    • इसका उपयोग उपचार एवं  संभावित रोकथाम के लिये विशेष रूप से उन व्यक्तियों में किया जा सकता है, जो उम्र या किन्हीं चिकित्सा स्थितियों के कारण टीकाकरण कराने की स्थिति में नहीं हैं।

एंटीबॉडी

  • एंटीबॉडी, जिसे इम्युनोग्लोबुलिन(Immunoglobulin) भी कहा जाता है, एक सुरक्षात्मक पदार्थ है जो प्रतिरक्षा प्रणाली में किसी एंटीजन की उपस्थिति के कारण उत्पन्न होते हैं ।
    • पदार्थों की एक विस्तृत शृंखला को शरीर द्वारा एंटीजन के रूप में जाना जाता है, जिसमें रोग पैदा करने वाले जीव और विषाक्त पदार्थ शामिल होते हैं।
  • एंटीजन को शरीर से निकालने के क्रम में  एंटीबॉडी द्वारा इनकी पहचान कर इन्हें नष्ट  किया जाता है।

आगे की राह: 

कई विशेषज्ञों का अनुमान है कि COVID-19 एक स्थानिक रोग ( Endemic Disease) में तब्दील हो जाएगा तथा इस रोग से प्रभावित लोगों के एक महत्त्वपूर्ण अनुपात में लक्षणों की गंभीरता को देखते हुए उन लोगों का इलाज के लिये  प्रभावी उपचार आवश्यक होगा जो कि अस्वस्थ रहते हैं या जो  टीकाकरण के बाद भी सुरक्षित नहीं हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2020

प्रिलिम्स के लिये

ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट

मेन्स के लिये

भारत में आर्थिक असमानता की समस्या और समाधान के उपाय

चर्चा में क्यों?

स्विट्ज़रलैंड स्थित एक निजी इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, महामारी और उसके कारण लागू लॉकडाउन के बावजूद जून 2020 के अंत में वयस्क भारतीयों की औसत संपत्ति में दिसंबर 2020 की तुलना में तकरीबन 120 डॉलर (लगभग 8,800 रुपए) की बढ़ोतरी हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • स्विट्ज़रलैंड स्थित निजी इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी द्वारा जारी ‘ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2020’ में दुनिया भर में घरेलू संपत्ति और संपदा की सबसे व्यापक और अद्यतन जानकारी प्रदान की गई है।

वैश्विक स्थिति

  • वर्ष 2019 में कुल वैश्विक संपत्ति  36.3 ट्रिलियन डॉलर और प्रति वयस्क व्यक्ति की औसत संपत्ति 77,309 डॉलर पर पहुँच गई थी, जो कि वर्ष 2018 की तुलना में 8.5 प्रतिशत अधिक है।
  • हालाँकि जनवरी और मार्च 2020 के बीच कुल घरेलू संपत्ति में 17.5 ट्रिलियन डॉलर की कमी हुई है, जो कि वर्ष 2019 के अंत में वैश्विक संपत्ति के मूल्य की तुलना में 4.4 प्रतिशत कम है।
  • इस महामारी के कारण महिला श्रमिकों को सामाजिक और आर्थिक तौर पर काफी असमानता का सामना करना पड़ा है। इसका मुख्य कारण है कि व्यवसायों और उद्योगों जैसे- रेस्टोरेंट, होटल, और खुदरा क्षेत्र आदि में महिलाओं का काफी अधिक प्रतिनिधित्त्व है और ये क्षेत्र भी महामारी के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
  • घरेलू संपत्ति अथवा संपदा के संदर्भ में वर्ष 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट को इस शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना माना जा सकता है, हालाँकि अब विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इस महामारी के प्रभाव के कारण वैश्विक संपत्ति को कुछ नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
    • महामारी ने विश्व को एक गंभीर मंदी की स्थिति में पहुँचा दिया है। विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में संकुचन की स्थिति देखी जा रही है, बेरोज़गारी दर में बढ़ोतरी हो रही और दुनिया भर के वित्तीय बाज़ारों में काफी अधिक उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।

भारतीय परिदृश्य

  • भारत की घरेलू संपत्ति अथवा संपदा में अचल संपत्ति का काफी विशिष्ट स्थान है, हालाँकि अब धीरे-धीरे वित्तीय संपत्ति में भी बढ़ोतरी हो रही है और भारत की कुल संपत्ति में इसकी हिस्सेदारी लगभग 22 प्रतिशत हो गई है।
  • स्टॉक, शेयर, बॉण्ड और बैंक डिपॉज़िट आदि वित्तीय संपत्ति के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2020 में वयस्क भारतीयों की औसत संपत्ति 17,420 डॉलर (तकरीबन 12.77 लाख रुपए) पर पहुँच गई है, जो कि दिसंबर 2019 में 17,300 डॉलर थी।
  • भारत में आर्थिक असमानता
    • भारत में आर्थिक असमानता और गरीबी को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि भारत में वर्ष 2019 के अंत में 73% वयस्क आबादी के पास 10,000 डॉलर से कम की संपत्ति थी।
    • वहीं भारत की जनसंख्या के एक छोटे से हिस्से के पास (कुल वयस्कों का 2.3 प्रतिशत)  1,00,000 डॉलर से अधिक की संपत्ति थी।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक मुद्रा धारकों में से शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों में भारत के कुल 9,07,000 लोग शामिल हैं।
  • वर्ष 2020 की पहली छमाही में भारत के वयस्कों की औसत संपत्ति में तकरीबन 1.7 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है, वहीं अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 में वयस्क भारतीयों की संपत्ति में 5-6 प्रतिशत की वृद्धि होगी, जबकि वर्ष 2021 में यह वृद्धि 9 प्रतिशत तक पहुँच सकती है।
  • जनवरी-अप्रैल 2020 के बीच भारत में बेरोज़गारी दर लगभग तीन गुना बढ़कर 24% हो गई है।

भारत में आर्थिक असमानता से संबंधित चुनौतियाँ

  • भारत जैसे विकासशील देश में तमाम तरह की गरीबी उन्मूलन संबंधी योजनाओं के बावजूद अभी भी सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या इन योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुँच रहा है?
    • इस प्रकार असल चुनौती वास्तविक गरीबों की पहचान करना है।
  • अक्सर सरकार द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर कम खर्च किया जाता है और यदि खर्च किया भी जाता है तो वह आवश्यकता के अनुरूप नहीं होता है।
  • जबकि पारंपरिक रूप से संवेदनशील समुदाय जैसे- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदि प्राथमिक शिक्षा में समाज के बाकी हिस्सों की तरह ही आगे बढ़ रहे हैं, किंतु जब उच्च शिक्षा की बात आती है तो ये वर्ग काफी पीछे दिखाई पड़ते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन भी असामनता को बढ़ाने में योगदान दे रहा है।

आगे की राह

  • घरेलू संपदा एक प्रकार से आकस्मिक बीमा के तौर पर कार्य करती है, जिसे आवश्यकता पड़ने पर कभी भी प्रयोग किया जा सकता है, इसीलिये वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी के आर्थिक प्रभावों को देखते हुए इसे एक उपलब्धि ही माना जाएगा कि वैश्विक संपत्ति पर इसका कुछ खास प्रभाव देखने को नहीं मिला है।
  • बीते कुछ वर्षों में भारत में आर्थिक असमानता एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जिसे सामाजिक खर्चों में वृद्धि करके और समय पर कर भुगतान सुनिश्चित करके आसानी से संबोधित किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में नवाचार को बढ़ावा देने के प्रयास

प्रिलिम्स के लिये:

इनोवेशन इन साइंस परस्यूट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च, बायोटेक्नोलॉजी इग्निशन ग्रांट, फ्यूचर स्किल प्राइम

मेन्स के लिये:

भारत में नवाचार की संभावना 

चर्चा में क्यों?

‘शून्य के क्षेत्र’ में भारत के मौलिक ज्ञान ने नवाचार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करवाई थी। COVID-19 महामारी, भारत को नवाचार के क्षेत्र में फिर से स्थापित करने का अवसर प्रदान करती है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत सरकार देश में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये इस क्षेत्र में सहयोग, सुविधा और विनियमन के लिये एक ढाँचे को स्थापित करने की दिशा में कार्य कर रही है।

नवाचार की संभावना:

  • भारत इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के मामले में सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाला देश है। वर्तमान में देश में 700 मिलियन से अधिक उपयोगकर्त्ता हैं और वर्ष 2025 तक यह संख्या बढ़कर 974 मिलियन होने का अनुमान है।
  • जैम ट्रिनिटी ( जन धन, आधार, मोबाइल) के तहत 404 मिलियन जन धन बैंक खाते हैं।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत कृत्रिम बुद्धिमता की मदद से वर्ष 2035 तक अपनी जीडीपी में लगभग 957 बिलियन डॉलर की वृद्धि कर सकता है।

नवाचारी ढाँचे की संरचना:

  • नवाचार के क्षेत्र में संरचनात्मक ढाँचे को सहयोग (Collaboration), सुविधा (Facilitation) और विनियमन (Regulation) के ट्रायड/त्रय के रूप संरचित किया जा रहा है।
    • सहयोग (Collaboration): सरकार द्वारा बहु-अनुशासनात्मक सहयोग पर बल दिया जा रहा है।
    • नियमन: नवाचार को बढ़ावा देने के लिये नियामक प्रथाओं को उदारीकृत किया जा रहा है।
    • सुविधा (Facilitation): नवाचार के मानकों और सिद्धांतों के पालन के लिये रचनात्मकता पर बल दिया जा रहा है। जोखिम लेने की क्षमता को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार सक्रिय सुविधा प्रदायक की भूमिका निभा रही है। 

नवाचार की दिशा में प्रमुख योजनाएँ:

  • इनोवेशन इन साइंस परस्यूट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च’ (INSPIRE): इस कार्यक्रम के तहत विज्ञान में प्रतिभावान छात्रों को अवसर प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।
  • रामानुजन फैलोशिप (Ramanujan Fellowship): यह अध्येतावृत्ति/ फैलोशिप विदेशों में रह रहे क्षमतावान भारतीय शोधकर्त्ताओं को भारतीय संस्थानों/विश्वविद्यालयों में काम करने के लिये विज्ञान, इंजीनियरिंग और चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में आकर्षक विकल्प‍ और अवसर प्रदान करती है।
  • किरण योजना: किरण (KIRAN) योजना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लैंगिक समानता से संबंधित विभिन्न मुद्दों/चुनौतियों का समाधान कर रही है।
  • स्मार्ट इंडिया हैकथॉन (SIH): इसे डिजिटल भारत के सपने को साकार करने और युवाओं को राष्ट्र निर्माण के कार्य से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के लिये किया जा रहा है।
  • अटल नवाचार मिशन (AIM): इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य देश के कम विकसित क्षेत्रों में सामुदायिक नवाचार को प्रोत्साहित करना है।
  • बायोटेक्नोलॉजी इग्निशन ग्रांट (BIG) योजना: यह स्टार्ट-अप के वित्तपोषण से संबंधित एक कार्यक्रम है।
  • फ्यूचर स्किल प्राइम (PRIME): यह सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोज़गार के रिस्किलिंग और अपस्किलिंग के लिये एक कार्यक्रम है। यह NASSCOM तथा इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक पहल है। 
  • STARS प्रोजेक्ट: STARS प्रोजेक्ट को शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के तहत एक नवीन केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया जाएगा।
  • स्पार्क (SPARC) पहल: ‘स्‍पार्क’ पहल का लक्ष्‍य भारतीय संस्‍थानों और विश्‍व के सर्वोत्‍तम संस्‍थानों के बीच अकादमिक एवं अनुसंधान सहयोग को सुगम बनाकर भारत के उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों में अनुसंधान परिदृश्‍य को बेहतर बनाना है।
  • IMPRESS कार्यक्रम: इस योजना के तहत उच्च शिक्षा संस्थानों में सामाजिक विज्ञान अनुसंधान का समर्थन करने और नीति बनाने के लिये अनुसंधान प्रोजेक्ट चलाए जाएंगे।
  • बहु-विषयक साइबर-फिज़िकल प्रणालियों के राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS): साइबर-फिज़िकल प्रणालियों में प्रौद्योगिकी विकास, विनियोग विकास, मानव संसाधन विकास, कौशल विकास, उद्यमशीलता और स्टार्टअप विकास तथा संबंधित प्रौद्योगिकियों के मुद्दों को हल किया जाएगा।

आगे की राह:

  • भारत को शिक्षा, अनुसंधान और विकास पर व्यय बढ़ाना चाहिये जिससे नीतियों के लिये बेहतर वातावरण एवं अवसंरचना का विकास किया जा सके।
  • नीति आयोग का 'भारत नवाचार सूचकांक' देश में नवाचार के वातावरण में सुधार करने हेतु इनपुट और आउटपुट दोनों घटकों पर ध्यान केंद्रित करता है। अत: इसे आर्थिक प्रोत्साहन के साथ जोड़ा जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू 


भूगोल

भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

मैस्करीन हाई, ग्लोबल वार्मिंग अंतराल, यमन और सोमालिया की विश्व मानचित्र पर अवस्थिति

मेन्स के लिये:

ग्लोबल वार्मिंग का भारतीय मानसून पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिणी हिंद महासागर में मैस्करीन हाई (Mascarene High- MH) क्षेत्र की परिवर्तनशीलता पर हुए एक अध्ययन के अनुसार, समुद्र की सतह के तापमान (Sea Surface Temperature- SST) में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह अध्ययन ग्लोबल वार्मिंग अंतराल (Global Warming Hiatus- GWH) (1998-2016) की  अवधि  के दौरान किया गया।
  • अध्ययन से प्राप्त परिणाम ऐसे देशों के लिये चिंताजनक हैं जिनकी खाद्य उत्पादन और अर्थव्यवस्था मानसूनी वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर करती है।
  • GWH के दौरान दक्षिणी हिंद महासागर में MH के कमज़ोर पड़ने से सोमालिया और ओमान के तट पर अपवेलिंग की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है जो अरब सागर के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने का कारक बन सकता है।

OMAN

  • इसके अलावा इस प्रक्रिया से कृषि उपज प्रभावित हो रही है क्योंकि अतिरिक्त या कम वर्षा, फसलों के लिये हानिकारक होती है।

Mascarena-High-Region

ग्लोबल वार्मिंग अंतराल:

  • ग्लोबल वार्मिंग अंतराल से तात्पर्य एक निश्चित समयसीमा में ग्लोबल वार्मिंग का कम हो जाना या ग्लोबल वार्मिंग की वृद्धि में कमी से है जो विश्व स्तर पर सतह के तापमान में अपेक्षाकृत कम परिवर्तन की अवधि है।
  • इस प्रक्रिया के दौरान समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि हो सकती है।

मैस्करीन हाई:

Mascarenes

  • मैस्करीन हाई (MH) दक्षिण हिंद महासागर में 20° से 35° दक्षिण अक्षांश और 40 ° से 90 ° पूर्वी देशांतर के बीच स्थित एक अर्द्ध-स्थायी उपोष्णकटिबंधीय उच्च दबाव वाला क्षेत्र है।
  • यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ से क्रॉस-इक्वेटोरियल पवनें भारत में आती हैं।
  • इस उच्च दबाव क्षेत्र के कारण उत्पन्न होने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून भारतीय उपमहाद्वीप मानसून का सबसे मज़बूत घटक है जो संपूर्ण पूर्वी एशिया की वार्षिक वर्षा में लगभग 80 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है।
  • यह इस क्षेत्र के एक अरब से अधिक लोगों के लिये एक प्रमुख जलापूर्ति स्रोत भी है। मानसून को कई जलवायु कारक नियंत्रित करते हैं जिनमें से एक MH है।
  • इसका नाम मैस्करीन द्वीप समूह के नाम पर रखा गया है, जो हिंद महासागर में मेडागास्कर के पूर्व में  मॉरीशस के द्वीपों के साथ-साथ फ्रेंच रियूनियन द्वीपों से मिलकर बना है।
  • अफ्रीकी और ऑस्ट्रेलियाई मौसम पैटर्न पर इसका अत्यधिक प्रभाव पड़ने के साथ ही, यह दक्षिण में हिंद महासागर और उत्तर में उपमहाद्वीपीय भू-भाग के मध्य अंतर-गोलार्द्ध परिसंचरण में भी मदद करता है।

मैस्करीन हाई की भूमिका:

  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण SST में वृद्धि के परिणामस्वरूप MH और भारतीय भू-भाग के मध्य दाब प्रवणता में कमी आई है।
  • दाब प्रवणता में आई कमी ने पश्चिमी हिंद महासागर में निचले स्तर की क्रॉस-इक्वेटोरियल पवनों की तीव्रता को कम कर दिया, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून के आगमन और पूर्वी एशिया में वर्षा प्रभावित हुई है।

आगे की राह:

  • पिछले 18 वर्षों के दौरान  SST ने मानसून पर अत्यधिक प्रभाव डाला है।
  • जलवायु परिवर्तन प्रभाव के जोखिम को कम करने के लिये हीटवेव सहित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और बढ़ते तापमान के कारण बर्फ तथा ग्लेशियर के पिघलने से उत्पन्न होने वाली बाढ़ की स्थिति को रोकने के लिये तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

G-20 भ्रष्टाचार निरोधी कार्यसमूह की पहली बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

G-20 भ्रष्टाचार निरोधी कार्यसमूह, केंद्रीय सतर्कता आयोग

मेन्स के लिये:

भ्रष्टाचार से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका, भारत सरकार द्वारा भ्रष्टाचार निरोधी प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री ने ‘G-20 भ्रष्टाचार निरोधी कार्यसमूह’ (G-20 Anti-Corruption Working Group) की पहली बैठक में हिस्सा लिया।

प्रमुख बिंदु:

  • इस बैठक के दौरान केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री ने भ्रष्टाचार को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया।
  • इसके साथ ही उन्होंने भ्रष्टाचार को कम करने के लिये ‘भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988’ में संशोधन और ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018’ जैसे कानूनी प्रावधानों के साथ भारत सरकार के प्रयासों को रेखांकित किया।

भ्रष्टाचार रोकथाम हेतु सरकार के प्रयास:  

  • ‘भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988’:
    • केंद्र सरकार द्वारा देश में भ्रष्टाचार की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 2018 में ‘भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988’ में संशोधन किया गया।
    • इस संशोधन के तहत रिश्वत लेने के साथ रिश्वत देने को भी अपराध की श्रेणी के तहत रखा गया। इसके साथ ही संशोधित अधिनियम में व्यक्तियों और काॅर्पोरेट संस्थाओं द्वारा भ्रष्टाचार की गतिविधियों में शामिल होने से रोकने के लिये प्रभावी निवारक उपाय शामिल किये गए। 
    • इस संशोधन के माध्यम से सरकार का उद्देश्य अधिक पारदर्शिता के माध्यम से बड़े संस्थानों में भ्रष्टाचार की जाँच करना और कॉर्पोरेट रिश्वतखोरी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना है।
  • भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018:  
    • वर्ष 2018 में लागू किये गए इस कानून का मूल उद्देश्य कानूनी कार्रवाई से बचने के लिये देश छोड़कर भागने वाले आर्थिक अपराधियों को रोकना था।
    • यह अधिनियम अधिकारियों को किसी भगोड़े आर्थिक अपराधी (Fugitive Economic Offender) द्वारा अपराध से प्राप्त आय और अन्य संपत्ति को ज़ब्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • धन शोधन निवारण अधिनियम: 
    • केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2019 में ‘धन शोधन निवारण अधिनियम’ में संशोधन के माध्यम से ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate) को और अधिक मज़बूत करने का प्रयास किया गया।

  • लोकपाल और लोकायुक्त:

    • ‘लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013’ के तहत संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की गई है।   
    • ये संस्थान देश में अधिक पारदर्शिता, अधिक नागरिक-केंद्रित और शासन में जवाबदेही लाने के लिये कार्य करते हैं। 
  • केंद्रीय सतर्कता आयोग: 
    • केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) की स्थापना फरवरी, 1964 में 'के. संथानम' की अध्यक्षता वाली भ्रष्टाचार निरोधक समिति (Committee on Prevention of Corruption) की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। 
    • केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के तहत इसे सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।
    • केंद्रीय सतर्कता आयोग, लोकसेवकों की कुछ श्रेणियों द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (Prevention of Corruption Act), 1988 के तहत भ्रष्टाचारों की जाँच कराने की शक्ति रखता है।

‘G-20 भ्रष्टाचार निरोधी कार्यसमूह’

(G-20 Anti-Corruption Working Group- ACWG): 

  • ‘G-20 भ्रष्टाचार निरोधी कार्यसमूह’ की स्थापना वर्ष 2010 में G-20 देशों के ‘टोरंटो शिखर सम्मेलन’ (Toronto Summit) के दौरान की गई थी।
  • इस कार्यसमूह का प्रमुख उद्देश्य भ्रष्टाचार निवारण के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में G-20 देशों द्वारा दिये गए व्यावहारिक और मूल्यवान योगदान के संदर्भ में व्यापक सिफारिशें करना है।
  • ACWG ने G-20 सदस्य देशों द्वारा किये गए सामूहिक और राष्ट्रीय कार्यों के समन्वय के माध्यम से समूह के भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों का नेतृत्व किया है।
  • ACWG भ्रष्टाचार विरोधी गतिविधियों के लिये विश्व बैंक समूह (World Bank Group), आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development- OECD), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force-FATF) जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करता है। 

भ्रष्टाचार से निपटने में G-20 की भूमिका:   

  • हाल के वर्षों में G-20 ने वैश्विक और राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • G-20 द्वारा भ्रष्टाचार के नकारात्मक प्रभावों को स्वीकार किया गया है, जो बाज़ारों की अखंडता के लिये खतरा उत्पन्न करता है, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को कमज़ोर करता है, संसाधन आवंटन को विकृत करता है, सार्वजनिक विश्वास को क्षति पहुँचाता है और कानून के शासन को कमज़ोर करता है।
  • इसके माध्यम से G-20 यह सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध है कि सदस्य देश मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली  तथा प्रतिबद्धताओं को मज़बूत बनाने में अपना योगदान दें।
  • G-20 समूह:
    • G-20 समूह विश्व की प्रमुख उन्नत और उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले 20 देशों का समूह है। 
    • G-20 की स्थापना वर्ष 1997 के पूर्वी एशियाई वित्तीय संकट के बाद वर्ष 1999 में यूरोपीय संघ और विश्व की 19 अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों तथा वित्त मंत्रियों के एक फोरम के रूप में की गई थी।
    • इस समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
    • G-20 एक फोरम मात्र है, यह किसी स्थायी सचिवालय या स्थायी कर्मचारी के बिना कार्य करता है, प्रतिवर्ष G-20 सदस्य देशों के बीच से इसके अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है।
    • वर्तमान में G-20 की अध्यक्षता सऊदी अरब (1 दिसंबर, 2019 से 30 नवंबर, 2020 तक) के पास है। 
  • उद्देश्य: 
    • वैश्विक आर्थिक स्थिरता, सतत् विकास के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समूह के सदस्यों के बीच नीतिगत समन्वय स्थापित करना।
    • आर्थिक जोखिम को कम करने और भविष्य के वित्तीय संकटों को रोकने के लिये वित्तीय विनियमन (Financial Regulations) को बढ़ावा देना।
    • एक नए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे (New International Financial Architecture) का निर्माण करना।

स्रोत: पीआईबी


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