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डेली न्यूज़

  • 19 Apr, 2021
  • 40 min read
शासन व्यवस्था

प्रत्यर्पण

हाल ही में, ब्रिटेन के गृह विभाग ने पंजाब नेशनल बैंक (PNB) में 13,758 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के आरोपी भारत के एक हीरा व्यापारी नीरव मोदी के प्रत्यर्पण को मंज़ूरी दे दी है।

  • भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण संधि वर्ष 1992 में अस्तित्व में आई।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रत्यर्पण वह प्रक्रिया है जिसमें एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य से एक ऐसे व्यक्ति को वापस करने का अनुरोध किया जाता है, जिसे अनुरोध करने वाले राज्य की अदालतों में अभियुक्त या दोषी ठहराया गया हो। 
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई प्रत्यर्पण की परिभाषा के अनुसार, ‘प्रत्यर्पण, एक देश द्वारा दूसरे देश में किये गए किसी अपराध में अभियुक्त अथवा दोषी ठहराए गए व्यक्ति को संबंधित देश को सौंपना है, बशर्ते वह अपराध उस देश की अदालत द्वारा न्यायोचित हो।
  • प्रत्यर्पित व्यक्तियों में वे लोग शामिल होते हैं जो किसी अपराध के संबंध में आरोपित हैं या ऐसे लोग जो दोषी पाए गए हैं लेकिन हिरासत से बच गए हैं या अनुपस्थित होने पर दोषी पाए गए हैं।

भारत में प्रत्यर्पण कानून:

  • भारत में एक भगोड़े अपराधी के प्रत्यर्पण को भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 के तहत नियंत्रित किया जाता है।
    • यह भारत में लाने और भारत से विदेशी देशों में ले जाने दोनों प्रकार के व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करने के लिये है।
    • भारत और किसी अन्य देश के बीच प्रत्यर्पण का आधार एक संधि हो सकती है।
      • वर्तमान में भारत की 40 से अधिक देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है और 11 देशों के साथ प्रत्यर्पण समझौता है।

प्रत्यर्पण संधि:

  • भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 की धारा 2 (D) एक विदेशी राज्य के साथ भारत द्वारा की गईं संधि, समझौते या व्यवस्था के रूप में एक 'प्रत्यर्पण संधि' को परिभाषित करती है, यह भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण से संबंधित है और भारत में बाध्यकारी है। प्रत्यर्पण संधियाँ पारंपरिक रूप से प्रकृति में द्विपक्षीय होती हैं।
  • पालन किये जाने वाले सिद्धांत:
    • प्रत्यर्पण केवल ऐसे अपराधों पर लागू होता है जो संधि में उल्लिखित हैं।
    • यह दोहरी आपराधिकता के सिद्धांत को लागू करता है जिसका अर्थ है कि अनुरोध करने वाले देश के साथ-साथ अनुरोधित देश के राष्ट्रीय कानूनों में भी अपराध होना।
    • प्रत्यर्पण केवल उस अपराध के लिये किया जाना चाहिये जिसके लिये प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया हो।
    • अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिये।

नोडल प्राधिकारी:

  • विदेश मंत्रालय का दूतावास, पासपोर्ट और वीज़ा डिवीजन, प्रत्यर्पण अधिनियम का संचालन करता है और यह आने वाले और बाहर जाने वाले प्रत्यर्पण अनुरोधों को विनियमित करता है।

कार्यान्वयन:

  • अंडर-इन्वेस्टिगेशन, अंडर-ट्रायल और दोषी अपराधियों के मामले में प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
  • जाँच के मामलों में कानून प्रवर्तन एजेंसी द्वारा अत्यधिक सावधानी बरती जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विदेशी राज्य में न्यायालय के समक्ष आरोप को बनाए रखने के लिये यह प्रथम दृष्टया सबूत के रूप में कार्य कर सके।

स्रोत- द हिंदू


सामाजिक न्याय

ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट

चर्चा में क्यों?

इंसुलिन की खोज के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने ‘ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट’ (Global Diabetes Compact) प्रस्तुत किया गया है जिसका एक अहम उद्देश्य, उन निम्न व मध्य आय वाले देशों में गुणवत्तापूर्ण इंसुलिन की सुलभता सुनिश्चित करना है जहाँ फिलहाल, इसकी मांग को पूरा कर पाना मुश्किल है।   

  • इस कार्यक्रम को कनाडा सरकार द्वारा सह-आयोजित ग्लोबल डायबिटीज समिट (Global Diabetes Compact) के दौरान लॉन्च किया गया।

प्रमुख बिंदु

ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट- परिचय:

  • ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट का लक्ष्य डायबिटीज के खतरे को कम करना और यह सुनिश्चित करना है कि डायबिटीज से पीड़ित सभी लोगों को न्यायसंगत, व्यापक, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण उपचार एवं देखभाल तक पहुँच प्राप्त हो।
  • यह मोटापा, अस्वास्थ्यकर आहार और शारीरिक निष्क्रियता के कारण होने वाले टाइप 2 डायबिटीज की रोकथाम का भी समर्थन करेगा।
  • यह डायबिटीज संबंधी देखभाल तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ‘वैश्विक कवरेज़ लक्ष्यों’ के रूप में बीमारियों से निपटने हेतु मानक तय करेगा।
  • कार्यक्रम का एक प्रमुख उद्देश्य नई गति और समाधान पैदा करने के सर्वनिष्ठ एजेंडे के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों से महत्त्वपूर्ण हितधारकों तथा मधुमेह से ग्रस्त लोगों को एकजुट करना है।

डायबिटीज/मधुमेह:

  • मधुमेह एक गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Disease- NCD) है जो या तो तब होता है जब अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन (एक हार्मोन जो रक्त शर्करा या ग्लूकोज को नियंत्रित करता है) का उत्पादन नहीं करता है, या जब शरीर प्रभावी रूप से उत्पादित इंसुलिन का उपयोग नहीं कर सकता।
  • इसे दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
    • टाइप 1 डायबिटीज: यह तब होता है जब अग्न्याशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन करेने में असमर्थ होता है।
    • टाइप 2 डायबिटीज: टाइप 2 डायबिटीज, डायबिटीज का सबसे सामान्य प्रकार है। इस स्थिति में शरीर इंसुलिन का उचित तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इसे इंसुलिन प्रतिरोध कहा जाता है। टाइप 2 मधुमेह होने का मुख्य कारण मोटापा और व्यायाम की कमी है।

इंसुलिन 

  • इंसुलिन अग्न्याशय द्वारा स्रावित एक पेप्टाइड हार्मोन है जो सेलुलर ग्लूकोज स्तर को बनाए रखने, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड एवं प्रोटीन चयापचय को विनियमित करने तथा कोशिका विभाजन और इसके माइटोजेनिक प्रभावों के माध्यम से विकास को बढ़ावा देकर सामान्य रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है।
  • इसकी खोज वर्ष 1921 में टोरंटो विश्वविद्यालय के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. फ्रेडरिक बैंटिंग और मेडिकल छात्र चार्ल्स बेस्ट ने की थी। 
  • डॉ. बैंटिंग ने इस खोज के लिये वर्ष 1923 में प्रोफेसर मैकलियोड जो कार्बोहाइड्रेट चयापचय के प्रोफेसर थे, के साथ नोबेल पुरस्कार जीता।

वैश्विक रूप से डायबिटीज की स्थिति:

  • वर्तमान में विश्व की कुल आबादी का 6% (420 मिलियन से अधिक लोग) या तो टाइप 1 डायबिटीज से ग्रसित है या  टाइप 2 डायबिटीज से।
  • यह एकमात्र ऐसा प्रमुख गैर-संचारी रोग है, जिसमें जल्दी मौत होने का जोखिम, कम होने के बजाय बढ़ रहा है।
  • कोविड-19 से गंभीर रूप से संक्रमित व अस्पतालों में भर्ती लोगों में एक बड़ी संख्या उनकी है जो डायबिटीज के मरीज हैं।
    • इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन डायबिटीज एटलस, 2019 में मधुमेह से ग्रसित लोगों की संख्या के मामले में भारत को शीर्ष 10 देशों में शामिल किया गया।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • भारत के राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग (NCD) लक्ष्य का उद्देश्य मोटापे और मधुमेह के प्रसार में होने वाली वृद्धि पर अंकुश लगाना है।
  • विभिन्न स्तरों पर तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु वर्ष 2010 में  शुरू किया गया राष्ट्रीय कैंसर, मधुमेह, हृदयवाहिका रोग और आघात रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम (NPCDCS)।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

फास्टैग और आवागमन की स्वतंत्रता का अधिकार

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर चलने वाले सभी वाहनों के लिये FASTag (इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम) को अनिवार्य बनाना किसी भी तरह से आवागमन की स्वतंत्रता के नागरिकों के मौलिक अधिकार को भंग नहीं करता है।

  • केंद्र के राष्ट्रीय राजमार्गों पर सभी वाहनों के लिये अनिवार्य FASTag, इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह चिप, अनिवार्य करने के फैसले को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका कोर्ट में दाखिल की गई है।

प्रमुख बिंदु: 

फास्टैग (FASTag) के बारे:

  • फास्टैग एक पुनः लोड करने योग्य (reloadable) टैग है जो स्वचालित रूप से टोल शुल्कों को काट लेता है और वाहनों को बिना रुके टोल शुल्क जमा करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • फास्टैग एक रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) तकनीक है जिसके सक्रिय होने के बाद  वाहन की विंडस्क्रीन पर लगाया जाता है।
    • RFID के तहत किसी ऑब्जेक्ट से जुड़े टैग पर संग्रहीत जानकारी को पढ़ने और कैप्चर करने के लिये  रेडियो तरंगों का उपयोग किया जाता है।
    • यह टैग कई फीट दूर से वस्तु की पहचान कर सकता है और इसे ट्रैक करने के लिये वस्तु का  प्रत्यक्ष लाइन-ऑफ-व्यू के भीतर होने की आवश्यकता नहीं है।

सरकार की प्रतिक्रिया:

  • फास्टैग यह सुनिश्चित करता है कि निर्बाध यातायात व्यवस्था, यात्रा के समय में कटौती और सभी निर्णय केंद्रीय मोटर वाहन (CMV) नियमों के अनुसार लिये गए हैं।
    • मोटर वाहन संशोधन अधिनियम 2019 की धारा 136 क के अंतर्गत सड़क सुरक्षा की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और प्रवर्तन को मज़बूत बनाया जाएगा।
    • यातायात नियमों के उल्लंघन को रोकने के लिये मज़बूत इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्तन की स्थापना हेतु एक कानून का निर्माण है जिसके परिणामस्वरूप मानव हस्तक्षेप और संबंधित भ्रष्टाचार में कमी आएगी।
    • एक मज़बूत इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्तन प्रणाली जिसमें स्पीड कैमरा, क्लोज-सर्किट टेलीविज़न कैमरा, स्पीड गन और इस तरह की अन्य तकनीकें शामिल हैं जिससे बड़े पैमाने पर  उल्लंघन की घटनाओं को कैप्चर किया जा सकेगा।
  • जिन वाहनों में फास्टैग नहीं था, उनमें चिप लगाने के लिये नेशनल हाईवे के सभी टोल प्लाज़ा पर प्रावधान किये गए थे।
    • ऐसे मामलों में जहाँ किसी भी कारण से फास्टैग वाले वाहनों को निगमित करना संभव नहीं था उन्हें फास्टैग लेन के बिल्कुल बाई तरफ वाहनों को राजमार्गों पर चलाने की अनुमति थी।
    • हालाँकि ऐसे वाहनों को टोल राशि का दोगुना भुगतान करना पड़ता था।
  • राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दर निर्धारण एवं संग्रह) नियम, 2008 के अनुसार, टोल प्लाज़ा में फास्टैग लेन केवल फास्टैग उपयोगकर्त्ताओं की आवाजाही के लिये आरक्षित होती है। इस नियम के अंतर्गत प्रावधान है कि गैर-फास्टैग उपयोगकर्त्ताओं द्वारा फास्टैग लेन से गुज़रने पर उनसे दोहरा शुल्क वसूला जाता है।
  • ऐसी याचिकाओं को दर्ज करने से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को "अपूरणीय क्षति" होगी ।

आवागमन की स्वतंत्रता का अधिकार

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत भ्रमण या आवागमन की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान है। यह प्रत्येक नागरिक को देश के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से आने जाने का अधिकार देता है।
  • यह अधिकार केवल राज्य के खिलाफ सुरक्षित है, न कि निजी व्यक्तियों के खिलाफ। इसके अलावा यह केवल नागरिकों और किसी कंपनी के शेयरधारकों के लिये उपलब्ध है, लेकिन विदेशी या कानूनी व्यक्तियों जैसे कंपनियों या निगमों, आदि के लिये नहीं।
  • इस स्वतंत्रता पर प्रतिबंध केवल दो आधारों पर लगाया जा सकता  हैं जो संविधान के अनुच्छेद 19 में वर्णित हैं, अर्थात् आम जनता के हित और किसी अनुसूचित जनजाति के हितों की रक्षा।
    • जनजातीय क्षेत्रों में बाहरी लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है क्योंकि इसमें अनुसूचित जनजातियों की विशिष्ट संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाजों और शिष्टाचार की रक्षा एवं शोषण के खिलाफ उनके पारंपरिक व्यवसाय तथा  मूल्यों  की रक्षा करने का प्रावधान है।
    • सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वेश्याओं के आंदोलन का अधिकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के आधार पर और सार्वजनिक नैतिकता के हित में प्रतिबंधित किया जा सकता है। 
  • आवागमन की स्वतंत्रता के दो आयाम हैं, आंतरिक (देश के भीतर जाने का अधिकार) और बाह्य (देश से बाहर जाने का अधिकार और देश में वापस आने का अधिकार)।
    • अनुच्छेद 19 केवल पहले आयाम की रक्षा करता है। दूसरे आयाम का प्रावधान अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत शामिल है।

स्रोत- द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अल्ट्रा-व्हाइट पेंट

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पर्ड्यू विश्वविद्यालय (Purdue University) के शोधकर्त्ताओं की टीम द्वारा अल्ट्रा-व्हाइट पेंट (Ultra-White Paint) विकसित किया गया है।

  • विकसित किया गया यह पेंट अत्यधिक सफेद है जो पेंट की गई सतह को ठंडा बनाए रखने में सक्षम है, इस  कारण यह पेंट  ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की समस्या का एक बेहतर समाधान प्रस्तुत कर सकता है। 
  • अल्ट्रा-व्हाइट पेंट के बारे में: यह पेंट इस पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश की 99 प्रतिशत मात्रा को परावर्तित करने में सक्षम है, इसलिये पूरी तरह से धूप में होने के बावजूद सतह अपने आस-पास के परिवेश की तुलना में अधिक ठंडी होती है। 
    • वर्तमान में बाज़ार में उपलब्ध वाणिज्यिक सफेद पेंट पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो वह ठंडा होने के बजाए गर्म हो जाता है तथा सूरज के प्रकाश की केवल 80-90% मात्रा को ही प्रवर्तित करने में सक्षम है जिसके कारण कारण उसकी सतह अपने आस-पास के परिवेश की तुलना में कम ठंडी होती है।
    • पुराना सफेद पेंट मुख्य रूप से  कैल्शियम कार्बोनेट (Calcium Carbonate) से निर्मित था जबकि नए अल्ट्रा-व्हाइट पेंट को बेरियम सल्फेट (Barium Sulphate ) का उपयोग करके निर्मित किया गया है जो इसे और अधिक सफेद बनाता है।
      • इस रासायनिक यौगिक के विभिन्न आकार के कण प्रकाश को अलग-अलग मात्रा में बिखेरते हैं। यह प्रकाश को एक व्यापक स्तर पर बिखेरने  में मदद करता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्चतम परावर्तन होता है ।
      • बेरियम सल्फेट का उपयोग फोटो पेपर (Photo Paper) और सौंदर्य प्रसाधनों (Cosmetics) को सफेद बनाने हेतु किया जाता है। इस रासायनिक यौगिक के विभिन्न आकार के कण, अलग-अलग मात्रा में प्रकाश को बिखेरने में मदद करते हैं। यह प्रकाश को एक व्यापक श्रेणी में बिखेरने की अनुमति देता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्चतम परावर्तन होता है।
    • यह पेंट सर्वाधिक काले रंग के पेंट वेंटाब्लैक (Vantablack) के समान हो सकता  है जो दृश्य प्रकाश की  99.9% मात्रा को अवशोषित करने में सक्षम है।
      • वेंटाब्लैक का उपयोग उच्च प्रदर्शन अवरक्त कैमरों (High Performance Infrared Cameras), सेंसर (Sensors), उपग्रह जनित अंशांकन स्रोतों (Satellite Borne Calibration Sources) आदि में किया जाता है।
      • प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर उसे उष्मा में परिवर्तित करने की इसकी क्षमता के कारण सौर ऊर्जा के विकास में इसकी प्रासंगिकता देखी जा सकती है। 

रंगों द्वारा प्रकाश का परावर्तन या अवशोषण: 

  • प्रत्येक वस्तु प्रकाश के अवशोषण या परावर्तन के कारण ही दिखाई देती है। 
  • प्रकाश सात अलग-अलग रंगों (वायलेट, इंडिगो, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल-VIBGYOR) से मिलकर बना है विशेष रूप से प्रकाश विभिन्न रंगों की तरंग दैर्ध्य से निर्मित है।
  • किसी भी वस्तु के  रंग का निर्धारण उसकी तरंग दैर्ध्य द्वारा किया जाता है जिसे अणु द्वारा अवशोषित नहीं किया जा सकता है ।
    • यह इस बात पर निर्भर करता है कि एक परमाणु में इलेक्ट्रॉन किस प्रकार व्यवस्थित हैं (एक परमाणु इलेक्ट्रॉनों, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से बना होता है)।
    • उदाहरण के लिये यदि कोई व्यक्ति हरे रंग के सोफे को देख रहा है, तो इसका कारण है कि सोफे में प्रयोग होने वाला कपड़ा या सामग्री, हरे रंग को छोड़कर सभी रंगों को अवशोषित कर हरे रंग की तरंग दैर्ध्य को परावर्तित करती है।
  • इसी प्रकार यदि कोई वस्तु काली है, तो इसका कारण यह है कि उसके द्वारा सभी रंगों की तरंग दैर्ध्य को अवशोषित कर लिया गया है ।
    • यही कारण है कि गहरे रंग की वस्तुएँ, सभी रंग की तरंग दैर्ध्य को अवशोषित करती है जिसके परिणामस्वरूप तीव्र ऊष्मा  उत्पन्न होती  है (जैसे अवशोषण के समय प्रकाश ऊर्जा ऊष्मा ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है)।

महत्त्व:

  • नई तकनीक से निर्मित पेंट इमारतों को अर्बन हीट आइलैंड (Urban Heat Island.) के प्रभावों को समाप्त करने तथा लंबे समय तक इमारतों को ठंडा रहने में मददगार साबित होगा।
  • पेंट, विद्युत चालित एयर कंडीशनिंग पर हमारी निर्भरता को कम करके ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में सहायक साबित हो सकता है।
    • एयर कंडीशनिंग कई प्रकार से पृथ्वी के वायुमंडल में ऊष्मा की मात्रा को बढ़ाता है जैसे- इमारतों से गर्म हवा को बाहर निकालकर, एयर कंडीशनिंग में प्रयुक्त मशीन के चलने से ऊष्मा उत्पन्न होने तथा  इसके अलावा बिजली उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले जीवाश्म ईंधन भी वायुमंडल में  कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की मात्रा को बढ़ाते हैं।
  • अल्ट्रा-व्हाइट पेंट न केवल गर्मी के कारण होने वाली मौतों और बीमारियों को कम करने में सहायक होगा बल्कि सतह के गर्म होने के कारण जल की गुणवत्ता में आने वाली कमी को भी कम  कर सकता है।

भारतीय पहल:

  • भारत विश्व का पहला देश है जिसने एक व्यापक कूलिंग एक्शन प्लान (Cooling Action plan) विकसित किया है,  यह प्लान विभिन्न सेक्टरों में कूलिंग आवश्यकता को संबोधित करने हेतु एक  दीर्घकालिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है तथा  उन कार्यों को सूचीबद्ध करता है जो कूलिंग की आवश्यकता को कम करने में सहायक हो सकते हैं।

आगे की राह: 

  • जलवायु परिवर्तन के साथ तापमान और ग्लोबल वार्मिंग में तेजी से वृद्धि हो रही है, तापमान या ऊष्मा की मात्रा को  कम करने और उसका मुकाबला करने हेतु  अनुकूलन रणनीतियों (Adaptation Strategies) को विकसित करना महत्त्वपूर्ण  हो गया है।
  • अनुकूलन रणनीतियों में बेहतर डिज़ाइन के माध्यम से प्राकृतिक रूप से ठंडी इमारतों को निर्मित करना, शीतलन उपकरणों की दक्षता में सुधार करना, नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित ऊर्जा कुशल कोल्ड चेन को बढ़ावा देना और ठंडी  गैसों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना है जो पृथ्वी को गर्म होने या नुकसान पहुँचने से रोकने  में सहायक साबित हों।
  •  शहरी क्षेत्रों में पेड़-पौधों या अन्य वनस्पतियों को लगाने हेतु पर्याप्त स्थान का अभाव हो सकता है। ऐसी स्थिति में सड़क के किनारे उपस्थित खाली जगहों तथा बंजर क्षेत्रोंं में छोटी हरी घास आदि को लगाया जा सकता है।
  • छतों को हरे रंग की चादरों या नेट से ढककर तथा सड़कों को हल्के रंग की कंक्रीट (सलेटी या गुलाबी रंग ) से निर्मित किया जा सकता है क्योकि हल्के रंग ऊष्मा की कम मात्रा को अवशोषित करते हैं तथा सूर्य के प्रकाश की अधिक मात्रा को परावर्तित करते हैं  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत अमेरिकी मुद्रा व्यवहार निगरानी सूची में

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने भारत समेत 11 देशों को उनकी मुद्रा के व्यवहार को लेकर ‘मुद्रा व्यवहार निगरानी सूची’ (करेंसी मैनिपुलेटर्स वॉच लिस्ट) में रखा है।

  • दिसंबर 2020 की रिपोर्ट में भारत इस सूची में था। वर्ष 2019 में यूएस ट्रेज़री विभाग ने भारत को अपनी ‘करेंसी मैनिपुलेटर्स वॉच लिस्ट’ में प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की सूची से हटा दिया था।

प्रमुख बिंदु:

करेंसी मैनिपुलेटर्स:

  • यह अमेरिकी सरकार द्वारा उन देशों का एक वर्गीकरण है, जिनके बारे में अमेरिका यह  महसूस करता है कि वे देश डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा का जान-बूझकर अवमूल्यन करके "अनुचित मुद्रा व्यवहारों" में संलग्न हैं।
  • अर्थात् किसी देश द्वारा दूसरे देश की तुलना में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिये अपनी मुद्रा के मूल्य को कृत्रिम रूप से कम किया जाना।
  • इसका कारण यह है कि अवमूल्यन के कारण उस देश से होने वाले निर्यात की लागत कम हो जाएगी और इसके परिणामस्वरूप कृत्रिम रूप से व्यापार घाटे में कमी प्रदर्शित होगी।

करेंसी मैनिपुलेटर्स वॉच लिस्ट:

  • यूएस ट्रेज़री विभाग द्वारा व्यापारिक भागीदार देशों की एक सूची बनाई जाती है जिसमें ऐसे भागीदार देशों की मुद्रा के व्यवहार और उनकी वृहद आर्थिक नीतियों पर नजदीकी से नज़र रखी जाती है।
    • यह US के 20 सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों के मुद्रा व्यवहारों की समीक्षा करता है।

मानदंड:

  • वर्ष 2015 के ‘ट्रेड फैसिलिटेशन एंड ट्रेड इंफोर्समेंट एक्ट’ में तीन में से दो मानदंडों को पूरा करने वाली अर्थव्यवस्था को वॉच लिस्ट में रखा जाता  है। इनमें यह भी शामिल है:
    • अमेरिका के साथ महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय व्यापार अधिशेष- जो 12 महीने की अवधि में कम-से-कम 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो।
    • 12 महीने की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के कम-से-कम 2% के बराबर चालू खाता अधिशेष।
    • निरंतर, एकतरफा हस्तक्षेप- जब 12 महीने की अवधि में देश की जीडीपी के कम-से-कम 2% के बराबर कुल विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद बार-बार की जाती है।
  • तीनों मानदंडों को पूरा करने वाले देशों को यूएस ट्रेज़री विभाग द्वारा करेंसी मैनिपुलेटर्स के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

वर्तमान सूची:

  • सूची में अन्य देश:
    • भारत के साथ सूची में अन्य 10 देश- चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, आयरलैंड, इटली, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और मैक्सिको को भी इस सूची में रखा गया है।
  • चीन में विकास प्रक्रिया की संदिग्धता:
    • वर्ष 2020 में चीन में आर्थिक विकास अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से अधिक हुआ, लेकिन यह विनिर्माण के फिर से शुरू होने और विशेष रूप से चिकित्सा आपूर्ति, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक्स की बाहरी मांग में वृद्धि से प्रेरित है।
    • चीन की रिकवरी के बारे में लगातार सवाल बना हुआ है क्योंकि उसकी घरेलू खपत में वृद्धि अनुपस्थित है।
    • विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप में चीन की विफलता और इसकी विनिमय दर तंत्र में पारदर्शिता की कमी तथा राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों की गतिविधियाँ ‘रेनमिनबी’ (चीन की मुद्रा) के विकास की करीब से निगरानी करती हैं।

भारत की स्थिति:

  • भारत को तीन में से दो मानदंडों के आधार पर इस सूची में डाला गया जो व्यापार अधिशेष और निरंतर, एकतरफा हस्तक्षेप हैं।

प्रभाव:

  • सूची में शामिल करना किसी भी तरह के दंड और प्रतिबंधों के अधीन नहीं है लेकिन यह निर्यात लाभ हासिल करने के लिये मुद्राओं के अवमूल्यन सहित विदेशी मुद्रा नीतियों के संदर्भ में वित्तीय बाज़ारों में देश की वैश्विक वित्तीय छवि को खराब करता है।

What-it-means

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

NEFT और RTGS भुगतान प्रणाली संचालकों के लिये प्रत्यक्ष सदस्यता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने चरणबद्ध तरीके से भुगतान प्रणाली संचालकों को RTGS और NEFT में प्रत्यक्ष सदस्यता लेने की अनुमति दी है।

केंद्रीकृत और विकेंद्रीकृत भुगतान प्रणाली:

  • वे केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) प्रणाली और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (NEFT) प्रणाली तथा किसी भी अन्य प्रणाली के रूप में शामिल होंगे जिसमें समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्णय लिया जा सकता है।
    • RTGS: यह लाभार्थियों के खाते में वास्तविक समय पर धनराशि हस्तांतरण की सुविधा को सक्षम बनाता है और इसका प्रयोग मुख्य तौर पर बड़े लेन-देनों के लिये किया जाता है।
      • यहाँ ‘रियल टाइम’ अथवा वास्तविक समय का अभिप्राय निर्देश प्राप्त करने के साथ ही उनके प्रसंस्करण (Processing) से है, जबकि ‘ग्रॉस सेटलमेंट’ या सकल निपटान का तात्पर्य है कि धन हस्तांतरण निर्देशों का निपटान व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। 
    • NEFT: एक देशव्यापी भुगतान प्रणाली है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है। इस प्रणाली के तहत कोई व्यक्ति, फर्म और कंपनी दूसरी बैंक शाखा में खाता रखने वाले किसी भी अन्य व्यक्ति, फर्म या कंपनी के बैंक खाते में तथा देश में स्थित किसी अन्य बैंक शाखा में इलेक्ट्रॉनिक रूप से धन हस्तांतरित कर सकता है।
      • इसका उपयोग आमतौर पर 2 लाख रुपए तक के फंड ट्रांसफर के लिये किया जाता है। 
  • विकेंद्रीकरण भुगतान प्रणाली में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समाशोधन व्यवस्था [चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS) सेंटर] के साथ-साथ अन्य बैंकों [एक्सप्रेस चेक क्लियरिंग सिस्टम (ECCS) केंद्रों की जाँच] और किसी भी अन्य प्रणाली के रूप शामिल होंगे जिसमें समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्णय लिया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

भुगतान प्रणाली संचालकों  के लिये NEFT और RTGS की प्रत्यक्ष सदस्यता:

  • परिचय :
    • यह वित्तीय प्रणाली में निपटान जोखिम को कम करने और सभी उपयोगकर्त्ताओं तक डिजिटल वित्तीय सेवाओं की पहुँच बढ़ाने का प्रयास करेगा।
    • हालाँकि ये इकाइयाँ इन केंद्रीकृत भुगतान प्रणालियों (CPSP) में अपने लेन-देन के निपटान की सुविधा के लिये RBI से किसी भी तरलता सुविधा हेतु  पात्र नहीं होंगी ।
    • गैर-बैंकों के लिये इसकी कुल सीमा 2 लाख रुपए है।
  • CPS के सदस्य बनने वाले गैर-बैंक निकाय:

नकद निकासी की सुविधा:

  • RBI ने गैर-बैंक पीपीआई जारीकर्त्ताओं के पूर्ण केवाईसी वाले पीपीआई के लिये भी एक सीमा के अधीन नकद निकासी की सुविधा की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया है।
  • वर्तमान में बैंकों द्वारा जारी केवल पूर्ण केवाईसी वाले पीपीआई के लिये नकदी निकासी की अनुमति है और यह सुविधा एटीएम तथा प्वाइंट ऑफ सेल (PoS) टर्मिनल के माध्यम से उपलब्ध है।
  •  इस तरह के पीपीआई धारकों जिनको यह सुविधा दी गई है कि वे आवश्यकतानुसार नकदी आहरित कर सकते हैं, उनको नकदी रखने के लिये  कम प्रोत्साहित किया जाता है जिसके फलस्वरूप उनके द्वारा डिजिटल लेन-देन की संभावना अधिक है

लाभ

  • डिजिटल लेन-देन में बढ़ोतरी
    • बीते 4-5 वर्षों में जब से यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) को ‘थर्ड पार्टी एग्रीगेटर्स’ के लिये खोला गया है, तब से इसके उपयोग में महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखने की मिली है, इसी तरह से गैर-बैंकों को भुगतान प्रणाली में प्रवेश की अनुमति देने से डिजिटल पेमेंट और लेन-देन में महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखने को मिल सकती है।
    • यह गैर-बैंकों को पूर्ण KYC (‘नो योर कस्टमर’) अनुपालन और इंटरऑपरेबिलिटी/अंतर-संचालनीयता में सक्षम बनाएगा।
  • लेन-देन का बेहतर रिकॉर्ड
    • यह बैंकिंग प्रणाली के बाहर मौजूद चैनलों पर डिजिटल लेन-देन करने वाले सभी व्यक्तियों का एक डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करेगा, जो समग्र वित्तीय प्रणाली के लिये मददगार होगा।
  • बाज़ार आकार में वृद्धि
    • PPI वॉलेट की इंटरऑपरेबिलिटी/अंतर-संचालनीयता बाज़ार के आकार का विस्तार करेगी, जो कि अंतिम उपभोक्ताओं के लिये फायदेमंद होगा।
  • वित्तीय समावेशन
    • यह PPI जारी करने वालों के लिये नए अवसर उत्पन्न करेगा क्योंकि वे वॉलेट उपयोगकर्त्ताओं को RTGS और NEFT सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम होंगे। समग्र तौर पर इससे देश में वित्तीय समावेशन और मज़बूत होगा।

चिंताएँ

  • गैर-पारंपरिक बैंकों के माध्यम से फंड ट्रांसफर और नकद निकासी की शुरुआत निश्चित रूप से एक बदलते बैंकिंग परिदृश्य का संकेत है। हालाँकि इसके परिणामस्वरूप पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।
  • रिज़र्व बैंक की मानें तो भारत फिनटेक अपनाने की 87 प्रतिशत दर के साथ एशिया में शीर्ष फिनटेक हब बनने की राह पर है। ज्ञात हो कि वैश्विक स्तर पर फिनटेक अपनाने की औसत दर लगभग 64 प्रतिशत है।
    • फिनटेक (वित्तीय प्रौद्योगिकी) का आशय उपभोक्ताओं के अनुभव और सेवा वितरण में सुधार करने हेतु वित्तीय सेवा कंपनियों द्वारा प्रौद्योगिकी के एकीकरण से है।
  • वर्ष 2019 में भारत में फिनटेक का बाज़ार मूल्य लगभग 1.9 लाख करोड़ रुपए था और अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2025 तक यह डिजिटल भुगतान, डिजिटल ऋण, पीयर-टू-पीयर ऋण, क्राउड फंडिंग, ब्लॉक चेन, बिग डेटा और सुपरटेक जैसे विविध क्षेत्रों में 6.2 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच जाएगा।

आगे की राह

  • एक ऐसे परिवेश में जहाँ फिनटेक कंपनियाँ डिजिटल लेन-देन की मात्रा के मामले में अग्रणी हैं और बैंकिंग तथा वित्त उद्योग में अधिक सक्रिय भूमिका निभा रही हैं, यह आवश्यक है कि वाणिज्यिक और पारंपरिक बैंक स्वयं को तकनीकी परिवर्तनों के अनुकूल बनाएँ और इन संस्थाओं के साथ मिलकर काम करें, ताकि भविष्य में वे व्यापार के लिये फिनटेक कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के बजाय एक समावेशी और मज़बूत वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर सकें। 

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


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