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जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन उत्सर्जन

  • 17 Jul 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

कार्बन टैक्स, क्योटो प्रोटोकॉल, ग्रीन हाउस गैस 

मेन्स के लिये: 

पर्यावरण के संदर्भ में कार्बन उत्सर्जन का मूल्यांकन 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में आस्ट्रेलियाई नेशनल यूनिवर्सिटी (Australian National University- ANU) तथा मैक्वेरी विश्वविद्यालय (Macquarie University) के शोधकर्त्ताओं द्वारा कार्बन मूल्य निर्धारण (Carbon Pricing Works) एवं  कार्बन उत्सर्जन को कम करने में कार्बन मूल्य निर्धारण की भूमिका को लेकर अब तक के सबसे बड़े शोध कार्य को प्रकाशित किया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा अपने अध्ययन में  142 देशों को शामिल किया गया। 
  • अध्ययन में 1990 के दशक से कार्बन मूल्य निर्धारण की भूमिका को कार्बन के कम उत्सर्जन के संदर्भ में  देखा गया।
  • शोध में शामिल 142 देशों में से  43 देशों में इस अध्ययन की समाप्ति तक कार्बन मूल्य का निर्धारण सामान ही रहा।
  • अध्ययन से पता चलता है कि कार्बन मूल्य का निर्धारण करने वाले देशों में जीवाश्म ईंधन दहन से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की औसतन वार्षिक वृद्धि दर उन देशों से 2% कम है जिन देशों में कार्बन मूल्य का निर्धारण नहीं किया जाता है।
  • कार्बन मूल्य का निर्धारण करने वाले देशों में औसतन, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वर्ष 2007 से वर्ष 2017 की अवधि में दो प्रतिशत प्रति वर्ष की गिरावट दर्ज़ की गई है।  
    • जबकि अन्य देश जिनमें वर्ष 2007 से वर्ष 2017 की अवधि में कार्बन मूल्य का निर्धारण नहीं हुआ उनमें प्रति वर्ष कार्बन उत्सर्जन में 3% की वृद्धि देखी गई है।
  • यह शोध कार्य पर्यावरण और संसाधन अर्थशास्त्र पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

कार्बन मूल्य निर्धारण सभी देशों में प्रभावी नहीं:

  • कार्बन मूल्य निर्धारण कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु एक कारगर उपाय है जिसके प्रभाव विभिन्न देशों पर देखे गए है।
  • वर्ष 2012-14 के दौरान जब ऑस्ट्रेलिया में जीवाश्म ईंधन के दहन में कार्बन मूल्य निर्धारण को शामिल किया गया तो वहाँ  कार्बन  उत्सर्जन स्तर में कमी देखी गई, लेकिन वर्ष 2019 से वहाँ कार्बन उत्सर्जन में एक निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। 

Global-Disparity-in-Carbon

 कार्बन उत्सर्जन:

  • कार्बन उत्सर्जन/फुटप्रिंट से तात्पर्य किसी एक संस्था या व्यक्ति  द्वारा की गई कुल कार्बन उत्सर्जन की मात्रा से है।
  • यह उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों के रूप में होता है।
  •  ग्रीन हाउस गैसों के प्रति व्यक्ति या प्रति औद्योगिक इकाई उत्सर्जन की मात्रा को उस व्यक्ति या औद्योगिक इकाई का कार्बन फुटप्रिंट कहा जाता है।
  • कार्बन फुट प्रिंट को कार्बन डाइऑक्साइड के ग्राम उत्सर्जन में मापा जाता है।
    • कार्बन फुट प्रिंट को ज्ञात करने के लिये ‘लाइफ साइकल असेसमेंट’ (Life Cycle Assessment- LCA) विधि का प्रयोग किया जाता है।
    • इस विधि में व्यक्ति तथा औद्योगिक इकाईयों द्वारा वातावरण में उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों की कुल मात्रा को जोड़ा जाता है। 

कार्बन मूल्य निर्धारण/ कार्बन क्रेडिट

  • कार्बन मूल्य निर्धारण/ कार्बन क्रेडिट का निर्धारण  किसी देश में उपलब्ध उद्योगों के अनुसार उस देश के द्वारा उत्सर्जित किये जाने वाले अधिकतम कार्बन की मात्रा के आधार पर किया जाता है।
  •  किसी देश द्वारा निर्धारित कार्बन उत्सर्जन की अधिकतम मात्रा में कटौती करने पर उसे कार्बन क्रेडिट प्रदान किया जाता है।  

कार्बन मूल्य/ कार्बन क्रेडिट का निर्धारण:

  • कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये किफायती साधनों को विकसित करने के लिये  वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल  द्वारा  विकसित देशों को तीन विकल्प दिये गए जो इस प्रकार है-
    • अंतर्राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार 
    • क्लीन डवलपमेंट मेकनिज़्म 
    • संयुक्त क्रियान्वयन 
  • क्लीन डवलपमेंट मेकनिज़्म विकसित देशों में सरकार या कंपनियों को विकासशील देशों के लिये किये गए स्वच्छ प्रौद्योगिकी निवेश पर ऋण अर्जित करने की अनुमति देता है इस ऋण को ही कार्बन क्रेडिट कहा जाता है।  

शोध का महत्त्व: 

  • यह अध्ययन विश्व के सभी देशों एवं वहां की सरकारों को एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रदान करता  है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये कार्बन मूल्य निर्धारण उनकी विकास  योजनाओं का हिस्सा होना चाहिये ।
  • कार्बन उत्सर्जन पर कीमतों  को निर्धारित करके उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। 
  • कार्बन टैक्स के कारण बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करने वाले संगठन एवं कंपनियों की संख्या कम हो सकती है जो पर्यावरण में प्रदूषण के स्तर को कम करने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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