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ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट

  • 19 Apr 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

इंसुलिन की खोज के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने ‘ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट’ (Global Diabetes Compact) प्रस्तुत किया गया है जिसका एक अहम उद्देश्य, उन निम्न व मध्य आय वाले देशों में गुणवत्तापूर्ण इंसुलिन की सुलभता सुनिश्चित करना है जहाँ फिलहाल, इसकी मांग को पूरा कर पाना मुश्किल है।   

  • इस कार्यक्रम को कनाडा सरकार द्वारा सह-आयोजित ग्लोबल डायबिटीज समिट (Global Diabetes Compact) के दौरान लॉन्च किया गया।

प्रमुख बिंदु

ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट- परिचय:

  • ग्लोबल डायबिटीज कॉम्पैक्ट का लक्ष्य डायबिटीज के खतरे को कम करना और यह सुनिश्चित करना है कि डायबिटीज से पीड़ित सभी लोगों को न्यायसंगत, व्यापक, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण उपचार एवं देखभाल तक पहुँच प्राप्त हो।
  • यह मोटापा, अस्वास्थ्यकर आहार और शारीरिक निष्क्रियता के कारण होने वाले टाइप 2 डायबिटीज की रोकथाम का भी समर्थन करेगा।
  • यह डायबिटीज संबंधी देखभाल तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ‘वैश्विक कवरेज़ लक्ष्यों’ के रूप में बीमारियों से निपटने हेतु मानक तय करेगा।
  • कार्यक्रम का एक प्रमुख उद्देश्य नई गति और समाधान पैदा करने के सर्वनिष्ठ एजेंडे के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों से महत्त्वपूर्ण हितधारकों तथा मधुमेह से ग्रस्त लोगों को एकजुट करना है।

डायबिटीज/मधुमेह:

  • मधुमेह एक गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Disease- NCD) है जो या तो तब होता है जब अग्न्याशय (Pancreas) पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन (एक हार्मोन जो रक्त शर्करा या ग्लूकोज को नियंत्रित करता है) का उत्पादन नहीं करता है, या जब शरीर प्रभावी रूप से उत्पादित इंसुलिन का उपयोग नहीं कर सकता।
  • इसे दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
    • टाइप 1 डायबिटीज: यह तब होता है जब अग्न्याशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन करेने में असमर्थ होता है।
    • टाइप 2 डायबिटीज: टाइप 2 डायबिटीज, डायबिटीज का सबसे सामान्य प्रकार है। इस स्थिति में शरीर इंसुलिन का उचित तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इसे इंसुलिन प्रतिरोध कहा जाता है। टाइप 2 मधुमेह होने का मुख्य कारण मोटापा और व्यायाम की कमी है।

इंसुलिन 

  • इंसुलिन अग्न्याशय द्वारा स्रावित एक पेप्टाइड हार्मोन है जो सेलुलर ग्लूकोज स्तर को बनाए रखने, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड एवं प्रोटीन चयापचय को विनियमित करने तथा कोशिका विभाजन और इसके माइटोजेनिक प्रभावों के माध्यम से विकास को बढ़ावा देकर सामान्य रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है।
  • इसकी खोज वर्ष 1921 में टोरंटो विश्वविद्यालय के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. फ्रेडरिक बैंटिंग और मेडिकल छात्र चार्ल्स बेस्ट ने की थी। 
  • डॉ. बैंटिंग ने इस खोज के लिये वर्ष 1923 में प्रोफेसर मैकलियोड जो कार्बोहाइड्रेट चयापचय के प्रोफेसर थे, के साथ नोबेल पुरस्कार जीता।

वैश्विक रूप से डायबिटीज की स्थिति:

  • वर्तमान में विश्व की कुल आबादी का 6% (420 मिलियन से अधिक लोग) या तो टाइप 1 डायबिटीज से ग्रसित है या  टाइप 2 डायबिटीज से।
  • यह एकमात्र ऐसा प्रमुख गैर-संचारी रोग है, जिसमें जल्दी मौत होने का जोखिम, कम होने के बजाय बढ़ रहा है।
  • कोविड-19 से गंभीर रूप से संक्रमित व अस्पतालों में भर्ती लोगों में एक बड़ी संख्या उनकी है जो डायबिटीज के मरीज हैं।
    • इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन डायबिटीज एटलस, 2019 में मधुमेह से ग्रसित लोगों की संख्या के मामले में भारत को शीर्ष 10 देशों में शामिल किया गया।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • भारत के राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग (NCD) लक्ष्य का उद्देश्य मोटापे और मधुमेह के प्रसार में होने वाली वृद्धि पर अंकुश लगाना है।
  • विभिन्न स्तरों पर तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु वर्ष 2010 में  शुरू किया गया राष्ट्रीय कैंसर, मधुमेह, हृदयवाहिका रोग और आघात रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम (NPCDCS)।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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