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डेली न्यूज़

  • 20 Oct, 2021
  • 54 min read
शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री की 60 सूत्रीय कार्ययोजना

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल डिवाइड,  ई-कोर्ट, स्टार्टअप, मिशन कर्मयोगी 

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री की 60 सूत्रीय कार्ययोजना की मुख्य विशेषताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने एक व्यापक 60 सूत्रीय कार्ययोजना तैयार की है।

  • यह कार्ययोजना विशिष्ट मंत्रालयों और विभागों पर केंद्रित है, लेकिन एक गहन विश्लेषण से पता चलता है कि इसमें सामान्यत: तीन श्रेणियाँ- शासन के लिये आईटी और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना, व्यावसायिक वातावरण में सुधार और सिविल सेवाओं का उन्नयन शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • शासन के लिये आईटी और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के लिये छात्रवृत्ति के वितरण को सुव्यवस्थित करने से लेकर वंचित छात्रों हेतु स्वदेशी टैबलेट और लैपटॉप विकसित करके डिजिटल डिवाइड के अंतराल को भरने के लिये कई कुशल कार्रवाइयाँ शामिल हैं।
    • 'मातृभूमि' नामक केंद्रीय डेटाबेस के तहत वर्ष 2023 तक सभी भूमि अभिलेखों को डिजिटाइज़ करना तथा ई-कोर्ट सिस्टम के साथ एकीकरण के विषय/अधिकार से संबंधित मुद्दों पर पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।
    • प्रौद्योगिकी के माध्यम से नागरिकता को जन्म प्रमाणपत्र से जोड़ा जा सकता है और इसे मुख्यधारा में लाया जा सकता है।
  • व्यावसायिक वातावरण में सुधार:
    • इसमें कुछ अनुमतियों को पूर्ण रूप से समाप्त करना, 10 क्षेत्रों में व्यवसाय शुरू करने की लागत को कम करना और इसे वियतनाम एवं इंडोनेशिया के समतुल्य बनाना तथा सभी सरकारी सेवाओं के लिये मंज़ूरी की स्वचालित अधिसूचना हेतु सिंगल प्वाइंट एक्सेस को शामिल किया गया है।
    • समय पर भूमि अधिग्रहण और वन मंज़ूरी के लिये राज्यों को प्रोत्साहन देना, एक व्यापक पर्यावरण प्रबंधन अधिनियम जो इस क्षेत्र में विभिन्न कानूनों को समाहित करता है, उभरते क्षेत्रों के लिये स्टार्टअप और कौशल कार्यक्रमों हेतु एक परामर्श मंच प्रदान करता है।
    • देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को बढ़ाने के लिये निर्णयन हेतु भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) मानचित्रण का उपयोग करना।
    • व्यापार समझौतों पर बातचीत और नौकरियों पर बल देना।
  • सिविल सेवाओं का उन्नयन:
    • क्षमता निर्माण (मिशन कर्मयोगी)- केंद्र और राज्यों दोनों में बुनियादी ढाँचे के विभिन्न पहलुओं पर अधिकारियों का प्रशिक्षण, विशेषज्ञता का संचार और उच्च सिविल सेवाओं के लिये नवीनतम तकनीकों के माध्यम से क्षमता निर्माण करना है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की तरह ही मंत्रालयों और विभागों के लिये प्रदर्शन आधारित कार्य, स्पष्ट और विशिष्ट लक्ष्य, राज्यों के मुद्दों का समाधान करने हेतु संस्थागत तंत्र तथा उनकी सीमित क्षमता को देखते हुए प्रत्येक 10 वर्ष में सरकारी प्रक्रिया री-इंजीनियरिंग (GPR) के माध्यम से विभागों का पुनर्गठन करना।
      • सेवाओं की समग्र गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से संगठन या उसके सदस्यों की 'समस्याओं' या 'ज़रूरतों' का समाधान करने के लिये GPR को लागू करना।
    • मुख्य सूचना अधिकारियों (CIO) और मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारियों (CTO) की नियुक्ति में डेटा का कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं किया जा रहा है। सभी सरकारी आँकड़ों को सभी मंत्रालयों के लिये सुलभ बनाया जाना चाहिये।
  • अन्य एजेंडा:
    • नीति आयोग को भी पाँच वर्ष के अंदर गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित करने को कहा गया है।
    • आवास और शहरी कार्य मंत्रालय को मलिन बस्तियों के प्रसार को रोकने के लिये निर्माण में लगे सेवा कर्मचारियों हेतु आवासीय सुविधाओं की योजना शुरू करने की आवश्यकता है।
    • विभिन्न मंत्रालयों की लाभार्थी उन्मुख योजनाओं को एक साथ लाने के लिये आधार (Aadhaar) का उपयोग करने के साथ ही सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक 'पारिवारिक डेटाबेस डिज़ाइन' विकसित किया गया है जिसे आधार की तरह प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • यह संस्कृति और पर्यटन मंत्रालयों को 100-200 प्रतिष्ठित/आइकॉनिक संरचनाओं और स्थलों की पहचान करने और विकसित करने का निर्देश देता है।
    • सिंगापुर में स्थापित ऐसे केंद्रों से प्रेरणा लेते हुए सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में ‘उत्कृष्टता केंद्र’ स्थापित किये जा सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

चीन में आर्थिक मंदी: प्रभाव और निहितार्थ

प्रिलिम्स के लिये: 

सकल घरेलू उत्पाद, कोविड-19

मेन्स के लिये:

चीन की आर्थिक मंदी  का भारत और विश्व पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन के ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो’ ने बताया है कि मौजूदा वर्ष की तीसरी तिमाही में चीन की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि धीमी होकर 4.9% पर पहुँच गई है।

  • विशेषज्ञों द्वारा चिंता ज़ाहिर की गई है कि चीन की धीमी अर्थव्यवस्था प्रारंभिक वैश्विक सुधार और भारत जैसी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित कर सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • विकास दर में कमी के कारण:
    • बेस इफेक्ट: चीन ने कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक रिकवरी में बेहतर प्रदर्शन किया था। इसलिये कई जानकारों का मानना है कि इस तिमाही बेस इफेक्ट के कारण चीन की विकास दर में गिरावट दर्ज की गई है।
      • चीन आर्थिक विकास के 'परिपक्व' चरण से गुज़र रहा है यानी एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसने दो दशकों में दो अंकों की वृद्धि दर्ज की है, ऐसे में उसे जल्द ही मंदी का भी सामना करना पड़ेगा।
      • ‘बेस इफेक्ट’ का आशय किसी दो डेटा बिंदुओं के बीच तुलना के परिणाम पर तुलना के आधार या संदर्भ के प्रभाव से है।
    • ईंधन/बिजली संकट: कोयले की कीमतों में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप बिजली की कमी ने प्रांतीय सरकार को बिजली आपूर्ति में कटौती करने के लिये प्रेरित किया।
      • चीन में यह ईंधन/बिजली संकट कारखानों को प्रभावित कर रहा है और देश के दक्षिण- पूर्व औद्योगिक क्षेत्र में इकाइयों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है।
    • रियल एस्टेट सेक्टर में उथल-पुथल: रियल एस्टेट सेक्टर, जो चीन के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है, में अब प्रत्यक्ष मंदी के संकेत दिखने लगे हैं।
      • ‘एवरग्रांडे संकट’ को इस मंदी का प्रमुख कारण माना जा सकता है।
      • ‘एवरग्रांडे समूह’ चीन में एक रियल एस्टेट कंपनी है, जो अरबों डॉलर की बकाया राशि चुकाने हेतु संघर्ष कर रही है।

एवरग्रांडे संकट

  • ‘एवरग्रांडे समूह’ के नेतृत्व में रियल एस्टेट क्षेत्र महामारी के बाद चीन की आर्थिक रिकवरी का मुख्य चालक था।
    • हालाँकि चीन के रियल एस्टेट बाज़ार में प्रगतिशील मंदी और नए घरों की मांग में कमी ने इसके नकदी प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
  • इससे एक ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहाँ देश की घरेलू संपत्ति का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा घरों में ही रह गया और इसे बाज़ार में निवेश नहीं किया गया।
  • इस प्रकार सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी का पतन समग्र अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है और यह वैश्विक वस्तुओं एवं वित्तीय बाज़ारों को भी व्यापक रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • हालाँकि कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वैश्विक वित्तीय बाज़ारों के लिये यह खतरा काफी छोटा है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
    • वैश्विक रिकवरी: महामारी पर चीन के नियंत्रण और अपने उद्योगों को फिर से शुरू करने के चीन के प्रयासों ने महामारी के बाद वैश्विक रिकवरी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
      • प्रणालीगत जोखिमों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था में हो रही गिरावट वैश्विक महामारी के बाद वैश्विक आर्थिक रिकवरी में सुधार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
    • ‘व्यापार युद्ध’ का प्रभाव: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के परिणामस्वरूप चीन के निर्यात में कमी आई है, जिसके कारण उन देशों (विशेषकर दक्षिण एशियाई देशों) को नुकसान हुआ है जो घटकों और अन्य निर्मित माल के उत्पादन के लिये 'आपूर्ति मूल्य शृंखला' हेतु चीन पर निर्भर हैं।
  • भारत पर प्रभाव
    • आयात: चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021 के पहले नौ महीनों में लगभग 50% बढ़ा है।
      • इसके अलावा भारत स्मार्टफोन और ऑटोमोबाइल घटकों, दूरसंचार उपकरण, सक्रिय दवा सामग्री तथा अन्य रसायनों आदि के लिये भी चीन से आयात पर निर्भर है।
      • इस प्रकार चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट आने से भारत के उपभोक्ता बाज़ार और बुनियादी अवसंरचना के विकास पर असर पड़ेगा।
    • निर्यात: इसके अलावा यदि चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी आती है, तो इससे भारत के लौह अयस्क निर्यात, जिसमें से अधिकांश चीन को निर्यात होता है, पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
    • निवेश: चीन की धीमी अर्थव्यवस्था, भारत से निवेश के बहिर्वाह को गति प्रदान कर सकती है। यदि भारत आर्थिक सुधारों में तेज़ी लाता है, तो यह अगला वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन सकता है।

आगे की राह

  • आर्थिक सुधार के अलावा भारत को चीन से आयात विविधीकरण का भी प्रयास करना चाहिये, निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता विकसित करनी चाहिये और वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय विरासत और संस्कृति

कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा

प्रिलिम्स के लिये:

कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, बौद्ध परिपथ, स्वदेश दर्शन योजना

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति में सांस्कृतिक कूटनीति विशेष रूप से बौद्ध धर्म का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश का कुशीनगर हवाई अड्डा भारत के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों की सूची में शामिल होने वाला नवीनतम हवाई अड्डा है। यह अपेक्षा की जा रही है कि यह हवाई अड्डा बौद्ध तीर्थ पर्यटन के लिये दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशियाई देशों के लोगों को निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेगा।

  • कुशीनगर, बौद्ध परिपथ- जिसमें लुंबिनी, सारनाथ, गया और अन्य तीर्थस्थल शामिल हैं, का केंद्र है। 

प्रमुख बिंदु

  • कुशीनगर हवाई अड्डा और सांस्कृतिक कूटनीति:
    • कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की शुरुआत भारत-श्रीलंका संबंधों में एक मील का पत्थर सिद्ध होगी।
    • हवाई अड्डे के उद्घाटन के अवसर पर श्रीलंका, भारत के दो भित्ति चित्रों (Mural Paintings) की तस्वीरें प्रस्तुत करेगा:
      • एक भित्ति चित्र में सम्राट अशोक के पुत्र अरहत भिक्षु महिंदा को श्रीलंका के राजा देवनामपियातिसा (Devanampiyatissa) को बुद्ध का संदेश देते हुए दर्शाया गया है।
      • दूसरे भित्ति चित्र में सम्राट अशोक की पुत्री ‘थेरी भिक्षुणी’ संघमित्रा को पवित्र बोधि वृक्ष (जिसके बारे में ऐसा माना जाता है कि इसके नीचे ही बुद्ध को ज्ञान की प्राप्त हुई थी) के पौधे के साथ श्रीलंका में आगमन करते हुए दर्शाया गया है
  • बौद्ध परिपथ भारत की विदेश नीति में सॉफ्ट पावर के उपयोग को दर्शाता है। 
  • भारत द्वारा बौद्ध कूटनीति (Buddhist Diplomacy) को दिया जाने वाला महत्त्व, श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने और पीपल-टू-पीपल संबंधों में सुधार करने में मदद करेगा (विशेषकर श्रीलंकाई गृहयुद्ध के बाद के संदर्भ में)।
  • इसके अलावा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और इसकी व्यापक अखिल एशियाई उपस्थिति पर ज़ोर देने के कारण बौद्ध मत स्वयं ही सॉफ्ट-पावर कूटनीति को बढ़ावा देता है।

श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रसार

  • मौर्य सम्राट अशोक (273-232 ईसा पूर्व) के शासन काल के दौरान पूर्वी भारत से भेजे गए एक मिशन द्वारा श्रीलंका में पहली बार बौद्ध धर्म का प्रचार किया गया था।
  • श्रीलंका के मिशन के नेतृत्त्वकर्त्ता, महेंद्र (महिंदा) को अशोक के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है।
  • बौद्ध परिपथ के विषय में:
    • वर्ष 2014-15 में पर्यटन मंत्रालय ने उच्च पर्यटक मूल्य (High Tourist Value) के सिद्धांतों पर थीम आधारित पर्यटक सर्किट विकसित करने की दृष्टि से स्वदेश दर्शन योजना की शुरुआत की।
      • बौद्ध सर्किट/परिपथ, मंत्रालय की योजना के तहत विकास के लिये चयनित पंद्रह थीम आधारित सर्किट्स में से एक है।
    • बौद्ध सर्किट एक मार्ग है जो बुद्ध के पदचिह्नों- नेपाल में लुम्बिनी से लेकर भारत में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर (जहाँ उनकी मृत्यु हुई थी) तक, का अनुसरण करता है।
      • बौद्ध तीर्थयात्री कुशीनगर को एक पवित्र स्थल मानते हैं, जिसके बारे में उनका मानना ​​है कि गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश यहीं दिया और 'महापरिनिर्वाण' या मोक्ष प्राप्त किया।
    • यह बौद्ध धर्म के 450 मिलियन अनुयायियों के साथ-साथ इतिहास, संस्कृति या धर्म में रुचि रखने वाले यात्रियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • बौद्ध सर्किट में निवेश भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय, बिहार एवं उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों, निजी क्षेत्र, बौद्ध मठों और संप्रदायों तथा विश्व बैंक समूह के बीच पहली बार सहयोग का परिणाम है।

Buddhist CircuitBuddhist

  • बौद्ध स्थलों को बढ़ावा देने के लिये की गई अन्य पहलें:
    • प्रसाद योजना: प्रसाद (PRASHAD) योजना के अंतर्गत बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये 30 परियोजनाएँ शुरू की गई हैं।
    • प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल: बोधगया, अजंता और एलोरा में बौद्ध स्थलों की पहचान उन्हें प्रतिष्ठित पर्यटक स्थलों (Iconic Tourist Sites) के रूप में विकसित करने के लिये की गई है।
    • बौद्ध सम्मेलन: यह भारत को बौद्ध गंतव्य और दुनिया भर के प्रमुख बाज़ारों के रूप में बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रत्येक वैकल्पिक वर्ष में आयोजित किया जाता है।
    • भाषाओं की विविधता: उत्तर प्रदेश में बौद्ध स्मारकों पर चीनी भाषा में और मध्य प्रदेश में साँची स्मारकों में सिंहली (Sinhala) भाषा (श्रीलंका की आधिकारिक भाषा) में साइनबोर्ड लगाए गए हैं।

बुद्ध के मार्ग (Buddha Path)

  • बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व नेपाल के लुंबिनी में हुआ था।
  • उन्होंने उपदेश दिया कि विलासिता और तपस्या दोनों की अधिकता से बचना चाहिये। वह "मध्यम मार्ग" (मध्य मार्ग) के पक्षकार थे।
  • बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग (बुद्ध की असाधारण शिक्षाओं) में निम्नलिखित शामिल थे:
    • सम्यक दृष्टि  
    • सम्यक संकल्प  
    • सम्यक वाक  
    • सम्यक कर्मांत  
    • सम्यक आजीविका 
    • सम्यक व्यायाम  
    • सम्यक स्मृति  
    • सम्यक समाधि 
  • 'बुद्ध के मार्ग' बौद्ध विरासत के आठ महान स्थानों को भी संदर्भित करते हैं (पालि भाषा में अह्ममहाहनानी (Aṭṭhamahāṭhānāni) के रूप में संदर्भित)। वे है:
    • लुंबिनी (नेपाल)- बुद्ध का जन्म।
    • बोधगया (बिहार) - ज्ञान प्राप्ति।
    •  सारनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)- प्रथम उपदेश।
    •  कुशीनगर (गोरखपुर, उत्तर प्रदेश)- बुद्ध की मृत्यु।
    •  राजगीर (बिहार)- जहाँ भगवान ने एक पागल हाथी को वश में किया।
    •   वैशाली (बिहार)- जहाँ एक बंदर ने उन्हें शहद चढ़ाया।
    •   श्रावस्ती (यूपी)- भगवान ने एक हज़ार पंखुड़ियों वाले कमल पर आसन ग्रहण किया और स्वयं के कई प्रतिरूप बनाए।
    • संकिसा (फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश) - ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध स्वर्ग से धरती पर आए थे।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक भुखमरी सूचकांक  2021, वैश्विक खाद्य सुरक्षा  सूचकांक 2021

मेन्स के लिये:

वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक की प्रमुख विशेषताएँ

चर्चा में क्यों?

वैश्विक खाद्य सुरक्षा (GFS) सूचकांक 2021 में 113 देशों की सूची में भारत का 71वाँ स्थान है।

प्रमुख बिंदु

  •  सूचकांक के बारे में:
    • विकास:
      • GFS सूचकांक को लंदन स्थित इकोनॉमिस्ट इम्पैक्ट द्वारा डिज़ाइन और निर्मित किया गया और इसे कॉर्टेवा एग्रीसाइंस (Corteva Agriscience) द्वारा प्रायोजित किया गया था।
      • वर्ष 2021 में जारी GFSI सूचकांक का दसवाँ संस्करण है। इस सूचकांक को प्रतिवर्ष  प्रकाशित किया जाता है।
    • मापन:
      • यह निम्नलिखित के आधार पर खाद्य सुरक्षा के अंतर्निहित कारकों को मापता है:
        • सामर्थ्य
        • उपलब्धता
        • गुणवत्ता और सुरक्षा
        • प्राकृतिक संसाधन और लचीलापन
      • यह आय और आर्थिक असमानता सहित 58 अद्वितीय खाद्य सुरक्षा संकेतकों का आकलन करता है, वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य में ज़ीरो हंगर की दिशा में प्रगति को तीव्र गति प्रदान करने के लिये प्रणालीगत अंतराल और आवश्यक कार्यों पर ध्यान आकर्षित करना होगा।
  • रिपोर्ट के प्रमुख परिणाम (भारत और विश्व):
    • शीर्ष स्थान प्राप्त करने वाले देश:
      • आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, यूके, फिनलैंड, स्विट्ज़रलैंड, नीदरलैंड, कनाडा, जापान, फ्राँस और अमेरिका ने सूचकांक में 77.8 और 80 अंकों की सीमा में समग्र जीएफएस स्कोर के साथ शीर्ष स्थान साझा किया।
    • भारत का स्थान:
      • समग्र स्थिति: 113 देशों के GFS सूचकांक 2021 में भारत 57.2 अंकों के समग्र स्कोर के साथ 71वें स्थान पर है।
      • पड़ोसी देशों से तुलना: इस सूचकांक में भारत का प्रदर्शन पाकिस्तान (75वें स्थान), श्रीलंका (77वें स्थान), नेपाल (79वें स्थान) और बांग्लादेश (84वें स्थान) से बेहतर है लेकिन वह चीन (34वें स्थान) से पीछे है।
        • हालाँकि पिछले 10 वर्षों में समग्र खाद्य सुरक्षा स्कोर में भारत की प्रगतिशील वृद्धि पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से कम रही।
          • भारत का स्कोर केवल 2.7 अंक बढ़कर वर्ष 2021 में 57.2 हो गया, जो वर्ष 2012 में 54.5 था, यह पाकिस्तान की तुलना में 9 अंक (2021 में 54.7 और 2012 में 45.7 ) अधिक था।
        • फूड अफोर्डेबिलिटी कैटेगरी में पाकिस्तान ने भारत से बेहतर स्कोर किया, जबकि श्रीलंका इस श्रेणी में पहले से ही बेहतर स्थिति में है। शेष 3 बिंदुओं पर भारत ने पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका से बेहतर स्कोर किया है।
  • चिंताएँ:
    • वर्ष 2030 तक ज़ीरो हंगर स्थिति प्राप्त करने के सतत् विकास लक्ष्य की दिशा में सात वर्षों की प्रगति के बाद लगातार दूसरे वर्ष वैश्विक खाद्य सुरक्षा में कमी आई है।
    • जबकि देशों ने पिछले दस वर्षों में खाद्य असुरक्षा को दूर करने की दिशा में पूर्ण प्रगति की है, खाद्य प्रणाली आर्थिक, जलवायु और भू-राजनीतिक गतिविधियों के प्रति संवेदनशील बनी हुई है।
  • सुझाव:
    • भूख और कुपोषण को समाप्त करने तथा सभी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु स्थानीय, राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर कार्रवाई की जानी अनिवार्य है।
    • वर्तमान और उभरती भविष्य की इन चुनौतियों का सामना करने के लिये आवश्यक है कि खाद्य सुरक्षा में निवेश के साथ-साथ जलवायु अनुकूल फसल पैदावार में नवाचार से लेकर सबसे कमज़ोर लोगों की सहायता हेतु योजनाओं में निवेश को जारी रखा जाए।
  • सरकार द्वारा की गई पहलें:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

अफ्रीका के दुर्लभ ग्लेशियरों पर विलुप्ति का खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व मौसम विज्ञान संगठन, संयुक्त राष्ट्र, स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट, डिग्लेसिएशन, अपक्षरण (Ablation), माउंट किलिमंजारो , माउंट केन्या और रुवेंज़ोरी पर्वत की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और डिग्लेसिएशन  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation-WMO) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अगले दो दशकों में अफ्रीका के दुर्लभ ग्लेशियर गायब हो जाएंगे।

  • वर्तमान में इन ग्लेशियरों के पिघलने की दर वैश्विक औसत से अधिक है और अगर यह दर ऐसे ही बनी रही तो वर्ष 2040 तक ये ग्लेशियर पूरी तरह से विलुप्त हो जाएंगे।
  • WMO, संयुक्त राष्ट्र (UN) की विशेष एजेंसियों में से एक है। यह संगठन वार्षिक रूप से स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट तैयार करता है।

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प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट की हाइलाइट्स: 
    • अफ्रीका एक ऐसा महाद्वीप है जिसका ग्लोबल वार्मिंग में योगदान सबसे कम है लेकिन इसे सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
      • यद्यपि अफ्रीकी राष्ट्र वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 4% से कम योगदान करते हैं लेकिन इस रिपोर्ट में महाद्वीप के 1.3 बिलियन लोगों पर जलवायु परिवर्तन के बाह्य प्रभावों को रेखांकित किया गया है।
    • अफ्रीका के अंतिम तीन पर्वतीय ग्लेशियर- माउंट किलिमंजारो (तंज़ानिया), माउंट केन्या (केन्या) और रुवेंज़ोरी पर्वत (युगांडा) इतनी तीव्र गति से घट रहे हैं कि वे दो दशकों के भीतर गायब हो सकते हैं।
    • उप-सहारा अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन वर्ष 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद को 3% तक कम कर सकता है।
      • अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की लागत वर्ष 2050 तक बढ़कर 50 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष हो जाएगी।
    • हिंद महासागर में स्थित द्वीपीय देश मेडागास्कर, एक ऐसा राष्ट्र जहाँ ‘अकाल जैसी स्थितियाँ’ जलवायु परिवर्तन से प्रेरित हैं।
    • दक्षिण सूडान के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहाँ लगभग 60 वर्षों में सबसे भीषण बाढ़ की स्थितियाँ सामने आई हैं।
    • इसके अलावा बड़े पैमाने पर विस्थापन, भूख और जलवायु प्रेरित घटनाओं जैसे- सूखा तथा बाढ़ आदि के भविष्य में बढ़ने की संभावना है।
  • डिग्लेसिएशन या ग्लेशियर का विलुप्त होना:
    • परिचय:
      • हिमनद/ग्लेशियर, हिम आवरण और महाद्वीपीय बर्फ की चादरें वर्तमान समय में पृथ्वी की सतह के लगभग 10% हिस्से को कवर करती हैं, जबकि हिमयुग के दौरान ये वर्तमान की तुलना में लगभग तीन गुना हिस्से को कवर करती थीं।
        • वर्तमान में विश्व भर में उपलब्ध कुल ताज़े जल का तीन-चौथाई हिस्सा हिम प्रदेशों में बर्फ के रूप में विद्यमान है।
      • भू-भाग की सतह से ग्लेशियर के धीरे-धीरे पिघलने की प्रक्रिया को डिग्लेसिएशन के रूप में जाना जाता है।
        • ग्लेशियर या हिम आवरण से बर्फ, हिम और हिमोढ़ को हटाने वाली प्रक्रियाओं को अपक्षरण (Ablation) कहा जाता है। इसमें पिघलना, वाष्पीकरण, क्षरण और कैल्विंग (बर्फ का टूटना और बिखरना आदि) शामिल है।
      • 20वीं शताब्दी में तेज़ हुई डिग्लेसिएशन/अवक्षयण की प्रक्रिया, पृथ्वी को बर्फ रहित बना रही है।
    • डिग्लेसिएशन का कारण:
      • ग्लोबल वार्मिंग: उद्योग, परिवहन, वनों की कटाई और अन्य मानव गतिविधियों के बीच जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसों (GHG) की वायुमंडलीय सांद्रता, पृथ्वी के वायुमंडल को गर्म करती है और ग्लेशियरों को पिघला देती है।
      • महासागरीय तापन: महासागर पृथ्वी की 90% ऊष्मा को अवशोषित करते हैं तथा यह समुद्री ग्लेशियरों के पिघलने की दर को प्रभावित करता है, जो अधिकांश ध्रुवों के पास स्थित होते हैं।
      • तीव्र औद्योगीकरण: 1900 के दशक की शुरुआत से दुनिया भर के कई ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, विशेष रूप से औद्योगिक क्रांति के बाद से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने ध्रुवों के तापमान को अधिक बढ़ा दिया है जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना, समुद्र में समाहित होना और स्थल खंड से पीछे की ओर खिसकना जारी है।

आगे की राह

  • अफ्रीकी प्रतिनिधित्व में वृद्धि: अफ्रीकी महाद्वीप के समक्ष उत्पन्न संकटों के बावजूद वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलनों में अमीर/विकसित क्षेत्रों की तुलना में अफ्रीकियों का प्रतिनिधित्व कम (IPCC की रिपोर्ट की तरह)  है।
    • इस प्रकार सभी बहुपक्षीय जलवायु परिवर्तन वार्ताओं में अफ्रीकी भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • जलवायु वित्त का संग्रहण: अफ्रीका को अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजना को समग्र रूप से लागू करने के लिये वर्ष 2030 तक शमन और अनुकूलन में 3 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के निवेश की आवश्यकता होगी।
    • इसके लिये अफ्रीका में हरित वित्तपोषण के महत्त्वपूर्ण, सुलभ और पूर्वानुमेय अंतर्वाह की आवश्यकता होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

आर्कटिक में घटती बर्फ और उसका प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये: 

आर्कटिक और उसकी भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये:

आर्कटिक पारिस्थितिक तंत्र पर कार्बन उत्सर्जन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन के अनुसार, यदि कार्बन उत्सर्जन मौजूदा स्तरों पर जारी रहा तो आर्कटिक में वर्ष 2100 तक सारी बर्फ गायब हो जाएगी और इसके साथ ही सील एवं ध्रुवीय भालू जैसे जीव भी विलुप्त हो जाएंगे।

  • आर्कटिक समुद्री बर्फ 4.72 मिलियन वर्ग मील के अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुँच गई है। ज्ञात हो कि वर्ष 2012 में आर्कटिक बर्फ के पिघलने का सबसे अधिक रिकॉर्ड दर्ज किया गया था।

Arctic

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन के विषय में:
    • कवरेज:
      • अध्ययन में ग्रीनलैंड के उत्तर में 1 मिलियन वर्ग किमी. क्षेत्र और कनाडाई द्वीप समूह के तटों को शामिल किया गया है, जहाँ समुद्री बर्फ वर्षभर सबसे मोटी परतों के रूप में मौजूद रहती है।
    • दो परिदृश्य
      • आशावादी/कम उत्सर्जन (यदि कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रण में लाया जाता है): इस परिदृश्य के तहत कुछ ग्रीष्मकालीन बर्फ अनिश्चित काल तक बनी रह सकती है।
      • निराशावादी/उच्च उत्सर्जन (यदि उत्सर्जन इसी प्रकार जारी रहता है): इस परिदृश्य के तहत सदी के अंत तक गर्मियों में पाई जाने वाली बर्फ गायब हो जाएगी।
        • मध्य आर्कटिक की बर्फ भी मध्य शताब्दी तक कम हो जाएगी और वर्षभर मौजूद नहीं रहेगी।
        • स्थानीय रूप से पाई जाने वाली ग्रीष्मकालीन बर्फ ‘अंतिम बर्फ क्षेत्र’ में पाई जाएगी, लेकिन यह केवल एक मीटर ही मोटी होगी।
  • निहितार्थ
    • कम उत्सर्जन परिदृश्य:
      • कुछ सील, भालू और अन्य जीव जीवित रह सकते हैं।
        • ये प्रजातियाँ वर्तमान में पश्चिमी अलास्का और हडसन की खाड़ी के कुछ हिस्सों में मौजूद हैं।
    • उच्च उत्सर्जन परिदृश्य:
      • वर्ष 2100 तक गर्मियों में स्थानीय रूप से मौजूद बर्फ भी गायब हो जाएगी।
      • गर्मियों के दौरान बर्फ पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र भी समाप्त हो जाएगा।

आर्कटिक (Arctic) के बारे में:

  • आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है। आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसमी रूप से भिन्न बर्फ का आवरण है।
  • आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को शामिल किया जाता है।
    • वर्ष 2013 से भारत को आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है जो आर्कटिक के पर्यावरण और विकास पहलुओं पर सहयोग के लिये प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है।

समुद्री बर्फ

  • परिचय:
    • समुद्री बर्फ जमा हुआ समुद्री जल है, यह बर्फ समुद्र की सतह पर तैरती है। यह पृथ्वी की सतह का लगभग 7% और विश्व के लगभग 12% महासागरों को कवर करती है।
    • इस तैरती बर्फ का ध्रुवीय वातावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जो समुद्र के संचलन, मौसम और क्षेत्रीय जलवायु को प्रभावित करता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

Penguin

  • परिचय:
    • पेंगुइन अंटार्कटिका (दक्षिण में) में रहते हैं और ध्रुवीय भालू आर्कटिक (उत्तर में) में रहते हैं।
    • जबकि वे अधिकांशत: हिम और बर्फ के समान ध्रुवीय आवासों में रहते हैं, वे कभी भी एक साथ नहीं रहते हैं।
  • अंटार्कटिक में ध्रुवीय भालू नहीं पाए जाने का कारण:
    • अंटार्कटिक में ध्रुवीय भालू नहीं होने के मुख्य कारण विकासक्रम, स्थान और जलवायु हैं।
      • अन्य महाद्वीपों से अंटार्कटिक (प्लेट टेक्टोनिक्स) के अलग होने के बाद पृथ्वी पर भालू की उत्पत्ति हुई और इसके बाद उनके पास अंटार्कटिक में पहुँचने का कोई आसान तरीका नहीं था। 
  • आर्कटिक में पेंगुइन नहीं पाए जाने का कारण:
    • उत्तरी ध्रुव में ध्रुवीय भालू और आर्कटिक लोमड़ी जैसे शिकारी इनके अस्तित्व को सीमित कर देंगे।
    • उत्तरी ध्रुव में पानी की कमी है क्योंकि वहाँ की बर्फ अधिक मोटी है।
    • पेंगुइन मुख्य रूप से तटीय पक्षी है और इस प्रकार यह समुद्र में दूर तक नहीं जा सकते हैं।
    • इसके अलावा उत्तरी गोलार्द्ध तक पहुँचने के लिये गर्म/ऊष्ण जल से पलायन करना पेंगुइन के लिये लगभग असंभव है और घातक साबित हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

IMF की भूमिका की समीक्षा

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व बैंक समूह, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

IMF की भूमिका एवं कोटा सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक समूह और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की 2021 की वार्षिक बैठकों की पृष्ठभूमि में प्रमुख विशेषज्ञों ने IMF की भूमिका की समीक्षा करने की आवश्यकता का सुझाव दिया है।

  • उभरते बाजारों के वैश्विक उत्पादन या जीडीपी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की निरंतर प्रवृत्ति के साथ कोटा प्रणाली की समीक्षा की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा विश्व बैंक द्वारा अपनी ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट को बंद करने के बाद डेटा प्रमाणिकता बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्वव्यापी संकट से जूझ रहे देशों के पुनर्निर्माण में सहायता के लिये विश्व बैंक के साथ आईएमएफ की स्थापना की गई थी। दोनों संगठनों की स्थापना के संबंध में अमेरिका के ब्रेटन वुड्स में आयोजित एक सम्मेलन में सहमति व्यक्त की गई थी, इसलिये उन्हें ब्रेटन वुड्स जुड़वाँ (Bretton Woods Twins) के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • आईएमएफ सुधारों की आवश्यकता:
    • कोटा सुधार: 
      • IMF की कोटा प्रणाली ऋण हेतु धन के सृजन के लिये बनाई गई थी।
      • प्रत्येक आईएमएफ सदस्य देश के लिये एक कोटा या योगदान निर्धारित किया जाता है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में देश के सापेक्ष आकार को दर्शाता है। प्रत्येक सदस्य का कोटा उसकी सापेक्ष मतदान शक्ति के साथ-साथ ऋण लेने की क्षमता को भी निर्धारित करता है।
        • इस प्रकार नियम बनाने और संशोधन करने में विकसित/अमीर देशों को  अधिक प्रतिनिधित्व का अवसर मिलता है।
        • यह एक ऐसी समस्या को जन्म देता है जहाँ आर्थिक रूप से विकसित देशों का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है क्योंकि उनकी मतदान शक्ति कम हो जाती है। जैसे- ब्रिक्स देश।
      • कोटा विशेष आहरण अधिकार (SDR), IMF खाता की एक इकाई है।
        • SDR,  IMF के सदस्यों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग योग्य मुद्राओं पर एक संभावित दावा है। इन मुद्राओं के लिये SDR का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
      • आईएमएफ का बोर्ड ऑफ गवर्नर्स एक नियमित अंतराल (पाँच वर्ष से अधिक नहीं) पर कोटा की सामान्य समीक्षा करता है ।

पूर्व में किये गए कोटा सुधार:

  • वर्ष 2010 में आईएमएफ के कोटा और शासन सुधारों का मसौदा तैयार किया गया था; जो अंततः वर्ष 2016 में प्रभावी हुए।
  • इन सुधारों ने 6% से अधिक कोटा शेयरों को अमेरिका एवं यूरोपीय देशों से उभरते और विकासशील देशों में स्थानांतरित कर दिया।
  • इसके तहत भारत का वोटिंग अधिकार 0.3% बढ़कर 2.3% से 2.6% हो गया और चीन का वोटिंग अधिकार 2.2% बढ़कर 3.8% से 6% हो गया।
    • वर्तमान में भारत के पास SDR कोटा का 2.75% और आईएमएफ में 2.63% वोट हैं।

Roles-of-Quotas

  • अनुच्छेद IV परामर्श का पुनर्गठन: अनुच्छेद IV परामर्श के तहत आईएमएफ आमतौर पर प्रत्येक वर्ष अपने सदस्यों के साथ द्विपक्षीय चर्चा करता है और इसके कर्मचारी एक रिपोर्ट तैयार करते हैं।
    • अनुच्छेद IV परामर्श सबसे शक्तिशाली साधन/उपकरण है और इसको नई तकनीकों एवं सार्वजनिक डेटा तक पहुँच स्थापित करके और अधिक उपयोगी बनाने के लिये पुनर्गठित और गति प्रदान करने की आवश्यकता है।

प्रस्तावित सुधार

  • सुधार कोटा प्रणाली: कोटा सुधार विशेष रूप से विकासशील देशों की बढ़ती क्षमताओं के संबंध में परिवर्तित आर्थिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करेगा।
    • उदाहरण के लिये ब्रिक्स देशों का कोटा बढ़ना चाहिये और यूरोपीय संघ के देशों का कोटा कम होना चाहिये।
    • साथ ही यह महत्त्वपूर्ण है कि नया कोटा फॉर्मूला क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parities- PPP), GDP को अधिक महत्त्व देता है ताकि उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की वास्तविक आर्थिक ताकत को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित किया जा सके।

क्रय शक्ति समता (PPP)

  • PPP व्यापक आर्थिक विश्लेषण द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक लोकप्रिय मीट्रिक है जो "माल की टोकरी (Basket of Goods)" दृष्टिकोण के माध्यम से विभिन्न देशों की मुद्राओं की तुलना करता है।
  • PPP अर्थशास्त्रियों को देशों के बीच आर्थिक उत्पादकता और जीवन स्तर की तुलना करने की अनुमति देता है।
  • कुछ देश PPP को प्रतिबिंबित करने के लिये अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आँकड़ों को समायोजित करते हैं।
  • कम आय वाले देशों की मदद करना: IMF को कम आय वाले देशों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये और अन्य विकासशील देशों के बाज़ार में धन जुटाने की गतिविधियों का समर्थन करना चाहिये, क्योंकि इसकी अनुच्छेद IV परामर्श रिपोर्ट का उपयोग क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा किया जाता है जिससे भारत जैसे देशों की फंड जुटाने की क्षमता प्रभावित होती है।
    • भारत सहित अधिकांश एशियाई देश अब अपने विदेशी मुद्रा भंडार की मज़बूती के आधार पर स्वयं ही धन जुटा सकते हैं और संकट की स्थिति का सामना करने के लिये इन्हें अतीत की तरह IMF के पास जाने की आवश्यकता नहीं है।
  • प्रबंधन सुधार: IMF में प्रबंधन प्रणाली को संशोधित किया जाना चाहिये।
    • IMF और विश्व बैंक समूह में एक अनौपचारिक व्यवस्था है कि IMF का प्रमुख यूरोपीय होना चाहिये और विश्व बैंक का प्रमुख अमेरिकी होना चाहिये।
    • इस पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है और IMF को इस पर वास्तव में पुनर्विचार करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय विरासत और संस्कृति

भास्करब्दा: एक लूनी-सोलर कैलेंडर

प्रिलिम्स के लिये: 

कैलेंडर के प्रकार, भास्करवर्मन 

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम सरकार ने घोषणा की है कि लूनी-सोलर कैलेंडर- ‘भास्करब्दा’ को राज्य में आधिकारिक कैलेंडर के रूप में उपयोग किया जाएगा।

  • वर्तमान में असम सरकार द्वारा शक कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर को आधिकारिक कैलेंडर के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • हालाँकि अब राज्य में भास्करब्दा कैलेंडर का भी उपयोग किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • गौरतलब है कि ‘भास्करब्दा’ कैलेंडर में युग की शुरुआत 7वीं शताब्दी के स्थानीय शासक भास्कर वर्मन के स्वर्गारोहण की तारीख से मानी जाती है।
    • यह लूनर और सोलर वर्ष दोनों पर आधारित है।
    • यह तब शुरू हुआ जब भास्करवर्मन को ‘कामरूप’ साम्राज्य का शासक बनाया गया।
      • वह उत्तर भारतीय शासक हर्षवर्द्धन के समकालीन और राजनीतिक सहयोगी थे।
    • ‘भास्करब्दा’ और ग्रेगोरियन के बीच 593 वर्ष का अंतर है।
  • कैलेंडर के प्रकार:
    • सोलर/सौर
      • इसके तहत कोई भी ऐसी प्रणाली शामिल है, जो कि लगभग 365 1/4 दिनों के मौसमी वर्ष पर आधारित है, क्योंकि पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाने में इतना ही समय लगता है।
    • लूनर
      • कोई भी ऐसी प्रणाली जो ‘साइनोडिक चंद्र महीनों’ (यानी, चंद्रमा के चरणों का पूरा चक्र) पर आधारित होती है।
    • लूनी-सोलर
      • इसके तहत महीने तो चंद्र पर आधारित होते हैं, जबकि एक वर्ष सूर्य पर आधारित होता है, इसका उपयोग पूरे मध्य पूर्व की प्रारंभिक सभ्यताओं और ग्रीस में किया जाता था। 
  • भास्करवर्मन (600-650):
    • वह वर्मन वंश से संबद्ध थे और ‘कामरूप साम्राज्य’ के शासक थे। 
      • ‘कामरूप’ भास्करवर्मन के अधीन भारत के सबसे उन्नत राज्यों में से एक था। कामरूप असम का पहला ऐतिहासिक राज्य था।
    • भास्करवर्मन का नाम चीनी बौद्ध तीर्थयात्री- ‘जुआनज़ांग’ के यात्रा वृतांतों में पाया जाता है, जिन्होंने उनके शासन काल के दौरान कामरूप का दौरा किया था।
    • वह बंगाल (कर्णसुवर्ण) के पहले प्रमुख शासक शशांक के खिलाफ राजा हर्षवर्द्धन के साथ गठबंधन के लिये जाने जाते हैं।

भारत में कैलेंडर का वितरण

  • विक्रम संवत् (हिंदू चंद्र कैलेंडर)
    • इसका प्रचलन 57 ई.पू. में हुआ यहाँ 57 ई.पू. का तात्पर्य शून्य वर्ष (Zero Year) से है।
    • इसे राजा विक्रमादित्य द्वारा शक शासकों पर अपनी विजय को चिह्नित करने के लिये प्रस्तुत किया गया।
    • यह चंद्र कैलेंडर है क्योंकि यह चंद्रमा की गति पर आधारित है।  
    • इसके तहत प्रत्येक वर्ष को 12 महीनों में तथा प्रत्येक माह को दो पक्षों में बाँटा गया है।
      • चंद्रमा की उपस्थिति (जिसमें चंद्रमा का आकार प्रतिदिन बढ़ता हुआ प्रतीत होता है) वाले आधे भाग को शुक्ल पक्ष (15 दिन) कहा जाता है। यह अमावस्या से शुरू होता है और पूर्णिमा पर समाप्त होता है।
      • वे 15 दिन जिनमें चंद्रमा का आकार प्रतिदन घटता हुआ प्रतीत होता है उसे कृष्ण पक्ष कहा जाता है। यह पूर्णिमा से शुरू होता है तथा अमावस्या पर समाप्त होता है।
    • माह की शुरुआत कृष्ण पक्ष के साथ होती है तथा एक वर्ष में 354 दिन होते हैं।
    • इसलिये पाँच साल के चक्र में प्रत्येक तीसरे और पाँचवें वर्ष में 13 महीने होते हैं (13वें महीने को अधिक मास कहा जाता है)।
  • शक संवत् (हिंदू सौर कैलेंडर): 
    • शक संवत का शून्य वर्ष 78 ई. है।
    • इसकी शुरुआत शक शासकों द्वारा कुषाणों पर अपनी विजय को चिह्नित करने के लिये की गई थी।
    • यह एक सौर कैलेंडर है, इसकी तिथि निर्धारण प्रणाली पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों और एक चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय यानी लगभग 365 1/4 दिनों के मौसमी वर्ष पर आधारित है।
    • इसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 1957 में आधिकारिक कैलेंडर के रूप में अपनाया गया था।
    • इसमें प्रत्येक वर्ष में 365 दिन होते हैं।
  • हिजरी कैलेंडर (इस्लामिक चंद्र कैलेंडर)
    • इसका शून्य वर्ष 622 ईस्वी है।
    • इसका आरंभ व अनुसरण सबसे पहले सऊदी अरब में हुआ।
    • इसके तहत एक वर्ष में 12 महीने या 354 दिन होते हैं।
    • इसके प्रथम माह को मुहर्रम कहते हैं।
    • हिजरी कैलेंडर के नौवें महीने को रमज़ान कहते हैं।
      • इस महीने के दौरान मुसलमान आत्मा की शुद्धि के लिये उपवास रखते हैं। सुबह के नाश्ते को शहरी और शाम के खाने को इफ्तार कहते हैं।
  • ग्रेगोरियन कैलेंडर (वैज्ञानिक सौर कैलेंडर): 
    • ग्रेगोरियन कैलेंडर का उपयोग नागरिक कैलेंडर के रूप में किया जाता है।
    • इसका उपयोग वर्ष 1582 से शुरू हुआ था।
    • इसका नाम पोप ग्रेगरी XIII के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने कैलेंडर प्रस्तुत किया था।
    • इसने पूर्ववर्ती जूलियन कैलेंडर को प्रतिस्थापित किया क्योंकि जूलियन कैलेंडर में लीप वर्ष के संबंध में गणना सही नहीं थी।
  • जूलियन कैलेंडर में 365.25 दिन होते थे।

स्रोत: द हिंदू


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